गुरुवार, 25 जून 2015

सार्वजनिक जीवन में शुचिता और अपरिग्रह ! ये दोनों ही चीजें भाजपा और कांग्रेस के शब्दकोश में नहीं हैं।

 इंदौर नगर निगम पर २० साल से भाजपा का कब्जा है । बीस साल से यहाँ भाजपा का ही महापौर है। इंदौर की सांसद  सुमित्रा महाजन  लोक सभा अध्यक्ष हैं।  यहाँ एक कांग्रेस का और  सात विधायक भाजपा के हैं।यहाँ के नेता कैलाश विजयवर्गीय भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हो गए हैं।  मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है। देश में अर्थात केंद्र में भी भाजपा की ही  सरकार है। तो जब टॉप टू  वाटम सब कुछ भगवा ही भगवा है, जब चारों और योग-ही योग है ,तो  सत्ता के स्वाद  की खातिर  जेल भी भगवा  ही क्यों जा रहे हैं ? विरोधी पक्ष वाला तो वैसे भी 'संघी आतंक' से आक्रान्त है। वो क्या खाक ऐसा कुछ करेगा कि  जेल जाना पड़े ? मालवा तरफ के दो  बड़े   भाजपा नेता तो योग करने के  तुरंत बाद सीधे बैकुंठधाम चले गए।
              इस इक्कीस जून को जब मोदी जी राजपथ पर योग कर रहे थे तब  इंदौर में  भी  लगभग पौने दो लाख लोगों ने एकसाथ और अलग-अलग योगाभ्यास किया। संघ परिवार और उसके अनुषंगी भाजपाई नेता भी शुभ्र वस्त्र धारण कर इन योगार्थियों की अग्रिम पंक्ति में  शोभायमान हो रहे थे। अगले दिन अखवारों में मय  फोटो और खबर के साथ देखा कि नगर भाजपा के दर्जन भर नेता ,कार्यकर्ता,पार्षद, एमआईसी सदस्य ,राजस्व प्रभारी -सबके सब किसी  पुरातन 'महान घपले' में शामिल होने की वजह से जेल के सींकचों में शिद्दत से बंद कर दिए गए   हैं ।  जिस किसी को मेरे कथन की  सचाई पर संदेह हो वो इन्दौर की जेल में जाकर खुद  हथेली लगा ले !

अब लाख  टके  का सवाल ये है कि यहाँ  'सलमान खान 'फार्मूला या  जय ललिता अम्मा वाला फार्मूला  फिट क्यों नहीं हो पाया  है? हालाँकि  यह सवाल आसाराम एंड संस ने भी उठाया है। किन्तु जिन्हे जबाब देना है वे तो खुद ही जेल की तरफ खिचे चले जा  रहे हैं। खबर है कि कुछ बड़ी  भाजपाई नेत्रियाँ  भी जेल में योग अभ्यास की पूर्व  रहसल कर रहीं हैं। सत्तारूढ़ भाजपा  नेताओं की इन  'जेल यात्रा ' में किसी विदेशी ताकत का हाथ हो तो वो ही जाने। वैसे  महायोगी   बलात्कारी आसाराम  या  उसका परमभक्त सुब्रमण्यम स्वामी  भी  बता सकता है।

   इस आलेख के प्रस्तुतिकरण  का उद्देश्य संकटग्रस्त  भाजपा  नेताओं की खिल्ली उड़ाना  नहीं है। वैसे भी इन भाजपा नेताओं से अपनी भी  बहुत पुरानी पहचान है। वे कितने बड़े हिन्दुत्ववादी हैं या  कितने बड़े योगी हैं यह मुझसे ज्यादा वे खुद भी नहीं जानते। यहाँ मेरा मकसद योग की आलोचना या प्रशंसा भी  नहीं है। इसे  लिखने से पहले में स्वयं ही  यह घोषणा करता हूँ कि मेरा मकसद इन संकटग्रस्त भाजपा  नेताओं और उनके बरक्स   योग की महत्ता कम करना कतई  नहीं है।योगियों का उपहास उड़ाना तो  रंचमात्र नहीं है।मैं भी अन्य सभी की तरह यथासम्भव योग करने की कोशिश करता रहा हूँ। मैं  प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र  मोदी जी के अंतर्राष्ट्रीय योग कार्यक्रम का तहेदिल से  समर्थन किया है ।  किन्तु मेरा मानना है  कि किसी जीवंत व्यक्ति , समाज, कौम तथा राष्ट्र के लिए  'और भी गम हैं जमाने में इस योग के सिवा '! उससे भी महत्वपूर्ण है सार्वजनिक जीवन में शुचिता और अपरिग्रह ! ये दोनों ही चीजें भाजपा और कांग्रेस के शब्दकोश में नहीं हैं।ये दोनों ही पैसे वालों के गुलाम हैं।
    
