शुक्रवार, 29 मई 2015

क्या उनके जघन्य अपराधों से भी बड़ा अपराध आईआईटी मद्रास के छात्रों का है ?

'आईआईटी मद्रास' में अध्यनरत छात्रों के 'आम्बेडकर -पेरियार स्टडी सर्कल पर' अभिव्यक्ति के शत्रु  वर्ग  - शनिश्चर की बकरदृष्टि पड़  चुकी है। किसी भी पार्टी की सरकार को उसकी नीतियों की आलोचना' के बरक्स  इस तरह अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध  पूर्णतः अलोकतांत्रिक है। मद्रास आईआईटी के छात्रों का गुनाह क्या है  ? इस प्रश्न का उत्तर तो कोई सच्चा देशभक्त और नहीं बिकने वाला  न्यायविद ही  दे  सकता है। जिन्होंने सलमान खान  जैसे  बिगड़ैल  बेवड़े को आधे घंटे में जमानत दे दी  हो , जिन्होंने ७ हजार करोड़ के गबन के अपराधी  चोट्टे -रामलिंगम राजू को एक घंटे में ही जमानत दे दी  हो , जिन्होंने अकूत सम्पदा की भूंखी जय ललिता को ५ मिनिट में ही तमाम तरह  के  अपराधों से बरी  कर दिया  हो  ,ऐसे  न्यायविद  तो शायद इस तरह  से  अभिव्यक्ति की  निर्मम हत्या  पर मुँह  खोलने लायक नहीं रहे। वे तो अवसर आने पर केंद्र सरकर के इस तानाशाही रवैये  को उचित ही  ठहराएंगे ! वे स्मृति ईरानी और उनके आकाओं के फासीवादी चरित्र के खैरख्वाह ही होंगे ! वेकसूरों पर राज्य सत्ता के जुल्म पर न्याय पालिका का मौन और धनिक वर्ग  के अपराधों पर न्याय पालिका की उदात्त पक्षधरता- वस्तुतः पूंजीवादी संसदीय लोकतंत्र में  न्याय व्यवस्था  की यही असल पहचान है।  इसीलिये कहा गया  है कि  इस व्यवस्था में  न्याय पालिका  शक्तिशाली व्यक्तियों  की क्रीत  दासी मात्र है।
                                                             माना कि  आईआईटी मद्रास के छात्र वाकई कसूरवार हैं !तो क्या उन छात्रों का अपराध  उस मुफ़्ती सरकार से भी बड़ा है  जिसकी शह  पर जम्मू - कश्मीर में  रोज-रोज  पाकिस्तानी झंडे फहराये जा रहे हैं? और  क्या मुफ़्ती सरकार को सत्ता में बिठाने के लिए खुद भाजपा और 'मोदी सरकार' भी  बराबर की गुनहगार नहीं हैं ? क्या इससे बड़ा अपराध किया है आईआईटी मद्रास  के स्टूडेंट्स ने ?क्या अमित शाह ,राम माधव और उनके सर्वेसर्वा 'नमो' से कश्मीर नीति पर भयंकर  भूल नहीं हुई ? क्या इन भाजपा नेताओं का यह अपराध  हिमालय जितना बड़ा नहीं है ? क्या इस जघन्य  अपराध से भी  बड़ा अपराध आईआईटी मद्रास के छात्रों  का है ? क्या इन छात्रों का अपराध  'झीरम घाटी'  हत्याकांड  से भी बड़ा   है ? जब छग की रमन सरकार और केंद्र  की मोदी सरकार उन हिंसक तत्वों का अभी तक बाल बाँका नहीं कर सकी हो ! तो आईआईटी के छात्रों -  बौद्धिक समूह को नाथने का तातपर्य क्या है ?
                   जब देश  भर में और राजस्थान में  जातीय आधार पर आरक्षण की मांग मनवाने के लिए रेल की पटरियाँ उखाड़ने वाले और रेलवे को सौ करोड़ से जयादा का फटका देने वाले हुड़दंगिये जातिगत आधार पर आरक्षण की मलाई छानने में सफल हो रहे हों , और ये  रेल की पटरियां उखाड़ने  वाले  इस राष्ट्रद्रोह  के बाबजूद सीना  ताने राजनीति  के बियावान में सैर कर रहे हों ! यदि  राजस्थान की वसुंधरा  सरकार और केंद्र की मोदी सरकार इन राष्ट्र द्रोहियों  को जेल में ठूंसने के बजाय  बड़े चाव से 'चाय' पर बुला रही हो ! माननीय  राजस्थान हाई  कोर्ट  के निर्देशों की  यदि धज्जियाँ  उड़ रहीं हों ! तो आईआईटी मद्रास के चिंतनशील छात्रों पर ही व्ज्रपात  क्यों  ?
                 जबसे कश्मीर में भाजपा और 'मुफ्ती एंड अलगाववादियों' की गठबंधन सरकार सत्ता में आईहै।  तब से  पूरे  कश्मीर में  कभी गिलानी के पठठे  , कभी मीर  वाइज  उमर के पठ्ठे ,  कभी यासीन मलिक  के पठ्ठे और कभी  पाकिस्तान में बैठे आकाओं के 'नापाक'  पठ्ठे ,रोज-रोज पाकिस्तान का झंडा लहरा रहे हैं । जबकि  भारतीय तिरंगा  झंडा  निरंतर  पददलित   किया जा हो रहा है ।  क्या मद्रास आईआईटी के छात्रों का अपराध इससे भी बड़ा है ? जब  भाजपा के टेके वाली 'मुफ्ती'  सरकार  आतंकियों का गुणगान कर रही हो ! जब  केंद्र सरकार किसी एक  भी पाकपरस्त आतंकी को सबक सिखाने में असफल रही हो ! जब केंद्र के मंत्री पाकिस्तान  को सबक सिखाने की दम्भात्मंक डींगे हाँक रहे हों !जब  हिंदुत्ववादी केंद्र सरकार के मंत्री गौ मांस' खाने की वकालत कर रहे हों ! जब भाजपा के नेता  और मंत्री  आपस में कुकरहाव कर रहे  हो !  जब सैकड़ों सांसदों और दर्जनों मंत्रियों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हों ,तब  केंद्र सरकार  और खास तौर  से मानव संसाधन मन्त्राणि जी को यह कतई  शोभा नहीं देता कि  मद्रास आईआईटी के एक मामूली से 'स्टेडी सर्कल ' पर प्रतिबंध लगाकर दुनिया  भर में अपनी 'इकन्नी' करवाती फिरें  ।
                     वेशक मद्रास आई आई टी के छात्रों  की हिंदी विरोधी मानसिकता और उनके सामाजिक संकीर्ण विचारों से  मैं  भी सहमत नहीं हूँ। किन्तु उन दिग्भर्मित छात्रों की 'अभिव्यक्ति की आजादी' का मैं शिद्दत  से  समर्थन करता हूँ। इस घटना से यह भी  सिद्ध होता है कि वर्तमान मोदी सरकार  अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल देना चाहती है।  इससे यह भी साबित होता है कि यह  सरकार अपने खिलाफ कुछ  भी कहना - सुनना पसंद नहीं करती। तब इस 'नमो' सरकार  पर लग रहा  'फासिस्टवाद' का आरोप  गलत  कैसे हो सकता है ?


                                                 श्रीराम तिवारी
    

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