इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
मंगलवार, 8 नवंबर 2016
जो 'रहीम' ओछो बढे ,तो अति ही इतराय।
प्यादे सें फर्जी भयो , टेड़ो - टेड़ो जाय।।
जो 'रहीम' गति दीपकी, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करे , बढे अंधेरो होय ।।
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