कौन जाने कि ये कौन सा दर्द है जो घटता ही नहीं,
होता जाता है बेजा असहनीय मरहम लगाने के बाद !
डाल पर जब तक खिले हैं फूल महका करेंगे खूब,
लेकिन ख़ुशबू दे न सकेंगे ये कल मुरझाने के बाद !
ज़िन्दगी का ये सफ़र,बहुत जदोजहद भरा है *आहत*,
करोड़ों हैं बेरोजगार शेष, लाखों भूखे मर जाने के बाद !
रास्ता काँटों भरा है,मुश्किल में है धरती और मानवता,
भीख पर जिंदा है भीड़,अच्छे दिन आ जाने के बाद!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें