सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

उनका एनकाउंटर में मारा जाना देशहित में जरुरी है।

यद्द्यपि भोपाल जेल से फरार 'सिमी' आतंकवादियों के साथ मध्यप्रदेश पुलिस ने जो कुछ किया वह बिलकुल सही है। निसंदेह सिमी के लोग समाजद्रोही -देशद्रोही हैं ,लेकिन बाकीके सभी सामजिक-आर्थिक-राजनैतिक अपराधी क्या देशभक्त हैं ? राह चलते स्कूल -कालेज की छात्राओं,कामकाजी महिलाओं का आयेदिन अपहरण करने वाले गुंडे ,चेन स्नेचिंग करनेवाले लफंगे ,कन्या भ्रूणहत्या करने वाले राक्षस ,नकली दवाइयाँ बनाने-बेचनेवाले,मिलावटी खाद्यान्न बेचने वाले  ,मजूरों की मंजूरी डकारने वाले ,व्यापम कुकर्म करनेवाले ,सीबीआई और सीआईडी को धता बताने वाले ,इनकम टेक्स , सेल टेक्स ,आरटीओ ,पीडब्लूडी के अधिकारियों की जेबें भरने वाले औरहरकिस्म के राजनैतिक भृष्टाचार में लिप्त लोग क्या देशभक्त हैं ? मध्यप्रदेश सरकार और एमपी की बहादुर पुलिस जब सिमी आतंकियों को गोलियों से भून सकती है ,तो उनसे ज्यादा खतरनाक अपराधियों पर कृपादृष्टि क्यों ? उन्हें चाहिए कि इन घातक अपराधियों को भी मुठभेड़ में मार दे ! क्योंकि न्यायपालिका और लोकतंत्र तो शायद इसकी कभी इजाजत नहीं देते !

वेशक भृष्टाचार ,भाई -भतीजावाद और राजनैतिक दबाव में कामकरने के लिए एमपी पुलिस भी हमेशा बदनाम रही है। किन्तु कई मामलों में वह दिल्ली ,पंजाब ,हरियाणा और कश्मीर पुलिस से तो बेहतर ही है। भगोड़े सिमी आतंकियों को मार गिराने का एमपी पुलिस का यह शानदार और बहादुरी का काम  काबिले तारीफ़ है। यह काम बहुत पहले शुरूं हो जाना चाहिए था।यदि मुख्यमंत्री शिवराज जी या उनके गृह मंत्री उसका श्रेय लेते हैं तो यह एमपी पुलिस के साथ अन्याय है,क्योंकि वे यह काम करने में यदि सक्षम थे तो १० साल का इन्तजार क्यों किया ? सिमी आतंकी तो शिवराज के सत्ता में आने से पूर्व ही कुख्यात हो चुके थे। वास्तव में कथित मुठभेड़- एनकाउंटर की घटना का श्रेय उन सूचना देने वाले सजग ग्रामीणों को भी जाता है। भलेही विभिन्न कारणों से उनका नाम अभी गोपनीय  रखा गया  हो !क्योंकि मध्यप्रदेश में सिमी आतंकवादियों का नेटवर्क अभी भी बहुत मजबूत है । उनके तार खण्डवा,बुरहानपुर ,भोपाल ,नागदा, महिदपुर, सनावद ,खरगोन से लेकर बेंगलोर ,भटकल ,अहमदाबाद और हैदराबाद तक जुड़े होने की संभावना हो सकती है। वे तालिवान ,अलकायदा ,आईएसआईएस, पाकिस्तानी फ़ौज और जैश ए मुहम्मद से भी वास्ता रखते हैं। इसलिए उनका एनकाउंटर में मारा जाना देशहित में जरुरी है।

वे  कहीं पर नकली नोट खपा रहे होते हैं ,वे कहीं पत्थर पर पत्थर फैंक रहे होते हैं ,वे कहीं पर जेल फांदकर फरार हो रहे होते हैं , वे कहीं पर भारतीय निर्दोष नागरिकों और पुलिस पर फायर कर रहे होते हैं। यदि मध्य प्रदेश के ग्रह मंत्री कह रहे हैं कि हमने कारनामा कर दिखाया तो यह बड़बोलापन है।  पुलिस का मानो कोई रौल नहीं। इसके अलावा किसी एक भी आतंकी को जिन्दा न पकड़ पाना और जेल से भाग जाने देना भी सन्देह को जन्म देता है। लेकिन फिर भी आतंकियों को खत्म करने में ही देश की भलाई है , बहादुरी है और देशभक्ति भी।
 श्रीराम तिवारी !

रविवार, 30 अक्टूबर 2016

''तमसो मा ज्योतिर्गमय ! ''


इस बार दीपावली के शुभ अवसर पर 'संयुक्त राष्ट्र संघ' मुख्यालय में भी  दिए जलाये गए ! मुझे नहीं मालूम कि ऐंसा पहली बार ही हुआ है या अन्य इवेंटस की तरह इस घटना को भी पहली बार खास 'खबर' के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।  हकीकत जो भी हो,किन्तु यह सुखद और सर्वजनहिताय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में न केवल दीपक जलाये गए बल्कि भारतीय  संस्कृत वाङ्ग्मय के सुप्रसिद्ध सूक्त वाक्य :-''तमसो मा ज्योतिर्गमय ! असतो मा  सदगमय ! मर्त्योर्माम अमृतगमय ! ''-का अंग्रेजी सहित तमाम प्रमुख भाषाओँ में अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया है !

प्रस्तुत मन्त्र की सर्वकालिकता और सार्वभौमिकता तो सर्वज्ञात है। और इस वैदिक मन्त्र का संसार की किसी भी विचारधारा या दर्शन से कोई टकराव नहीं है। इसके पहले और दूसरे 'पद' के निहितार्थ भी लगभग सर्वमान्य हैं। किन्तु अंतिम पद की जितनी दुर्दशा भारत में की जा रही है उतनी शायद ही कहीं अन्यत्र देखने को मिलेगी !यों   दीपावली के पावन पर्व  पर और  सब ठीकठाक है किन्तु बारूदी  दुर्गन्ध,विषैला धुँआ और दूषित - वातावरण देखकर कोई भी कहेगा कि यह 'म्रत्योर्माम अमृतगमय' का अनुकरण नहीं है। बल्कि यह तो अमरत्व से मृत्यु की ओर तेजी से ले जाने का [अ ] मानवीय उपक्रम  है ! श्रीराम तिवारी।

सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

यूपी की जनता शायद ही इस बार सपा या मुलायम परिवार पर मेहरवान होगी !


मुलायमसिंह यादव न तो समाजवादी हैं और न ही लोहियावादी हैं, वे पिछड़ावर्ग के हितेषी भी नहीं हैं, और उन्हें किंचित  'परिवारवादी' भी नहीं कहा जा सकता । दसरल वे उत्तरप्रदेश में  क्षेत्रीयतावादी 'नकारात्मक राजनीति' की खुरचन मात्र  हैं। उन्हें सत्ता में लाने का श्रेय विश्वनाथ प्रतापसिंह , लालकृष्ण आडवाणी और नरसिम्हाराव को जाता है। वीपीसिंह ने नेता बनाया , आडवाणी  की रथयात्रा ने मुलायम को हीरो बनाया और नरसिम्हाराव ने उन्हें परवान चढ़ाया। भाई-भतीजावाद,परिवारवाद,भृष्टाचार , सैफई वाली गुंडई , जातिवाद और सम्प्रदायवाद उनके चुनाव जिताऊ अश्त्र-शस्त्र रहे हैं।
          भाई शिवपालयादव ,जिगरी दोस्त अमरसिंह और मुख्तार अंसारी जैसे लोग उनके पुराने राजदार रहे हैं। अब जबकि यूपी में विधान सभा चुनाव सिर पर  हैं,तब मुलायम कुनबा आपसी जूतम पैजार में व्यस्त है।यक्ष प्रश्न यह है कि मुलायम सिंह यादव की भृष्ट विरासत पर उनका पुत्र अखिलेश यादव क्या ईमानदारी की बुलन्द और भव्य ईमारत खड़ी कर सकता है ? मेरा ख्याल है -नहीं ! क्योंकि अखिलेश यादव को कदाचित राजनैतिक पार्टी निर्माण और  संगठन खड़ा करने का अनुभव नहीं है। जिस पार्टीके कारण वे यूपी के सीएम हैं उस सपाके निर्माण में भी अखिलेश का कोई योगदान नहीं है। वेशक  वे यदि अपने पिता के संजाल से मुक्त होकर चन्द्र बाबु नायडू या जय ललिता की राह पकडते हैं ,तो उनके लिए संभावनाओं के द्वार खुल सकते  हैं। लेकिन इसमें वक्त लगेगा।

