शनिवार, 12 नवंबर 2016

मोदी जी की मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक और उसके निहतार्थ

 प्रधानमंत्री मोदीजी की 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' याने नोटबंदी से देश को नफा नुकसान दोनों हुए हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी बन्द हुई , छात्रों ने उधम छोड़कर परिक्षाएं दी। पाकिस्तान में बैठे अंडर वर्ल्ड माफिया डॉन और आतंकवादी सरगना भी कुछ हद तक तनाव में हैं। बंगला देश और नेपाल सीमा की सीमाओं पर भारत विरोधी हवाला बिचोलियेऔर नकली मुद्रा के कारोबारी  हक्के -बक्के हैं। देश के अंदर भी कालेधन वाले और सटोरिये कुछ हद तक काबू में आये हैं। किन्तु यह उपलब्धि अस्थायी ही है ,कुछ ही दिनों में ये अपराधी तत्व फिर से कोई नयी व्यवस्था ईजाद कर ही लेंगे।क्योंकि अपराध जगत के लोग निर्मम, गैरजिम्मेदार, और महास्वार्थी होते हैं।

'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' याने नोटबंदी की वजह से देश के अधिकांस उम्रदराज लोगों को भारी कष्ट हुआ है। नोट बदलने ,लंबी कतार में देर तक खड़े रहने ,बीमारी का इलाज न हो पाने और भूंख से अनेक लोग मरे हैं।  करोड़ों लोग , काम -धाम छोड़कर अपना ही पैसा पाने के लिए घण्टों लाइन में लगे रहे, जो केवल अनुत्पादक मशक्कत ही है। किन्तु इस सबके बावजूद अभी तो पीएम् मोदीजी को राजनैतिक बढ़त ही हासिल हो रही है।
देश के धर्मनिरपेक्ष प्रबुद्ध वर्ग और विपक्ष के लिए यह  चिंतनीय है कि मोदीजी जो भी 'अलोकप्रिय' कदम उठाते हैं ,उनका परम्परागत वोट बैंक उनके साथ ही खड़ा दीखता है।

क्या यह सम्भव है ,कि कांग्रेस ,वामपंथ या कोई और पार्टी की सरकार यदि नोटबंदी करती तो देश की जनता चुपचाप कष्ट उठाकर इस तरह घण्टों लाइन में लगकर ,मर खपकर ,उस पार्टी की जय-जयकारा करती ?यह
कटु सत्य है कि सभी राजनैतिक पार्टियाँ जब सत्ता में होती हैं तो अपना राजनैतिक नफ़ा नुकसान देखकर ही कोई नीतिगत फैसला लेतीं हैं। किन्तु मोदी जैसे विरलों को ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है कि कष्ट उठाकर भी आवाम अपने पसन्द के नेता और सरकार का समर्थन जारी रखते हैं । माकपा शासन के दौरान बुद्धदेव भट्टाचार्य ने जब सिंगुर में टाटा उद्द्योग को मंजूरी दी तब ,निसन्देह वह बंगाल के हित का विकास कार्य था ,किन्तु बुद्धदेव सरकार जनाक्रोश और 'अलोकप्रयता' का सामना नहीं कर सकी ! हमें अब तक यह नहीं बताया गया कि सिंगूर वाला वही 'अलोकप्रिय' विकास कार्य  गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री [और अब प्रधानमंत्री] नरेन्द्र मोदी ने कैसे कर दिखाया था ?  मोदीजी के उग्रतम पूँजीवाद और चरम सम्प्रदायवाद के हम कट्टर विरोधी हैं ,किन्तु हमें यह स्वीकारने में कोई हिचक नहीं कि भारतीय राजनीति में केवल उनके दिन ही अच्छे चल रहे हैं।

