रविवार, 21 जून 2015

योगीराज होने के वावजूद हर प्रतियोगिता की पदक तालिका में हम अंतिम पायदान पर क्यों होते हैं



    विश्व विख्यात  योग दिवस सानंद समपन्न हुआ। इस अवसर पर शिद्द्त से  योग कार्यक्रम में शामिल होने  वाले सभी भारतीयों को और संसार के तमाम योग साधकों -समर्थकों को बधाई ! इस अभूतपूर्व आयोजन की पूर्व पीठिका  लिखने वाले हमारे अनन्य  योगनिष्ठ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को विशेष साधुवाद ! मैंने बचपन में ही  कहीं पढ़ा था कि जहाँ योग है वहाँ योगेश्वर  भगवान श्रीकृष्ण स्वयं मौजूद रहते हैं. और विजयश्री भी  वहीँ विराजती है। यह योग भी वहीँ सफल  होता है। जहाँ झूंठ-कपट -पाखंड न हो ! जहाँ  धनलोलुपता नहीं हो। जहाँ ओरों का शोषण नहीं हो !जहाँ परनिंदा  नहीं हो ! जहाँ किसी के प्रति घृणा नहीं हो !जहाँ  राग-द्वेष नहीं हो !
                                                          लेकिन बड़े  दुःख की बात है कि इस २१ जून के रोज जो लोग इस योग  कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे थे उन्होंने 'योगशास्त्र' के किसी एक सूत्र का भी पालन नहीं किया। स्वामी रामदेव और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी वेशक कुछ परिमार्जित तो हुए हैं. किन्तु कांग्रेस या विपक्ष या भाजपा के ही चंद   वरिष्ठों के प्रति उनका घृणा का भाव उन्हें योगी कहलाने से रोकता है। भारतीय नेतत्व की इन्ही खामियों की बदौलत जब डॉ हेडगेवार की जयंती पर दुनिया भर में  सारा 'संघ परिवार' और उनका असोसिएट -भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद- राजपथ से योगपथ में तब्दील हो रहा था ,तब भारतीय क्रिकेट टीम उन बांग्लादेशी 'बच्चों 'से पिट रही थी। जो अभी तक इस योग का  अ ब स या  ककहरा भी नहीं जानते। वैसे तो हमें अपनी इस विद्द्या पर बड़ा नाज  है कि हमारे ही ऋषि और पूर्वज  इस अद्भुत कला  के मूर्धन्य आविष्कारक  थे। वेशक वे बड़े योग विशारद  हुए होंगे ! किन्तु इस दौर की पीढ़ी अर्थात उन महानतम योगियों के वंशज  अब केवल ढपोरशंख ही क्यों बजाये चले जा रहे हैं ?
              गोकि आप की योग साधना  विश्व वंदनीय हैं। किन्तु जब एक अदने से बांग्ला  देश की नौसिखिया क्रिकेट टीम - जो रामदेव जैसा योग - कोहली -धोनी जैसा भोग  कुछ नहीं जानती वो बांग्ला देशी टीम हमारे महानतम योगीपुत्रों को  -भारतीय टीम  को यदि लतियाये जा रही हो ,माँन मर्दन किये जा रही हो तो  भारतीय योगियों और  नेताओं को अपनी कथनी-करनी पर  पुनर्विचार  अवश्य करना चाहिए ।

    चाहे कोई कॉमनवेल्थ गेम हो ,चाहे ओलम्पिक हो ,फीफा वर्ल्ड कप हो या एशियन गेम्स हों ,बड़े योगीराज होने के वावजूद  हम भारतीय हर प्रतियोगिता  की  पदक तालिका में अंतिम पायदान पर क्यों  होते हैं ?यदि हमारे योग की इतनी बड़ी महिमा है,तो  हर ओलम्पिक में , हर राष्ट्रमंडलीय खेल प्रतियोगिता में , यहां तक की एशियाड में भी हमारे भारतीय खिलाडियों को एक-दो स्वर्ण पदकों के लिए ही एड़ी- चोटी का जोर क्यों लगाना पड़ता है ? दो-चार कांसे के टुकड़ों को पाकर ही हमारा सीना ५६ इंच का क्यों  होने लगता है? जबकि तथाकथित  योग नहीं  जानने या मानने वाले -चीन,अमेरिका,जापान,रूस,ब्रिटेन जर्मनी,फ़्रांस ,कोरिया इत्यादि सैकड़ों स्वर्ण पदक पाकर भी आत्मतुष्ट  नहीं होते !
                     हमारे देश के कुछ दाढ़ीधारी और  कुछ भगवाधारी अपने  ज्ञान-ध्यान और योग का अनावश्यक   गोरखधंधा  अपने कंधे  पर लादे-लादे दुनिया  भर में घूम फिर रहे हैं । इसी ज्ञान के अहंकार और योग के दम्भ का  नतीजा है कि विभिन्न वैश्विक प्रतिस्पर्धाओं में हमारे भारतीय खिलाड़ी अब  उजवेगिस्तान , मंगोलिया , कजाकिस्तान या ईरान से भी प्रतिस्पर्धा में मात खा जाते हैं। लगता  है कि हमारा योग शौर्य  केवल पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को चिढ़ाने  भर के लिए है ?  विगत क्रिकेट विश्व कप में हमारे खिलाड़ी कौन सा योग कर रहे थे  यह कोहली और अनुष्का शर्मा जैसे योगी अच्छी तरह जानते हैं।

