शनिवार, 14 जुलाई 2018

अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत -: कार्ल मार्क्स

  • सामान्य रूप से यह समझ जाता है कि धन और पूंजी एक ही चीज है,लेकिन यह दोनों एक ही चीज नहीं है।हर तरह की पूंजी धन है,लेकिन हर धन पूंजी नहीं है।धन का वह भाग जो धन को बढ़ाने के लिए काम में लाया जाता है वही धन हीपूंजी है।कोई भी धनवान व्यक्ति प्रायःअपना सारा धन ,धन कमाने में नहीं लगाता।क्योंकि उस धन का प्रतिफल जल्द ही नहीं मिलता।मिल कारखाना खड़ा करने और उससे उत्पादन लेने में कई कई साल भी लग जाते है और धन डूब जाने की भी संभावना रहती है।प्रायः यह समझा जाता है कि पहले के व्यापारियों ने अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई को मिल कारखानों में लगाया तब जाकर वह पूंजीपति बने।मार्क्स का कहना है कि नहीं,पश्चिमी देशों में पूंजीवाद की स्थापना और प्रगति का कारण समुद्री डकैती की दौलत,अमरीका ,भारत,मिश्र की लूट और अफ्रीका के दासों के व्यापार आदि की दौलत थी।अफ्रीका के सभ्यता से दूर नंगे आदिवासियों को पकड़ कर यूरोपीय व्यापारियों को बेचने वाले भी यूरोपीय व्यापारी ही थे।वह बंदूकों और जाल की मदद से लोगों पकड़ कर दासों बना कर बेच दिया जाता था।झुंड के झुंड अफ्रीकी पकड़े जाते थे।लूट और दूसरे क्रूरता से पैदा हुआ धन जिन देशों में गया वहां के सामंती शासकों ने उसका सहर्ष स्वागत किया और इस तरह के क्रूरता पूर्ण तरीके से पैदा किए गए धन को वैध बनाने का काम किया जाता रहा।उदाहरण के लिए सोलहवीं सदी में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने अंग्रेज़ जलदस्यु फ्रांसिस ड्रेक का ,लूट की भारी दौलत लाने पर ,उसके जहाज पर स्वयं जाकर,स्वागत ही नहीं किया,उसे ,, सर,,की उपाधि भी दिया।वह दक्षिणी अमेरिका के स्पेनी उपनिवेश के खजाने की बेशुमार दौलत को लूट कर आया था। इसी तरह का धन जिन व्यापारियों के हाथ लगा उन्होंने उस धन को उद्योग धंधे में लगाया।इं पूंजीपतियों ने जमीदारों को अपना सहयोगी बनाया। इन जमींदारों ने अपनी जमीनों से उन पर बसे किसानों कारीगरों को उजाड़ कर उसकी बाड़ा बंदी की और भेंडों को पालना शुरू किया।तब ऊन को सबसे मूल्यवान उत्पाद माना जाता था।उस समय कहा जाने लगा,,,भेड़ें लोगों को निगल रही हैं,,।इस तरह पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली कि शुरुआत हुई।क्रमशः,,,

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