बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

सत्तापक्ष के लोग प्रधानमंत्री को अनसुना क्यों कर रहे हैं ?


 भारत के  खिलाफ परोक्ष युद्ध छेड़ने वाले आतंकी हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे बदमाशों की तरफदारी करने वाले पाकिस्तानी 'शरीफों' के खिलाफ पाकिस्तान का मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा होने का साहस कर रहा है। पाकिस्तान में  सेना और आतंकवादियों की मिली भगत पर सवाल उठाने पर, वहाँ प्रमुख अखवार 'डॉन' के पत्रकार -सिरिल अलमीडा को देशद्रोह के मुकदमें में घसीटने की कोशिश की जा रही है। पाकिस्तान के एक अन्य  ख्यातनाम अखवार 'द नेशन 'ने भी पाकिस्तानी शासकों से सवाल किया है कि ''पाकिस्तानी फ़ौज -सरकार और दोनों  शरीफ बताये कि हाफिज सईद- अजहर मसूद जैसे आतंकियों पर कार्यवाही करने से पाकिस्तान को क्या  खतरा है ? '' उम्मीद है कि पाकिस्तान की आवाम भी अपने इन जम्हूरियत पसन्द ,अमनपसन्द अखवारों का समर्थन करेगी और अजहर मसूद हाफिज सईद जैसे आतंकियों को हीरो बनाने वाले शासको का समर्थन कदापि नहीं करेगी। हमें यह उम्मीद भी है कि भारत के अमनपसन्द लोग ,लोकतंत्र-धर्मनिर्पेक्षता समर्थक सभी नागरिक भी अपने यहाँ के जातीयतावादियों ,साम्प्रदायिक बाबाओं और युद्धोन्मादी नेताओं के उकसावे में नहीं आएँगे । 

भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कल मुंबई में कहा है कि ''विगत दिनों पीओके में सम्पन्न सैन्य कार्यवाही याने 'सर्जिकल स्ट्राइक' का अधिकांस श्रेय प्रधान मंत्री श्री मोदी को जाता है,इससे पहले भारत की ओर से कभी कोई और सर्जिकल कार्यवाही नहीं हुई ''  स्वाभाविक है कि  रक्षा मंत्री के इस बयान पर अलग-अलग  प्रतिक्रियायें भी दरपेश होंगीं । पहली प्रतिक्रिया तो यही होगी कि किंचित पर्रिकरजी को भारतीय इतिहास के उन गौरवशाली और 'विजयी' संदर्भों की सही जानकारी नहीं है. जिनमें भारतीय सैन्य बलों ने शानदार विजय हासिल की है। यदि उन्हें  समुचित जानकारी  नहीं है तो कोई बात नहीं यह क्षम्य अपराध है किन्तु वे अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन तो न करें। यदि वे जानबूझकर मौजूदा असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए यह राजनैतिक वयानबाजी कर रहे हैं।  तो भी यह उनका देशभक्तिपूर्ण  कृत्य नहीं है। कुछ लोगों की प्रतिक्रिया यह हो सकती है  कि देश का रक्षामंत्री इस तरह की कार्यवाहियों से सीधा जुड़ा होता है ,इसलिए उसे इस तरह के सन्दर्भ की अधिकान्स और सही-सही जानकारी रहती है,इसलिए वे जो कह रहे हैं वही सही है। लेकिन एक  प्रतिक्रिया यह भी हो सकती है ,जो अभी कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री जी ने ही ईजाद की है   कि ''स्वयम अपनी पीठ अनावश्यक रूपसे ठोकने की जरुरत नहीं याने इस तरह की बयानबाजी की जरूरत ही नहीं है हम एकजुट व अनुशासित रहकर ही पाकिस्तान प्रेरित हिंसक 'आतंकवाद'का मुकाबला  कर सकते हैं ''

हैरानी की बात है कि  मनोहर पर्रिकरजी और सत्तापक्ष के अन्य समर्थक लोग अपने  प्रधानमंत्री  की बातों को अनसुना क्यों कर रहे  हैं ? कुछ बड़बोले सत्ताधारी नेता ,मंत्रीगण और उनके पार्टी प्रवक्तागण देश में 'दिग्भ्र्म का प्रदूषण' फैलाने  पर आमादा  हैं। पर्रिकरजी से यह सवाल भी  किया जा सकता है कि क्या अतीत में भारतीय सेना बुजदिल और कायर थी ? यदि हाँ तो अभी तक कश्मीर सहित भारत की हिफाजत किसने की ? देश के हजारों जवान सीमाओं पर शहीद कैसे हुए ?यदि सेना ने पहले कोई कार्यवाही नहीं की तो देश की आवाम से छिपाने और  दुनिया भर में ढिंढोरा पीटने का मतलब क्या है ?यदि बताना ही है तो देश को यह बताया जाए की कब और कहाँ चूक  हुई है?और यदि  बाकई  कभी किसी सरकार से कोई चूक हुई तो  उस समय के शासक वर्ग का विरोध तब के विपक्ष [पर्रिकर परिवार] ने क्यों नहीं किया ?

जिस तरह का एक्शन पाकिस्तान में विपक्ष का नेता इमरान खान ले रहा है कि अभी नवाज शरीफ और राहिल शरीफ को इस बात के लिए घेरा जा रहा है कि भारत द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक में ये दोनों शरीफ नाकारा  सावित हुए हैं। यह सभी जानते हैं कि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक में भारतको सफलता मिली है और इसका श्रेय सेना सहित देश की तमाम जनता को जाता है। क्योंकि लोकतंत्र में असली  हीरो खुद जनता ही हुआ करती है। जो लोग केवल प्रधानमंत्री को श्रेय दे रहे हैं वे अपनी बयानबाजी से मोदी जी को खुश रखने के लिए भौंडा प्रयास कर रहे हैं। यह अबूझ पहेली  है कि मंत्रीस्तर के लोगभी अपने पीएम की कही गयी अधिकांस बातों को अनसुना क्यों कर रहे हैं  ?  और यही लोग दूसरों को 'देश भक्ति 'सिखाने का दुस्साहस करते रहते हैं। श्रीराम तिवारी !

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