बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

हम भारत के जन-गण एक विराट बेतरतीब भीड़ के रूप में एक दूसरे को धकियाने में जुटे हैं।


 मुख्यधारा के  परम्परागत मीडिया की मानिंद  इन दिनों सोशल मीडिया पर भी  हर किस्म की  दुर्घटनाओं , हादसों ,कौमी एवं जातीय दंगों  के वीभत्स  दृश्य प्रमुखता से पेश किये जा रहे हैं। जिसमें सिर्फ  एक -दूसरे की  गलतियाँ ही  दिखाई दे रहीं हैं।  न केवल दकियानूसी रूढ़िग्रस्त धर्मांध लोग बल्कि अधिकांस  प्रबुद्ध   वर्ग भी  'ओरों' की खामियाँ गिनाने में जी जान से  जुटा  हुआ है। इस मंजर को देखकर अपील करने को मन करता है। कि  हे  भारत के समस्त  बंधू-बांधवों ! हिन्दुओं -मुसलमानों ,स्वर्ण-दलितो  ,राष्ट्रवादी-अन्तर्राष्टीयतावादियो ,  धर्मनिरपेक्ष  बनाम साम्प्रदायिकतावादियो , फासिज्म वनाम लोकतंत्रवादियो -आप सभी अपने अपने वहम को ही सच मानते रहे , यदि इसी तरह मोहाच्छादित होकर दिशाहीन -नीतिविहीन विमर्शों से ही  चिपके रहे तो  'बागड़ खेत कब चर गयी'  इसका आपको पता  भी नहीं चलेगा। 

सभी तरह के  विमर्शवादियों से आग्रह है कि  वे अपनी अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता का उचित उपयोग तो करें  किन्तु इन दो पंक्तियों को भी हमेशा ध्यान में रखें। कि ''जब कभी किसी से दुश्मनी करो  तो जमकर करो, खूब करो। लेकिन  इतनी  गुंजाइश रखो कि जब मिलो तो शर्मिंदा न होना पड़े "

यदि हम भारतीय लोग रामायण -महाभारत कालीन चमत्कारों के सीरियलों में ही उलझे रहेंगे तो आधुनिक  भारत क्या खाक बन पायेगा ?  यदि हम राम जन्म तारीख  पर बहस  करेंगे , कृष्ण के मथुरा से द्वारिका भागने की घटना पर ही शोध करते रहेंगे, तो सूखा,बाढ़,और सुनामी से बचने की चिंता कौन करेगा ? यदि हम टूटे-फूटे खंडहरों में मंदिर-मस्जिद के भग्नावेश ढूँढ़ते फिरेंगे तो देश के  गरीब -निर्धन सर्वहारा और सूखा पीड़ित किसान के विमर्श का क्या होगा ? आतंक -अलगाव की समस्या दूर  कैसे होगी ? औरसबसे बड़ी बात - भारत आगे कैसे बढ़ेगा ? यदि हम गोकशी या क्रिकेट पर ही एक दूसरे का मुँह  काला करते रहे तो यह अमर शहीदों का अपमान होगा ! यदि हम  अपनी राजनैतिक ,सामाजिक  और सांस्कृतिक चेतना  सिर्फ कार्पोरेट सेक्टर के पसंदीदा विषयों पर न्यौछावर करते रहे तो  'नौ दिन चले अढ़ाई कोस' की कहावत चरितार्थ  होगी। 

 हमारे साथ-साथ ही आजाद हुए दुनिया के कुछ मुल्क  और कौमे आज  हम से बहुत आगे निकल चुके हैं। यूरोप -अमेरिका ,रूस ,चीन -जापान ही नहीं बल्कि दक्षेश के पड़ोसी  मुल्क भी  जिस मुकाम पर  पहुँच चुके हैं। ये संदर्भ  हमारे विमर्श के केंद्र में ही  क्यों नहीं है?  यदि हम भूतपूर्व जगद्गुरु हैं तो  हम उस मुकाम  से पीछे क्यों हैं ,जिस मुकाम पर दुनिया के तमाम 'मलेच्छ,यवन ,आंग्ल,और जाहिल-काहिल तक पहुंच चुके हैं ? जब तक हम उनकी वर्तमान  ऊंचाई तक पहुंचेंगे तब तक वे  अगले मुकाम पर होंगे । जबकि हम  भारतीय जहाँ से चलना प्रारम्भ करते हैं गणेश परिक्रमा पूरी कर वहीँ वापिस पहुँच जाते  हैं।

देश के किसी भी वर्ग- जाति , क्षेत्र या समाज  की उपेक्षा कर कोई  अन्य दूसरा संगठित वर्ग - शक्तिशाली वर्ग  इस व्यवस्था की खामियों का कुछ  दिन बेजा फायदा तो उठा सकता है। किन्तु  वह देश  को आगे कदापि नहीं ले जा  सकता। जिस तरह  बहुसंख्यक हिन्दुओं  को छोड़कर देश आगे बढ़ना चाहे तो भी नहीं बढ़ सकता। उसी  तरह अल्पसंख्यक  वर्गों की उपेक्षा कर के भी  देश आगे नहीं बढ़ सकता। क्योंकि  सांस्कृतिक  ,सामाजिक और  आर्थिक विविधताओं -संभावनाओं से लबालब  इस  विकास रुपी  'भारतीय राष्ट्रीय ट्रेन ' का इंजन एक ही है।