भारत और चीन के मध्य अक्सर विशाल जनसंख्या एवम सांस्कृतिक उत्थान के बरक्स तुलना की जाती रही है!चूँकि भारत को चीन से लगभग एक साल पहले ही आजादी मिल चुकी थी ,अतः स्वाभाविक रूपसे चीनके सापेक्ष भारत को आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की दॄष्टि से कुछ आगे ही होना चाहिए था। भारत के प्रबुद्ध जन यदि ईमानदारी और विवेक से  विहङ्गावलोकन करेंगे तो देखेंगे कि -न केवल सैन्यबल ,वैज्ञानिक अनुसन्धान, बल्कि आर्थिक विकास में भी आधुनिक चीनने भारत को मीलों दूर छोड़ दिया है! भारत ने केवल जनसंख्या बृद्धि में ही चीनका अनुशरण किया है। बाकी सभी मामलों में भारत , चीन से बहुत पीछे है। ऐसा क्यों हुआ ? इसकी जाँच पड़ताल  करना मेरा मकसद नहीं है। किन्तु इतना अवश्य रेखांकित करूँगा कि चीन के चरम विकास के दो मुख्य कारण जग प्रसिद्ध है। पहला -कामरेड माओत्सेतुंग के नेतत्व में महान सर्वहारा क्रांति और दूसरा -उस महान क्रांति के रक्षकों द्वारा आर्थिक भृष्टाचारियों को सजाये मौत का वैधानिक प्रावधान ! यदि भारतीय संविधान निर्माताओं ने भी आर्थिक भृष्टाचार की सजा  म्रत्यु दण्ड निर्धारित किया होता तो आज  भारत में इतना भृष्टाचार नहीं होता। कालेधन पर इतना कोहराम नहीं मचा होता और मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक याने 'नोटबंदी' की नौबत ही नहीं आती।  

भारत की चरमराती अर्थव्यवस्था और अधोगामी राजनीतिक -सामाजिक व्यवस्था के कारकों में सबसे प्रमुख तो भारतकी पूँजीवादी अपवित्र राजनैतिक प्रणाली ही है।पूँजीवाद की असीम अनुकम्पा से भारतमें रिश्वतखोरी और कालाधन सर चढ़कर बोल रहा है। कालेधन का एक भयंकर रूप  पाकप्रेरित आतंकवाद भी है। पाकिस्तानकी आईएसआई ने विगत ४० साल से निरन्तर भारत की नकली करेंसी छापकर,भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध छेड़ रखा है। रॉ ने वर्षों पहले ही नेपाल,बांग्लादेश,म्यामार,श्रीलंका और दुबई इत्यादि में -नकली भारतीय करेंसी और हवाला कारोबारियों के ठिकानों की पहचान  कर ली थी ,किन्तु भारत में राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव और पड़ोसी देशों से मित्रवत व्यवहार की आशा में कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया। जबकि चीन को भारत जैसी मौद्रिक समस्याओं से नहीं जूझना पड़ा । भारत में आजादी के बादसे लगातर पूँजीवादी पार्टियों का ही शासन रहा है। ये पार्टियाँ खुद कालेधन पर जीवित हैं। केवल वामपंथ को उनकी पूंजीवाद से भिड़ंत के कारण यह कालाधन मयस्सर नहींहै। चूँकि 'संघ परिवार'और भाजपा पूंजीवादके पक्के समर्थक हैं ,उन्होंने चुनावी जीत के लिये जनता से बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं की हैं। इसलिए पीएम मोदीजी भी कुछ कर दिखाने के चक्कर में घनचक्कर हो रहे हैं। इसी घनचक्कर में उन्होंने 'नोटबंदी' याने मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक 'की आकस्मिक घोषणा कर दी।

मोदी सरकार ने नवम्बर -२०१६ के दूसरे सप्ताह में  १०००-५०० के करैंसी नोट बंद करने की जो घोषणा की है,उससे देश के गरीबों - ईमानदार मेहनतकश नर -नारियों  को अप्रत्याशित परेशानी हुई है। चूँकि भारत की अधिकांस जनता गाँवों में रहती है और उन्हें  हजार-पांच सौ के नोट बहुत कम नसीब होते हैं। गरीबों के पास सफ़ेद या कालाधन होने का  सवाल ही नहीं उठता। उनकी तो 'रोज कुआ खोदो और फिर पानी पियो' वाली स्थिति  है। 'बचत'की मानसिकता वाले कुछ बड़े किसानों और   बनियों को छोड़कर, बाकी सौ -दो सौ रुपया रोज कमाने वाला गरीब ग्रामीण मजदूर वर्ग इस नोटबंदी से सांसत में है। केंद्र सरकार के इस 'नोटबंदी'फैसले से अब मजदुर -किसानों का कचूमर निकल गया है। जो मजदूर-किसान सौ दो सौ रूपये में भी 'लक्ष्मी 'का निवास देखते रहे हैं उन ग्रामीण गरीबों के लिए यह  'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' आकश कुसुम से अधिक कुछ नहीं है।

सरकार यह क्यों नहीं बताती कि नए नोटों के बदले पुराने नोट बदलने की मशक्कत से सरकारी खजाने को क्या फायदा हुआ है ? आतंकियों और कालेधन वालों की 'अपवित्र' करेंसी चलनसे बाहर करने की कोशिश,सत्ताधारी नेताओं को मानसिक संतोष दे सकता है, किन्तु देश को वास्तव में इस मशक्कत से कोई आमदनी नहीं हुई है। बल्कि देश को अतिरिक्त खर्च का बोझ ही उठाना पड़ रहा है। तमाम प्रचार -प्रसार केवल नकारात्मक शोशेबाजी सावित हुई है।खबरहै कि पाकिस्तानी आतंकियोंने भारतमें अपनी नकली मुद्राको बदलने का कमीशन बढ़ा दिया है। वे नेपाल ,बांग्लादेश की सीमाओं पर सक्रिय हैं। भारत के नए २००० हजार के नोटों की नकल भी उन्होंने शुरूं कर दी है। इधर भारत के कस्बों -शहरों के भृष्ट बाबुओं-अधिकारियों पर  , हवाला कारोबारियों और दलालों पर मोदीजी जी की 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' का कोई असर नहीं पड़ रहा है। क्योंकि अधिकांस काला पैसा बेनामी जमीनों ,बेनामी खातों और सोना -चाँदी हीरा -मोती तथा प्लेटिनम जैसी मूल्यवान धातुओं में लगा है। इस नोटबंदी का भय छोटे व्यापारियों और रेहड़ी वालोंमें अवश्य देखा जा सकता है।मोदी सरकार को  चाहिए कि वास्तविक स्थिति देखकर देश की जनता को कुछ राहत दे और अपने चापलूसों की झूंठी तारीफ़ में आत्महंता न बने।

मौद्रिक नोटबंदी को धता बताते हुए  कालेधन वाले अमीर लोग बेफिक्र हैं। मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान इंदौर के एक हवाला कारोबारी ,रियल स्टेट मालिक और नवधनाड्य बिल्डर के यहाँ शादी व्याह का कार्यक्रम सानंद सम्पन्न हुआ। शादी में ७-८ करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान है। अधिकांस सरकारी विभागों के आला अफसर -विभाग प्रमुख इस 'आनंदकाज' में 'उपहार' सहित हाजिर थे। एक उच्चाधिकारी ने दूसरे से पूंछ ही लिया -यह सब कैसे हुआ ? प्रश्नकर्ता का आशय शायद  यह था कि जब प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं किसी को नहीं छोडूंगा तो इतना कालाधन 'इधर-उधर' कैसे हो गया ? सामने वाले का उत्तर था सब 'सब पैसे की महिमा है, पैसा भगवान् नहीं है ,किन्तु उससे कम भी नहीं है'। देख तो रे नोटों की हालत, क्या हो गयी भगवान् ! ईमानदार तो खड़े कतार में , जुगत भिड़ाते बेईमान ! !

मोदी जी ने सोचा होगा कि  जिस तरह साँप की बाँबी में गर्म तेल या गर्म पानी डालने पर साँप तड़पकर  बाहर भागते हैं उसी तरह  'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' से कालाधन बाहर आ जाएगा, विकास की गति के लिए बाजार उबल पड़ेगा, आतंकवाद की कमर टूट जाएगी,विपक्ष निरुत्तर हो जाएगा और जनता की नजर में वे सुपर हीरो बने रहेंगे।इसके अलावा उन्हें यह भी गुमान रहा होगा कि उनके नेतत्व में भाजपा के वोट बैंक में इजाफा होगा। वेशक मोदी सरकारके इस फैसलेसे पाकिस्तान में आईएसआई द्वारा जारी की गई नकली करेन्सी का बेड़ा गर्क हुआ है। पाकिस्तान पालित कश्मीरी आतंकियों को ,भृष्ट हवाला कारोबारियों को दुबई ,नेपाल,बांग्लादेश यूएई , और पाकिस्तान में बैठे भारत के सनातन शत्रुओं को , आर्थिक दुश्मनों को बहुत जोर का झटका लगा है। तसल्ली की बात यह है कि कालेधन वालों ने भले ही दलालों के मार्फ़त ,बेनामी खातों में रूपये जमा करा दिए हैं या आग के  हवाले कर दिए हैं , किन्तु यह तो तय है कि भृष्टाचारियों का मौत ने  घर देख ही लिया है। यकीनन शैतानों की अम्मा अब ज्यादा दिनों तक खैर नहीं मना पायेगी ! देश के कुछ सत्ताधारी नेता और नेत्रियाँ इस कालेधन में खुद उलझे हुए हैं। इसलिए वे कालेधन के खिलाफ नहीं बोलते बल्कि वे मोदी जी को ही कोस रहे हैं।

  ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को,मायावती की बसपा को ,मुलायम की सपा को और कालेधन पर जिन्दा रहने वाले भृस्टाचारी नेताओं को इस मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक से जोर का झटका लगा है। उन्होंने अपने बचाव के लिए सीपीएम और वामपंथ को साथ में लेकर राष्ट्रपति को ज्ञापन देने की योजना बनाई थी ,किन्तु 'माकपा के महान विद्वान - क्रांतिकारी  नेतत्व ने इस 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध न करने का सही फैसला लिया है। सीपीएम का यह भी मानना है कि मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों और जन समस्याओं को लेकर संघर्ष जारी रहेगा। किन्तु कालेधन के खिलाफ यदि  मोदीजी कुछ करके दिखाते हैं तो उन्हें अवसर दिया जाना चाहिए।  मोदी भक्तों और सत्ता समर्थकों का यह घटिया नजरिया है कि जो भी व्यक्ति या दल  उनके किसी फैसले पर सवाल करेगा उसे जबरन 'देशद्रोही' करार कर दिया जाएगा। तेरह नवम्बर को गोवा के भाषण में  मोदीजी ने भी यही चूक की है। लगता है कि उन्हें और उनके अंध समर्थकों को आँख मूंदकर विपक्ष को गरियाने की बीमारी है। जब शीतकालीन संसद का सत्र  चालू होने ही वाला हो और खुद पीएम महोदय  बिना वजह विपक्ष को कॉलर ऊंची करेंगे या विपक्ष को धमकाएंगे तो देश कैसे चलेगा ?

जब मोदी सरकार के इस फैसले से सेंसेक्स गिरा है ,डालर के सापेक्ष रूपया लुढ़का है ,बैंकों के द्वारपर और पैसों के आभाव में अस्पतालों में लोग मरे हैं ,बैंक कर्मचारी ही अवसाद में हैं तो संसद में और सड़कों पर जनता द्वारा सरकार से सवाल क्यों नहीं किये जाने चाहिए ? सवाल करने वालों को सत्ता के भक्त देशद्रोही क्यों बोल रहे हैं ?
यदि कालेधन से पैसेवाले बदमाशों का बाकई कोई रिस्ता है तो अम्बानी,अडानी,दिलीप सूर्यवंशी जैसे लोगों पर छापे क्यों नहीं डाले गए ? क्या वाकई ये सब दूध के धुले हैं ? मोदी जी द्वारा केवल विपक्ष को ही क्यों धमकाया जा रहा है। गनीमत है कि मोदीजी और अमित शाह ने कभी किसी कम्युनिस्ट पार्टी पर आरोप नहीं लगाया ,किन्तु उनके कुछ मूर्ख - चाटुकार अंधभक्त, लुच्चे- लफंगे लगातार सर्वहारावर्ग की ईमानदार पार्टियों पर ही निशाना साध रहे हैं। जबकि मोदीजी के इस फैसले से कम्युनिस्टों को या उनके राजनैतिक संगठनों को  कोई उज्र नहीं  है ! वास्तव में कालाधन उन राजनैतिक पार्टियों के पास होता है जो पूँजीवाद की समर्थक हैं। भाजपा इन सबमें नंबर वन है। शिवसेना,सपा,वसपा,अकाली,तृणमूल ,एडीएमके,डीएमके, राजद इत्यादि दल कालेधन के प्रमुख तलबगार हैं। पैसे की ताकत पर चुनाव जीतना  इनका मकसद है। जबकि साम्यवादियों का मकसद महज चुनाव जीतना ही नहीं होता ,बल्कि मेहनतकश आवाम के बीच वैज्ञानिक विचारधारा के अनुरूप वैचारिक सोच -चेतना और सर्वहारा क्रांति  उनका सात्विक अभीष्ट है। किसी  कम्युनिस्ट को देशभक्ति का पाठ पढ़ाना मानों सूरज को दिया दिखाना  है। जिस किसी संघी को इस कथन पर संदेह  हो वह जान ले कि चीन,नेपाल ,क्यूबा या भारत का कोई भी कामरेड  अन्तर्राष्टीयतावादी होते हुए भी 'संघियों' से कमतर 'राष्ट्रवादी' नहीं होता ।   

मोदी सरकार ने जो फैसला लिया है वह पहली बार नहीं हुआ है। १९७७ में भी ततकालीन केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए यह मौद्रिक कदम उठाया था। तब भी शुरूंआत में कुछ लोग परेशान हुए थे, किन्तु शीघ्र ही उसके बदतर परिणाम भी आये थे। जिन किसानों को गन्ना मिल मालिकों ने पेमेंट नहीं किया उन गन्ना उत्पादकों ने खेतों में ही खड़ी फसल जला डाली थी। हालाँकि सरकारी कोष के आर्थिक संकट में अस्थायी रूप से कुछ सुधार हुआ होगा। इस बार की मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक भी एक  तात्कलिक उपचार ही है जिसका असर ज्यादा समय तक नहीं  रहेगा। मोदी सरकार जब तक अपनी विनाशकारी एवम देशविरोधी आर्थिक नीतियाँ को नहीं बदलती ,जब तक भृष्टाचारियों को चीन की तरह दंड नहीं दिया जाता , तब तक ये कालाधन और उसके रहनुमा सलामत ही रहेंगे। बहुत सम्भावना है कि यह मौद्रिक ब्रह्मास्त्र विफल हो जाएगा। क्योंकि पूंजीवादी -भारत विरोधी शैतानी ताकतें कोई न कोई रास्ता फिर से खोज लेंगी !

मोदी सरकार के इस फैसले में  एक बड़ी चूक यह भी है कि उन्होंने राज्य सरकारों कोभी विश्वास में नहीं लिया। उन्हें तत्सम्बन्धी अग्रिम सूचना ही नहीं दीगयी । भारतराष्ट्र के संघीय ढांचेको अक्षुण रखनेके लिए केंद्र और राज्यों का तालमेल बहुत जरुरी है। वेशक इस फैसले से कुछ और समस्याएं भी दरपेश होंगी ,जनता को कुछ परेशानी भी होगी। किन्तु जब कभी कोई सरकार अलोकप्रिय कदम उठाती है तो विपक्षी पार्टियोंको तत्काल विरोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि केंद्र सरकार के किसी फैसले से यदि जनता को कोई परेशानी है,तो उससे उतपन्न जन-असन्तोष  ही विपक्ष के लिए राजनैतिक प्राणवायु सावित होगा ।

 विश्व सभ्यताओं के इतिहास के अध्यन और उन्नीसवीं -वीसवीं शताब्दी में सम्पन्न संसार की विभिन्न क्रांतियों का सांगोपांग अध्यन करने पर हम यह अनुभूत कर सकते हैं कि व्यक्ति ,समाज,या राष्ट्र में किसी तरह के क्रांतिकारी परिवर्तन का होना बहुत कठिन है। इस  सकारात्मक परिवर्तन अर्थात बदलाव को जोकि निसन्देह क्रांतिकारी ही होता है ,उसे सहेजना उससे भी कठिन  होता है। यह जरुरी नहीं कि किसी  क्रांति या बदलाव के विरुद्ध केवल वाह्य तत्व ही जिम्मेदार हों,बल्कि कभी-कभी उस बदलाव या क्रांति की 'मौत' के बीज उसी के गर्भ में छुपे होते हैं। उदाहरण के लिए - 'महान अक्टूबर क्रांति' की विफलता के लिए सिर्फ सीआईए - पेंटागन जैसी विरोधी ताकतें ही जिम्मेदार नहीं हैं ,बल्कि खुद 'सोवियत संघ' की रीति-नीति और उसके नेता भी इस महान क्रांति की हत्या के लिए जिम्मेदार रहे हैं। भारत के स्वाधीनता संग्राम  सेनानियों ने आजाद वतन के लिए उच्चतर मानवीय मूल्य निर्धारित किये थे ,किन्तु आजादी के उपरांत उन मूल्यों को  ध्वस्त करने के लिए कांग्रेसी नेता ही सर्वाधिक जिम्मेदारहैं। ७० साल बाद यदि एनडीए की, गैरकांग्रेसी मोदी सरकार ,देश में 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक'जैसे कुछ 'क्रांतिकारी ' सकारात्मक  कदम आगे बढ़ाती है तो मुश्किलें आना स्वाभाविक है। लेकिन यदि पीएम मोदीजी के इरादे नेक हैं तो उन्हें सफलता और शाबशी अवश्य मिलेगी। किन्तु उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके किसी अप्रिय परिणाम के लिए अथवा अभीष्ट की असफलता के लिए मोदी जी राजनैतिक 'विपक्ष' को और जनता को दोषी नहीं ठहरा सकते। मोदी जी की मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक और उसके शुभ-लाभ  इतिहास तय करेगा।

