गुरुवार, 10 सितंबर 2020

आसमान में बादल देखकर सुराही नही फोड़ना चाहिए!*


मैं शुद्ध शाकाहारी सनातनी हिंदू कान्यकुब्ज ब्राह्मण अवश्य हूँ,किंतू पोंगा पंडित कतई नही हूँ! अवैज्ञानिक कर्मकांड में मेरा कोई यकीन नही है! इसकी बजह शायद यह है कि सौभाग्य से मैं गणित भौतिकी रसायन पाश्चात्य दर्शन विज्ञान और वेदांत दर्शन का अध्येता हूँ! और इसके अलावा ट्रेड यूनियन आंदोलन में 40 साल काम करने के उपरांत मेरे सोचने का ढंग औरों से सर्वथा भिन्न है!
चूंकि मेरा नजरिया वैज्ञानिक भौतिकवादी-तर्कवादी है!इसालिये मैं धार्मिक मजहबी पाखंड के खिलाफ हूँ !किंतु मेरे दीर्घकालीन अध्यन का सारतत्व यह है कि जब तलक कोई महान क्रांति नही हो जाती कम से कम तब तक नैतिक शिक्षा,सत्धर्म,सत्कार्य और अध्यात्म विज्ञान पर प्रगतिशाल कतारों का हमला नही होना चाहिये! मेरा मानना है कि आर्थिक समानता पर जोर होना चाहिए न कि धर्म जाति के दल दल में समाज को विभाजित कर दिया जाए! दरसल शोषक और शोषित का संघर्ष ही विज्ञान सम्मत है! जातीय संघर्ष,आरक्षण या ऐस्टरोसिटी एक्ट इत्यादि से समाज में नकारात्मक संघर्ष होगा, सर्वहारा क्रांति नही होने वाली!
यह सच है कि देश-समाज और व्यक्ति में उत्ररोत्तर सकारात्मक बदलाव तभी आ सकता है,जब उत्पादन के साधनों पर सर्व समाज का सामुहिक स्वामित्व हो!इसके लिये राजसत्ता ऐंसे लोगों के हाथ में हो जिनकी सोच मार्क्सवादी द्वंदात्मक दर्शन से प्रेरित हो!न कि जाति,मजहब या धर्म पर आश्रित हो!चूंकि अभी तक सभ्य दुनिया में एकमात्र यह मार्क्सवादी दर्शन ही परिपूर्ण और सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हो पाया है!अतएव मैं तमाम किसानों,मजदूरों अर्थात मेहनतकशों की व्यापक एकता का पक्षधर हूँ!
मैं केवल किताबी या पिछलग्गू मशीनी भेड़चाल वाला मार्क्सवादी नही हूँ!बल्कि भारतीय साहित्य,कला,संगीत,आदर्शोन्मुखी मानवीय मूल्यों का बहुत आदर करता हूँ! अत: जब तक कोई क्रांति घटित नही हो जाती या पूंजीवाद अपनी मौत नही मरता या वैश्विक परिप्रेक्ष्य नही बदलता तब तक सामंतवाद और पूंजीवाद से इतर भारतीय आदर्शवादी मानव जीवन का समर्थन करता हूँ!

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