बुधवार, 2 नवंबर 2016

लोग अपने देश के सैनिकों की शहादत के लिए इतने लालायित क्यों हैं ?


 भारत में सत्ता के तमाशबीनों को जबसे 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' का झुनझुना मिला है, तभी से यह बुन्देली कहावत चरितार्थ हो रही है कि ''नंगू  कैं गड़ई  भई - बेर-बेर हगन गई ''! हमारे तमाम महापराक्रमी , महातेजस्वी अमित -बलशाली  स्वयम्भू 'राष्ट्रनायक'  भारतीय सेना की शहादत के यशोगान में जुट गए। इस बार की दीपावली पर  सैनिकों के सम्मान में एक अतिरिक्त दिया जलाने का प्रतीकात्मक आह्वान भी किया गया। सैन्य शौर्य गाथाओं का जितना प्रचण्ड कोलाहल भारत में हो रहा है, उतना तो दुनिया के किसी 'सैन्यवादी' मुल्क में भी देखने को नहीं मिलेगा। कभी-कभी यह सवाल भी उठता है कि अंधराष्ट्रवादी लोग अपने ही देश के सैनिकों की शहादत के लिए इतने लालायित क्यों हैं ?

खबर है कि  हरियाणा के एक भूतपूर्व  फौजी ने आत्महत्या कर ली है। अपने मृत्यपूर्व लिखे गए सुसाइड नोट में मृतक फौजी ने भारत सरकार पर  अपने सैनिकों की अवहेलना का आरोप लगाया है। मरने वाले पूर्व सैनिक का नाम रामकिशन ग्रेवाल है। वे हरियाणा के भिवानी जिले अंतर्गत 'बामला'गाँव के रहने वाले थे। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि 'वन रेंक वन पेंशन मामले में उनके साथ न्याय नहीं हुआ है ''! उन्होंने आत्म -हत्या से पूर्व दिल्ली में अपनी मांग के लिए धरना भी दिया था ,किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। क्योंकि देश के वर्तमान शासक वर्ग को केवल 'शहादत' चाहिए ,उससे कम  कुछ नहीं ! जहाँ तक वन रेंक वन पेंशन के लिए की गयीं घोषणाओं का सवाल है ,तो उसका जबाब केंद्र सरकार ही दे सकती है ,क्योंकि उस प्रकरण को लेकर भी अण्णा हजारे से लेकर जनरल बीके सिंह तक और मनोहर पर्रिकर से लेकर खुद पीएम मोदी ने सफलता के दावे पेश किए हैं। यदि कोई फौजी आत्महत्या करके मर गया है तो सवालों  का उठना लाजमी है। श्रीराम तिवारी !  

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