शुक्रवार, 12 जून 2015

भारत में सरकार के कामकाज एवं नीतियों की आलोचना एक अलग बात है और सत्ता परिवर्तन एक अलग बात हो चुकी है।

 खबर है कि दिल्ली के सफाई कर्मचारी जब वेतन के लिए हड़ताल पर थे तो राहुल गांधी उन्हें सांत्वना देने जा पहुंचे।वेतन भुगतान की माँग संबंधी हड़ताल समाप्त कर सफाई कर्मचारी  हजारों की तादाद में सबसे  पहले राहुल गांधी का  शुक्रिया अदा करने  उनके आफिस गए। यह स्मरणीय है कि वेतन भुगतान भाजपा शासित महानगर परिषद की जिम्मेदारी थी। किन्तु दिल्ली में फैलती गंदगी से नाराज जनता का आक्रोश कहीं  'आप' पर न टूट पड़े इसलिए 'आप'  ने अभी तदर्थ भुगतान कर दिया है। इसके वावजूद  सफाई कर्मचारियों  ने न तो 'आप' को धन्यवाद दिया और न एलजी या भाजपा नेताओं को तबज्जो दी। कर्मचारी  काम पर गए या नहीं यह तो दिल्ली की जनता ही बता सकती है। जहाँ तक मीडिया रिपोर्ट का सवाल है  तो वहाँ अभी  'आप' के हाथों में केवल  झाड़ू है। जबकि राहुल गांधी  कर्मचारियों के हीरो बन गए हैं। भाजपा वाले मुँह बाये एक दूसरे को  इस तरह देख रहे हैं  जैसे भारतीय क्रिकेटर के द्वारा  छक्का जड़ने  पर पाकिस्तानी बॉलर और कप्तान देखते हैं।

                           किसानों, मजदूरों और शोषित -पीड़ित वर्गों के लिए इन दिनों राहुल जो कर रहे हैं ,जो बोल रहे हैं यदि वो यह सब  यूपीए -१ और यूपीए -२ के दरम्यान करते तो मोदी जी आज सत्ता में ही  न होते ! कांग्रेस का पटिया  उलाल न होता।  कुछ कांग्रेसी तो मोदी जी -भाजपा और 'आप' का शुक्रिया भी कर रहे हैं।उनका अनुमान है कि मोदी जी  के कारण ही  कांग्रेस के शीर्ष नेतत्व को इन दिनों जमीनी  हकीकत समझने लायक स्थिति पैदा हुई है ।कांग्रेस  की  मर्मान्तक पराजय के कारण ही राहुल गाँधी अब फूल टाइम वामपंथी जैसा  वेश धारण किये हुए हैं। यदि राहुल इसी तरह चलते रहे ,इसी तरह बोलते रहे तो शीघ्र ही न केवल मोदी सरकार , न केवल 'आप'    की केजरीवाल  सरकार बल्कि अन्य दलों को भी लोग इतिहास के कूड़ेदान में ढूंढते रह जायेगे। किसानों - मजदूरों  के निरंतर हित साधने वाले ,उनके हक की लड़ाई लड़ने वाले ,मेहनतकशों के हरावल दस्ता कहे जाने वाले  और सर्वहारा  वर्ग  के स्वाभाविक मित्र के रूप में  वामपंथ  को भी राहुल की इस अदा  से सावधान रहना चाहिए।  कहीं ऐंसा न हो कि  जिस तरह विगत शताब्दी के पूर्वार्ध में  ब्रिटेन में कम्युनिस्ट पार्टी की संभावनाओं को  पूँजीवादी 'लेबर पार्टी ने लील लिया ,कहीं भारत में  भी  राहुल गांधी के इस नूतन अवतार से वामपंथ को  नयी चुनौती तो नहीं मिलने जा रही है ?  जो लोग राहुल को  पप्पू समझ रहे हैं उन्हें दिल्ली के सफाई कर्मचारियों से जरूर अपनी राय  शेयर करनी  चाहिए !