बहरहाल यूपी की जनता शायद ही इस बार के चुनावों में सपा या मुलायम परिवार पर मेहरवान होगी !वेशक मुलायमसिंह का वंशज होना अखिलेश के लिए जितना लाभप्रद रहा है किन्तु उतना ही नुकसानदेह और कष्टप्रद भी है। यदि वे  चाहें तो भी अपनी बल्दियत बदल भी नहीं सकते ! वे यह तो समझ  गए होंगे कि  'नेताजी' का पुत्र होना किसी मुगल बादशाह के 'बलीअहद' [युवराज] से कम नहीं है। लेकिन इसमें  गर्व की कोई बात भी नहीं है, क्योंकि मुगल खानदानके अधिकांस 'बलीअहद' अपने 'बाप' को 'निपटाकर' ही गद्दीनसीन  होते रहे हैं।यह विचित्र संयोग है कि मुगल राजकुमार भी अपने सारे षड्यन्त्र इसी उत्तरप्रदेश याने तत्कालीन 'अबध '- लखनऊ, प्रयाग और आगरा में ही रचते रहे हैं। मुलायम परिवार का अंतरकलह हमें द्वापर युग की उस मिथकीय घटनापर यकीन कराता है ,जिसे 'यादवी महासंग्राम' भी कहा जाता है और जिसमें द्वारका के यादव आपस में लड़-मर गए थे।
भारतीय  काल गणना अनुसार द्वापर युग के  'महाभारत' की गाथा और 'भागवद पुराण 'में वर्णित द्वारका-विनाश , के तथाकथित 'यादवी महासंग्राम' को मैं अब तक 'मिथ' इतिहास ही समझता रहा हूँ। किन्तु बिहारमें लालू परिवार और उत्तरप्रदेश में 'मुलायम-परिवार' का उत्थान -पतन  देखकर यकीन होने लगाहै कि द्वापरयुग जरूर रहा होगा और 'यादवी महासंग्राम' भी अवश्य हुआ होगा।

सारा देश जानता है कि मुलायम परिवार की पार्टी 'सपा' का समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें भारत राष्ट्र की भी कोई  चिंता नहीं। खुद मुलायमसिंह यादव और उनके अनुज शिवपाल यादव -कहीं से भी समाजवादी नहीं हैं। मुलायम के सुपुत्र अखिलेश यादव अवश्य पढ़े-लिखे हैं और सुलझे हुए युवा नेता भी लगते हैं.यदि वे अपने पिताकी कलंकित राजनीति त्यागकर अलग पार्टी बनालें या किसी से गठबंधन कर लें और यूपी की जनता उन्हें एक बार फिर से भरपूर समर्थन  दे ,तो शायद  अखिलेश यादव यूपी का और बेहतर नेतत्व कर सकते हैं और विकास भी कर सकते हैं। शायद तब वे 'समाजवाद' की ओर भी आगे बढ़ सकते हैं। श्रीराम तिवारी !

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

अमेरिका में शाखा मृगों वाला छुई मुई राष्ट्रवाद नहीं है।


हिंदी भाषा जगत की कुछ लोकोक्तियाँ एवम मुहावरे यद्द्पि सदाबहार और सर्वकालिक हैं ,किन्तु आधुनिकतम तकनीक और सूचना संचार संसाधनों ने हिंदी की इस भदेस भाषाई विशेषता को गर्त में धकेल दिया है। अधजल गगरी झलकत जाए  ,थोथा चना बाजे घना, चूहे को चिन्दी  मिली बजाजी खोलने चला , घर में नहीं दाने - अम्मा चली चुगाने ' बगैरह बगैरह ,,,! भारतीय उपमहाद्वीप में, खास तौर से हिंदी -उर्दू क्षेत्र में इन कहावतों के चलन से ही समझा जा सकता है कि इतिहास के हरेक दौर में इस क्षेत्र की आवामका सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक और 'राष्ट्रवाद' का स्तर कैसा और कितना रहा है ?

सदियोंकी गुलामीके उपरान्त  भारतीय उपमहाद्वीप के सभी नवोदित खंडित राष्ट्रोंकी आवामके मनोमस्तिष्क में पष्चिमी राष्ट्रोंकी तरह का सहज लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष 'राष्ट्रवाद'कभी नहीं रहा। बल्कि अरब -इजरायल और मध्यएशियाई देशोंकी तरह सांप्रदयिकता आधारित 'अंधराष्ट्रवाद'ज्यादा पनपता रहा है।भारत,नेपाल,श्रीलंका और पाकिस्तान इत्यादि देशों की आर्थिक,सामाजिक ,राजनैतिक बदहाली जगजाहिर है,किन्तु इन देशों के शासकगण बड़ी चालाकी से आवाम का ध्यान ज्वलन्त मुद्दों से हटाकर -राष्ट्रवाद ,जेहाद, धर्मांतरण , आतंकवाद  जैसे मुद्दोंकी ओर मोड़ दिया करते हैं।भारत और पाकिस्तान में यह भ्रामक प्रहसन कुछ ज्यादा ही अभिनीत हो रहाहै।सदियों की गुलामी का एहसास जिसके मन में जितना ज्यादा होता है ,'राष्ट्रवाद' का बोध भी उस शख्समें उतना ही उद्दाम होता है । किन्तु यह राष्ट्रवाद निरपेक्ष नहीं होता ,बल्कि  पड़ोसी मुल्कों की और 'अमित्र' राष्ट्रों की 'क्रिया-प्रतिक्रिया के सापेक्ष नित्य परिवर्तनशील हुआ करता है। भारतीय मानस में चीन और पाकिस्तान इसके स्थाई उद्दीपन हैं ।

जैसे कोई कृपण व्यक्ति अपनी छुद्र उपलब्धि पर इतराने लगता है ,जैसे कि आषाढ़ में बरसाती मेंढक टर्राने लगते हैं ,जैसे कि 'छुद्र नदी भर चली तोराई ',ऐसे ही भारत-पाकिस्तान के लोग बात-बात में एक दूसरे को आंखे तरेरने लगते हैं। सीमाओं के झगड़े ,आतंकवाद और कश्मीर के झगड़े तो बहुत पेंचीदे हैं ,किन्तु हॉकी- क्रिकेटके खेलमें और फिल्म और कलाके क्ष्रेत्रमें भी इन देशोंका राष्ट्रवाद उबलता हुआ दिखाई देने लगता  है। जबकि अमेरिका  , रूस ,जापान ,इंग्लैंड ,जर्मनी और फ़्रांस जैसे पूर्व सामराजी मुल्कोंकी आवाम अपने -अपने देशोंके प्रति भारतीयों से या पाकिस्तानियों से ज्यादा बफादार होते हुए भी किसी दूसरे देश के कलाकारों,कवियों,लेखकों और महानतम नेताओं की तारीफ करने में कोई शर्म महसूस नहीं करती । हम भारत के लोग भले ही गाँधी को गोली मार दें या नेहरूको गालियाँ दें किन्तु अमेरिका -अफ्रीका और  तीसरी दुनियाके लोग  गाँधी ,नेहरू,सुभाष का बहुत सम्मान करते हैं। कुछ तो इंदिराजी,अटलजी और ज्योति वसु का भी सम्मान करते हैं।और अब तो प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी सम्मान पा रहे हैं।  

विगत शनिवार को अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार श्रीमान डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतियों की खूब तारीफ़ की है,उन्होंने भारत की जमकर तारीफ़ की है,उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की भूरि -भूरि प्रशंसा की है और खास तौर पर उन्होंने पाकिस्तान की जमकर निंदा की है। अब भले ही हम डोनाल्ड ट्रम्प या अमेरिका के प्रशंसक नहीं हैं ,भले ही हम मोदीजी या 'संघ' की राजनैतिक विचारधारा से सहमत नहीं हैं ,किन्तु देशभक्ति में हम भी किसी से कम नहीं ! हमें मालूम है कि चौतरफा संकटग्रस्त भारत को विश्व विरादरी के समर्थन की बहुत जरूरत है। अब यदि अमेरिकन प्रसिडेंट उम्मीदवार 'डोनाल्ड ट्रम्प' वोट के लिए ही सही यदि भारत की तारीफ करता है ,भारत के प्रधान मंत्री की तारीफ करता है तो उसके कथन का प्रतिवाद हम नहीं कर सकते !

इस घटना से हमें दो बातों पर गौर करने की प्रेरणा मिलती है। एक तो यह कि मिस्टर डोनाल्ड ट्रम्प जो कि रिपब्लिकन उम्मीदवार हैं और  भले ही  वे भारतीयों के वोट हासिल करने के लिए यह सब कर रहे हैं, किन्तु अमेरिका की धरती से भारत के प्रधानमंत्री की  और भारत की जनता की तारीफ कर रहें। इसके वावजूद एक भी अमेरिकी ने उनसे नहीं कहा कि - ''मिस्टर ट्रम्प आप अमेरिका की खाते हो और मोदी के गुण गाते हो'' ! दूसरी बात यह कि यदि भारत के किसी उम्मीदवार ने  या किसी नेता नई गलती से भी किसी गैर मुल्क के नेता का नाम ले लिया होता या उसके प्रधान मंत्री -राष्ट्रपति की तारीफ की होती तो भारत के मंदबुद्धि नकली राष्ट्रवादी लोग उसे 'देशद्रोही'बना देते। उसे कन्हैयाकुमार ,रोहित वेमुला या केजरीवाल ही बना देते।  संघ समर्थक बयान देने लग जाते कि ''भारत की खाते हो और फलाँ के गुण  गाते हो '' ! तुम देशद्रोही हो !,,,,तुम पाकिस्तान चले जाओ ! बगैरह बगैरह ,,,! श्रीमान डोनाल्ड ट्रम्प किस्मत वाले हैं , क्योंकि अमेरिका में शाखा मृगों वाला छुई मुई राष्ट्रवाद नहीं है।   

भारत के खिलाडी ,फ़िल्मी हीरो,कलाकार ,साहित्यकार ,लेखक और इंटेलेक्चुवलस जब कभी अमेरिका इंग्लैंड -यूरोप या मारीशस जाते हैं या जब कभी मोदी जी जैसे बड़े नेता वहाँ जाते हैं तो  प्रवासी भारतीय जन जो कि सदियों से भारत छोड़ चुके हैं और वहाँ जाकर बस गए हैं , वे  ''भारत माता की जय'' और वन्दे मातरम '' अवश्य बोलते हैं। इतना ही नहीं बल्कि वे  खुलकर 'हर-हर मोदी' भी बोलते हैं। लेकिन कभी ब्रिटेन वालों ने ,कभी फ़्रांस वालों ने ,कभी अमेरिका वालों ने या यूरोप वालों ने ये नहीं कहा ''यहाँ की खाते हो और भारत के गुण गाते हो !''

