इस भारत भूमि पर ऐंसे करोड़ों नर-नारी हैं जो खानदानी 'देशभक्त' हैं किन्तु वे किसी खास नेता या मंत्री के चमचे अथवा अंधभक्त नहीं हैं। वे देश की खातिर बैंकों के सामने तो क्या सीमाओं पर भी दुश्मन से लड़ते हुए मरने को तैयार हैं। केवल सेना की वर्दी पहिंन लेने से ही कोई व्यक्ति देशभक्त नहीं हो जाता। इसी तरह खाकी वर्दी पहिंन लेने मात्र से कोई पुलिस वाला भृष्ट रिश्वतखोर नहीं हो जाता ! खाकी वर्दी में भी देशभक्त और नेक इंसान हो सकते हैं। केवल भगवा वस्त्र धारण करने ,धार्मिक कर्मकांड करने ,दाड़ी रखने ,धर्मग्रन्थ पढ़नेसे कोई आस्तिक नहीं होजाता। बल्कि नंगे बदन खेतों -खलिहानों में पसीना बहाने वाले किसान-मजदूर भले ही गीता- वेद -पुराण ,कुरआन या बाइबिल न पढ़ते हों,वे मंदिर-मस्जिद -गुरुद्वारा न जाते हों ,किन्तु यदि वे अपना व्यवसायिक कर्म ईमानदारी और मेहनत -लगन से करते रहते हैं तो दुनिया में उनसे बड़ा कोई आस्तिक नहीं हो सकता !
विमुद्रीकरण के कारण हुई मौतों को गंभीरता से लेने के बजाय मोदीजी अब जनता से फीड बैक बाबत सवाल पूंछ रहे हैं।[ नरेन्द्र मोदी एप ]पर उनके सवाल भी कुछ इस तरह के होंगे कि बताओ इस नोटबंदी से आप कैसा महसूस कर रहे हैं ? कालेधन को रोकना चाहिए कि नहीं ? नोटबंदी योजना के कारण आप थोड़ी सी तकलीफ उठाने को तैयार हैं या नहीं ? अपना देश कालेधन और आतंकवाद से पीड़ित है कि नहीं ? नोटबंदी से कश्मीर में आतंकवादियों का नाभिनाल कटा कि नहीं ? राजनैतिक विपक्ष और सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले 'देशद्रोही' है कि नहीं ? जो लोग बैंकों के सामने २ हजार रुपयों के लिए कतार में खड़े-खड़े मर गए क्या उसके लिए मैं [नरेदंर मोदी] जिम्मेदार हूँ ?क्या मरने वाले खुद अपनी मौत के लिए जिम्मेदार नहीं थे ? लगभग कुछ इसी तरह के सवाल टविटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर पूंछे जा रहे हैं। मोदीजी के सवालों का जबाब क्या होगा ? जो लोग मोदीजी के इर्द गिर्द परिक्रमारत हैं ,फेंक अकाउंट वाले हैं ,चमचे हैं ,करछुल हैं और सत्ता की चासनी के स्टेक होल्डर्स हैं उनका जबाब सौ फीसदी मोदी जी के पक्ष में होगा !क्योंकि उनके लिए मोदीजी का सच ही'अंतिम सत्य ' है। कालाहांडी,अबूझमाड़, कोकराझार ,बस्तर,झाबुआ जैसे आदिवासी क्षेत्रों की भूंखी -नंगी आवाम की ओर से ,देश के करोड़ों सीमान्त किसानों की ओर से और शहरी क्षेत्र के रोजनदारी मजूरों की ओर से मोदीजी आप निश्चिन्त रहें ,उनके पास न कालाधन है ,न गोरा धन है ,उनके पास केवल कुपोषित शरीर और भयावह 'दरिद्रता' के लावा कुछ नहीं है।
यह जग जाहिर है कि मोदी जी केवल 'हाँ' सुनने के आदि हैं ! फिर भी देश हित में अर्थशात्रियों और प्रबुद्ध वर्ग को एकजुट होकर उनसे सवाल करना चाहिये चाहिए कि क्या पीएम का यह तुगलकी आचरण संसदीय लोकतंत्र के अनुकूल है ?क्या इस नोटबंदी मशक्कत से कालेधन रुपी नाग का बाकई फन कुचला गया है ? क्या केंद्र सरकार के खजाने में आनन -फानन जमा हुआ रुपया सिर्फ कालाधन था ?यदि 'नहीं 'तो बेकसूरों को बैंक की लाइन में मरने के लिए क्यों छोड़ दिया ? यदि 'हाँ' तो वह रुपया अब सफेद कैसे हो गया ? देश के ५७ पूँजीपतियों ने बैंकों के लगभग ८५ हजार करोड़ रूपये हजम कर डाले हैं ,इससे कई गुना एनपीए मद में वर्षों से पड़ा है ,क्या यह कालाधन नहीं हो सकता ? जब नोटबंदी का काम आपने आरबीआई से छीन ही लिया है तो इस पवित्र एनपीए के अंतरण और निस्तारण के लिए आप किसका इन्तजार कर रहे हैं ? सोना-चांदी खोरों , धातुखोरों, बिल्डरों, खनन- माफियाओं, अम्बानियों ,अडानियों ,जनार्दन रेड्डीयों , विजय माल्याओं ,ललित मोदियों के पास जो पुराने नोटों की शक्ल में 'परमपवित्र' धन था ,वह कहाँ गया ? देश के उच्च मध्यमवर्गीय कालेधन वालों ने ,भृष्ट अफसरों ने ८-९ नवम्बर की दरम्यानी रात को जो करोडो का सोना खरीदा और बेनामी खातों को लबालब भर दिया ,आप कब के करने जा रहे हैं ? जहाँ तक आपके वोट बैंक का सवाल है वो सुरक्षित है क्योंकि अभी तो आपके गृह बलवान हैं !
नोटबंदी की आपाधापी और उसके कारण हुई मौतों तथा उसकी सफलता पर जब पीएम के निकटतम मंत्रियों और सलाहकारों ने ही सन्देह व्यक्त किया तो उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया कि जनता हमारे साथ है। वेशक आज भी जनता का बहुमत मोदीजी के साथ है,मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक से उतपन्न संकट झेलने के वावजूद वह देश को कालेधन और आतंकवाद से मुक्त देखना चाहती है किन्तु जनता को गलतफहमी नहीं पालना चाहिए ,क्योंकि इस तरह के तदर्थ पैबन्दों से आतंवाद को स्थायी रूप से नहीं 'नाथ' सकते। जहाँ तक काले धन का सवाल है तो वह देश के अडानी-अम्बानी जैसे अमीरों के पास था जोकि उन्होंने बड़ी चतुराई से सफ़ेद कर लिया है। जो लोग बेबकूफ हैं वे ही सरकार के हर झांसे में आ रहे हैं। उनकी बेबकूफ़ी का एक प्रमाण यह है कि वे चुनाव में जिस मंदिर निर्माण के लिए ,धारा ३७० हटाने के लिए और यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर 'संगम शरणम गच्छामि' हुए थे ,उनमें से एक भी मुद्दा हल नहीं हुआ है। जनता को बरगलाने के लिए नए -नए मुद्दे पेश किये जा रहे हैं।
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