गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

हम उनको ही अवतारा उन्हें ही देव कहा करते हैं। [ poem by Shriram Tiwari]

मातृभूमि को लज्जित करती ,रिश्वत की सूर्पनखा देखो।

खूब जलाये अब तक हमने ,नकली राक्षस कुल  देखो।।

चारों ओर झुण्ड असुरों के  ,लूट रहे हैं  वतन -अमन  ,

आतंकवाद के खुम्भकरण  को  ,अठ्ठहास  करते देखो ।।


हे  राम के भोले भक्तो ! अब तक तुमने किसे जलाया  ?

असली रावण तो डगर-डगर , छुट्टा सींग मारते  देखो ।

कालचक्र के हवनकुंड में स्वाहा हुए अनेकों जनगण ,

भूंख गरीबी महँगाई की ,बदन  बढ़ाती  सुरसा देखो।

जब नर बन जाते  नारायण ,भू भार हरण करने को  ,

उनको ही अवतार उन्हें ही,अमर शहीद  मानों देखो।


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मर मिट कर हो पाता दाना , महा विटप तरुणाई में।

निहित स्वार्थी बहुरूपिये क्या ,सिंह  बने  बनराई  में ।। 

बाँधा जिसने सप्तसिंधु को ,नर-वानर संयोजन से ,

पुरषोत्तम की मर्यादा भूले  ,स्वार्थ की अंगड़ाई में।। 

युध्दभूमि पर जिनके  पग में नहीं सारथि रथ पद त्राण ,

अश्त्र-शस्त्र से ज्यादा ताकत ,कूटनीति चतुराई में। 

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मानव जब दानव वन जाये, दीन हीन  का लहू बहाए ।

लोकतंत्र की जन वैदेही  ,क्रूर निशाचर हर ले जाए ।। 

नैतिकता भूलुंठित प्रतिहत  ,कटे पंख  के वृद्ध जटायु ,

मरघट की ज्वाला को पागल ,मायावी  लंका ले जाए।

मक्कारी का मेघनाद तो  ,स्वार्थ की सत्ता का साधन , 

 अंधी श्रद्धा निपट निश्चरी  ,  नीति-नियति उस न भाये।

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           श्रीराम तिवारी



         

 

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