  भारत के आधुनिक युवाओं को यदि राजनीति में रूचि नही है तो वे किसी खास राजनेता का अंध समर्थन क्यों करते हैं ? और यदि किसी को राजनीति में रूचि है तो अच्छी बात है वह दुनिया के विकसित देशों से यह भी सीखें की असली राष्ट्रवाद क्या होता है ? जो कोई शख्स अमेरिका विरोधी है ,जो कोई शख्स मोदी विरोधी है ,वेशक वह अपनी जगह सही हो सकता है, किन्तु यदि दुनिया के सापेक्ष भारत राष्ट्र का गौरव और सम्मान बढ़ता है तो उसे खुशी होनी चाहिए। और यदि भारत की अखण्डता  पर कोई आंच आती है तो अपने वतन के साथ उसे मुस्तेद खड़ा दिखना भी जरुरी है।  वैचारिक संघर्ष और राजनैतिक मतभेद तो अमेरिका में भी हैं लेकिन जब डोनाल्ड ट्रम्प जैसे शख्स को भारत की तारीफ़ करने पर 'देशद्रोह' काआरोप नहीं लगता तो हम भारत के लोग भी दुनिया के किसी भी मुल्क की या नेता की तारीफ के लिए स्वतंत्र हैं। अंधराष्ट्रवादियों को यह हमेशा याद रखना चाहिए। श्रीराम तिवारी

''पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है '' -अरुण जेटली !



  यदि कोई गौर से और गंभीरता से सुब्रमण्यम स्वामी की बात पर ध्यान दे, तो उनकी बात में कुछ खास बात अवश्य होती है। वेशक सुब्रमण्यम स्वामीकी अधिकांस बातोंमें नकारात्मकता का बोलवाला हुआ करता है।किन्तु जब कभी वे बिगड़ैल हाथी की तरह 'अपने ही दल'पर टूट पड़ते हैं तब उनकी सही और सकारात्मक बातों पर भी विपक्ष के लोग चुप्पी लगा लेते हैं ,यह सरासर बेईमानी है।अभी-अभी सुब्रमण्यम स्वामी जी बोले हैं कि '' वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली  फेल हैं और उनकी की आर्थिक नीतियाँ  विनाशकारी हैं ,जबकि मोदीजी बहुत मेहनती हैं और एक अच्छे प्रधान मंत्री सावित हुए हैं'' !

सवाल उठता है कि जब अरुण जेटली की आर्थिक नीतियाँ ही एनडीए की आर्थिक नीतियाँ हैं याने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियाँ हैं, तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि केवल जेटलीजी ही गलत बताये जा रहे हैं और मोदी जी की तारीफ की जा रहीहै ?वेशक एनडीए याने मोदी सरकार याने अरुण जेटली की आर्थिक नीतियोँ से देश के निजी क्षेत्रों को खूब फायदा हुआ है। किन्तु गरीब और ज्यादा गरीब हुआ है। मनरेगा और गरीबों को सस्ते अनाज की नीति जैसे कुछ कल्याणकारी तदर्थ उपायों को यूपीए की लोकलुभावन नीति कहा जा सकता है ,लेकिन मोदी सरकार ने तो  'एनएसजी' में शामिल होने की आशा में विदेशियों को १००%एफडीआई ही खोल दिया। शर्मनाक यह है कि वह 'एनएसजी'की सदस्यता भी भारत को नहीं दी गयी।

 चूँकि वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटलीजी देश की अर्थ व्यवस्था को सही दिशा नहीं दे पाए , शायद मोदी जी भी उनसे नाखुश हैं ,इसलिए जेटलीजी ने अब अपने वकील होने का एहसास देश को कराया है। उन्होंने बयांन दिया है कि ''पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है '' ! चूँकि सामाजिक और राजनीतिक रूपसे जेटलीजी का यह बयान अपने आप में सर्वकालिक और सार्वभौम है।इसलिए संविधान का सम्मान करने वाले हरेक भारतीय का दायित्व है कि जेटलीजी के इस वयानका समर्थन करे। जिन्हें जेटलीजी से नफरत है ,जिन्हें भाजपासे परहेज है ,जिन्हें  संघ परिवार या  मोदी सरकार की नीति-रीति से परेशानी है ,वे यद्द्पि इसके लिए स्वतंत्र हैं ,किन्तु हरेक को अपने देश के संविधान का सम्मान करना ही होगा।

जेटलीजी ने कहा ही  कि ''पर्सनल लॉ  सम्विधान से ऊपर नहीं '' !वेशक संविधान से ऊपर तो  प्रधानमंत्री भी नहीं ,संविधान से ऊपर राष्ट्रपति भी नहीं और स्पष्ट समझ लिया जाए कि यद्द्पि लोकतंत्रमें संसद सर्वोच्च है ,किन्तु यह संसद भी संविधान से ऊपर नहीं । अतः  जो लोग पर्सनल लॉ को संसद से ऊपर मानते हैं ,या जेटली जी से असहमत हैं वे गलत हैं। सभी राजनैतिक दलों को चाहिये कि भारतीय संविधान की हिफाजत करें ,जो कि बाबा साहब अम्बेडकर के कर कमलों द्वारा इस देश की आवाम को प्रदान किया गया है। श्रीराम तिवारी !

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

सत्तापक्ष के लोग प्रधानमंत्री को अनसुना क्यों कर रहे हैं ?


 भारत के  खिलाफ परोक्ष युद्ध छेड़ने वाले आतंकी हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे बदमाशों की तरफदारी करने वाले पाकिस्तानी 'शरीफों' के खिलाफ पाकिस्तान का मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा होने का साहस कर रहा है। पाकिस्तान में  सेना और आतंकवादियों की मिली भगत पर सवाल उठाने पर, वहाँ प्रमुख अखवार 'डॉन' के पत्रकार -सिरिल अलमीडा को देशद्रोह के मुकदमें में घसीटने की कोशिश की जा रही है। पाकिस्तान के एक अन्य  ख्यातनाम अखवार 'द नेशन 'ने भी पाकिस्तानी शासकों से सवाल किया है कि ''पाकिस्तानी फ़ौज -सरकार और दोनों  शरीफ बताये कि हाफिज सईद- अजहर मसूद जैसे आतंकियों पर कार्यवाही करने से पाकिस्तान को क्या  खतरा है ? '' उम्मीद है कि पाकिस्तान की आवाम भी अपने इन जम्हूरियत पसन्द ,अमनपसन्द अखवारों का समर्थन करेगी और अजहर मसूद हाफिज सईद जैसे आतंकियों को हीरो बनाने वाले शासको का समर्थन कदापि नहीं करेगी। हमें यह उम्मीद भी है कि भारत के अमनपसन्द लोग ,लोकतंत्र-धर्मनिर्पेक्षता समर्थक सभी नागरिक भी अपने यहाँ के जातीयतावादियों ,साम्प्रदायिक बाबाओं और युद्धोन्मादी नेताओं के उकसावे में नहीं आएँगे । 

भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कल मुंबई में कहा है कि ''विगत दिनों पीओके में सम्पन्न सैन्य कार्यवाही याने 'सर्जिकल स्ट्राइक' का अधिकांस श्रेय प्रधान मंत्री श्री मोदी को जाता है,इससे पहले भारत की ओर से कभी कोई और सर्जिकल कार्यवाही नहीं हुई ''  स्वाभाविक है कि  रक्षा मंत्री के इस बयान पर अलग-अलग  प्रतिक्रियायें भी दरपेश होंगीं । पहली प्रतिक्रिया तो यही होगी कि किंचित पर्रिकरजी को भारतीय इतिहास के उन गौरवशाली और 'विजयी' संदर्भों की सही जानकारी नहीं है. जिनमें भारतीय सैन्य बलों ने शानदार विजय हासिल की है। यदि उन्हें  समुचित जानकारी  नहीं है तो कोई बात नहीं यह क्षम्य अपराध है किन्तु वे अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन तो न करें। यदि वे जानबूझकर मौजूदा असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए यह राजनैतिक वयानबाजी कर रहे हैं।  तो भी यह उनका देशभक्तिपूर्ण  कृत्य नहीं है। कुछ लोगों की प्रतिक्रिया यह हो सकती है  कि देश का रक्षामंत्री इस तरह की कार्यवाहियों से सीधा जुड़ा होता है ,इसलिए उसे इस तरह के सन्दर्भ की अधिकान्स और सही-सही जानकारी रहती है,इसलिए वे जो कह रहे हैं वही सही है। लेकिन एक  प्रतिक्रिया यह भी हो सकती है ,जो अभी कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री जी ने ही ईजाद की है   कि ''स्वयम अपनी पीठ अनावश्यक रूपसे ठोकने की जरुरत नहीं याने इस तरह की बयानबाजी की जरूरत ही नहीं है हम एकजुट व अनुशासित रहकर ही पाकिस्तान प्रेरित हिंसक 'आतंकवाद'का मुकाबला  कर सकते हैं ''

