कृष्ण कहते हैं, पवित्र करने वालों में मैं वायु हूं। और शस्त्रधारियों में #राम हूं।
यह बहुत प्यारा प्रतीक है।
राम, शस्त्रों के साथ, बड़ी उलटी बात मालूम पड़ती है। न तो राम के मन में #हिंसा है, न राम के मन में प्रतिस्पर्धा है, न राम के मन में ईर्ष्या है। न राम किसी को दुख पहुंचाना चाहते हैं, न किसी को पीड़ा देना चाहते हैं। फिर उनके हाथ में शस्त्र हैं। उनके हाथ में एक कमल का फूल होता, तो समझ में आता। उनके हाथ में शस्त्र, बिलकुल समझ में नहीं आते।
जब भी मैं राम का चित्र देखता हूं और उनके कंधे में लटका हुआ धनुष देखता हूं और उनके कंधे पर बंधे हुए तीर देखता हूं तो राम के शरीर से उनका कोई भी संबंध नहीं मालूम पड़ता। राम का शरीर एक कवि का, एक काव्य का, एक काव्य की प्रतिमा मालूम होती है। राम की आंखें प्रेम की आंखें मालूम होती हैं। राम पैर भी रखते हैं, तो ऐसा रखते हैं कि किसी को चोट न लग जाए। राम का सारा व्यक्तित्व फूल जैसा है। और कंधे पर बंधे हुए ये तीर, और हाथ में लिए हुए ये धनुष—बाण, ये कुछ समझ में नहीं आते! इनका कोई मेल नहीं है, इनकी कोई संगति नहीं है।
राक्षस के हाथ में, #रावण के हाथ में शस्त्र सार्थक मालूम होते हैं, संगत मालूम होते हैं। वहां गणित ठीक बैठता है। #महावीर के हाथ में तीर का न होना, तलवार का न होना संगत मालूम होता है। गणित वहां भी ठीक है। महावीर हैं या #बुद्ध हैं, उनके हाथ में कुछ भी नहीं है, कोई शस्त्र नहीं है। रावण के हाथ में शस्त्र हैं, सारा शरीर शस्त्रों से ढंका है, यह भी ठीक है।
राम कुछ अनूठे हैं। ये आदमी बुद्ध जैसे और इनके हाथ में शस्त्र रावण जैसे, यह बड़ा #विरोधाभासी है। और कृष्ण को यही प्रतीक मिलता है कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूं! बहुत शस्त्रधारी हुए हैं। शस्त्रधारियों की कोई कमी नहीं है। राम को क्यों चुना होगा? जानकर चुना है, बहुत विचार से चुना है, बहुत हिसाब से चुना है। शस्त्र खतरनाक है रावण के हाथ में। इसे थोड़ा समझेंगे। थोड़ी बारीक है और बात थोड़ी कठिन मालूम पड़ेगी।
शस्त्र खतरनाक है रावण के हाथ में, क्योंकि रावण के भीतर सिवाय हिंसा के और कुछ भी नहीं है। और हिंसा के हाथ में शस्त्र का होना, जैसे कोई आग में पेट्रोल डालता हो। यह हम समझ जाएंगे। यह हमारी समझ में आ जाएगा। इस दुनिया की पीड़ा ही यही है कि गलत लोगों के हाथ में ताकत है। गलत आदमी उत्सुक भी होता है शक्ति पाने के लिए बहुत।
बेकन ने कहा है, पावर करप्ट्स एंड करप्ट्स एब्सोल्यूटली। #शक्ति लोगों को #व्यभिचारी बना देती है और पूर्ण रूप से व्यभिचारी बना देती है। बेकन की यह बात ठीक है। लेकिन बेकन ने इसका जो कारण दिया है, वह ठीक नहीं है। बेकन सोचता है कि जिनके हाथ में भी शक्ति आ जाती है, शक्ति के कारण वे करप्ट हो जाते हैं। यह बात गलत है। वे करप्ट हो जाते हैं, यह तथ्य है; लेकिन शक्ति के कारण करप्ट हो जाते हैं, यह गलत है। क्योंकि हमने राम के हाथ में भी शक्ति देखी है और करप्शन नहीं देखा, व्यभिचार नहीं देखा, शक्ति का कोई व्यभिचार नहीं देखा।