   मोदी सरकार ने विगत एक वर्ष में जो कुछ  भी किया -धरा है और वह जो कुछ अभी भी किये जा रही है ,यदि  उसका सिलसिला  इसी तरह  चलता रहा तो भारत  में राजनैतिक  'तुष्टिकरण' का इतिहास और ज्यादा बदरंग होता चला जाएगा । यदि यह सरकार भी अपने पूर्ववर्तियों के नक़्शे-कदम पर चलकर राजनैतिक कदाचरण और साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के परनाले बहाती रही तो मृतप्राय कांग्रेस का भविष्य निसंदेह उज्ज्वल है। वेशक मोदी सरकार के खिलाफ बहुत सारे आरोप लगाए जा सकते हैं। सिर्फ कांग्रेस ,वामपंथ या शेष विपक्ष ही नहीं  मीडिया का ईमानदार निष्पक्ष धड़ा और स्वयं 'संघ परिवार ' के अंदर के संजयजोशी,शत्रुध्न सिन्हा मुरली मनोहर जोशी और आडवाणी जैसे कई 'लतमर्दित' - जले -भुने  बैठे हैं। जो लोग समझते हैं कि मोदी जी ने  सभी  प्रतिदव्न्दियों को पराजित कर दिया है,वे न केवल गलतफहमी में  हैं ,बल्कि मोदी जी को  भी और ज्यादा  गफलत में डाल  रहे हैं।सवाल किया जा सकता है कि  वर्तमान  सत्तापक्ष और सरकार की चूकों से किसको फायदा होगा ? निसंदेह केवल कांग्रेस को ही सर्वाधिक लाभ होगा ! चूँकि वामपंथ का बंगाल,केरल और त्रिपुरा ही नहीं बल्कि देश में कहीं भी  भाजपा से सीधा मुकाबला नहीं है , इसीलिये भाजपा या मोदी  की असफलता का फायदा या तो कांग्रेस को मिलेगा या अन्य क्षेत्रीय दलों को।
              इसीलिये  शायद मोदी जी और उनके संगी साथी  इन दिनों  केवल राहुल गांधी और कांग्रेस  को  ही गंभीरता से ले रहे हैं। जनता दल -एमवाय एवं पिछड़ा -दलित  परिवार ,वामपंथ और अन्य क्षेत्रीय दलों के बारे में  वे कुछ खास  नहीं बोलते। फेस बुक इत्यादि आभाषी सूचना -संचार माध्यमों पर कुछ अपरिपक्व किस्म के  प्रगतिशील -वामपंथी और समाजवादी चिंतक-विचारक आँख मींचकर हर घटना और क्रिया पर अपनी सटीक  प्रतिक्रिया देते रहते हैं। हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि  वर्गीय समाज में  घटनाओं और क्रियाओं पर अपरिपक्व जनों  की अभिरुचि 'नायकवादी' हुआ करती  है। अतः कभी-कभी  हर किस्म के  अतिशय आक्रामक विरोध  के कारण धर्मनिरपेक्ष  जन समुदाय और वाम-जनवादी -लोकतांत्रिक  ताकतों के बीच दूरियाँ और ज्यादा  बढ़ती जाती हैं ! मोदी सरकार की असफलताओं और 'संघ परिवार' की साम्प्रदायिक  छवि के कारण यदि आइन्दा फिर सत्ता अपरिवर्तन होता है तो संघर्ष कारी वामपंथ या जनवादी-धर्मनिरपेक्ष ताकतों को कोई विशेष  फायदा नहीं होगा।
               इसीलिये कांग्रेस फिर सत्ता में आ जाएगी और जब कांग्रेस के पापों का घड़ा फिर से  भर जाएगा तो एनडीए या भाजपा फिर  से सत्ता  में आ जायेंगे। वायचांस यदि कभी वामपंथ समर्थित कोई तीसरा मोर्चा सत्ता  में आता भी है तो वह देवगौड़ा और चंद्रशेखर जैसा असफल होकर, देश को पुनः अतीत की भाँति कलंकित कर्,  शताब्दियों पीछे धकेल कर, फना हो जाएगा। जब  हर चुनाव में  सारी क्रांतिकारिता  धरी जाती है और जब इसी अधोगामी -पतनशील  व्यवस्था में अंतिम सांस तक  मर-मर कर जीना पड़ता है तो क्यों न इस  लोकतान्त्रिक व्यवस्था के उजले पक्ष को ही तराशा जाए ?
                                    सत्ता पक्ष  द्वारा राहुल गांधी पर जो व्यक्तिगत हमले  किये जा रहे है वह क्या सावित करता है। कांग्रेस -वामपंथ और सम्पूर्ण विपक्ष द्वारा कभी परिकर,कभी सुषमा स्वराज , कभी गडकरी पर जो   हमले किये जाते हैं उससे क्या देश में कोई जन क्रांति सम्भव है ? क्या मोदी जी किसी वामपंथी - प्रगतिशील नेता या दल के खिलाफ कभी कुछ बोले हैं ? जबकि मोदी जी के ही  निर्देश पर स्मृति ईरानी हफ्ते में तीन बार अमेठी  उड़-उड़ कर जा रही है। इसका क्या अभिप्राय हो सकता है ? जो राहुल गांधी अभी कुछ दिन पहले तक  'पप्पू' कहलाते थे ,सत्तापक्ष की आक्रामकता  से वे और ज्यादा सुर्खरू होते जा रहे है । ५६ दिन के अज्ञातवास   उपरान्त तो  'संघ परिवार' में  भी राहुल गांधी संज्ञेय हो गए है।  जब  मोदी सरकार का कांग्रेसीकरण  हो सकता है  तो  केदारनाथ में जाकर राहुल का भगवाकरण क्यों नहीं हो सकता ?   जो तुष्टिकरण कांग्रेस पर आरोपित था वो अब भाजपा और मोदी सरकार पर आरोपित क्यों नहीं हो सकता ?