हैरानी की बात है कि  मनोहर पर्रिकरजी और सत्तापक्ष के अन्य समर्थक लोग अपने  प्रधानमंत्री  की बातों को अनसुना क्यों कर रहे  हैं ? कुछ बड़बोले सत्ताधारी नेता ,मंत्रीगण और उनके पार्टी प्रवक्तागण देश में 'दिग्भ्र्म का प्रदूषण' फैलाने  पर आमादा  हैं। पर्रिकरजी से यह सवाल भी  किया जा सकता है कि क्या अतीत में भारतीय सेना बुजदिल और कायर थी ? यदि हाँ तो अभी तक कश्मीर सहित भारत की हिफाजत किसने की ? देश के हजारों जवान सीमाओं पर शहीद कैसे हुए ?यदि सेना ने पहले कोई कार्यवाही नहीं की तो देश की आवाम से छिपाने और  दुनिया भर में ढिंढोरा पीटने का मतलब क्या है ?यदि बताना ही है तो देश को यह बताया जाए की कब और कहाँ चूक  हुई है?और यदि  बाकई  कभी किसी सरकार से कोई चूक हुई तो  उस समय के शासक वर्ग का विरोध तब के विपक्ष [पर्रिकर परिवार] ने क्यों नहीं किया ?

जिस तरह का एक्शन पाकिस्तान में विपक्ष का नेता इमरान खान ले रहा है कि अभी नवाज शरीफ और राहिल शरीफ को इस बात के लिए घेरा जा रहा है कि भारत द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक में ये दोनों शरीफ नाकारा  सावित हुए हैं। यह सभी जानते हैं कि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक में भारतको सफलता मिली है और इसका श्रेय सेना सहित देश की तमाम जनता को जाता है। क्योंकि लोकतंत्र में असली  हीरो खुद जनता ही हुआ करती है। जो लोग केवल प्रधानमंत्री को श्रेय दे रहे हैं वे अपनी बयानबाजी से मोदी जी को खुश रखने के लिए भौंडा प्रयास कर रहे हैं। यह अबूझ पहेली  है कि मंत्रीस्तर के लोगभी अपने पीएम की कही गयी अधिकांस बातों को अनसुना क्यों कर रहे हैं  ?  और यही लोग दूसरों को 'देश भक्ति 'सिखाने का दुस्साहस करते रहते हैं। श्रीराम तिवारी !

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

सावधान रक्तबीज अभी भी जिन्दा है !

विगत वर्ष जब पाक प्रशिक्षित आतंकियों ने पठानकोट आर्मीवेस पर आक्रमण किया था  तब 'हमारे' रक्षामंत्री श्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि यह ''आखरी चूक होगी ,आइंदा हमारी अनुमति के बिना परिन्दा भी हमारी सीमा में प्रवेश नहीं कर सकेगा !''अभी -अभी की ताजा खबर है कि जम्मू कश्मीर के पम्पोर की ईडीआई बिल्डिंग में एक दर्जन से अधिक पाकिस्तानी आतंकी छिपकर  गोली बारी कर रहे हैं। जब आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल हो गया और उस सफलता का रावण जल रहे हैं तो यह 'रक्तबीज' कहाँ से पैदा हो गया ? इसलिए हे भारत वासियो -सावधान रक्तबीज अभी भी जिन्दा है !

  १६-१७ सितम्बर की दरम्यानी रातको पाकिस्तानी फ़ौज की 'आतंकी' टुकड़ी ने जब कश्मीर के उड़ी सेक्टर में भारत के १८ जवानों को आर्मी वेस में सोते हुए मार डाला , तब भारत के सत्तारूढ़ नेताओंको और फ़ौजको बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ीथी । उन्हें भारतीय मीडिया और जनता ने बहुत धिक्कारा था !कुछ सरकार विरोधियों ने भी पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादकी निंदा करनेके बजाय अपने ही सैन्यबलों के सामर्थ्य पर सवाल खड़े कर दिए थे। कुछ स्वयम्भू देशभक्तों और सरकार समर्थकों ने  भी इस कदर बेहद बेहयाई दिखाई की जगह-जगह 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक ' के पोस्टर लगा दिए, जबकि उस कार्यवाही के बारे में अभी तक हमारी सरकार ने तत्सम्बन्धी तथ्य उजगार  करने का फैसला ही नहीं लिया है।

लखनऊ में रामलीला मैदान के बाहर जो पोस्टर लगे हैं ,उनमें लिखा है की ''उड़ी का बदला लेने वाले महाबली का हार्दिक स्वागत है '' जिनका स्वागत किया  उनमें पीएम हैं ,भाजपा के नेता हैं ,किन्तु फ़ौज का नाम कहीं भी नहीं है। जबकि हमारी  फ़ौज इस वक्त पंपोर में आतंकवादियों से युद्ध कर रही है ,हमारे दर्जनों सैनिक घायल हो चुके हैं और न जाने  कितने शहीद हो रहे हैं  यह कोई बताने को  कोई तैयार नहीं है।  जो लोग  दशहरे के त्यौहार में भी राजनीति कर रहे हैं वे इस अवसर पर अपने उन शहीदों को भी याद रखें जो इस वक्त अपनपोर में अपने प्राण न्योछावर कर रहे हैं। और यह भी याद रखें कि -जरा याद करो कुर्बानी !आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता पर डींगे मारने वालों जरा पंपोर की ओर देखो वहाँ तुम्हें तुम्हारे पाखण्ड का धुआँ ही  नजर आएगा!

क्या इस बार भी सरकारकी असफलता और सुरक्षा बलों की गफलत का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ दिया जाएगा ? जब -जब पाकिस्तान की ओर से हमले हुए तब-तब जन दबाव में सरकार ने तत्काल कूटनीतिक इंतजाम किये। मोदी सरकार ने अमेरिका ,रूस ,ब्रिटेन ,फ़्रांस जर्मनी ,जापान सहित तमाम दुनिया के देशों को साधने का भरपूर प्रयास किया ।लेकिन ताजा खबर है कि यूएनओ सहित अधिकांस देशोंने भारत-पाक सीमाओंकी झड़पों, कश्मीर के मुद्दे को  द्विपक्षीय बताकर इस मामले में चुप्पी साध ली है। वेशक पाकिस्तानको भी अमेरिका- चीनके अलावा कोई कोई साथ नहीं दे रहा है ,और भारत ने  पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन  निरस्त करने में सफलता भी पाई है। किन्तु  जब तक हम पाकिस्तान में छिपे बैठे असली गुनहगारों को नहीं मार देते, तब तक हमारी सीमाओं पर उरी पठानकोट, उधमपुर और पंपोर की तरह नृशंस हत्याकांड होते रहेंगे। और तब तक यूएनओ ने भी हमारी विजय को तस्दीक नहीं करेगा जब  तब तक हम असली दुश्मन का सिर नहीं कुचल देते। सरकार समर्थकों को आइंदा  'ऑपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' जैसी मामूली कार्य वाहियों  का ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए !    


आज दशहरे पर देश भर में जगह-जगह रावण दहन किया जा रहा है। कुछ लोग 'आतंकवाद' को भी रावण के नाम पर जलाने जा रहे है। लेकिन नफरत के रावण को खत्म करने की कोई खास हिकमत नजर नहीं आ रही है। बल्कि 'नफरत की दीवार' की ऊँचाई  बढ़ती ही जा रही है, ठीक वैसे ही जैसे की आजकल  घास-फूस- कागजके रावणकी ऊँचाई बढ़ाने की होड़ मची है। कलतक जो लोग स्वच्छ्ता अभियान की सेल्फियाँ पोस्ट कर रहे थे वही लोग आज  वातावरण में -बारूदी  दुर्गन्ध और हर प्रकार का प्रदूषण फैलाने पर आमादा हैं। जो  मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के सच्चे अनुयाई होंगे ,वे इस धतकरम और दिखावे और वातावरण को जहरीला बनाने में सहयोगी नहीं बनेगे। बल्कि वे भगवान् श्रीराम के धीरोदात्त चरित्र का अनुसरण करने में ही दशहरे की सार्थकता समझेंगे ।

                            श्रीराम तिवारी

सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

सभी मित्रों ,सम्बन्धीजनों और सुह्र्दयजनों को विजयादशमी की शुभकामनायें !


