सोमवार, 1 जून 2015

निर्गुण भक्ति काव्य के धर्मनिरपेक्ष कवि -संत कबीर की जयंती पर उनका पुण्य स्मरण !





        कबीरा जब हम जन्मिए , जग हँसिया  हम रोय ।

        ऐंसी करनी कर चले , आप  हँसे जग रोय।।

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       कबीरा सोई पीर है ,जो जानिए पर पीर।

      जो पर पीर ना जानिये ,सो काफिर बेपीर। ।

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     कबीरा नौबत  आपनी ,  दिन दस लेव बजाय।

    ये पर पाटन -ये गली ,बहुरि न देखव आय।।

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कंकर -पत्थर  जोड़कर ,मस्जिद लई बनाय।

ता चढ़ि  मुल्ला  बाँग  दे ,बहरा हुआ खुदाय।।

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पाहन पूजे हरी मिलें , तो मैं पूजों पहार।

ताते यह चक्की भली , पीस खाय संसार।।

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          निर्गुण भक्ति  काव्य के धर्मनिरपेक्ष  कवि -संत कबीर की जयंती पर  उनका पुण्य स्मरण !

                                                            ;- श्रीराम तिवारी
 

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