भारत में जो लोग अपने आपको प्रगतिशील और क्रांतिकारी समझते हैं,जिन्हें यह गुमान है कि वे धर्मनिरपेक्षता समाजवाद ,लोकतंत्र के तरफदार हैं और जिन्हें अपनी वैज्ञानिक सोच पर नाज है, वे यदि पाकपरस्त आतंकवाद की निंदा में एक शब्द नहीं कहेंगे ,वे यदि सिमी जैसे खतरनाक अलगाववादी संगठनों की तरफ से आँख मूंदकर केवल सरकार ,सेना या पुलिस पर ही सन्देह करते रहेंगे तो देश -प्रदेश की जनता उनका साथ कभी नहीं देगी।
क्योंकि ये पब्लिक है जो नेताओं से भी ज्यादा कुछ जानती है ! इसीलिये सजग और बौद्धिक व्यक्ति को 'सापेक्ष सत्य' का सिद्धांत कभी नहीं भूलना चाहिए। और अपनी वैचारिक विश्वशनीयता के लिए उसे 'सत्य के साथ' खड़े दिखना भी जरुरी !
सभी देशवासियों को यह याद रखना होगा कि भारतीय सेना और भारतीय पुलिस की कमजोरियों पर तो हमारी संसद का काबू है। किन्तु सिमी ,अलकायदा ,जैश ऐ मुहम्मद ,आईएसआईएस और कष्मीरी पत्थरबाजों को खाद पानी कौन दे रहा है? और उनपर काबू कौन करेगा ? प्रत्येक प्रगतिशील भारतीय को सोचना होगा कि जब तक भारत पर मजहबी आतंकवाद का खतरा कायम रहेगा तब तक 'वर्ग संघर्ष' की सम्भावनाएं भी बहुत क्षीण होंगीं। यदि आतंकवाद और अलगाववाद का खतरा न हो तो देशकी जनता गरीबी-भुखमरी और असमानता के खिलाफ खुद उठ खड़ी होगी। लेकिन अभीतो सारा भारत और समस्त सन्सार इस मजहबी आतंकवाद की गिरफ्त में है। यह भी काबिले गौर है कि भारतमें जबसे मोदी सरकार सत्तामें आई है तबसे मजहबी आतकंवाद का खतरा कुछ ज्यादा बढ़ गया है। भारत के प्रगतिशील और प्रबुद्ध लोगों को मोदी सरकार की खामियों के खिलाफ जनता को लामबन्द करने का हक है किन्तु उन्हें मजहबी आतंकवाद पर भी हल्ला बोलते रहना चाहिए ! श्रीराम तिवारी !
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