बुधवार, 30 नवंबर 2016

प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ध्यान रखना उनका परम कर्तव्य है।


अन्याय अत्याचार से लड़ना ,जुल्म और उत्पीड़न का प्रतिवाद करना पूर्णतः न्यायोचित है। किन्तु किससे लड़ना ? क्यों लड़ना ? पहले  इसका निर्धारण होना बहुत जरुरी है। वैज्ञानिक और प्रगतिशील नजरिये वाला मनुष्य अच्छी तरह जनता है कि सापेक्ष रूप से इस संसार में  निरपेक्ष सत्य कुछ भी नहीं है। खास तौर से  संसदीय राजनीति में कोई भी व्यक्ति अथवा विचार परफ़ेक्ट या पूर्ण नहीं है। जब  ब्रह्मांड में ही कोई वस्तु,व्यक्ति ,विचार या दर्शन पूर्ण नहीं है और कोई भी आलोचना से परे नही है,तब ''काजल की कोठरी' कही जाने वाली इस सियासत का कोईभी  प्राणी आलोचना से परे कैसे हो सकता है ? राजनीति में या सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों को हमेशा याद रखना चाहिए कि वे आलोचना से  परे नहीं हैं और उनके लिए भी सत्य केवल सापेक्ष ही होता है।

भारत में सत्तापक्ष के नेता और मंत्री गण जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वर्तमान राजनैतिक विपक्ष केवल पाप का घड़ा है। या कि सत्ताधारी नेता पूर्णतः पुण्यात्मा और धर्मात्मा हैं! विपक्ष की तरफ के लोग भी  रात-दिन केवल सरकार और मोदीजी की आलोचना में व्यस्त हैं। याने  दोनों तरफ के 'बोलू'लोग  एक -दूसरे को महापातकी सिद्ध करने में जुटे हैं। उनसे प्रभावित सोशल मीडिया पर जो कुछ रहा है उससे  देश की आवाम पक्ष-विपक्ष में बुरी तरह  विभाजित होकर आपस में बुरी तरह बट चुकी है। न केवल बट चुकी है बल्कि गुथ्थम गुथ्था भी हो रही है। अंधराष्ट्रवाद और अंध सत्ता विरोध की राजनीति ने मर्यादाओं के तट बन्ध तोड़ दिए हैं। जो लोग मोदीजी के पर्मेनेंट विरोधी हैं और जो 'मोदी विरोधियों' के पर्मेनेंट विरोधी हैं, वे दोनोंही 'आत्मालोचना' को तैयार नहीं हैं। जबकि हकीकत में आलोचना से परे कोई नहीं हैं !

वेशक प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीतियाँ और उनका साम्प्रदायिक अतीत आलोचना के दायरे में आता है !और उनका आत्मप्रशंसात्मक -अहमन्यतापूर्ण दंभोक्त वाणीविलाश भी आलोचना के योग्य है। किन्तु एक प्रधानमंत्री के रूप में उनके लिए यह सदाशयता अवश्य प्राप्त है कि  वे देश की तमाम आवाम को एक नजर से देखें ,चूँकि वे सम्पूर्ण राष्ट्रका नेतत्व कर रहे हैं ,इसलिए प्रधान मंत्री पद की  गरिमा का ध्यान  रखना उनका परम कर्तव्य है।

वेशक मोदी जी अपने पूर्ववर्तियों से कुछ मामलों में  बेहतर  हैं। भले ही  वे नेहरू जितने कद्दावर दर्शनशात्री या अंग्रेजीदां नहीं हैं! वे इंदिरा गाँधी जितने कुशाग्र बुद्धि वाले नही हैं ,वे सरदार मनमोहन सिंह जितने महान विद्वान- अर्थशास्त्री नहीं हैं ,किन्तु  इन सभी से मोदीजी  एक मामले में फिर भी  आगे हैं। वे न केवल भारत में बल्कि भारत से बाहर भी  अधिकांस शिक्षित एनआरआई युवा वर्ग में बेहद लोकप्रिय हैं। शिक्षित युवाओं का इतना जबरजस्त समर्थन  पहले के किसी भी पीएम को प्राप्त नहीं था। नेहरू, इंदिरा या शास्त्री को भी नहीं था। सिर्फ राजीव गाँधी एकमात्र अपवाद हो  सकते हैं। क्योंकि राजीव गाँधी को मोदीजी से भी ज्यादा जन समर्थन  हासिल था।लेकिन उसकी वजह उंनकी माता जी का  बलिदान था। मेरा यह आकलन पूर्णतः सत्य न भी हो तो भी यह सापेक्ष सत्य तो अवश्य है!और सत्य केवल सापेक्ष ही होता है।

आलोचकों को पीएम मोदीजी की आलोचना करने का पूरा  है ,किन्तु मोदीजी और उनके मंत्रियों को विपक्ष की आलोचना  का हक़ तब  है,जब वे चुनावी वादों को पूरा कर चुके हों। यह भी याद रखना चाहिए कि की दोनों ओर के संवेदनशील और जिम्मेदार नेताओं को एक दूसरे के बेहतर गुणों का आदर करने का भी हक है। सन १९७१ में जब इंदिराजी के नेतत्व में ,सोवियतसंघके सहयोग से ,भारतीय फौजोंने पाकिस्तान को चीर दिया ,तो अटलजी ने इंदिराजी को 'दुर्गा' कहा था । वेशक मोदीजी ने कभी किसी कांग्रेसी नेता या पीएम की तारीफ नहीं की !उन्होंने तो अपने ही  वरिष्ठों की कभी तारीफ़ नहीं की।