                             आधुनिक विज्ञान और  योग को समझने वाले स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि योग के   मार्ग में मिथ्या भाषण बड़ी बिघ्न बाधा है। मुझे याद है कि विगत एक वर्ष पहले ही योग गुरु स्वामी रामदेव ने और खुद योगिराज श्रीमान नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में बताया था कि  स्विट्ज़रलैण्ड बैंकों  में भारतीय चोट्टों  ने कालेधन के रूप में लाखों करोड़ रूपये जमा कर रखे हैं। उन्होंने तो उस रकम का बटवारा भी कर दिया था कि  हम[मोदी सरकार]  यदि सत्ता में आये तो हरेक के खाते में १५ लाख रूपये जमा करेंगे। बड़े खेद की बात है कि  खोदा पहाड़ निकली चुहिया। स्विस सरकार ने पहली बार पूर्ण आंकड़े घोषित किये हैं। उनके पास दुनिया के ६३ देशों की  कुल जमा  रकम १६०० अरब डॉलर याने १०२४०० अरब रूपये मात्र  हैं। इस  कालेधन की रकम में  भी    भारत  का  हिस्सा मात्र ०. १२३ है। याने रूपये की शक्ल में मात्र १२६१५ करोड़ रूपये ही भारत का कालधन के रूप में जमा है। इस बदनाम चोट्टा  सूची में भी भारत महा फिसड्डी है। यहाँ भी वह ६१ वें स्थान पर है। याने दुनिया के ६०  देशों के चोट्टे -यहाँ भारत के चोट्टों से  बाजी मार गए। स्विस सूची में तो  भारत के कालेधन वाले अंतिम पायदान से  सिर्फ दो  राष्ट्रों के  ही ऊपर  हैं। उस पर भी लुब्बो-लुआब ये है कि कालेधन की इस चोट्टाई में भी हम खेलों की पदक तालिका जैसे  ही फिसड्डी  निकले ।चुनाव में जनता को बरगलाने के लिए जिस झूंठ का सहारा लिया गया वो योग के लिए मुफीद नहीं हो सकता !

                          बड़ी अजीब स्थिति है कि जो लोग योग का प्रचार -प्रसार करते हैं वे ही महा झूंठ और पाखंड के शिकार हैं।सत्ता में आने के बावजूद भी ये झूंठी वयान बाजी करने वाले लोग, आइन्दा यदि योग को बदनाम न करते  हुए, चीन-जापान-कोरिया  की तरह अपने भारतीय खिलाडियों को कुछ बेहतर सुविधाएँ और टिप्स देंतो ही बेहतर होगा।  ताकि वे आगामी ओलम्पिक में और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी, भारत का नाम  पदक तालिका में  सबसे ऊपर  ले जा सकें।  तभी ये  दुनिया वाले आपके 'योग' का लोहा मानेगे । वैसे भी  बिना सत्य ,अहिंसा अस्तेय , अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के कोई भी योग नहीं  सधता। शारीरिक कसरत को योगविद्द्या का नाम देने  , उसको भी केवल किसी नेता या  समाज सुधारक के जन्मदिन पर जश्न जैसा दिन मना लेने के निहतार्थ तब तक सकारात्मक नहीं हो सकते ,जब तक भारत में धर्म ,मजहब ,खेल और  संस्कृति को राजनैतिक पाखंड  से मुक्त नहीं किए जाता।
                    
                                     श्रीराम तिवारी    
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें