रविवार, 30 अक्टूबर 2016

''तमसो मा ज्योतिर्गमय ! ''


इस बार दीपावली के शुभ अवसर पर 'संयुक्त राष्ट्र संघ' मुख्यालय में भी  दिए जलाये गए ! मुझे नहीं मालूम कि ऐंसा पहली बार ही हुआ है या अन्य इवेंटस की तरह इस घटना को भी पहली बार खास 'खबर' के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।  हकीकत जो भी हो,किन्तु यह सुखद और सर्वजनहिताय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में न केवल दीपक जलाये गए बल्कि भारतीय  संस्कृत वाङ्ग्मय के सुप्रसिद्ध सूक्त वाक्य :-''तमसो मा ज्योतिर्गमय ! असतो मा  सदगमय ! मर्त्योर्माम अमृतगमय ! ''-का अंग्रेजी सहित तमाम प्रमुख भाषाओँ में अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया है !

प्रस्तुत मन्त्र की सर्वकालिकता और सार्वभौमिकता तो सर्वज्ञात है। और इस वैदिक मन्त्र का संसार की किसी भी विचारधारा या दर्शन से कोई टकराव नहीं है। इसके पहले और दूसरे 'पद' के निहितार्थ भी लगभग सर्वमान्य हैं। किन्तु अंतिम पद की जितनी दुर्दशा भारत में की जा रही है उतनी शायद ही कहीं अन्यत्र देखने को मिलेगी !यों   दीपावली के पावन पर्व  पर और  सब ठीकठाक है किन्तु बारूदी  दुर्गन्ध,विषैला धुँआ और दूषित - वातावरण देखकर कोई भी कहेगा कि यह 'म्रत्योर्माम अमृतगमय' का अनुकरण नहीं है। बल्कि यह तो अमरत्व से मृत्यु की ओर तेजी से ले जाने का [अ ] मानवीय उपक्रम  है ! श्रीराम तिवारी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें