सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

अमेरिका में शाखा मृगों वाला छुई मुई राष्ट्रवाद नहीं है।


हिंदी भाषा जगत की कुछ लोकोक्तियाँ एवम मुहावरे यद्द्पि सदाबहार और सर्वकालिक हैं ,किन्तु आधुनिकतम तकनीक और सूचना संचार संसाधनों ने हिंदी की इस भदेस भाषाई विशेषता को गर्त में धकेल दिया है। अधजल गगरी झलकत जाए  ,थोथा चना बाजे घना, चूहे को चिन्दी  मिली बजाजी खोलने चला , घर में नहीं दाने - अम्मा चली चुगाने ' बगैरह बगैरह ,,,! भारतीय उपमहाद्वीप में, खास तौर से हिंदी -उर्दू क्षेत्र में इन कहावतों के चलन से ही समझा जा सकता है कि इतिहास के हरेक दौर में इस क्षेत्र की आवामका सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक और 'राष्ट्रवाद' का स्तर कैसा और कितना रहा है ?

सदियोंकी गुलामीके उपरान्त  भारतीय उपमहाद्वीप के सभी नवोदित खंडित राष्ट्रोंकी आवामके मनोमस्तिष्क में पष्चिमी राष्ट्रोंकी तरह का सहज लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष 'राष्ट्रवाद'कभी नहीं रहा। बल्कि अरब -इजरायल और मध्यएशियाई देशोंकी तरह सांप्रदयिकता आधारित 'अंधराष्ट्रवाद'ज्यादा पनपता रहा है।भारत,नेपाल,श्रीलंका और पाकिस्तान इत्यादि देशों की आर्थिक,सामाजिक ,राजनैतिक बदहाली जगजाहिर है,किन्तु इन देशों के शासकगण बड़ी चालाकी से आवाम का ध्यान ज्वलन्त मुद्दों से हटाकर -राष्ट्रवाद ,जेहाद, धर्मांतरण , आतंकवाद  जैसे मुद्दोंकी ओर मोड़ दिया करते हैं।भारत और पाकिस्तान में यह भ्रामक प्रहसन कुछ ज्यादा ही अभिनीत हो रहाहै।सदियों की गुलामी का एहसास जिसके मन में जितना ज्यादा होता है ,'राष्ट्रवाद' का बोध भी उस शख्समें उतना ही उद्दाम होता है । किन्तु यह राष्ट्रवाद निरपेक्ष नहीं होता ,बल्कि  पड़ोसी मुल्कों की और 'अमित्र' राष्ट्रों की 'क्रिया-प्रतिक्रिया के सापेक्ष नित्य परिवर्तनशील हुआ करता है। भारतीय मानस में चीन और पाकिस्तान इसके स्थाई उद्दीपन हैं ।

जैसे कोई कृपण व्यक्ति अपनी छुद्र उपलब्धि पर इतराने लगता है ,जैसे कि आषाढ़ में बरसाती मेंढक टर्राने लगते हैं ,जैसे कि 'छुद्र नदी भर चली तोराई ',ऐसे ही भारत-पाकिस्तान के लोग बात-बात में एक दूसरे को आंखे तरेरने लगते हैं। सीमाओं के झगड़े ,आतंकवाद और कश्मीर के झगड़े तो बहुत पेंचीदे हैं ,किन्तु हॉकी- क्रिकेटके खेलमें और फिल्म और कलाके क्ष्रेत्रमें भी इन देशोंका राष्ट्रवाद उबलता हुआ दिखाई देने लगता  है। जबकि अमेरिका  , रूस ,जापान ,इंग्लैंड ,जर्मनी और फ़्रांस जैसे पूर्व सामराजी मुल्कोंकी आवाम अपने -अपने देशोंके प्रति भारतीयों से या पाकिस्तानियों से ज्यादा बफादार होते हुए भी किसी दूसरे देश के कलाकारों,कवियों,लेखकों और महानतम नेताओं की तारीफ करने में कोई शर्म महसूस नहीं करती । हम भारत के लोग भले ही गाँधी को गोली मार दें या नेहरूको गालियाँ दें किन्तु अमेरिका -अफ्रीका और  तीसरी दुनियाके लोग  गाँधी ,नेहरू,सुभाष का बहुत सम्मान करते हैं। कुछ तो इंदिराजी,अटलजी और ज्योति वसु का भी सम्मान करते हैं।और अब तो प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी सम्मान पा रहे हैं।  

