गुजरात में एक कबीर परम्परा के कवि हुए हैं 'भोजा भगत' इन्होंने अपने काव्य को 'चाबुक' कहा है! सच में वे चाबुक ही है। काठियावाड़ी में कहा जाता है "भोजा भगत ना चाबखा"!
महात्मा गाँधी जी को भी भोजा भगत का एक गीत बहुत प्रिय था - 'काचबा काचबी बे जळ मां रहेता!'(कछुआ - कछुई दो जल में रहते!) इसी गीत के आधार पर मैं भोजा भगत को ढू…
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