- एक जन्मना महानगरीय सेवानिव्रत अधिकारी उर्फ सीनियर सिटीजन बोले-"बचपन कितना शानदार था कि छत पर सो जाओ,सोफे पर सो जाओ,माता-पिता की गोद में सो जाओ ,कहीं भी कभी भी सो जाओ,किंतु नींद बिस्तर पर ही खुलती थी!"
मेरा जबाब-"बचपन कितना तकलीफदेह है कि खेत की निदाई गुडाई करते हुये- गीली मिट्टी पर सो जाओ,भूंखे -प्यासे फसल की रखवाली करते हुये-खेत के मचान पर या ढबुआ में सो जाओ,जंगल में लकडी काटते हुये या ढोर चराते हुये- पेड के नीचे या डाल पर सो जाओ,मिट्टी पत्थर खोदते हुये खदान में सो जाओ,किंतु नींद भूंख प्यास लगने पर या किसी के लात मारने पर ही खुलती है"!
श्रीराम तिवारी
शनिवार, 14 जुलाई 2018
बचपन कितना .....?
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