वेशक मोदी सरकार के 'आपरेशन मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' से देश की जनता को बहुत तकलीफ हुई है ,लेकिन इस तकलीफ को अधिकांस लोग इस आशा में चुपचाप झेल रहे हैं कि तथाकथित अच्छे दिन अब जरूर आएंगे !सर्जिकल स्ट्राइक की रात ही मैंने मोदी सरकार के 'मौद्रिक सर्जिल स्ट्राइक' सम्बन्धी पोस्ट में अपने ब्लॉग पर और फेस बुक पर पोस्ट कर तहेदिल से समर्थन किया था। चूँकि मोदी भक्तों  को केवल मोदी जी वाला 'सच' ही पसन्द है। वे केवल वही सच मानते हैं जो उनके नेता दिखा रहे हैं। यदि कोई प्रबुद्ध चिंतक -विचारक मोदी सरकार का तार्किक या सैद्धान्तिक विरोध  करता है तो उसे देशद्रोह से नत्थी अर दिया जाता है। मोदीजी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे खुद के अलावा और किसी पर विश्वाश नहीं करते और उनके विवेक' पर सवाल उठाना अपनी तौहीन समझते हैं। १३ नवम्बर को गोवा के भाषण में मोदी जी ने भावुकता में जो कुछ कहा वह एक गंभीर संजीदा  प्रधानमंत्री के लिए कदापि शोभनीय नहीं है।राहुल गाँधी जनता की समस्या को समझने के लिए  बैंक जाकर खुद लाइन में लग गए। उनकी इस कार्य योजना पर देश की जनता ने कोई खास ध्यान नहीं दिया। खुद कांग्रेसियों ने ही कोई संज्ञान नहीं लिया। देश के अधिकांस लोग  राहुल गाँधीको ही सीरियस नहीं ले रहे हैं ,बल्कि यूपी में तो कांग्रेसी कार्यकर्ता राहुल की बजाय प्रियंका को सक्रिय करने की मांग कर रहे हैं !खैर  कांग्रेस की अंदरूनी अंतर्कलह इस आलेख के विमर्श का विषय नहीं है। मुझे  तो राहुल गाँधी का बैंक की कतार में लगना बहुत मामूली और सीधा  मामला लगा था ,किन्तु मोदी जी ने गोवा में जब अपने भाषण में लगभग रोते हुए  राहुल गाँधी पर शब्द भेदी बाण मारे, तब मुझे पता चला कि राहुल गाँधी का यह बैंक जाकर लाइन में लगने वाला मामला बहुत मायने रखता है।राहुल गाँधी का यह 'सत्याग्रही' और प्रतीकात्मक प्रतिरोध मोदी जी को रुला गया यह क्या कम  है?

यह सच है कि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक की रात से ही कश्मीर में पत्थतरबाजी बंद है। मायावती,मुलायम ममता जैसे नेता और कालेधन वाले हवाला घोटाला अपराधी परेशान हैं। देश के खजाने में अब तक एक लाख करोड़ रुपया जमा हो चूका है। ३१ मार्च तक सम्भव है कि दो लाख करोड़ और आ जाये ,किन्तु यह वास्तविक कालाधन नहीं होगा। स्वामी रामदेव और सुब्रमन्यम स्वामी जैसे 'विद्वानों' ने विगत चुनावों के दरम्यान  २० लाख करोड़ कालेधन का जिक्र किया था। यदि वह गप्प भी हो तब भी १२ लाख करोड़ की पाकिस्तानी करेंसी वाला  फंडा भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। बहुत सम्भव है कि उनके एजेंट बरेली ,मुरादाबाद ,मुबई,हैदराबाद और नेपाल -बांग्लादेश में सक्रीय हों। किन्तु आदरणीय मोदी जी को यह सच स्वीकार करना ही होगा कि अभी तो देश का  ईमानदार आदमी लाइन में लगकर परेशानी ही उठा रहा है। वह ५० दिन क्या पांच साल तक इन्तजार कर लेगा। किन्तु बड़े दुःख की बात है कि कोई भी कालाधन वाला हरामी इस सर्जिकल स्ट्राइक से परेशान नजर नहीं आ रहा । क्योंकि परेशान होने वाला व्यक्ति बेनामी खातों में रुपया इसलिए जमा करा रहा है कि खुद उसके खाते  पहले से ही लबालब हैं। जो लोग हजार-हजार के नोटों की गडडियाँ  हँसते हँसत जला रहे हैं और गंगा मैया में बहा रहे हैं वे  शैतान के पूत अब भी मजे में हैं !