सभ्य मानव समाज का सहज स्वभाव है कि वह अपनी अभिरुचियों को  प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त किया करता है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने इसे ''जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी '' के रूप में व्यक्त किया है। यह सुखद संयोग है कि हिंदुओं के 'दशहरा' और ' विजयादशमी' दोनों पौराणिक त्यौहार एक साथ एक ही दिन मनाये जाते हैं। पुराणों में और लोक गाथाओं में रामलीला इत्यादि के माध्यम से दशहरा मनाये जाने का कारण श्रीराम और रावण का युध्द बताया गया है ,जिसमें कुटुंब सहित सहित रावण का संहार हुआ और श्रीराम की विजय हुई। इस विजय की याद में कर्नाटक [मैसूर] ,हिमाचल ,उड़ीसा तथा सम्पूर्ण भारत में 'दशहरा'मनाया जाता है। इस अवसर पर अधिकांस जगहों पर रामलीला होती है और रावण ,कुम्भकर्ण तथा मेघनाद को जलाया जाता है। लेकिन दक्षिण भारत [तमिलनाडु] और कुछ उत्तर भारतीय[मंदसौर]में हिंदुओं को भी 'रावण'का जलाया जाना पसन्द नहीं ।उनकी मान्यता है कि रावण ने कुछ भी गलत नहीं किया। जहाँ तक 'सीताहरण'का प्रश्न है तो वह उसकी बहिन सूर्पनखा के नाक-कान काटे जाने की अहिंसक प्रतिक्रिया मात्र है। इसके अलावा  रावण खुद एक ऋषि की सन्तान था और वेदपाठी परम विद्वान ब्राह्मण था। उसके खिलाफ जो कुछ भी कहा गया या लिखा गया वह बढ़ा -चढ़ाकर लिखा गया ,ताकि इस बहाने मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम की यश कीर्ति को ब्रह्मांडव्यापी बनाया जा सके। आजकल जो लोग रावण दहन में बढ़चढ़कर रूचि लेते हैं वे शायद इस तथ्य को नहीं जानते।

दशहरे के रोज ही विजयादशमी त्यौहार मनाये जाने की वजह सम्भवतः सर्वाधिक 'साइंटिफिक'है। प्राचीन आर्यों ने 'असत 'पर सत्य की विजय के लिए ,आसुरी शक्तियों पर दैवी शक्तियों की विजय के लिए और विनाश की याने शैतानी ताकतों पर सृजन की शक्तियों की विजयके लिए निरन्तर घोर प्रयत्न [तप ]किये होंगे ,उन्होंने अपने हिस्से का श्रेष्ठतम अवदान- बलिदान समर्पित किया होगा । फलस्वरूप  उस विराट 'महाशक्ति' का निर्माण हुआ, जिसे स्कन्धमाता, दुर्गा , काली,भद्रकाली ,कपालकुंडला ,भगवती,शिवा ,भवानी  तथा कालरात्रि इत्यादि सैकडों नामों से पुकारा गया । आधुनिक वैज्ञानिक युग में जिसे 'अनंत ऊर्जा'  कहा जा सकता है। संसार की तमाम सकारात्मक एवम लोकोत्तर शक्तियों के सङ्गठित रूप का नाम 'विजया' है। जिस दिन आद्यशक्ति ने 'आसुरी'ताकतों को खत्म किया उसे 'विजयादशमी कहते हैं ! यह त्योहार  पूर्णतः वैज्ञानिक और मानवीय है।

               सभी मित्रों ,सम्बन्धीजनों और सुह्र्दयजनों को  विजयादशमी की शुभकामनायें !  श्रीराम तिवारी !

सियासत बनाम विरासत


मानव -सभ्यताओं के इतिहास में ,मानव जीवन के अतीत में,जो-जो गरिमामय -जीवनदायक तत्व खोजे गये,जिन मानवीय धीरोदात्त चरित्रों ,आदर्शों ,मूल्यों सिद्धान्तों और वैज्ञानिक आविष्कारों से यह धरती शस्य श्यामला बनी, जिन उपादानों से ,उत्पादन के साधनों के अन्वेषण से  जीवमात्र को शुकुन और शांति मिली,जिन सिद्धांतों -मूल्यों में स्वतंत्रता ,समानता ,भ्रातत्व और सुख समृद्धि का भाव निहित हो ,उन्हें हमें 'अतीत की विरासत' कहते हैं।

जिन कारणों से मनुष्य स्वार्थी और हैवान बना,  जिन आविष्कारों से धरती की जीवन्तता को खतरा बढ़ा ,जिन-जिन कारणों से जल-जंगल -जमीन का क्षरण हुआ ,जिन रीति रिवाजों से सामाजिक विषमता और निर्धनता बढ़ी, जिन कारणों से एक ताकतवर-बदमाश व्यक्ति दूसरे कमजोर और सचरित्र मनुष्य का शोषण-उत्पीड़न करता है ,जिन कारणों से इस दुनिया  में  युद्ध ,महायुद्ध और तथाकथित धर्मयुध्द लड़े जाते रहे  ,जिस वजह से भाई-भाई में भी बैरभाव उत्पन्न हो जाता है ,उसे हम राजनीति याने सियासत कहते हैं।   

शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

राष्ट्रवाद का गुणानुवाद एक नैतिक बाध्यता है।

जिस परिवार का कोई व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त हो ,प्रतिहिंसा की मनोदशा से जिसका चित्त अशांत रहता हो, जो हर किसीसे अकारण बैरभाव रखनेका आदि हो ऐसे व्यक्तिसे न केवल उसके परिवार को खतरा है बल्कि उस देश-समाज को, गाँव -नगर को और गली-मोहल्ले को भी खतरा है।  इसी तरह जिन लोगोंके मनमें अन्य धर्म-मजहब वालों के प्रति ,पडोसी मुल्कों के प्रति स्थाई  बैरभाव हो ,जिनके शब्दों में अपने ही हमवतन लोगों के लिए घृणा हो और 'असहमत' बुद्धिजीवियों के लिए गालियाँ हों ,जिनके निहित स्वार्थ में किसी खास राजनैतिक दल या नेता विशेष  के प्रति अंधभक्ति का दिखावा हो ,ऐंसा व्यक्ति भारतीय संविधान और लोकतंत्र का सम्मान कैसे कर सकता है ?भले ही वह आपने आपको 'बड़ा'  'राष्ट्रवादी' घोषित करदे किन्तु देशभक्त वह कदापि नहीं हो सकता।

इसी तरह मजहबी आस्था और धार्मिक विश्वाश भी 'राष्ट्रवाद' की तरह मूल रूप से एक अमूर्तन अवधारणा ही है। किसी व्यक्ति विशेष के लिए उसका धर्म-मजहब इसलिए दुनिया में श्रेष्ठ है क्योंकि वह उस खास धर्म-मजहब वाले परिवार या समाजमें जन्मा है अथवा उसे देश -काल -परिस्थितियों ने धर्मान्तरित होनेको बाध्य किया है। उदाहरण के लिए मैं स्वयम जन्मना 'ब्राह्मण कुल' से हूँ,इसलिए मेरे पास हिन्दू धर्म और ब्राह्मण जातिपर गर्व करनेका आधार हो सकता है। लेकिन इसी हिन्दू धर्म के 'पुनर्जन्म'  सिद्धांतानुसार  कदाचित मैं यदि जैन,सिख,ईसाई,यहूदी अथवा मुसलमान परिवार में जन्म लेता हूँ  तो स्वाभाविकहै कि उस स्थितिमें मुझे वे धर्म-मजहब ही प्रिय होंगे ,जिनमें मेरा जन्म हुआ होगा ! गीता के अमृत सन्देश का सार भी यही है कि  प्राणिमात्र के जीवन -मृत्यु का चक्र देश-काल की सीमाओं से मुक्त और कर्म स्पर्हा से आबद्ध होकर अनवरत चलता रहता है। भारत,पाकिस्तान,चीन या कोई और देशमें जन्मना तो मनुष्य की मानवीय आकांक्षाओं से बहुत परेहैं। राष्ट्रोंका पार्थक्य तो पृथक सभ्यताओं का  प्रतीक मात्र हैं। इसीलिये तमाम हिन्दू दर्शनशास्त्रों ने और प्राच्य वाङ्ग्मय ने भी 'सबै भूमि गोपाल की '' का उद्घोष किया है।  'वसुधैव कुटुम्बकम' इस दर्शन का शाश्वत नारा है। मानव सभ्यता के राजनैतिक विकास की प्रक्रिया में सभी राष्ट्रों का सीमांकन एक 'सहनीय' आवश्यक बुराई मात्र है।अर्थात राष्ट्रवाद का गुणानुवाद एक नैतिक बाध्यता है।  

 जिस किसी व्यक्ति की सामाजिक ,जातीय  धार्मिक और राष्ट्रीय चेतना  सिख गुरुओं की बाणी ''मानुष की जात सबै एकहु पहिचानवै ''के स्तर की है ,जिस किसी ने उपनिषद मन्त्रदृष्टा ऋषियों के ''एकम सद विप्रा बहुधा वदन्ति' को हृदयगम्य किया है , जिसने बुद्ध महावीरके अमरसन्देश  'सम्यक दर्शन' के स्तर को छूआ है, और जिस बन्दे ने दकियानूसी घटिया अंधराष्ट्रवाद से ऊपर उठकर 'सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद'' के उच्चतर सोपानको पायाहै ऐसा व्यक्ति ही सच्चा राष्ट्रवादी हो सकता है। ऐसा व्यक्ति न केवल अपने देश का सर्वश्रेष्ठ नागरिक होगा ,बल्कि मानव मात्र का  सच्चा बंधु भी वही होगा। मानवीय मूल्यों का सच्चा संवाहक भी वही हो सकता है। श्रीराम तिवारी ! 

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

बहुसांस्कृतिक भारतीय लोकतंत्र को अंधराष्ट्रवाद की जरूरत नहीं !


