शनिवार, 26 नवंबर 2016

नोटबंदी याने विमुद्रीकरण -नतीजा ठनठन गोपाल !

वर्तमान नोटबंदी योजना से बाकई करोड़ों लोग परेशान हैं। पंक्तियों के लिखे जाने तक लगभग ८० मौतें हो चुकीं हैं। डालर जैसी विदेशी मुद्राओं के सापेक्ष भारतीय रुपया बहुत नीचे चला गया है।भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार बहुत घट गया है। रिजर्व बैंक के नये गर्वरन उर्जित पटेल चुप हैं! अब तक एक भी कालधन वाला जेल नहीं भेजा  गया है। कालेधन वालों की सूची अभी तक जाहिर नहीं हो पाई है। नए-पुराने नोट बदलने की प्रक्रिया में सारादेश हल्कान हो रहा है। शादी व्याह से लेकर मरण-मौत और सोम काज तक रुके हुए हैं।  किसान के खाद बीज से लेकर खेती -सिचाई के काम  नहीं हो पा रहे हैं। फिर भी यह सौ फीसदी सच है कि देश के अधिकान्स लोग इस नोटबंदी का दिल से स्वागत ही कर रहे हैं। वे इसका विरोध करने के बजाय देश के और प्रधानमंत्री के साथ खड़े हैं। अधिसंख्य जनता की  मनोदशा बताती है कि वह भृष्टाचार तथा कालेधन  से लड़ने के लिए कुछ कुरबानी देने को तैयार  है। जनता की यही मनोदशा पीएम मोदीजी को मुफीद है। इसलिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित किसी तरह के 'बन्द' इत्यादि से उनकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला ।  वैसे भी नोटबंदी याने विमुद्रीकरण का नतीजा ठनठन गोपाल !

नोटबंदी के कारण ६०% कारखाने बन्द हो चुके हैं, भारत को ४०% व्यापार घाटा हो चूका है,विदेशी मुद्राभंडार में भारी गिरावट हो रही है। अस्पताल में इलाज बन्द है। स्कूल-कॉलेजों में पढाई बन्द है ,ट्रांसपोर्ट-निर्यात-आयात का भट्टा बैठ चुका है ,निजी क्षेत्र में मजदूरों को पगार नहीं मिल रही ,बैंक के कर्मचारी वर्कलोड से पीड़ित हैं और जनता कतार में खड़ी है।सभी कुछ आलरेडी बन्द ही तो है। अब और किसी बंद की घोषणा का क्या औचित्य है ? इससे तो देश की जनता की मुसीबत कम नहीं होने वाली। चाहे जितना जोर लगा लो मोदीजी इस नोटबंदी को वापिस नहीं लेंगे।  जो लोग मर चुके हैं वे वापिस नहीं आने वाले। दिवंगतों के परिजनों का समर्थन भी इस 'बन्द' को नहीं है। क्योंकि  मोदीजी झूँठ बोलकर जनता को बर्गला रहे हैं कि ''देखो रे ये बन्द वाले ,ये नोटबंदी का विरोध करने वाले ,इसलिए मेरा विरोध कर रहे हैं क्योंकि मैंने उन्हें कालेधन को सफेद करने का अवसर नहीं दिया '' !वास्तव में मोदीजी का यही वाग्जाल और मिथ्याचरण उनकी तमाम  देशभक्ति' पर भारी  पड़ रहा है। क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि कालाधन कहाँ-कहाँ किस-किस के पास है। किन्तु कालेधन वालों को दबोचने के बजाय वे अपने दाम्भिक असत्याचरण से जनअसन्तोष को दबा रहे हैं। वे नोटबंदी को  देशभक्तिपूर्ण 'क्रांतिकारी' घटना सावित करने में जुटे हैं,सन्सद में बयान  देने के बजाय इधर-उधर चुनावी किस्म के भाषण देते फिर रहे हैं।   

आतंकवाद,आर्थिक भृष्टाचार ,धर्मान्धता ,जातिवाद और लम्पटता में आकण्ठ डूबे भारत जैसे 'महान देश' का शासन-प्रशासन चलाना आसान नहीं है। प्रचण्ड जनादेश से निर्वाचित,कुशाग्र बुद्धि वाले ,ऊँचे चरित्र के नेता भी जब 'काजल की कोठरी' में साबुत नहीं बच पाए हैं।देश को 'सुशासन' भी नहीं दे सके हैं।  बेचारे मोदी जी की क्या विसात जो चाय बेचते-बेचते 'बोधत्व' को प्राप्त हुए और परिव्राजक बन गए। परिव्राजक से 'संघ प्रचारक' बन गए। भाजपा के महामंत्री बन गए। और जब आडवाणी की 'मंदिर' वाली रथ यात्रा के परिणाम स्वरूप गुजरात कांग्रेस कुंठित हो गयी तो उसके आंतरिक कलह की असीम अनुकम्पा से 'नमो' गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए। यूपीए के दौर के 'महाभृष्टाचार' ने जब भारत की जनता जनार्दन का कचमूर निकाल दिया ,तो आडवाणीजी के बुढ़ापे और संघ की असीम अनुकम्पा से 'नरेंद्र दामोदरदास मोदी  'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र'के प्रधानमंत्री भी बन गए।

