कबीरा जब हम जन्मिए , जग हँसिया हम रोय ।
ऐंसी करनी कर चले , आप हँसे जग रोय।।
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कबीरा सोई पीर है ,जो जानिए पर पीर।
जो पर पीर ना जानिये ,सो काफिर बेपीर। ।
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कबीरा नौबत आपनी , दिन दस लेव बजाय।
ये पर पाटन -ये गली ,बहुरि न देखव आय।।
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कंकर -पत्थर जोड़कर ,मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे ,बहरा हुआ खुदाय।।
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पाहन पूजे हरी मिलें , तो मैं पूजों पहार।
ताते यह चक्की भली , पीस खाय संसार।।
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निर्गुण भक्ति काव्य के धर्मनिरपेक्ष कवि -संत कबीर की जयंती पर उनका पुण्य स्मरण !
;- श्रीराम तिवारी
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