बुधवार, 2 नवंबर 2016

यदि भोपाल जेल से भागे आतंकी निर्दोष थे तो वे जेल तोड़कर भागे क्यों ?


 पूँजीवादी  व्यवस्था से लड़ना क्रांतिकारी कर्तव्य है, साम्प्रदायिकता एवम तानाशाही से लड़ना लोकतंत्र के हित में है और शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना  देशभक्तिपूर्ण दायित्व है। केंद्र सरकार या राज्य सरकार के गलत कामकाज की आलोचना पूर्णतः जायज है ,और इसलिए मैं स्वयम  मजदूर विरोधी नीतियों की हमेशा निंदा करता हूँ। देश विरोधी नीतियों के खिलाफ जायज संघर्ष हर देशवासीका संवैधानिक अधिकार भी है। किन्तु जिन आतंकियों ने दर्जनों हत्याएं कीं हों,जिन दुर्दान्त आतंकियों ने 'भारत राष्ट्र'के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा हो ,जिन खूनी आतंकियों ने भारतीय संविधान को गालियाँ  दीं  हों ,जिन आतंकियों ने जजों को गालियाँ दीं हों ,जिन आतंकियों ने जेल में ऐयाशी का सामान जुटाया हो और कैमरे के माध्यम से डीआईजी समेत तमाम पुलिस वालों और वकीलों पर थूंकने का दुष्कर्म किया हो ,उन दुष्ट - बदमाशों के खिलाफ तो देश की अमनपसन्द आवाम को एकजुट होना चाहिए। किन्तु बड़े दुर्भाग्य की बात है कि कुछ लोग 'आतंकवादियों' के हश्र पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। यदि भोपाल जेल से भागे आतंकी निर्दोष थे  तो वे जेल तोड़कर भागे क्यों ?  यदि किसी को लगता है कि वे आतंकी नहीं थे ,बल्कि निर्दोष नागरिक थे तो  कोर्ट में तत्सम्बन्धी मुकद्दमा दायर किया जाना चाहिए और संसद में उनकी बेगुनाही के सबूत पेश किये जाना चाहिए । और यदि वे बाकई  देश के दुश्मन थे ,आतंकी थे तो उनके मारे जाने पर मध्यप्रदेश पुलिस को  तहेदिल से शाबासी मिलनी चाहिए ! श्रीराम तिवारी !

प्रति मेरे मन में कोई शृद्धा उनका  ?

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