शनिवार, 12 सितंबर 2020

ब्राह्मण की परिभाषा :

उत्तर भारत में इन दिनों रोज नये नये ब्राह्मण संगठन बन रहे हैं! जो लोग ऋगवेद का ऋ लिखना नही जानते, जो अग्निहोत्र का अग्नि मंत्र नही जानते,जिनको ब्रह्मसूत्र,उपनिषद और वेदांत का फर्क नही मालूम, जो मूढ़मति 'ब्रह्मकर्म स्वभावजम्' का मतलब नही समझते और जिनमें ब्राह्मणत्व का नामोनिशान नही, वे लोग आजकल सोशल मीडिया पर ब्राह्मण एकता और संगठित होने की बात कर रहे हैं!
किसी वर्ग विशेष का संगठित होना गलत नहीं! किंतु पहले ऐजेंडा तय होना चाहिए कि संगठित होकर वे क्या करना चाहते हैं ? संगठित होकर ब्राह्मण किस वर्ग के खिलाफ संघर्ष करेंगे! क्योंकि हिंदू सनातन परंपरा और शास्त्र अनुसार क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण के बिना ब्राह्मण का अस्तित्व ही नही बचेगा! अर्थात ब्राह्मण के हाथ में हिंदुत्व की धर्म ध्वजा है और शेष हिंदू उसके अनुगामी हैं!
कहने का अभिप्राय यह है कि ब्राह्मण संगठित होकर किससे हक मांगेगे? एक ब्राह्मण के लिए पुरोहिताई या धार्मिक सामाजिक- कार्य के लिये अन्य तीन वर्णों का होना बहुत जरुरी है कि नही? इसके लिये न केवल वर्ण व्यवस्था जरूरी है बल्कि उनसे सौहार्द भी जरूरी है! सौहाद्र के लिये ब्राह्मणों की एकता नही संपूर्ण हिंदू समाज की एकता और आपसी भाईचारा जरूरी है!
बदलते वैज्ञानिक परिद्रश्य में न केवल ब्राह्मण बल्कि समस्त हिंदू समाज की जीवन शैली में पर्याप्त बदलाव आया है! तदनुरुप सार्वजनिक जीवन में प्रगतिशील मूल्यों का समावेश करते हुए -बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय की वकालत की जानी चाहिए!
कुछ अपढ़ कुपढ़ लोग इन मुद्दों पर आँख मूदकर दीगर समाजों की तरह,कुए के मैंढक की भांति ब्राह्मण संगठन बनाने का अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं! कुछ लोग समझते हैं कि ब्राह्मण के यहां पैदा हो गये तो ब्राह्मणत्व उनकी बपौती हो गई! यदि कोई असली ब्राह्मण होगा तो वह हमेशा याद रखेगा कि :
"अयं निज परोवेति, गणना लघुचेतसाम्!
उदार चरितानाम् तू वसुधैव कुटुंबकम!! "
अर्थ :- ब्राह्मण की सोच इतनी टुच्ची नही होती कि ये मेरा है, वो तेरा है,बल्कि ब्राह्मण तो सारे ब्रह्मांड के सकल जीवों में थलचर, जलचर, नभचर में, हर जाति हर धर्म के मनुष्य में और नास्तिक में भी एक ही परम ब्रह्म परमेश्वर को देखता है!
"मानुष की जात सबै एको पहिचानवो "
याद रहे कि ब्राह्मण की परिभाषा : अनुसार
"शमो दमस्तप :शौचं शांति आर्जवमं एव च!
ज्ञानम् विज्ञानम् आस्तिक्यम्, ब्रह्म कर्म स्व
भावजम् !"
(श्रीमदभगवदगीता)
या
"ब्रह्मो जानाति स ब्राह्मण :"
की कसौटी पर खरा उतरने वाला ही असल ब्राह्मण है!
इति .....द्वारा श्रीराम तिवारी

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