                                  वर्तमान सरकार की प्रतिगामी नीतियों के परिणामस्वरूप आइन्दा  यदि मोदी सरकार के प्रति जनाक्रोश उभरता  है तो  कांग्रेस को ही  फायदा होगा। क्योंकि राष्ट्रीय विकल्प के रूप में अभी भी देश भरमें  सहजरूप से कांग्रेस ही सर्वत्र उपलब्ध है।  मीडिया और पूँजीपति  भी रंग बदलने में देर नहीं करेंगे। विगत आम  चुनाव में  जो विचारधारा विहीन  'नायकवादी' लोग  'नमो-नमो' कर रहे थे। आइन्दा  वे 'राहुल-राहुल' नहीं करेंगे इसकी क्या गारंटी है ? इसीलिये  वामपंथी विचारक -बुद्धिजीवी- कार्यकर्ता भले ही मोदी सरकार की कमजोरियो खामियों  को उजागर करते रहें, किन्तु वे हरकिस्म  के चुनावों में हर  जगह  अपना क्रांतिकारी उम्मीदवार तो  खड़ा कर नहीं सकते। यदि कहीं कोई बन्दा खड़ा कर भी दिया तो वे वर्तमान   भृष्ट और महँगी  चुनावी प्रक्रिया में उसे जिता  पाने में अभी तो समर्थ नहीं होंगे। क्योंकि  भारत की जनता में विचारधाराओं के आधार पर आदर्श मतदान की  परिपक्वता अभी भी नदारद है। अतः  देश की आवाम  मजबूर होकर  नागनाथ को छोड़कर पुनः साँपनाथ  की शरणम गच्छामि हो जाएगी।  दरशल भारत में सरकार के कामकाज एवं नीतियों की आलोचना एक अलग बात है और  सत्ता परिवर्तन एक अलग बात हो चुकी है।  वाम -जनवादी लोग  जिंदगी भर कांग्रेस के कुशासन और भृष्टाचार से लड़ते रहे  किन्तु  नतीजे में उन्हें  'मोदी सरकार'  मिली।  और यह मोदी सरकार यदि विगत एक साल वाले रास्ते पर ही चलती रही तो जनता का इससे  भी मोह भंग होने में देर नहीं लगनी है। तब वर्तमान संसदीय व्यवस्था में जनता के समक्ष पुनः कांग्रेस को चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा

                          वर्तमान सत्तारूढ़ नेतत्व  ने अपने इर्द-गिर्द एक काल्पनिक वैयक्तिक महिमा का आभामंडल  निर्मित कर  लिया है।  मोदी जी ,जेटली जी और अमित शाह की त्रयी  के अलावा किसी भी नेता ,सांसद या पार्टी पदाधिकारी के पास कुछ भी करने - कहने- सुनने को नहीं है। भीतर-भीतर मोदी विरोधियों को ठिकाने लगाने की  चालें भी किसी से छिपी नहीं हैं। ललित मोदी प्रत्यार्पण  संदर्भ में सुषमा और कश्मीर समेत पूर्वोत्तर की असफलताओं के  सन्दर्भ  में   राजनाथ सिंह को 'बेबस' दिखाकर ,क्या सावित किया जा रहा है ? वेशक भाजपा को 'पार्टी विथ डिफरेंट ' बनाने की युक्ति  अब मायने नहीं रखती। अब तो दुनिया की तथाकथित सबसे बड़ी  पार्टी  बनाने की जुगत में बोगस सदस्य भी गले की  हड्डी बन गए  हैं।