तब बात कुछ और है। तथ्य तो ठीक है कि हम देखते हैं कि जिनके हाथ में शक्ति आती है, वे व्यभिचारी हो जाते हैं। लेकिन इसका कारण शक्ति नहीं है। इसका बुनियादी कारण यह है कि व्यभिचारी ही शक्ति के प्रति आकर्षित होते हैं। लेकिन कमजोर आदमी अपने व्यभिचार को प्रकट नहीं कर पाता, जब शक्ति हाथ में आती है, तब वह प्रकट कर पाता है। शक्ति के कारण व्यभिचार पैदा नहीं होता, प्रकट होता है।
आप कमजोर हैं, आपके भीतर हिंसा है, दूसरा आदमी मजबूत है, आप हिंसा नहीं कर पाते। फिर एक बंदूक आपके हाथ में दे दी जाए, अब दूसरा आदमी कमजोर' हो गया, अब आप ताकतवर हैं, अब हिंसा होगी।
#चरित्र की असली परीक्षा तभी है, जब शक्ति पास में हो। जिनके पास शक्ति नहीं है, उनके चरित्र का कोई भरोसा नहीं है। उनका चरित्र केवल कमजोरी हो सकती है।
इसलिए इस दुनिया में जितने चरित्रवान लोग दिखाई पड़ते हैं, निन्यानबे प्रतिशत तो कमजोरी की वजह से चरित्रवान होते हैं। इसलिए इतने चरित्रवान भी दिखाई पड़ते हैं, इतनी चरित्र की बात भी होती है और दुनिया रोज चरित्रहीनता में उतरती जाती है।
कमजोर आदमी को ताकत दो और उसका चरित्र बह जाएगा। सबसे पहली जो दुर्घटना होगी, वह चरित्र की हत्या हो जाएगी। कमजोर आदमी को किसी तरह की ताकत दो— धन दो, पद दो, राजनीति की कोई सत्ता दो— सारा चरित्र बह जाएगा।
हम इस मुल्क में भलीभांति जानते हैं। जिनको आजादी के पहले हमने चरित्रवान समझा था, ठीक आजादी के बाद एक रात में उनके चरित्र बह गए। जो सेवक की तरह बिलकुल भोले— भाले मालूम पड़ते थे, वे सत्ताधिकारी की तरह ठीक चंगेज और तैमूर के वंशज सिद्ध होते हैं। क्या हो जाता है रातभर में? क्या शक्ति लोगों को नष्ट कर देती है?
नहीं, लोग कमजोरी की वजह से केवल चरित्रवान थे। हाथ में ताकत आती है और सब चरित्र खो जाता है। परीक्षा शक्ति के बाद ही पता चलती है।
निश्चित ही, शक्ति पाने के लिए कमजोर लोग उत्सुक होते हैं। होते ही वे हैं। मनसविद कहते हैं कि जिनके भीतर इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स है, जिनके भीतर हीनता का भाव है, वे ही लोग पदों की तरफ आकर्षित होते हैं। इसलिए अगर इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स से पीड़ित लोगों को देखना है, तो किसी भी देश की राजधानी में वे मिल जाएंगे। सब वहां मिल जाएंगे इकट्ठे।
जिनके भी मन में यह भय है कि मैं क्षुद्र हूं मैं कुछ भी नहीं हूं वे किसी पद पर बैठकर अपने और दूसरों के सामने सिद्ध करना चाहते हैं कि मैं कुछ हूं। नोबडी वांट्स टु बी नोबडी। कोई नहीं पसंद करता कि मैं कोई भी नहीं हूं। हर एक के भीतर खयाल है कि मैं कुछ हूं। कुछ हूं लेकिन यह किसको कहूं कैसे कहूं जब तक कि हाथ में ताकत न हो। हाथ में ताकत हो, तो कहूं कि मैं कुछ हूं। सिर्फ वे ही लोग ताकत की दौड़ से बच सकते हैं, जो बिना कहे भीतर हीनता की ग्रंथि से मुक्त हो जाते हैं। जिनके भीतर हीन होने का भाव ही तिरोहित हो जाता है, वे ही लोग दूसरे से श्रेष्ठ होने की कोशिश बंद कर देते हैं!