 गुलाम भारत में और उससे भी पूर्व के सामंतकालीन पुरातनपंथी  भारत में  हजारों स्वतन्त्र राजा-महाराजा हुआ करते थे। उनकी अपनी-अपनी  पृथक  सेनाएं हुआ करतीं थीं और अपनी-अपनी पृथक मुद्राएं भी हुआ करतीं थीं. पृथक रीति-रिवाज और शासन पद्धतियाँ हुआ करती थीं। ये  निरंकुश राजे-राजवाड़े  अपने ऐशो आराम के लिए राज्य विस्तार के निमित्त आपस में लगातार युद्ध करते रहते थे। इस सामंती  दौर में देशभक्ति' शब्द का जन्म ही नहीं हुआ था। तब राजा को साक्षात्  'विष्णु'; का अवतार माना जाता था ,इसीलिये उस कालखण्ड के इतिहास में  'राजभक्ति' 'राजधर्म' और राजयोग जैसे शब्दों की पर्याप्त भरमार अवश्य रही  है । किन्तु वैसी उद्दाम देशभक्ति [Nationality] का उल्लेख कहीं नहीं मिलता, जैसी की 'संघ परिवार' चाहता है । स्वाधीनता संग्राम के जिन मूल्यों ने भारतीय गंगा जमनी  तहजीव को जन्म दिया। जिसके परिणास्वरूप वर्तमान बहुभाषा,बहुधर्मी, बहुसांस्कृतिक भारतीय लोकतंत्र अस्तित्व में आया उस अनेकता में एकता वाले विराट भारतीय लोकतंत्र को  'अंधराष्ट्रवाद' की जरूरत नहीं है !

बड़े आश्चर्य की बात है कि वैदिक मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने  हजारों साल पहले इस जम्बूद्वीप बनाम  भरतखण्ड अर्थात भारतवर्ष बनाम आर्यावर्त में  'अन्तराष्टीयतावाद' का सिद्धांत प्रस्तुत किया था। उपनिषद का यह कथन दृष्टव्य है:-

 सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे संतु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्वेत।

 या


 अयम निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम ,उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम।


 चन्द्रगुप्त मोर्य के कार्यकाल में  इस भूभाग पर जब यूनानी और पर्सियन आक्रमण हुए तब पहली बार आचार्य चाणक्य द्वारा  'राष्ट्र' और 'राष्ट्रभक्ति' शब्द का प्रयोग किया गया । दरसल 'राष्ट्रभक्ति' शब्द  का जन्म 'राष्ट्रराज्य' की स्थापना के निमित्त ही हुआ है। भारतीय उपमहाद्वीप के लिए  'देशभक्ति' मूल रूप से एक पाश्चात्य धारणा है।

जार्ज वर्नाड शा ने कहा है ''देशभक्ति मूल रूप से एक  कबीलाई अवधारणा ही है कि कोई राष्ट्र इसलिए इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि 'आप' वहाँ  पैदा हुए हैं !'' यूरोपीयन इकोनॉमिक कम्युनिटीज 'या यूरो के रचनाकारों ने 'नेशन'को विराट करने की जो परिल्पना प्रस्तुत की है ,वह भारतीय उपनिषद सिद्धान्त 'वसुधैव कुटुम्बकम'से प्रेरित है। किन्तु बड़े दुःख की बात है कि इस सिद्धांतके वैध उत्तराधिकारी -भारतीय  उपमहाद्वीप के दो राष्ट्रों के दिग्भर्मित लोग ,भारत और पाकिस्तान के वासिंदे  इन दिनों अपनी 'वसुधैव कुटुम्बकम 'वाली साख को ताक पर रखकर  नेशनलिज्म'का पाश्चात्य पहाड़ा  सीख रहे हैं और वे अन्तराष्टीयतावाद ,विश्व बंधुत्व जैसे शब्दों को सुनना ही नहीं चाहते। श्रीराम तिवारी !

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

जिन्हें आप्रेशन सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत चाहिए वे नोट करें !

 भारत का दक्षिणपंथी दकियानूसी 'भांड परिवार' सनातन से ढपोरशंख बजाने के लिए कुख्यात है। जब तक यह स्वयंभू  'नकली देशभक्त ' परिवार किसी काल्पनिक चीजको रूप और आकारमें साकार नहीं कर लेता तब तक वह 'उदर शूल की पीड़ा से बैचेन रहता है। साम्प्रदायिक तत्वों की यही पीड़ा 'फास्जिम' की जननी है। उन्हें लगता है कि वे साक्षात् शेषनाग के अवतार हैं ,वे ही भारत राष्ट्र के तारणहार हैं ,और यदि इस देश की  यह साम्प्रदायिक खरपतवार वे अपने सिर पर धारण नहीं करते तो, यह महान भारत राष्ट्र सदा के लिए रसातल में धस जाता।

भारत के दुर्भाग्य से ये 'महानरपुंगव' इन दिनों देशकी 'सत्ता' में सर्वशक्तिमान होकर विराजमान हैं। चूँकि सिर्फ पठानकोट,उधमपुर,उरी इत्यादि 'भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत के अंदर भी पाकिस्तानी दहशतगर्दों का कहर  सर्वत्र व्याप्त रहा है। हालाँकि देशकी आवामने  इसके बावजूद भी अपना  धैर्य नहीं खोया। लेकिन जब अति हो गयी तब -विपक्ष ने ,मीडिया ने और जनता ने इस सत्ताधारी वर्ग से कुछ सवाल अवश्य किये। ''श्रीमान आप जब विपक्ष में थे तब 'छप्पन इंच का सीना था और  पाकिस्तानको अंदर घुसकर मारने वाली डींगे हाँकते रहे और अब आप सत्ता में हैं तो चुप क्यों हैं ? '' बहरहाल मोदी सरकार ने  उसके बाद जो कुछ किया वह सबके सामने है। भारतीय फ़ौज ने पीओके में 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' को बड़ी सूझ बूझ से अंजाम दिया है। कुछ सफलता तो अवश्य मिली है। वेशक सेना और सरकार के पास इसके सबूत भी हैं,रणनीतिक और सामरिक कारणों से उन्हें जाहिर किया जाना उचित भी नहीं है। देश की जनता एवम सरकार को अभी बहुत सब्र से काम लेना चाहिए। भारतीय सैन्य ताकत को और पुख्ता किया जाना चाहिए। सुरक्षा की खामियों पर ध्यानदिया जाना चाहिए,अमनके विकल्पों पर भी निगाह होनी चाहिए। वेशक युद्धोंउन्माद जगाना बेहद अमानवीय कृत्य है किन्तु जहरीले नागका सिर कुचलना भी कोई गलत बात नहीं है। देशकी सीमाओं पर सैन्य गतिविधियोंको लेकर हो रही वयानबाजी पर  अंकुश लगना चाहिए!

हर एक भारतीय को  धैर्य के साथ सोचना चाहिए कि भारतीय डीजीएमओ और कमांडोज द्वारा पीओके में सम्पन्न आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पाकिस्तान में दो बातें क्यों हो रहीं हैं? पाकिस्तानी सत्ता पक्ष कह रहा हैकि  उनके यहाँ भारत ने कोइ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की।जबकि पाकिस्तानके ही इमरान खान जैसे विपक्षी नेता खुद कह रहे हैं कि दोनों 'शरीफों'ने उनकी इज्जत मिटटी में मिला दी। पाकिस्तान में छिपे बैठे भगोड़े आतंकी कह रहे हैं कि वे भारतसे बदला लेंगे , केजरीवाल जैसे नेताओं को या बाकीके तमाम 'मोदी विरोधियों 'को और क्या सबूत चाहिए ?यूएनओ कहता है कि 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक 'को उसने नहीं देखा ! यूएनओ तो वही कहेगा जो कि उसके आका अमेरिका ने देखा होगा ! चूँकि अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मारा था और भारत ने देखकर भी नहीं देखा ,इसलिए अब भारतीय फ़ौज जो कुछ भी करेगी वो देखकर भी अमेरिका नहीं देखेगा। इसलिए यूएनओ को भी कुछ नहीं देखना है। भारतमें जो लोग आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे हैं वे नादान हैं, देशकी आवामको उनके बहकावे में नहीं आना चाहिए। जो लोग अंधराष्ट्रवाद से पीड़ित हैं और अल्पसंख्यकों को ,धर्मनिर्पेक्षतावादियों को 'देशद्रोह' से नवाज रहे हैं उन कुंठित लोगोंसे भी प्रधानमंत्री को सतर्क रहना होगा। क्योंकि भारत अतीत में जब -जब गुलाम हुआ है उसे इन्हीं सत्तालोलुप -भाट -चारण' वर्ग के लोगों ने डुबाया है। सत्तासीन नेताओं को अपना चापलूसी मोह त्यागकर ,निंदा -स्तुति से परे देश की अवाम और विश्व विरादरी के साथ अपने दूरगामी निहतार्थ  साधने चाहिए। शीर्ष नेतत्व का हृदय विशाल भारतीय लोकतंत्र की गरिमा के अनुकूल और भारतीय लोकतंत्र के अनुकूल होना चाहिये। 

कांग्रेसियों पर या गैर भाजपाई दलों पर  अतीत में भी कई बार 'कायरता' के आरोप लगे हैं। मोदी जी जब विपक्ष में थे तब उन्होंने जो कुछ किया वो वैसा ही है जैसे कि अभी पाकिस्तान में पूर्व क्रिकेटर इमरान खान कर रहा है। उसने नवाज शरीफ को 'कायर कहा है। जबकि मोदी जी ने डॉ मनमोहनसिंह को कायर कहा था। यह बात सिर्फ बोली बानी की है। वरना आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में  एवम अटॉमिक पॉवर वाले जगत में अब  न तो कोई स्थाई सूरमा है और न कोई स्थाई कायर है। अब तो जो कुछ है वह मीडिया  में निर्थक -अनर्गल प्रलाप है।

