गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मुझसे डरो ना!

 लीजिये तो पेश-ये-खिदमत है कोरोनाकालीन कबि की उत्कृष्ठ रचना

😃
राम युग में दूध मिले, और कृष्ण युग में घी;
कोरोना युग में काढा मिले,डिस्टेंस बना कर पी!
जब दुनियाँ लेके बैठी है,
बड़े-बड़े परमाणु;
और ठोंक गया एक,
उसे एक छोटा सा विषाणु!
जब जलने लगे
अर्थव्यवस्था के फेफड़े,
तब सरकार को
याद आये बेवड़े!
कल रात सपने में
आया कोरोना;
उसे देख जो मैं डरा 😢
और शुरू किया रोना;
तो,मुस्कुरा 😊 के
वह बोला;
"मुझसे डरो मत,
कितनी अच्छी है
तुम्हारी संस्कृति;
न चूमते,न गले लगाते;
दोनों हाथ जोड़कर,
तुम स्वागत करते;
वही करो ना,
मुझसे क्यों डरते?
कहाँ से सीखा तुमने,
रूम स्प्रे,बॉडी स्प्रे;
पहले तो तुम धूप,दीप,
कपूर,अगरबत्ती जलाते;
वही करो ना,
मुझसे बिल्कुल डरो ना!
शुरू से तुम्हें
सिखाया गया,
अच्छे से हाथ पैर
धोकर घर में घुसो;
मत भूलो,
अपनी संस्कृति;
वही करो ना,
मुझसे बिल्कुल डरो ना!
सादा भोजन,
उंच्च विचार,
यही तो हैं
तेरे संस्कार;
उन्हें छोड़,
जंक फूड,
फ़ास्ट फूड के
चक्कर में पड़ो ना;
मुझसे बिल्कुल डरो ना!
शुरू से ही
पशु-पक्षियों को,
पाला-पोसा,प्यार दिया;
रक्षण की है,
तुम्हारी संस्कृति;
उनका भक्षण करो ना,
मुझसे ज़रा भी डरो ना!
कल रात सपने में,
आया कोरोना;
बोला;
अपनी संस्कृति का ही
पालन करो ना,
मुझसे जरा भी डरो ना!"

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