यह बड़े मजे की बात है। इस जगत में श्रेष्ठ लोग ही श्रेष्ठ बनने की कोशिश नहीं करते। हीन लोग श्रेष्ठ बनने की कोशिश करते हैं।
राम के हाथ में शस्त्र गलत आदमी के हाथ में शस्त्र हैं। गलत इसलिए कह रहा हूं कि रावण के हाथ में तो ठीक आदमी के हाथ में हैं। रावण की आत्मा और शस्त्रों के बीच सेतु है, संबंध है, एक हार्मनी है, एक संगीत है। राम और शस्त्र के बीच कोई सेतु नहीं है। एक खाई है, अलंध्य खाई है, अनब्रिजेबल गैप है। वही राम की खूबी भी है। शस्त्र हैं और राम हैं, और उन दोनों के बीच कोई सेतु नहीं है। रावण के हाथ में ठीक मालूम पड़ते हैं शस्त्र, लेकिन खतरनाक हैं। क्योंकि जब भीतर हिंसा हो और शस्त्र हाथ में हों, तो हिंसा गुणित होती चली जाएगी, मल्टीप्लाइड हो जाएगी।
पिछले महायुद्ध में फ्रांस पर जब हमला हुआ, तो फ्रांस की एक पहाड़ी पूरी तरह ध्वस्त हो गई। और युद्ध के बाद जब उस पहाड़ी में खुदाई की जा रही थी, तो एक बहुत हैरानी की घटना घटी। उस पहाड़ी में खुदाई करते वक्त आधुनिक युग के बमों के पड़े हुए शेल एक गुफा में उपलब्ध हुए हैं, जो पत्थरों में छिद गए थे। और वहीं पच्चीस हजार वर्ष पुराने पत्थर के औजार भी उस गुफा में पड़े थे। वे दोनों एक साथ उपलब्ध हुए। पच्चीस हजार साल पुराना पत्थर का औजार और आधुनिक युग के बम की खोल, वे दोनों एक साथ एक ही गुफा में उपलब्ध हुईं।
पच्चीस हजार साल पहले आदमी पत्थर से मार रहा था, आदमी यही था। पच्चीस हजार साल बाद यह बमों से मार रहा है, आदमी वही है। विकास आदमी का जरा नहीं हुआ, लेकिन पत्थर के औजार से एटम बम तक विकास हो गया! आदमी वही है।
इसलिए लोग कहते हैं कि मनुष्यता विकसित हो रही है, वह जरा संदिग्ध बात है। अस्त्र—शस्त्र विकसित हो रहे हैं, यह निस्संदिग्ध बात है। मनुष्यता विकसित होती नहीं दिखाई पड़ती। एवोल्यूशन, विकास, वस्तुओं का हो रहा है।
पच्चीस हजार साल पहले जिस आदमी ने पत्थर के औजार से किसी की हत्या की होगी और पच्चीस हजार साल बाद जिसने बम से हत्या की, इनके हत्या करने का पैमाना बड़ा हो गया। पत्थर के औजार से आप एकाध को मार सकते थे, एटम से आप लाखों को एक साथ मार सकते हैं। एक हाइड्रोजन बम कोई एक करोड़ आदमियों को एक साथ मार सकता है। और अभी जमीन पर पचास हजार हाइड्रोजन बम तैयार हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि तैयारी जरूरत से ज्यादा हो गई। वे कहते हैं कि हमारे पास इतने बम हैं अब, जितने आदमी नहीं हैं मारने को! एक—एक आदमी को सात—सात बार मारना पड़े, तो हमारे पास इंतजाम है। हालांकि एक आदमी एक ही दफे में मर जाता है! लेकिन राजनीतिश बहुत हिसाब लगाते हैं! कोई बच जाए एक दफा, दुबारा, तिबारा, तो हम सात बार मार सकते हैं एक आदमी को। इक्कीस अरब आदमियों को मारने का इंतजाम है अभी, आबादी कोई तीन, साढ़े तीन अरब है। इक्कीस अरब आदमियों को मारने का इंतजाम है। और यह इंतजाम रोज बढ़ता जाता है। आदमी विकसित हुआ नहीं मालूम पड़ता, लेकिन ताकत विकसित हुई मालूम पड़ती है।