जो लोग  किसी किस्म की वैज्ञानिक विचारधारा से शून्य हैं और केवल एक नेता विशेष की 'भक्ति' में पगलाए हुए हैं उनसे सच सुनने -पढ़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती ! जो नेता सार्थक आलोचना का सम्मान करते हैं और संजीदगी से आरोपों का जबाब देते हैं ,ऐंसे लोग दक्षिणपंथी - पोंगापंथी कतारों में बहुत कम होते हैं ।'संघ परिवार में श्री मोहन भागवत जी ,आडवाणी जी ,सुषमा स्वराज जी जैसे कम ही लोग हैं जो आलोचना का तार्किक उत्तर देने की क्षमता रखते हैं। भाजपा -संघ के अधिकांस नेताओं , मंत्रियों के वयान -अमित शाह ,राममाधव , कैलाश  विजयवर्गीय ,मनोहर पर्रिकर,बीके सिंह ,खट्टर काका इत्यादि की तर्ज पर हमेशा आग लगाऊ ही होते हैं। यह शोध का विषय है कि जब इनके वयानों को  'व्यक्तिगत' करार देकर ठुकरा  दिया जाता है तब उस कथित घटना या मुद्दे का 'संस्थागत' बयान जारी क्यों नहीं किया जाता ? विगत सप्ताह  रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकरने जब कहा कि '' हम पहले परमाणु हमला नहीं करने की नीति पलट सकते हैं और दुश्मन के परमाणु हमले से पहले ही उस पर परमाणु हमला कर सकते हैं' .उनके इस बयान की सभी दूर आलोचना हुई। केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय को भी तत्काल अधिकृत बयान जारी करना पड़ा कि 'यह उनका [मंत्रीजी]का व्यक्तिगत बयान है। दुनिया के इतिहास में शायद यह पहला उदाहरण है, जब किसी मंत्री के बयान का उसी के विभाग को खंडन करना पड़ा।

मई-२०१४ के लोक सभा चुनावों में, एनडीए ,भाजपा और उनके 'प्रस्तवित' पीएम उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदीजी ने ,अपने चुनावी घोषणा पत्र में ,बहुत कुछ लोक लुभावन बातें कही थीं। जिनमें एक प्रमुख मुद्दा कालाधन वापिसी और उस धन को गरीबों के खाते में जमा करने का भी था। दो साल बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उन वादों को बिहार चुनाव में ही 'चुनावी जुमले' बता दिया  था। लेकिन भारत की अधिकांस जनता को अभी भी उम्मीद है कि प्रचण्ड बहुमत से चुनाव जीतने और केंद्र की सत्ता में आने के बाद मोदी जी उन  दुःसाध्य लक्षयों को भूले नहीं होंगे । हालाँकि यह सच है कि कश्मीर की समस्या ,आतंकवाद की समस्या,मेंहगाई-बेकारी की समस्या,रूपये के अवमूल्यन की समस्या और कालेधन की समस्या पर मोदी सरकार कुछ खास नहीं कर पाई है। इस सरकार को 'साम्प्रदायिक' उन्माद बढ़ाने के अलावा कहीं भी सफलता नहीं मिली है। फर्जी प्रोपेगेंडा और चापलूस मीडिया के सहारे सत्ताधारी नेताओं ने देशकी आवामको उम्मीदों के खूँटे से बाँधे रखा है। सत्तासीन नेता बखूबी जानते हैं कि ''जिन्दा कौम पाँच साल इन्तजार नहीं आरती ''!इसलिए जनता का दिल बहलाने के लिए वे कभी देश की सीमा पर 'पीओके में आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक 'और कभी ''मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक 'के मंसूबे पेश करते रहते हैं।