      यदि दुनिया चैन से ही  न रहने दे तो उसके लिए योग-भोग का क्या कीजियेगा ? जब किसी व्यक्ति के लिए रहने-खाने और सुरक्षा का ही  कोई ठिकाना न हो तो वो  योग का क्या अचार  डालेगा ?  वैसे भी जब आसाराम एंड सन और  भाजपा नेता  सभी सहज योगी ही हैं  तो जेल क्यों जा रहे हैं ?और नहीं करने वाले मजाक उड़ा रहे हैं। जोलोग सिर्फ फेस बुक और विभिन्न सूचना माध्यमों  के ही गुलाम नहीं हैं बल्कि कुछ अपनी भी वैचारिक  मेधा शक्ति  जागृत रखते हैं वे  कपटी मुनि नहीं बन सकते। वे   किसी  दुश्चरित्र शासक या नेता के चाल चरित्र और चेहरे को छिपाने में अपना दामन दागदार कदापि नहीं बनाएंगे। किन्तु जो टुच्चे ,चापलूस और बगलगीर हैं वे  सुब्रमण्यम स्वामी की तरह जेल में बंद आसाराम या  इन भाजपाई नेताओं के पीछे किसी 'विदेशी 'ताकत का हाथ ढूंढने लग जाएंगे। वकील का काला  कोट भी पहनकर पैरवी भी  करने लग जाएंगे।

        श्रीराम तिवारी


हमारे दुश्मन षड्यंत्रों में सफल हो रहे हैं और हम  केवल अपनी योग कला में आत्ममुग्ध हैं।

  
                       वैसे भी यह सौ फीसदी सही है कि  इस उपमहाद्वीप में सदियों से 'योग' की महिमा गाई जाती रही है। लेकिन यह भी अकाट्य सत्य है कि जब से इस पुरातन योग विद्या को 'नाटक नौटंकी' में रूपांतरित किया जाने लगा तभी से यह राष्ट्र  गुलाम ही होता आ रहा  है। यक्ष प्रश्न की तरह सवाल आज भी मौजूद है कि सिर्फ  'लोम-विलोम' या  शीर्षशासन लगाने से  क्या  चीन पाकिस्तान गौ हो जायंगे ? इस तरह से उनकी नापाक हरकतों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है  ? हमारे  प्रधानमंत्री जी अपने सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ  जब 'लोम-विलोम' में लींन थे  तब उधर 'संयुक्त  राष्ट्र संघ ' में अकेला  हाफिज सईद ही  हम पर  व्यक्तिशः भारी पड़ रहा  था। जब हमारे इतने बड़े महान योगी प्रधानमंत्री है तो हमारा यह ढपोरशंखी योग वहाँ  किसी काम क्यों नहीं आया  ? जबकि  योग के विरोधी और भारत के दुश्मन पाकिस्तान और चीन के संयुक्त वरदहस्त  से  मुंबई बिस्फोट काण्ड का दोषी  हाफिज सईद अभी भी सही -सलामत है !हमारे दुश्मन षड्यंत्रों में सफल हो रहे हैं और हम  केवल अपनी योग कला में आत्ममुग्ध हैं।