हिंसा हो भीतर, वैमनस्य हो भीतर, प्रतिस्पर्धा हो भीतर, शत्रुता हो भीतर, तो अस्त्र—शस्त्र घातक हैं। यह तो हमारी समझ में आ जाएगा। एक तरफ रावण है, जिससे शस्त्रों का मेल है, यह खतरनाक है। दूसरी तरफ बुद्ध और महावीर हैं। ये भी बिलकुल गणित के फार्मूले की तरह साफ हैं। जैसे ये आदमी हैं, इनके पास वैसा ही सब कुछ है; इनके पास कोई अस्त्र—शस्त्र नहीं है। भीतर प्रेम है, हाथ में तलवार नहीं है।
ये आदमी अपने लिए खतरनाक नहीं हैं, किसी के लिए खतरनाक नहीं हैं। लेकिन नकारात्मक रूप से समाज के लिए ये भी खतरनाक हो सकते हैं। नकारात्मक रूप से! क्योंकि इसका मतलब यह हुआ कि बुरे आदमी के हाथ में ताकत रहेगी और अच्छा आदमी ताकत को छोड़ता चला जाएगा। जाने—अनजाने यह बुरे आदमी को मजबूत करना है। महावीर की कोई इच्छा नहीं है, बुद्ध की कोई इच्छा नहीं है कि बुरा आदमी मजबूत हो जाए। लेकिन बुद्ध और महावीर का शस्त्र छोड़ देना, बुरे आदमी को मजबूत करने का कारण तो बनेगा ही। अच्छा आदमी मैदान छोड़ देगा, बुरा आदमी ताकतवर हो जाएगा।
दुनिया में जितनी #बुराई है, उसमें सिर्फ बुरे लोगों का हाथ होता, तो भी ठीक था, उसमें अच्छे लोगों का हाथ भी है। यह बात मैं कह रहा हूं थोड़ी समझनी कठिन मालूम पड़ेगी। क्योंकि अच्छे आदमी का सीधा हाथ नहीं है, अच्छे आदमी का हाथ परोक्ष है, इनडायरेक्ट है। अच्छा आदमी छोड्कर चल देता है। अच्छा आदमी लड़ाई के मैदान से हट जाता है। अच्छा आदमी, जहां भी संघर्ष है, वहां से दूर हो जाता है। बुरे आदमी ही शेष रह जाते हैं। और बुरे आदमी ताकत पर पहुंच जाते हैं, तो पूरे समाज को बुरा करने का कारण होते हैं।
इसलिए #कृष्ण राम को चुन रहे हैं, यह बहुत सोचकर कही गई बात है। राम दोहरे हैं, आदमी बुद्ध जैसे और शक्ति रावण जैसी।
और शायद दुनिया अच्छी न हो सकेगी, जब तक अच्छे आदमी और बुरे आदमी की ताकत के बीच ऐसा कोई संबंध स्थापित न हो। तब तक शायद दुनिया अच्छी नहीं हो सकेगी। अच्छे आदमी सदा पैसिफिस्ट होंगे, शांतिवादी होंगे, हट जाएंगे। बुरे आदमी हमेशा हमलावर होंगे, लड़ने को तैयार रहेंगे। अच्छे आदमी प्रार्थना—पूजा करते रहेंगे, बुरे आदमी ताकत को बढ़ाए चले जाएंगे। अच्छे आदमी एक कोने में पड़े रहेंगे, बुरे आदमी सारी दुनिया को रौंद डालेंगे।
थोड़ा हम सोचें, राम जैसा आदमी सारी पृथ्वी पर खोजना मुश्किल है। एक अनूठा आयाम है राम का। एक अलग ही डायमेंशन है। क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर खोजे जा सकते हैं। रावण, या हिटलर, या नेपोलियन, या सिकंदर खोजे जा सकते हैं। राम बहुत अनूठा जोड़ हैं। आदमी बुद्ध जैसे, हाथ में ताकत रावण जैसी।
कृष्ण कहते हैं, शस्त्रधारियों में मैं राम हूं।