इतिहास साक्षी है कि जब किसी साधारण इंसान को चमत्कारिक वैयक्तिक सफलता मिलती है तो वह या तो नेपोलियन,हिटलर,मुसोलनी ,ईदीअमीन,परवेज मुसर्रफ और सद्दाम की तरह 'डिक्टेटर' हो जाता है या वासुदेव - श्रीकृष्ण,ईसामसीह, हजरत मुहम्मद की तरह साधारण से असाधारण याने 'अवतारी महापुरुष' हो जाता  है ! मेरी हार्दिक कामना है कि नरेन्द्र मोदीजी 'अवतार पुरुष' भले ही न बन पाएं , किन्तु ईश्वर करे वे 'डिक्टेटर' कदापि न बन पाएं! विगत ढाई -तीन सालों में उनकी कथनी-करनी से लोगों का शक सुबहा जोर पकड़ रहा है कि मोदीजी संसद और केबिनेट को अपने से निम्नतर मानकर चल रहे  हैं। कभी कभी आभास होता है कि वे शायद लोकतंत्र में यकीन ही नहीं रखते। वे हर मामले में हर बार संसद की उपेक्षा कर रहे हैं!

मोदी जी का बिना ताजपोशी के ही नवाज शरीफ को अपने 'राज्यरोहण' पर दिल्ली बुलाना, फिर बिना केबिनेट की मंजूरी के  नवाज शरीफ के घर चाय पीने जाना , उसी नवाज को हाफिज सईद और आतंकियों का हितेषी बताना ,उनके रक्षा मंत्री महोदय का पाकिस्तान को नरक बताना ,सीमाओं पर अपने सैनिकों को लगातार शहीद करवाना ,जन दबाव में आकर पीओके' में 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' कराना ,स्विट्जरलैंड में जमा कालेधन को वापिस नहीं ला पाने की खुन्नस में  देश पर निजी निर्णय के रूप में  'नोटबंदी' थोपना , उसके कारण जो लोग मरे और उनके परिजनों ने यदि ज़रा से आंसू बहाये तो उन्हें 'देशद्रोही' बताना, इत्यादि धतकर्मों से लगता है कि 'मोदी जी ' का  लोकतंत्र और सन्सद से मानों कोई लेना देंना ही नहीं है।

जिन बुजर्ग माँ -बाप के जवांन लड़के सीमाओं पर आये दिन शहीद हो रहे हैं ,वे पूंछ रहे हैं कि जब आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल रही है तो पाकिस्तानी सेना और उसके पालतू आतंकियों के हाथों उनके नोनिहाल याने भारत के सैनिक लगातार शहीद क्यों हो रहे हैं ? यदि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल रही है तो उसकी डींगे क्यों हाँकी गयीं ? और उसके बाद सबूत क्यों मांगे गए ? यदि सबूत मांगे गए तो उन्हें उपलब्ध कराने के बजाय पीएम महोदय  'देशद्रोह' का जुमला लेकर देश की जनता पर 'नोटबंदी' लेकर  क्यों टूट पडे ? इस 'नोटबंदी ' का सकारात्मक परिणाम यदि आवाम जानना चाहती है तो बताइये ना ! कि  कितने कालेधन वाले आपने अभी तक जेल भेजे हैं ?दरसल एक भी नाम आपके पास नहीं है। जब आप ललित मोदी ,विजय माल्या और जनार्दन रेड्डी के आगे नतमस्तक हैं तो  पाकिस्तान में छिपे आतंकियों,कश्मीरी पत्थरबाजों का के बिगाड़ लेंगे ?आप देश के अंदर के कालेधन वालों की एक आँख फोड़ने के चक्कर में भारत की तमाम मेहनतकश ईमानदार आवाम की दोनों आँखे फोड़ने पर आमादा क्यों हैं ?