मनोहर पर्रिकर ,बीकेसिंह और अन्य मंत्रियों के अजीबोगरीब ''व्यक्तिगत' बयानों के कारण मोदी सरकार के अधिकांस मंत्री जनता के बीच अपना विश्वाश खोते जा रहे हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये राव वीरेंद्र सिंह , जगदम्बिका पाल और रीता बहुगुणा जैसे नेता और नेत्रियाँ तो पहले से ही जनता में अपना आकर्षण खो चुकेहैं ,  किन्तु पीएम मोदीजी का जादू अभी भी बरकरार है। डोनाल्ड ट्रम्प से लेकर शिंजोआबे तक और पुतिन से लेकर ओबामा तक मोदी जी की धाक है ,किन्तु पाकिस्तान हो या चीन या नेपाल इन देशों को वे कहीं से भी 'नाथ' नहीं पा रहे हैं। जबकि भारत की अधिकांस  समस्यायें इन्ही राष्ट्रों के साथ दरपेश है। चूँकि मोदीजी ने चुनावों में कांग्रेस पर इन समस्याओं के बरक्स आरोप लगाए थे और सत्ता में आने पर इनके निदान का वादा भी किया था ,इसलिए जनता को और विपक्ष को हक़ है कि सरकार से हिसाब मांगे ! केवल मंदिर-मस्जिद  मुद्दे के समाधान का या धारा -३७० हटाये जाने का सवाल नहीं है ,केवल समान सिविल कोड या भृष्टाचार उन्मूलन हेतु लोकपाल की स्थापना  की अनदेखी का सवाल नहीं  है ,बल्कि कालेधन पर हुई प्रगति पर भी जनता को मोदी सरकार से हिसाब लेना बाकी है।  यदि जनता द्वारा भारी बहुमत से चुनी गयी कोई सरकार केवल वादे या जुमले ही परोसती रहेगी और असफल होकर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी  तो उसे जनता के 'महाकोप' का  सामना भी करना होगा। इसीलिये इन मुद्दों पर असफलता से परेशान होकर मोदी जी  वह सब कर रहे हैं जिसकी चुनाव में चर्चा भी नहीं हुई थी।

 कल तक देश और दुनिया के लोग  भारतीय सैन्य बलों द्वारा पीओके में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत ही मांगते रहे जबकि मोदी जी ने जनता का ध्यान दूसरी ओर  मोड़ दिया। लेकिन उन्होंने जिन चोरों को पकड़ने के लिए यह मशक्कत की थी वे धूर्त -चालाक लोग साफ़ बच निकल गए। केवल आम जनता और छोटी मछलियों पर ही सरकार की 'मुद्रा सर्जिकल स्ट्राइक' का कहर जारी है। जिन लोगों को पकड़ने के लिए यह मुद्रा संहार किया गया वे हरामजादे या तो नोट जलाकर देशकी गरीब जनताको चिड़ा रहे हैं या सोना खरीद रहे हैं या बेनामी खातों में रुपया ट्रांसफर कर रहे हैं।इस मौद्रिक आपरेशन से देश की दो-तिहाई आबादी परेशान है , जनता इस धोखे में है कि कालाधन बाहर आएगा ,देश तरक्की करेगा। चूँकि मेरे पास काला और सफ़ेद दोनों ही प्रकार का धन नहीं है ,इसलिए इस मुझे सरकार की इस मौद्रिक कलाबाजी से कोई फर्क नहीं पड़ता ,किन्तु यदि इससे देश को फायदा होता है तो मैं पूरी निष्ठा और प्रतिबध्दता से देश के साथ खड़ा हूँ ,किन्तु यदि इस मशक्कत से कालाधन सफ़ेद हो जाए और जनता का काचमूर निकल जाए तो मुझे हक़ है कि सवाल करूँ !

 यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और उसके द्वारा प्रशिक्षित आतंकियों ने भारत के विरुद्ध'परोक्ष'युद्ध छेड़ रखा है। जो भारतीय नागरिक इस बाबत नहीं जानते निसन्देह उनकी समझ अपरिपक्व है। जो भारतीय इस षड्यन्त्र के बारे में बखूबी जानता है  किंतु उसकी  शाब्दिक निंदा भी नहीं करता बल्कि उलटे अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर केवल अपनी ही सरकार का 'विरोध' या इकतरफा  'आलोचना' कर रहे हैं वे 'असत्याचरण' के दोषी हैं। उन्हें मालूम हो कि उनकी आलोचना को  वह जनता भी पसन्द नहीं करती जो १००० -५०० के पुराने नोटों के बन्द होने से हल्कान हो रही है। क्योंकि  सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी जानता है कि कालाधन एवम भृष्ट-आवारा पूँजी न केवल देश को खोखला कर रही है बल्कि 'आम आदमी' के हितों पर उसका कुछ तो  विपरीत असर अवश्य है। मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक याने ,अंधे पीसें कुत्तें खाएँ ! श्रीराम तिवारी !

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