 बहुत संभव है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर भारतीय पक्षकार की अपरिपक्व कूटनीतिक तैयारियों और लचर प्रस्ताव के चलते ही भारत को  इस तरह से नीचे देखना पड़ा हो !  जो भी हो लेकिन यह पक्की बात है कि हमारे लोह पुरुष प्रधानमंत्री मोदी जी के राज में भी   कुख्यात  जकीउर्रहमान लखवी मामले में ही नहीं बल्कि हाफिज सईद और दाऊद  इब्राहीम मामले में भी  भारत की अब तक केवल किरकिरी ही  अवश्य हुई है। विगत कुछ दिन पहले जब भारत ने  यूएनओ में  पाकिस्तान से स्पष्टीकरण  मांगने विषयक प्रस्ताव रखा तो हमारे विदेश  मंत्री  और  प्रधानमंत्री को  यह क्यों नहीं सूझा कि पाकिस्तान के खैरखुआह  भी चुप नहीं बैठेंगे। चीन ने   जब हमारे प्रस्ताव को वीटो कर दिया है तो भारत के  सत्तारूढ़ नेतत्व  की  कूटनीतिक असफलता ही उसके लिए उत्तरदायी  होगी न ! हमारे नेता या तो 'आप' के डिग्री वाले तोमर को निपटाने में व्यस्त  हैं या मीडिया में सरकारी धन से अपने  अनकिये अवदान को महिमामंडित करने में मस्त हैं। उन्हें यह इल्म ही नहीं है कि  केवल चीन-पाकिस्तान को गरियाने से ,भारतीय विपक्ष को गरियाने से या योग-भोग  की आत्मतुष्टि से इस देश की सुरक्षा संभव नहीं है !
                        यह सर्वविदित है कि  चीन -पाकिस्तान  और अन्य ईर्षालु पड़ोसियों द्वारा न केवल सुदूर - उत्तरपूर्व  के अलगाववादियों को प्रश्रय दिया जा रहा है,  बल्कि कश्मीर,पंजाब और आसाम में भी विध्वंशक गतिविधियाँ तेज कर दींगयीं  हैं।  अब तो  पाकिस्तान की ओर  से  चीन ने  भी भारत विरोधी मोर्चा संभाल लिया है। यूएनओ में  अलगाववादियों और आतंकियों को पनाह देना शुरू कर दिया है। कहने का अभिप्राय यह है  कि पाकिस्तान और चीन  ने  तो भारत को  घेरने और  परेशान करने का पक्का इंतजाम कर लिया  है।  लेकिन हमारी तैयारियाँ  क्या हैं ?  हमारे  रक्षा मंत्री कहते हैं  की 'चूँकि भारत की  सेनाओं ने ४० साल से कोई युद्ध  ही नहीं लड़ा इसलिए हमारी सेना सीमाओं पर असफल हो रही है'। इसीलिये   हमारी ठुकाई हो रही है।  जब मीडिया ने इस बयान पर एतराज किया तो मंत्री जो बोले ' आइन्दा मीडिया को ६ महीना कोई बयान ही नहीं दूंगा '! जो नेता कभी योग दिवस ,कभी गंगा आरती ,कभी मंदिर विवाद कभी कुम्भ मेला और कभी भृष्ट भगोड़े  ललित-मोदियों -हवाला कारोबारियों को बचाने में लगे हैं , वे  ही नेता हमारी भारतीय फौजों की वीरता पर भी   प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं।  विचित्र   बात यह है कि  इस का खंडन या प्रतिवाद  न तो पीएम  ने किया और न ही किसी भाजपा  प्रवक्ता ने किया।  राष्ट्रवाद के स्वयंभू अलमबरदार 'संघ'  के नेताओं ने भी मनोहर परिकर  के इस  शर्मनाक बयांन  का कहीं कोई प्रतिवाद  नहीं किया।

  बारीकी से जांच -परख करने वालों का अनुभव है कि 'योग' में अवस्थित व्यक्ति अक्सर ओवरकॉन्फिडेंस  का शिकार भी  हो जाया करता है। योग करने वाले  पौरुष ,दाहिर सेन ,हेमचंद, राणा  सांगा जैसे  वीरगति को प्राप्त होते चले गए।  जबकि योग नहीं करने वाले सिकंदर ,मुहम्मद -बिन-कासिम,गजनवी, गौरी ,तैमूरलंग  ,बाबर इत्यादि  खूँखार भोगी यवन - 'मलेच्छ ' दनादन  भारत भूमि को रौंदते चले गए। न केवल ये यवन -मलेच्छ बल्कि 'श्वेत पर्भु' अंग्रेज भी हमारे  भारतीय  अतीत  का मानमर्दन ही करते रहे। ये  वाक्यात यह सिद्ध करते हैं कि इस अध्यात्म,योग और दैवी उपासना के बरक्स व्यक्ति विशेष ही नहीं बल्कि  पूरा भारतीय उपमहाद्वीप ही    बौराया हुआ था।  अपने भौतिक संसाधनों से ज्यादा उसे अपनी आत्मा-परमात्मा वाली योग शक्ति पर कुछ   ज्यादा  ही आत्मविश्वाश  रहा है।  शायद  भारतीयों [हिन्दुओं ] की तमाम पराजयों का यही कारण भी रहा है।

 भगवान  परशुराम बड़े महायोगी' थे। उन्हें राम-लक्ष्मण जैसे वाचाल  युद्दोन्मत्त धनुर्धर युवाओं द्वारा  राजा जनक की भरी सभा में अपमानित किया गया । जबकि राजा जनक स्वयं 'योगीराज विदेह ' कहलाते थे। उनकी पुत्री के स्वयंवर  में सादर आमंत्रित 'योगी'  परशुराम का सिर्फ यह अपराध था कि  उन्होंने अपने  गुरु 'महायोगी'  शिव के धनुष भंजन किये जाने पर एतराज जताया था। उनके 'योग' और उनकी तपस्या की  ऐसी-तैसी करते हुए ,बेइज्जत  करते हुए  उनके ही मतनुआइयों ने ठीक   वही किया जो मोदी जी किये जा। कहीं  परशुराम की ही तरह [स्वर्गीय] दत्तोपंत ठेंगडी ,गोविंदाचार्य ,बाघेला , केशु भाई ,आडवाणी  संजय जोशी ,मुरलीमनोहर जोशी  भी  बड़े बेआबरू होकर  गुमनामी के अँधेरे  में नहीं धकेल दिए गए हैं ?  कहीं इन सबको अयोग्य सावित करने की मशक्क़त का नाम ही  तो 'राजयोग'  नहीं है ?

                                        श्रीराम तिवारी