बुधवार, 2 नवंबर 2016


 यह बहुश्रुत लघुकथा है कि  एक 'विद्वान' व्यक्ति नाव में बैठकर बरसात में उफनती  हुई नदी पार कर रहा था। चूँकि नदी का 'पाट ' काफी चौड़ा था इसलिए बोरियत दूर करने के लिए 'विद्वान' यात्री ने नाविक अर्थात मांझी याने केवट को  प्रबचन देना शुरू कर दिया। लेकिन मांझी चुपचाप नाव खैने में व्यस्त रहा। उनके प्रबचन का माँझी पर  कोई असर नहीं हुआ। 'विद्वान' व्यक्ति ने केवट की चुप्पी को उसकी निरक्षरता और अज्ञानता से नत्थी करते हुए यह  जताया  कि तुम कितने गंवार हो ?कि तुम्हें आत्मा,परमात्मा और इस जगत के बारे में कोई ज्ञान नहीं है।  तुम महा मूर्ख और काहिल हो ! लेकिन नाविक ने  उस 'विद्वान' के अहंकार जनित दार्शनिक दम्भ  को नजर अंदाज करते हुए केवल नाव के चप्पुओं को चलाने पर  ही ध्यान दिया। नाव जब बीच मझधार में पहुंची तभी जोरदार तूफ़ान उठा और  विकराल भवँर में नाव हिचकोले खाने लगी। केवट ने 'विद्वान' से कहा -तैरना आता है ? और खुद  पानी में कूंदकर तैरते हुए किनारे जा पहुंचा। मांझी ने  पीछे पलटकर देखा कि नाव उल्ट -पुलट कर बही जा रही है और 'विद्वान'  प्रबचनकार सज्जन लहरों में जाने कहाँ बिल गए हैं ।  श्रीराम ! 

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