वेशक पाली,प्राकृत,अपभृंश अब भले ही केवल इतिहास की धरोहर बनकर रह गईं हों,संस्कृत और उसका वैदिक वाङ्ग्मय भले ही केवल पूजापाठ और ईश आराधना के साधन मात्र रह गए हों।लेकिन हिंदी भाषा ज्ञान के बिना किसी नेता या दल का केंद्र की सत्ता में आ पाना मुश्किल है। मध्यप्रदेश,राजस्थान ,यूपी,बिहार,छग,हिमाचल,झारखण्ड और दिल्ली की राजनीतिमें हिंदी भाषा ज्ञान के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। बिना हिंदी भाषाज्ञान के किसी भी नेता या दल का केंद्रीय राजनीती में सफल होना अब असम्भव है। भारत में हिंदी नहीं जाननेवाला अफसर चल सकता है ,डॉक्टर-वकील चल सकता है ,इंजीनियर भी चल सकता है ,लेकिन नेता-अभिनेता नहीं चल सकता। हिंदीभाषी जनताको तो हिंदी नहीं जानने वाला नेता बिना पूंछ का पशु नजर आता है। जबसे नरेन्द्र मोदीजी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं ,तबसे भले ही देश रसातल में धस रहा हो,किंतु हिंदी हवा में उड़ रही है। यूरोप ,इंग्लैंड,अमेरिका और विश्व के अन्य देशों के प्रवासी भारतीय और एनआरआई सबके सब संघमय होकर 'हर-हर मोदी का नारा लगाकर जता रहे हैं कि उन्हें न सिर्फ 'हिंदी'आती है बल्कि वह उन सभी के दिलों में बस रही है। कुम्भ के मेले में, तीर्थ स्थानों में और दर्शनीय स्थलों पर विदेशी भी धड़ल्ले से हिंदी बोलते पाए जाते हैं। कुछ तो संस्कृत भी अच्छी खासी बोल लेते हैं।
(हिंदी दिवस पर खुद के ब्लॉग से)
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