मंगलवार, 10 जुलाई 2018

डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय' बनाम 'अम्बानी, University of Eminenceऔर बाज़ार"


मैं स्वयं डॉ.सर हरीसिंह गौर द्वारा स्थापित सागर विश्वविद्यालय में पढ़ा हूँ. सन् 1946 -48 में स्थापित यह भव्य विश्वविद्यालय आज एक आधुनिक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है! परन्तु तब यह डॉ. हरीसिंह गौर की निजी कमाई से बनाया गया था. डॉ.सर हरीसिंह गौर आज के अम्बानियों की तरह कोई अरबपति - खरबपति व्यापारी या सत्ता के दलाल नहींथे जिनके लिए स्कूल-कॉलेज खोलना इमेज मेकिंग, ब्लैक मनी से वाइट कन्वर्शन या घर बैठी फुरसती पत्नियों को परोपकार का मनोरंजन करवाने का एक जरिया होता है. वे एक वकील, शिक्षाविद, लेखक तथा कानून सुधारक थे. उनका जन्म सागर के एक गरीब परिवार में ही हुआ था और स्कालरशिप के ज़रिये वे कैंब्रिज पढने गए थे. वे दिल्ली और नागपुर विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति भी रहे और अंत में उन्होंने सागर जैसे पिछड़े क्षेत्र में एक विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की स्थापना की. मितव्ययी ऐसें कि कार नहीं खरीदी, हमेशा थेगडे लगे कोट पहनते रहे, विश्वविद्यालय में एक एक पैसा लगाते रहे!
भारत के श्रेष्ठतम प्रोफेसर जो भारत में कई विषयों के जन्मदाता भी माने जाते है, इस सुविधाविहीन शहर में पढ़ाने बुलाये गए.
डॉ.गौर को सागर में विश्वविद्यालय बनाने में तमाम असुविधाओं का सामना करना पड़ा. कहते हैं यहाँ स्याही तक नहीं मिलती थी. डॉ गौर को जबलपुर में विश्वविद्यालय बनाने का प्रस्ताव दिया गया था जो सुविधायुक्त और फायदेमंद साबित होता पर वे लाभ-हानि के गणितको नहीं ज़रुरत के विज्ञान को तवज्जो देते रहे. कई वर्षों तक यह संस्था विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय में गिनी जाती रही. विख्यात दार्शनिक ओशो,महर्षि महेश योगी,आशुतोष राणा इत्यादि ने यहीं से शिक्षा प्राप्त की थी! परन्तु कम उपजाऊ ज़मीन पर एक उन्नत बीजभी कितनाही संघर्षकरे किंतु कुटिल राजनीतिके कारण धीरे-धीरे इसका स्तर गिरता गया.उसका स्तर ऊूंचा उठानै के बजाय भारत के रहनुमा अम्बानी जिओ एजुकेशन इंस्टिट्यूट' खोलने जा रहे हैं. इतने दशकों से पैसा कमा रहे हैं पर इन्हें यह संस्था तब खोलना है जब प्रधानमंत्री एक अतिभेदभाव और बाजारू किस्म की पूर्ण अनैतिक “University of Eminence” योजना की घोषणा एक भाषण में करते हैं. उनकी घोषणाएं किसी राजा की तरह भाषणों में ही होती हैं, संसद में नहीं. इस योजना के अंतर्गत चुनिन्दा शिक्षणसंस्थाओं को हजार करोड़ की ग्रांट दी जाएगी. इसके विपरीत यूजीसी के फंड में लगातार कटौती की जाती रही. एक अजीब किस्म की टैक्स मोरालिटी लादी गई कि विश्वविद्यालयों में राष्ट्र के टैक्स के पैसे का दुरूपयोग हो रहा है. ये कहने वाले वे लोग थे जिनका पढाई लिखाई से युवा काल से कोई वास्ता नहीं होता, जिनके चुनाव सबसे महंगे होते हैं, जो विज्ञापनों में अरबों रूपये खर्च कर चुके हैं.
University of Eminence का विचार घोर अनैतिक इसलिए है क्योकि एक ओर यह शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देता है जो हमारे राष्ट्रीय मूल्यों के खिलाफ है वही दूसरी ओर यह फाइव स्टार मॉल और झुग्गी जैसी असमानताओं को पैदा करता है. देश की पहले से स्थापित कई विश्वविद्यालयों की हालत ख़राब होने का मुख्य कारण भ्रष्टाचार और ओछी राजनीति है. यह सरकार पिछली सरकार के इसी मुद्दे को खिलाफ सत्ता में आई थी, अतः इसे शिक्षणसंस्थाओं में व्याप्त समस्याओं को दूर करना चाहिए था जिनमे पिछली सरकारे नाकाम रही पर यह स्थापित शिक्षण संस्थाओं पर ही जैसे ताला लगा देना चाहती है- गरीबी न हटे तो गरीबों को हटाकर एक आलिशान होटल खोल दो सब कुछ रंग बिंरगा दिखने लगता है. कुछ ऐसा ही. अम्बानी का संस्थान केवल प्रस्ताव के आधार पर University of Eminence का दर्जा पा लेता है. जहाँ तक प्रश्न अम्बानी का है तो निपट बनियाई उनका चरित्र रहा है और टैक्स चोरी उनका इतिहास. गुरु फिल्म उनकी चोरी का महिमामंडन वैसे ही करती है जैसे संजू अपराधी संजय दत्त का. देश में हरीसिंह गौर जैसो के संघर्ष की कोई चर्चा नहीं होती पर अम्बानी, सुनील दत्त जैसों के संघर्ष बाज़ार को भाते हैं और नेताओं को भी. ऐसे व्यक्ति जो भारत से अरबों रूपये कमाते हैं, अरबों की छूट पाते हैं, बेंको को चपत लगाते हैं उनके बिना बने बने कथित शिक्षण संस्थान को राष्ट्र के टैक्स का अरबो रूपये देना और जिन संस्थानों ने आज़ादी के पूर्व से ही भारत के निर्माण को आधार दिया, ऐसी महापुरुषों या राष्ट्र द्वारा स्थापित संस्थाओं के फंड में कटौती करते जाना कौन सी नैतिकता है.
ये सवाल उनसे है जो अपनी विचारधारा परोसती स्कूलों में डेढ़ घंटे नैतिक होने की प्रार्थना करवाते हैं और नैतिक शिक्षा का एक पीरियड लगवाते हैं.
अम्बानी इस कदर के बनिए हैं कि वह अपने फायदे के लिए सबसे कम नौकरी सृजित करते हैं. टाटा, अजीम प्रेमजी आदि की तुलना में उनके कर्मचारियों को सबसे कम सुविधाए प्राप्त हैं. देश के सामाजिक-शैक्षणिक विकास में इतने वर्षों में इनका कोई योगदान नहीं है. इन्होने इस देश से इतना कमा लिया है कि इन्हें बिना किसी शासकीय ग्रांट के कई शिक्षण संस्थान और स्कालरशिप स्कीम देश भर में चलानी चाहिए थी पर वे नदारद हैं. वे उतना ही इन क्षेत्र में खर्च करते हैं जितना वे करने के लिए कानूनी तरीके से बाध्य हैं इसके विपरीत हरीसिंह गौर जैसे लोग अपने लिए एक पैसा भी नहीं बचाते सब लुटा जाते हैं.


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