दरअसल हमअभी तक  एक 'राष्ट्र 'ही नहीं बन पाये हैं। हम  भारत के जन-गण एक विराट बेतरतीब भीड़ के रूप में एक दूसरे  को धकियाने में जुटे हैं। चूँकि किसी के  पूर्वजों ने  किसी के पूर्वजों के धर्मस्थल या इबादतगाह को छति पहुंचाई होगी ,सो उनके वंशजों को इस भारत विकास की गाड़ी पर चढ़ने ही नहीं दिया जाएगा। चूँकि किसी के पूर्वजों ने  किसी के पूर्वजों पर घोर अत्याचार किये होंगे ,इसलिए अब इस आधुनिक वैज्ञानिक युग की विकास यात्रा में  उन्हें गाड़ी पर  प्रवेश वर्जित है। कुछ लोगों को बताया गया है कि  उनके हिस्से का त्याग ,बलिदान और  अवदान उनके पूर्वज भुगत चुके हैं. इसलिए अब इस विकास यात्रा  में उन्हें आरक्षण  का उनका वंशानुगत जन्म सिद्ध अधिकार है।  जिन लोगों के पूर्वजों ने अपने श्रम  के पसीने से सभ्यताओं का विकास किया , उनके वंशज आज भी पसीना बहाकर  दो जून की रोटी का इंतजाम करने की फ़िक्र में पस्त हैं। यदि बुद्धिजीवियों के विमर्श में वे नहीं हैं तो वह सृजन गटर साहित्य की श्रेणी का ही होगा।

आज २१ वीं  शताब्दी के पूर्वार्ध में जबकि शेष दुनिया उधर खड़ी है जहाँ तक पहुचने के अभी  हम भारतीयों ने सपने देखना भी शुरू नहीं किया है। आज जबकि  सूचना - संचार एवं सम्पर्क क्रांति में भारतीय युवाओं की दुनियाँ  में तूती  बोल रही है। दुनिया की विशाल आबादी रूप में  और अनेक राष्ट्रीयताओं के योगिक के रूप में  , दुनिया के विराट बाजार के रूप में  उपस्थति दर्ज कराने के बावजूद भारतीय राष्ट्रवाद हासिये पर है। एक तरफ  हिंदुत्ववालों का  राष्ट्रवाद है जो 'अखंड भारत' की बात तो करते हैं, किन्तु  व्यवहार में जो कुछ टूटा-फूटा राष्ट्र  अभी बचा है ,उसे ही  कुरेदते रहते हैं। दूसरी ओर नक्सली हैं , कश्मीरी और अन्य आतंकी -जेहादी हैं ,जो पड़ोसी  पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसिया  से मार्गदर्शन लेते  हैं। जमात-उड़ दावा ,अल कायदा ,आईएसआईएस जैसे समूह  जिनके माई-बाप हैं। जो लोग आत्मघाती फिदायीन बनकर  भारत विकास  रुपी ट्रैन में यात्रा के बहाने  धमाके के लिए तैयार हों ,वे भारत के विकास में  खाक योगदान करेंगे ?

 यदि  भूले -भटके तमाम युवा  कठमुल्लों  के बह्काबे में आकर संविधान  दायरे में अपनी-अपनी बात रखेंगे तो 'भारत राष्ट्र ' का निर्माण सम्भव है। आधुनिक सोशल मीडिया  तो मानवता के लिए वरदान बन सकता है  वशर्ते  नियति नीति और नेता अच्छे हों। हम सभी को  इतिवृत्तात्मक आलेखों और प्रतिरोधी आवाजों को  नकारात्मक रूप में नहीं बल्कि स्वश्थ आलोचना के रूप में देखने की आदत डाल लेनी  चाहिए। सरकारों के कार्यक्रम और नीतियाँ   हों उनमें  हमें  सामाजिक पुनर्रचना और सर्वसमावेशी सामूहिक विकास के सूत्र खोजना  चाहिए। यदि  कोई सरकार किसी खास वर्ग या कौम को छोड़कर विकास की गाड़ी आगे  बढ़ाती है तो  गाड़ी के आगे बढ़ने  की कोई गुंजाइश  नहीं। लोकतान्त्रिक तरीकों से जनांदोलन चलाने वालों को , नीतियों -कार्यक्रमों से असहमत लोगों  को सनातन विरोधी मानकर ,विकाश की गाड़ी से नीचे नहीं उत्तर जा सकता। यदि  जबरन गया तो पांच साल में सत्ता पलटने का अधिकार तो जनता को है ही।

  देश और दुनिया में कहीं भी किसी भी तरह की एकल या सामूहिक हिंसा पर ,सरकार या समाज की,कवियों - साहित्यकारों या बुद्धिजीवियों की न तो चुप्पी बर्दास्त की जानी  चाहिए  और न ही परस्पर के परम्परागत   विरोधियों को  कमजोर समझना चाहिए। क्योंकि द्वंद्वात्मकता का सिद्धांत वाद-प्रतिवाद और संवाद की हाइपोथीसिस पर ही टिका हुआ है।  द्वन्द में शक्तिशाली की ही विजय होती है । लेकिन ह्म चाहते हैं की विजय मानवता की हो ,इंसानियत की हो!  हमारा नारा है कि बेइमानी  और बर्बरता परास्त हो ! हमारी तमन्ना है कि  श्रम  का सम्मान हो और सत्य की विजय हो ! श्रीराम तिवारी

                                                          

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