विगत शनिवार को अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार श्रीमान डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतियों की खूब तारीफ़ की है,उन्होंने भारत की जमकर तारीफ़ की है,उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की भूरि -भूरि प्रशंसा की है और खास तौर पर उन्होंने पाकिस्तान की जमकर निंदा की है। अब भले ही हम डोनाल्ड ट्रम्प या अमेरिका के प्रशंसक नहीं हैं ,भले ही हम मोदीजी या 'संघ' की राजनैतिक विचारधारा से सहमत नहीं हैं ,किन्तु देशभक्ति में हम भी किसी से कम नहीं ! हमें मालूम है कि चौतरफा संकटग्रस्त भारत को विश्व विरादरी के समर्थन की बहुत जरूरत है। अब यदि अमेरिकन प्रसिडेंट उम्मीदवार 'डोनाल्ड ट्रम्प' वोट के लिए ही सही यदि भारत की तारीफ करता है ,भारत के प्रधान मंत्री की तारीफ करता है तो उसके कथन का प्रतिवाद हम नहीं कर सकते !

इस घटना से हमें दो बातों पर गौर करने की प्रेरणा मिलती है। एक तो यह कि मिस्टर डोनाल्ड ट्रम्प जो कि रिपब्लिकन उम्मीदवार हैं और  भले ही  वे भारतीयों के वोट हासिल करने के लिए यह सब कर रहे हैं, किन्तु अमेरिका की धरती से भारत के प्रधानमंत्री की  और भारत की जनता की तारीफ कर रहें। इसके वावजूद एक भी अमेरिकी ने उनसे नहीं कहा कि - ''मिस्टर ट्रम्प आप अमेरिका की खाते हो और मोदी के गुण गाते हो'' ! दूसरी बात यह कि यदि भारत के किसी उम्मीदवार ने  या किसी नेता नई गलती से भी किसी गैर मुल्क के नेता का नाम ले लिया होता या उसके प्रधान मंत्री -राष्ट्रपति की तारीफ की होती तो भारत के मंदबुद्धि नकली राष्ट्रवादी लोग उसे 'देशद्रोही'बना देते। उसे कन्हैयाकुमार ,रोहित वेमुला या केजरीवाल ही बना देते।  संघ समर्थक बयान देने लग जाते कि ''भारत की खाते हो और फलाँ के गुण  गाते हो '' ! तुम देशद्रोही हो !,,,,तुम पाकिस्तान चले जाओ ! बगैरह बगैरह ,,,! श्रीमान डोनाल्ड ट्रम्प किस्मत वाले हैं , क्योंकि अमेरिका में शाखा मृगों वाला छुई मुई राष्ट्रवाद नहीं है।   

भारत के खिलाडी ,फ़िल्मी हीरो,कलाकार ,साहित्यकार ,लेखक और इंटेलेक्चुवलस जब कभी अमेरिका इंग्लैंड -यूरोप या मारीशस जाते हैं या जब कभी मोदी जी जैसे बड़े नेता वहाँ जाते हैं तो  प्रवासी भारतीय जन जो कि सदियों से भारत छोड़ चुके हैं और वहाँ जाकर बस गए हैं , वे  ''भारत माता की जय'' और वन्दे मातरम '' अवश्य बोलते हैं। इतना ही नहीं बल्कि वे  खुलकर 'हर-हर मोदी' भी बोलते हैं। लेकिन कभी ब्रिटेन वालों ने ,कभी फ़्रांस वालों ने ,कभी अमेरिका वालों ने या यूरोप वालों ने ये नहीं कहा ''यहाँ की खाते हो और भारत के गुण गाते हो !''

  भारत के आधुनिक युवाओं को यदि राजनीति में रूचि नही है तो वे किसी खास राजनेता का अंध समर्थन क्यों करते हैं ? और यदि किसी को राजनीति में रूचि है तो अच्छी बात है वह दुनिया के विकसित देशों से यह भी सीखें की असली राष्ट्रवाद क्या होता है ? जो कोई शख्स अमेरिका विरोधी है ,जो कोई शख्स मोदी विरोधी है ,वेशक वह अपनी जगह सही हो सकता है, किन्तु यदि दुनिया के सापेक्ष भारत राष्ट्र का गौरव और सम्मान बढ़ता है तो उसे खुशी होनी चाहिए। और यदि भारत की अखण्डता  पर कोई आंच आती है तो अपने वतन के साथ उसे मुस्तेद खड़ा दिखना भी जरुरी है।  वैचारिक संघर्ष और राजनैतिक मतभेद तो अमेरिका में भी हैं लेकिन जब डोनाल्ड ट्रम्प जैसे शख्स को भारत की तारीफ़ करने पर 'देशद्रोह' काआरोप नहीं लगता तो हम भारत के लोग भी दुनिया के किसी भी मुल्क की या नेता की तारीफ के लिए स्वतंत्र हैं। अंधराष्ट्रवादियों को यह हमेशा याद रखना चाहिए। श्रीराम तिवारी

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