मोदी जी के व्यक्तित्व की खास विशेषता है कि वे 'संघ' और भाजपा के गाडफ़ादरों से किंचित भी नहीं डरते। वे  धंधेबाज 'गौसेवकों' से भी नहीं डरते । वे शिवसेना के बाचालों से भी नहीं डरते। मोदीजी खुद ही हिन्दू धर्म के परिव्राजक रहे हैं , फिर भी वे  किसी स्वयम्भू हिंदुत्वादी नेता से या किसी भी कौम के पाखण्डी धर्मगुरु की जरा भी परवाह नहीं करते। यही वजह है कि उनके खास प्रशंसक संत [?] आसाराम को भी जेल में सड़ना पड़ रहा है। मोदी जी 'रामदल वालों' से ज़रा भी नहीं डरते। यदि डरते होते तो अयोध्या में कब का मंदिर बन गया होता। उन्होंने संघ के एजेंडे की कभी परवाह नहीं  की।

मोदीजी ने भारत के अधिकांस युवा और  शिक्षित नौजवानों को अपने प्रभाव में ले लिया है । आधुनिक तकनीक और संचार क्रांति से सुसज्जित युवाओं को मोदी जी ने  विकास की नाव पर बैठा लिया है और उनकी राजनैतिक नौका पर सवार होकर यह आधुनिक युवा पीढी २०१९ के चुनाव में  'हर-हर मोदी' या घर-घर-मोदी ' का उद्घोष ही करने वाली है। इसीलिये मोदीजी भी लगातार केवल  चुनावी बिगुल ही बजा रहे हैं। इसके अलावा वे जब कभी जिस किसी नेता या दल को अपने खिलाफ पाते हैं ,उसे नेस्तोनाबूद करने में तत्काल जुटे जाते हैं। अभी ममता ने जब ज्यादा नाटक नौटँकी की तो बंगाल में सेना ही भेज दी। पंजाब में जब अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता बढ़ती  देखी तो उन पर सीबीआई और इनकम टेक्स वालों को लगा दिया। नोटबंदी से उतपन्न मुसीबत पर देश की हैरान परेशान जनता ने जब चूँ -चा की तो उसके खिलाफ 'मोदीभक्तों' को छोड़ दिया। लेकिन उन्हें यह भृम नहीं पालना चहिये कि  सब कुछ सदा के लिए कंट्रोल में है!

यद्द्पि मोदी जी व्यक्तिशः साम्प्रदायिकता और फासिज्म से दूरी बनाते दिख रहे हैं।किन्तु उनके ही  नेतत्व में देश के कई बुद्धिजीवी मारे गए हैं ,कई साहित्यकार अपमानित हुए हैं ,देश में कुछ अमीर और ज्यादा अमीर हो गए हैं जबकि गरीब और ज्यादा गरीब हुए हैं। जबसे मोदी जी पीएम बने हैं तबसे देश की सीमाओं पर भारत के जवान पहले से कुछ ज्यादा ही शहीद होने लगे हैं। कभी उधमपुर,कभी पठानकोट,कभी उड़ी और कभी नगरोटा आर्मी- केम्प पर और  भारतीय फ़ौज पर आकस्मिक हमले किये गए हैं। हरबार सरकार का बयान सिर्फ एक ही था ''हम पाकिस्तान को''ईंट का जबाब आपत्थर से देंगे '' !जबकि पाकिस्तान की ओर से आक्रमण लगातार जारी है।

यह शुभ सूचक सन्देशहै कि नोटबंदी औरआर्थिक नीतियों की तमाम आलोचनाओं पर मोदीजी की पैनी नजर है। जब देश की जनता ने मोदीजी की विमुद्रीकरण योजना से भाजपा और उसके समर्थकों पर नाजायाज फायदा उठाने का आरोप लगाया , तो स्वयम आगे होकर मोदी जी ने अपनी पार्टी के सांसदों एवम सभी विधान सभा सदस्यों को  निर्देश किया कि  वे सभी ९ नवम्बर से ३१ दिसम्बर तक का उनका पर्सनल बैंकिंग लेंन -देन  ब्यौरा पार्टी प्रमुख अमित शाह के समक्ष  प्रस्तुत करें  !

यदि इस तरह के  कदम उठाने में  कोई राजनैतिक कुचाल है तो वह छिप नहीं पायेगी। किन्तु अभी तो सवाल यही है कि  इस विषय के  सम्बन्ध में  विपक्ष की क्या योजना है ?यदि विपक्ष ने इस कदम की अनदेखी की और केवल मोदी जी की आलोचना ही  करते रहे तो  उसका सूपड़ा साफ़ होने में कोई सन्देह नहीं। क्योंकि इससे तो मोदीजी और ज्यादा लोकप्रिय होते चले जायेंगे ! विपक्ष की भलाई इसीमें है कि पीएम के इस कदमकी आलोचना न करे ! बल्कि  खुद भी अपना-अपना व्यक्तिगत और पार्टीगत आय-व्यय  पत्रक बनाकर लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति को ,३१ दिसम्बर तक सौंप दे। इसीमें उनकी और देश की भी भलाई है। खुदा न खास्ता यदि मैं सांसद अथवा विधायक होता तो  फौरन से पेश्तर यही करता। श्रीराम तिवारी !

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