 देश में नोटबंदी के समर्थन और विरोध का  बहुत शोर है ! कोई  बंद-बंद चिल्ला रहा है ,कोई इस योजना की सफलता के गीत गा रहा है। कोई लाइन में लगा हुआ मरने जा रहा है। कोई रोमन सम्राट नीरो की तरह मजे में चैन की बंशी बजा रहा है। दरसल इस दौर में सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं पूरा देश चरमरा रहा है।पक्ष-विपक्ष दोनों ही देशको ठोकर मारने पर आमादा हैं। सत्ताधारियों ने पहले ही हरतरफ से अपने देश का कचमूर निकाल दिया है ,अब विपक्ष की बारी है। नोटबंदी का विरोध ,उसके कारण हुई मौतों का विरोध और  भारत बन्द के बहाने मरे मराये मुल्क को मारने पर आमादा हैं ! बिखरे हुए विपक्ष द्वारा आयोजित 'नोटबंदी पर भारत बन्द' केवल जले पर नमक छिड़कने जैसा है!पीएम ने संसद की गरिमा को नुकसान पहुँचाया है ,उसपर एकजुट विपक्षको संसदमें ही मुकाबला करना चाहिए!जनता की मुसीबतें बढ़ाने से विपक्ष को कुछ नहीं मिलेगा !

भारतीय वामपंथ को अपनी रणनीति केवल 'मोदी विरोध' से निर्धारित नहीं करनी चाहिए। निरन्तर विरोध और संघर्ष करने के बावजूद निकट यूपी में होने वाले चुनावों में क्या हासिल होगा इस पर ध्यान देना चाहिए। नोटबंदी विरोध अथवा अन्य कारणों से यदि वहाँ भाजपा हार भी जाये तो जीत किसी की होगी? मायावती की ? मुलायम की ?कांग्रेस की ? क्या ये सभी दूध के धुले हैं ? अधिनायवाद के खिलाफ ,साम्प्रदायिकता के खिलाफ, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ - वामपंथ हमेशा संघर्ष में  आगे रहा है। किन्तु  चुनावी  परिणाम में सबसे पीछे क्यों ?जिस पर देश के मेहनतकशों को नाज था वो बंगाल भी साथ छोड़ चुका है।अब अकेले त्रिपुरा और केरल ही बचे हैं, उन पर ध्यान देना चाहिए। हर मुद्दे पर 'भारत बन्द' या हड़ताल का नारा देकर जनता से अनावश्यक दूरी बढ़ाना उचित नहीं। नोटबंदी के विरोध में जिन्हें तकलीफ है वे कालेधन वाले बदमाश अपना धन सफेद करने में जुटे हैं।  इधर हमारे जावांज साथी भारत बन्द के लिए हलकान हो रहे हैं। ईमानदार मेहनतकश सर्वहारा को नाहक इस अर्थहीन संघर्ष में धकेला जा रहा है। जबकि नोटबंदी पर हाय हल्ला मचाने वाली ममता और माया चुप हो चले हैं।

जिनके पास अकूत कालधन है वे अमीरजादे ,हरामखोर पूँजीपति चुप हैं ,सूदखोर साहूकार चुप हैं ,आतंकी और पत्थरबाज चुप हैं ,अब तो उनकी ओर से बोलने वाले ममता, माया ,मुलायम ,लालू भी चुप हैं। जिनके पास काला  या सफेद कुछ नहीं है ,जिनके पास जेब में कानी कौड़ी नहीं है ,वे जन्मजात कँगले और 'अक्ल के दुश्मन ' इस नोटबंदी पर  हलकान हो रहे हैं ! जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू सही पकडे हैं।वे मंद-मंद मुस्कराकर नोटबंदी पर लालू के मजे ले रहे हैं।उन्हें अपनी ईमानदारी पर नाज है ,इसलिए भृष्ट लालू और उनके छोकरों को छुपे अंदाज में चिड़ा रहे हैं। इधर मोदीवादी भी चित हैं कि नीतीश के ऊपर कालेधन का ठप्पा कैसे लगाएं ?

पहले सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगना,फिर नोटबंदी पर कालेधन वालों का परोक्ष रूप से अनैतिक बचाव करना, अब भारत बन्द का ऐलान करना ,यह सब देश के कमजोर  विपक्ष को भारी पडेगा। अभी तो ये हाल हैं कि लाइन में लगे लगे  हुए या अस्पताल में किसी मरते हुए से भी पूंछो की 'नोटबंदी ' से तुम्हे क्या परेशानी है तो वह भी कहेगा  कहेगा ''देश के लिए इतनी तकलीफ तो जायज है ,यदि कालेधन वालों को सजा मिलती है तो ''!
तातपर्य यह है कि 'नोटबंदी'का अंध विरोध या उसके लिए भारत बन्द जैसी कार्यवाही जनता को पसन्द नहीं !श्रीराम तिवारी !
 

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