                       आर्थिक नीतियों में  जन-कल्याण की  बात तो दूर  अब तो सत्ता  के केंद्र में मूल हिन्दुत्ववादी एजेंडा भी नदारद  है। 'मोदी सरकार' के  इस बदले हुए तेवर  को जो लोग नोटिश नहीं कर रहे हैं और वे यदि  पिछलग्गू - जरखरीद  नहीं हैं तो उन्हें अपने विवेक पर  थोड़ा तरस  अवश्य  खाना चाहिए। चौतरफा मुश्किलों   और असफलताओं  के  लिए  पूँजीवादी साम्प्रदायिक सरकार समर्थक और व्यक्तिश : मोदी समर्थक  कसूरवार हैं। उतने भी ज्यादा  वे  भी   कसूरवार हैं जो बार-बार जनता के समक्ष गैर कांग्रेसी-गैरभाजपाई  विकल्प खड़ा  करने की मशक्क़त तो करते हैं  किन्तु   सत्ता मिलते ही आपस में सर फुटौव्वल करने लगते हैं। जो प्रगतिशील  वामपंथी  बुद्धिजीवी हैं , जो अपने चिंतन-लेखन -मनन से  जन-संघर्षों का  विकास करते हैं और जो व्यवस्था परिवर्तन बावत जन  बैचेनी का निर्माण  करते रहते हैं, वे भी इस दुरवस्था  लिए किंचित  कसूरवार हैं। क्योंकि वे न तो किसी को चुनाव  जिता  सकते हैं और न खुद ही कोई  चुनाव  जीत सकते हैं ।