जिन्हें आप्रेशन सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत  चाहिए वे नोट करें कि २७ सितम्बर-२०१६ के अल सुबह आतंकवाद से पीड़ित भारत की फ़ौज के स्पेशल दस्ते ने पीओके 'में आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक 'द्वारा कुछ आतंकी केम्प नष्ट किये हैं।  कुछ आतंकी भी मारे हैं। एक पाकिस्तानी फौजी  भी माँरा गया और एक जिन्दा पकड़ा गया। जिसे बड़ा में उचित जांच पड़ताल के बाद तत्काल छोड़ दिया गया। इसके अलावा अंतराष्टीय मंच पर स्वयम प्रधानमंत्री मोदीजी ने और उनके मंत्रमण्डलीय साथियों ने दुनिया के लगभग १०० देशों के राजदूतों को तत्सम्बन्धी सूचना भी तत्काल दी। अपने भारतीय विपक्ष -सोनिया गाँधी सीताराम येचुरी दलों को दी।  यदि फ़ौज की सर्जिकल स्ट्राइक पर सोनिया जी या सीताराम येचुरी सवाल नहीं कर रहे हैं ,तो देश में बाकी विपक्ष को और अन्य 'सवालकर्ताओं' को कुछ तो यकीन रखना ही होगा। उन्हें यह मानना ही होगा कि मोदी सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ अपने  प्रयासोंमें कुछ सफलता अवश्य मिलीहै। विश्व विरादरी से पाकिस्तानको 'अस्पर्श्य बनाने में भी मोदीजी कुछ हद कामयाब रहे हैं।

वेशक आलोचक कह सकते हैं कि यह आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक तो ७० साल से लगातार चल रही है। कभी भारत और कभी पाकिस्तान यह कार्यवाही करते  ही रहते हैं। इसमें नया क्या है ?कोई बड़ा तीर नहीं मारा है! पाकिस्तान का अभी तक केवल  एक फौजी  ही मार पाए हैं ! दाऊद ,हाफिज सईद,और जैश वाले ततः कष्मीरी दुःखक्तारें वाले आतंकी अभी भी कश्मीर को लहूलुहान किये जा रहे हैं। कश्मीर में पुलिस और सरकार नाकाम हो गए है। मोदी जी और उनके बगलगीर महबूबा सरकार सब फ़ैल हैं। जमात-उद दावा का अभी तक बाल भी बाँका नहीं कर पाए हैं। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि 'यूपी चुनाव में राजनैतिक लाभ के लिए यह सब प्रोपेगेंडा किया जा रहा है। राष्ट्रीय शर्म से उबरने के लिए भारत की जनता को यह आपरेशन सर्जिकल नामक झुनझुना पकड़ा दिया गया है। सरकार के भड़ेत लोग मीडिया पर ,जनता पर ,यूएनओ पर ,चीन पर और देश की आवाम पर अपनी खीज निकाल रहे हैं। ये तमाम आरोप सही  भी हों तो भी हम इससे इनकार नहीं कर सकते कि भारत की फ़ौज पर जनता को भरोसा है। यदि  किसी व्यक्ति को ,किसी नेता को या किसी कौम को मोदी सरकार पर भरोसा नहीं तो  वो स्पष्ट कहें  यह उसका अधिकार है किन्तु अपनी फ़ौज को राजनीती मेनन घसीटे। क्योंकि जनता फ़ौज के साथ है!

कुछ लोग सही सवाल उठा रहे हैं ,कि यदि एनडीए वाले विपक्ष में होते और किंचित मनमोहन सिंह या कोई और नेता प्रधानमंत्री  होता तो भारतीय फ़ौज द्वारा 'पीओके' में सम्पन्न तथाकथित 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक 'को ये मोदी के मतवाले फ्लाप ही बताते। सर्जिकल स्ट्राइक के पहले ही ये लोग सम्भवतः पठानकोट,उरी या उधमपुर सैन्य परिसर के हमलों को लेकर -राममलीला मैदान पर , जंतर -मन्तर पर ,धरना देने लग आजाते। वे तो पूरे देश में ,बाबाओं-बाबियों ,स्वामियों-साध्वियों ,अन्नाओं ,रामदेवों और सैकड़ों श्री-श्री के नेतत्व में वेचारे डॉ मनमोहनसिंह को या जो भी 'वेचारा' प्रधान मंत्री होता ,उसे हरि -हरी चूड़ियाँ भेंट कर रहे होते ! जैसे कि इस समय पाकिस्तान में लफ़ंगा इमरान खान कर रहा है। जैसा कि उधर हाफिज  सईद ,मसूद और दाऊद इत्यादि किये जा रहे हैं। किन्तु किसी को यह नहीं भूलना चहिये कि पाकिस्तान हो या भारत अमन के परिंदे तो दोनों मुल्कों में हैं दोनों ओर के उन्मुक्त नीलगगन मेंविचरण करते हैं। और अमन की उम्मीद कभी खाली नहीं जाती । सेनाएं अपना फर्ज निभाती हैं तो अमनपसन्द जनता को भी अपना फर्ज नहीं भूलना चाहिए।

जो लोग अभी सत्तामें हैं  और  इस आपरेशन सर्जिकल की छुद्र कार्यवाही को 'धजी का साँप' बता रहे हैं।वे सत्ता समर्थक चाटुकार लोग  यदि इस मामूली कार्यवाही की अतिरञ्जित वयानबाजी केलिए जिम्मेदारहैं ,तो सत्ताविरोधी और सनकी लोग  भी बिना आगा-पीछा सोचे ही  अपनी  भारतीय फ़ौजसे उसकी काबिलियत का सबूत मांग रहेहैं जो कि वेहद निंदनीय और शर्मनाक कृत्य है।  श्रीराम तिवारी !

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

तानाशाह स्वयम्भू नहीं होते ,मूर्ख समाज द्वारा पैदा होते हैं !

परिवार में ,कुटुंब -कबीले में ,समाज में या मुल्क में  किसी व्यक्ति विशेष के शौर्य ,अवदान और उदात्त चरित्र के कारण उस व्यक्ति को 'अवतार' अधिनायक या  'हीरो'मानने की परम्परा दुनिया में पुरातनकाल से रही है। लेकिन भारत में अजीब स्थिति है। यहाँ तो बिना किये धरे ही ,बिना त्याग बलिदान वाले लोग, अपनी चालकी ,धूर्तता और बदमाशी से 'हीरो' या अधिनायक बनते देखे गए हैं। वास्तविक हीरो ,बलिदानी या नायक इतिहास के हासिये से भी गायब कर दिए जाते हैं। जैसे कि मध्यप्रदेश के व्यापम सिस्टम के चलते हजारों वास्तविक 'नायक' वेरोजगार हैं या मनरेगा की मजदूरी कर रहे हैं। जबकि नकली अभ्यर्थी और बदमाश- मुन्नाभाई लोग अफसर- बाबू बनकर सत्ता से ऐसे चिपक गए कि देखकर गोह भी लाज जाए।

यही स्थिति पूँजीवादी -दक्षिणपंथी राजनीति की है। यही स्थिति जातीय -सामाजिकआन्दोलनों की और धार्मिक आयोजनों  की भी है। यही स्थिति स्वाधीनता सेनानियों की है। यही स्थिति मीसा बंदियों की है।हर क्षेत्र में चालाक और काइयाँ किस्म के लोग लाइन तोड़कर जबरन घुस जाते हैं। यही 'दवंग'लोग विद्या विनय सम्पन्न बेहतरीन युवा शक्ति को कुंद करदेते हैं। कुछ तो उन्हें धकियाकर किनारे लगा देतेहैं, खुद ही व्यवस्था के 'महावत' बन जातेहैं।  बड़ेखेद की बात है कि समाज के कुछ उत्साही लोग इन बदमाशों को ही हीरो मान लेते हैं। कुछ तो कालांतर में अवतार भी मान लिए  जाते हैं। इन नकली 'हीरोज' के कारण ,नकली अवतारों के कारण ही अतीतके झगडे कभी पीछा नहीं छोड़ते। जिन अवतारों ,पीर पैगम्बरों के कारण तमाम आधुनिक पीढ़ियाँ आपस में लड़ती -झगड़ती रहें उन पर सवाल उठाना भी गुनाह माना जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच जो अनवरत वैमनस्य चल रहा है, और तमाम देशों में  जो सामाजिक ,जातीय संघर्ष जारी है ,भारतमें आरक्षण वादियों और अनारक्षणवादियों के बीच जो हो रहा है ,वह सब इसी अतीत की काली छाया का परिणाम है। अचेत और साधारणजन भी इस स्थिति के लिए पर्याप्त जिम्मेदार हैं , वे इन नकली नायकों' की जय-जय कार करने में व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा व्यय करते रहते हैं। बेईमान-बदमाश -नायकों के पीछे जय-जयकार करने वाले लोग उन  बगल बच्चों की तरह होते हैं जो हाथी के पीछे -पीछे ताली बजाकर अपना मनोरंजन कर लेते हैं। इतिहास साक्षी ही कि जनता की गफलत के कारण ही अक्सर चालाक लोग लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच जाते हैं। तानाशाह यहीं से पनपता है और अधिनायकवाद यहीं से जन्म लेता है।  