                    मोदी जी का  कांग्रेस मुक्त भारत का नारा उनके वैयक्तिक  आचरण में ही  हवा हो रहा है। भाजपा या संघ परिवार भले ही अभी तलक 'हिंदुत्व 'की बंदरिया को छाती से लगाये घूम रहे हों। किन्तु मोदी जी ने तो जाने -अनजाने हीसही अपना भगवा चोला उतार फेंका है। वे  अपनी  ही सरकार  का चरम कांग्रेसीकरण  करते जा रहे हैं। शायद इसीलिये वे अभी भी सिर्फ कांग्रेस पर ही अपनी  तीखी जुबान चलाया करते हैं ।मनमोहनसिंह ने २० साल पहले  नरसिम्हाराव के जमाने में  जो उदारीकरण की गिनती शुरू की  थी।  उसके आगे  कुछ शून्य बढ़ाकर जेटली जी ने देश  को आर्थिक उदारीकरण  की तीव्रगामी पटरी पर जबरन धकेल दिया है। भले ही विकास दर  के कुछ आंकड़े  बढ़ाकर   बताये जा रहे हों किन्तु  वास्तविक अर्थव्यवस्था वहीं चकरघिन्नी हो रही  है। जहाँ यूपीए ने छोड़ी थी। इसीलिए रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को  भी समझ नहीं आ रहा है कि वित्त मंत्रालय और वर्तमान  केंद्र सरकारको  भूतपूर्व यूपीए सरकार के ढर्रे पर चलने की  'जन -मनाही' के वावजूदवह   तेजी से उसी'ट्रिपल www  को  ही फॉलो क्यों कर रही है?
                       विगत एक वर्ष में  केवल आर्थिक मामलों में ही कांग्रेसीकरण नहीं हुआ बल्कि तथाकथित  'तुष्टिकरण' की नीति  का भी उदारीकरण हुआ है। इस क्षेत्र में तो 'मोदी सरकार ने  कांग्रेस के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं। वेशक कांग्रेस ने आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक देश पर राज किया है। कांग्रेस ने सत्ता प्राप्ति के लिए अवांछनीय समझोते भी किये हैं। वोट के लिए विभिन्न वर्गों-अल्पसंख्यकों,सहित अगड़ा-पिछड़ा और दलित का भी खूब जाप किया है। सिर्फ काग्रेस  ने ही नहीं सपा, वसपा ,ममता,,नीतीश,अकाली,शिवसेना इत्यादि ने भी अपनी-अपनी सुविधा और उपलब्धता के अनुसार विभिन्न सम्प्रदायों और जातियों के वोटों का  भरपूर तुष्टिकरण किया है।लेकिन कांग्रेस सहित इन सभी दलों ने जितना तुष्टिकरण किया होगा। उससे कई गुना तुष्टिकरण विगत एक साल में मोदी सरकार कर चुकी ही। उनके तौर  तरीके बता रहे हैं कि  आइन्दा यही सिलसिला जारी रहेगा। जो लोग मोदी जी या उनकी सरकार पर हिन्दुत्वादी होने का आरोप लगा रहे हैं या जो लोग मोदी सरकार से उम्मीद लिए बैठे हैं कि  ये सरकार भारत में 'हिन्दुपदपादशाही'  के 'अच्छे दिन' लाएगी वे दोनों ही घोर अज्ञानी हैं।
                      कश्मीर में जो कभी कांग्रेस या नेशनल कांफ्रेंस  ने नहीं किया ,जो कभी किसी अन्य धर्मनिरपेक्ष  सरकार ने नहीं किया , वो असल तुष्टिकरण मोदी सरकार ने  अब कर दिखाया है । राजीव गांधी ने यदि शाहवानों  केश में अल्पसंख्यक वर्ग को तुष्ट किया था तो उन्होंने दूसरी ओर  अयोध्या में हिन्दुओं को भी कुछ सहलाया था। बाबरी  'ढांचे ' में राम लला 'मंदिर के ताले भी खुलवा दिए थे। किन्तु मोदी जी तो  हिन्दुओं को छोड़ बाकी सभी को तुष्ट कर रहे हैं। उनके  सत्ता में रहते  तो छोटी बात किन्तु जब तक सूर्य चन्द्रमा और  धरती रहेगी तब तक धारा  -३७०  का कोई कुछ नहीं कर सकता। चुनाव में वोट बटोरने  के लिए मंदिर-मस्जिद विवाद  को उछालना अलग बात है। लेकिन अब मोदी जी भी  कांग्रेस या यूपीए-३ के पीएम की तरह व्यवहार क्यों  कर रहे हैं ? अब वे क्यों सोनिया गांधी की तरह अल्पसंख्यक वर्गों की ओर  झुके हैं ? जिस चुनावी राजनीति के लिए  कांग्रेस ने पर्सनल लॉ  छोड़ा,कश्मीर विवाद छोड़ा ,मंदिर विवाद छोड़ा  उसी घटिया राजनीति  के लिए मोदी जी अब र्य  सूर्य नमस्कार क्यों छोड़ रहे हैं ? क्या यह 'संघ परिवार' और स्वयंसेवकों  की संतुष्टी के लिए छोड़ रहे हैं?
 
                               ओवेसियों ,मदनियों ,देवबंदियों,बरेलियों और आलिम -उलेमाओं की  जितनी खैरख्वाह ये मोदी सरकार है , उतनी  इस देश में ओरंगजेब की सरकार भी नहीं रही। ये लव जेहाद,घर वापिसी -हिन्दुत्ववादी नारेबाजी केवल  दिखावा है। ये बहुसंख्यक हिन्दुओं  के वोट  वटोरने  का अभीष्ट मन्त्र  है।  ये अम्बानियों-अडानियों  के  एहसान चुकाने  का शुक्राना है या कांग्रेस की अल्पसंख्य्क तुष्टिकरण  नीति का नूतन अवतरण ? यदि विकास -सुशासन और 'सबका-विकाश -सबका साथ ' मोदी सरकार के नाभिकुंड में विराजमान है तो  'हिंदुत्व ' के अभुदय' का क्या  होगा ?  दरसल संघ के और पूँजीपतियों के एजेंडे को  नष्ट किये बिना देश का विकाश - सुरक्षा   असंभव है। शोषित-पीड़ित आवाम का उत्थान  भी नितांत असंम्भव है। इसीलिये जब तक जाति -मजहब और लूटतंत्र का तुष्टिकरण  जारी है ,तब तक  किसी भी क्रांति  का आगाज असंभव है।

                           श्रीराम  तिवारी
                                           

       

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