भारत की वर्तमान छल-छदम और सामाजिक विद्वेष की राजनीति से बदतर ,दुनिया में अन्य कोई राजनैतिक व्यवस्था नहीं है। वैसे तो इस पूंजीवादी-सामंती व्यवस्था का  विस्तार विश्वव्यापी है किन्तु जिस तरह भारत के   गरीब मतदाताओं के वोट पाने के लिए नेता -नेत्रियाँ  अनैतिक पाखण्ड करते हैं ,जिस तरह अपनी वंशानुगत योग्यता को जब-तब आम सभाओं में पेश करते रहते हैं। यह विशेष राजनैतिक योग्यता दुनिया में शायद ही कहीं अन्यत्र मिलेगी ! यहाँ चाय बेचने से लेकर ,भैंसें चराने वाले तक ,रंगदारी बसूलने से लेकर खुँखार डकैतों की गैंग में शामिल होने वाले तक विधान सभाओं में और लोक सभा में पहुँचते रहे हैं। यहाँ पैदायशी दलित-पिछड़े होने से लेकर धर्म-मजहब का ठेकेदार होने तक और जात -खाप से लेकर अपराध जगत का बाप होने तक की तमाम नैसर्गिक योग्यता प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।आजादी के तुरन्त बाद मुबई से लेकर दुबई तक और झुमरी तलैया से लेकर दिल्ली तक राजनीति में अपराधियों का बहुत वर्चस्व रहा है। सिर्फ लाल डेंगा जैसे अलगाववादी ही नहीं बल्कि रतन खत्री ,हाजी मस्तान,दाऊद,छोटा शकील ,बड़ा राजन ,अलां घोड़ेवाला ,फलां दारूवाला और ढिकां सट्टा वाला जैसे 'देशद्रोही' ही भारत की राजनीति संचालित करते आ रहे हैं। धरती पकड़ अपराधियों- दवंगों के आगे अधिकांस सज्जन नेता,ईमानदार पुलिस अफसर और कानून के रखवाले भी अपराध जगत की गटरगंगा में डुबकी लगाते रहे हैं। फिल्म वाले - निर्माता,निर्देशक ,फायनेंसर ,हीरो, हीरोइन और वितरक तो इस अपराध जगत में टूल्स की तरह इस्तेमाल होते रहे हैं। वैसे तो राजनीति की पूरी की पूरी हांडी ही काली है किन्तु यूपी, बिहार, महाराष्ट्र ,आंध्र,कर्नाटक ,पंजाब के अधिकांस राजनेता इस अपराध जगत में  ज्यादा कुख्यात रहे हैं।  तानशाह पैदा नहीं होते अपितु जनता द्वारा पैदा किये जाते हैं।

 भारत में   'बहुजन समाज' के वोट हड़पने के लिए ,दलित-पिछड़ेपन के जातीय विमर्श को बड़ी चालाकी और धूतता से हमेशा जिन्दा रखा जाता है। कुछ नेता-नेत्रियाँ न तोआर्थिक नीति जनते हैं, न विकासवाद जानते हैं ,न उन्हें 'राष्ट्रवाद' से कोई मतलब है  वे तो केवल सत्ता सुख के लिए  अपनी जातीय वैशाखी पर अहोभाव से खड़े हैं। उनके   तथाकथित नॉन ट्रान्सफरेबिल वोटर्स भी बड़े खब्ती, कूढ़मगज और भेड़िया धसान होते  हैं। उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद,एकता -अखण्डता और देश के सर्वांगणींण वैज्ञानिक विकास से कोई लेना देना नहीं। उन्हें सिर्फ अपने नेता -नेत्री की चिंता है जो उन्हें 'आरक्षण' की वैशाखी पकड़ाए रखने का वादा करता/करती है !

कुछ दलितवादी नेताने बहुजन समाजको वर्ग चेतना [Educate,Agitate,Orgenize] से लेस करने के,उन्हें जात -एससी/एसटी के रूप में पर्मेनेंट वोटों का भंडार बना डाला है। उन्होंने शोषित-दलित उत्थानके बहाने जातीयता की राजनीति को अपनी निजी जागीर बना डाला है। जातीयतावादी नेताओं द्वारा जाती को राजनीति का केंद्र बना लेने से  भारतीय समाज में विध्वंशक जातीय संघर्ष की नौबत आ गयी है । सत्ता के भूंखे जातिवादी-मजहबपरस्त नेताओं ने दमनकारी जातीयताके खिलाफ संघर्ष छेड़ने के बजाय उसे सत्ता प्राप्ति का राजनैतिक अवलम्बन बना लिया गया है। इन हालात में भारत जैसे देश में किसी सकारात्मक क्रांति की या किसी कल्याणकारी पुरुत्थान की कोई समभावना नहीं है।

अतएव कभी कभी तो लगता है कि वर्तमान जातीय-मजहबी नेताओं के चोंचलों से तो  'यूटोपियाई पूँजीवाद'ही बेहतर है !कमसेकम पूँजीवदी -विज्ञानवादी व्यवस्था में 'दान-पूण्य'धर्म-कर्म का आदर्श आचरण तो जीवित है। खबर है कि भारत के प्रख्यात हीरा व्यापारी सावजी ढोलकिया ७ हजार करोड़ की सम्पत्ति के मालिक हैं। उन्होंने गत वर्ष अपने कर्मचारियों को दीवाली पर तोहफे में फ्लेट और कारें दीं थीं।  जबकि इन्ही ढोलकिया जी ने अपने एकलौते बेटे को खुद के बलबूते पर अपनी हैसियत निर्माण के लिए घर से खाली हाथ निकाल दिया था। उन्होंने अपने बेटे को पाथेय के रूप में केवल  स्वावलंबी होने का मन्त्र दिया था। उनका बेटा  अभी भी कोचीन की किसी कम्पनी में  ४ हजार रुपया मासिक की प्रायवेट नौकरी कर रहा  है। उसे यह नौकरी हासिल करने के लिए भी तकरीबन  ६० बार झूँठ बोलना पड़ा। और कई दिन तक एक टाइम अधपेट भोजन पर ही रहना पड़ा । क्योंकि पिता ने  घर से चलते वक्त उसे जो ७०० रूपये दिए थे,उन्हें खर्च करने की मनाही थी। वे रूपये  उसके पास अभी भी सुरक्षित हैं और पिताजी ने यही आदेश दिया था की यह पैसा खर्च मत करना ! खुद कमाओ और खर्च करो !   'स्वावलंबी बनो '! यदि सावजी ढोलकिया जैसे पूँजीपति इस देश के नेता बन जाएँ और प्रधानमंत्री बना दिए जाएँ
तो भारत के गरीब किसान-मजदूर और सर्वहारा को भी शायद इससे कोई इतराज नहीं होगा। यदि ढोलकिया जैसे  राष्ट्रीय  पूँजीपति वर्ग के हाथों में देश की सत्ता देदी जाए तो शायद यह देश ज्यादा सुरक्षित होगा ,ज्यादा गतिशील और विकासमान हो सकता है !  

श्रीराम तिवारी

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

इसीमें भारत की जनता का कल्याण है।


सारा संसार जानता है कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर जितना तनाव है उतना अन्यत्र कहीं नहीं। नार्थ कोरिया - उत्तर कोरिया ,इजरायल -फिलिस्तीन या  सीरिया और इराक की सीमाओं पर भी इतनी भयावहता नहीं है। विगत लंबे समय से पाकिस्तानआर्मी और उसके पालतू आतंकियों ने न जाने कितने भारतीयों को चुन-चुन कर मारा है। भारत ने तो प्रतिक्रियास्वरूप बमुश्किल छटाक भर 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' नामक कार्यवाही ही की है। किन्तु  यूएनओ और पाकिस्तानी सेना इसे कोई खास नहीं मानते। लेकिन कुछ तो हुआ है। यदि इस कार्यवाही में कोई दम नहीं है , तो इमरान खान की नेतागिरी क्यों चल निकली। सीमाओं के दोनों ओर लाखों लोगोंका पलायन क्यों जारी है ? पाकिस्तानी सुरक्षा सलाहकार और उनके रक्षामंत्री -जुबान पर एटम बम लिए क्यों मचल रहे हैं ?

 जो लोग  'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक 'को बढ़ा -चढाकर पेश कर रहे हैं वे  सरासर मूर्ख और आत्मघाती हैं। किन्तु जो लोग इस कार्यवाही को केवल प्रचार मान रहे हैं या इसे मोदी जी की वैयक्तिक छवि निर्माण से जोड़ रहे हैं, वे कोई देशभक्तिपूर्ण कार्य नहीं कर रहे हैं। थोड़ी सी तसल्ली ही सही ,भारतीय फ़ौज की इस  सफलता को सम्मान दिया जाना चाहिए। इसीमें भारत की जनता का कल्याण है। खास तौर पर तब ,जबकि दुश्मन की रग-रग में बेईमानी हो भरी हो ! श्रीराम तिवारी !


 आज का दिन है दो अक्टूबर ,आज का दिन है बड़ा महान।

 आज के दिन दो फूल खिले थे ,महक उठा था हिंदुस्तान।।


   महात्मा गांधी - लालबहादुर शास्त्री  के जन्म दिन पर हम सभी भारतवासी उनके आदर्शों को पुनः याद करें !