भारत के स्वनामधन्य एवं तथाकथित परम देशभक्त - घोषित यायावर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अद्द्यतन चीन यात्रा से भारत को धेले भर का फायदा नहीं हुआ। यह कोई अचरज की बात नहीं। यह तोपूर्व संभावित ही था। किन्तु इस यात्रा से भारत की जनता को खास तौर से 'देशभक्तो' को यह उम्मीद अवश्य थी कि 'नसीब' वाले कुछ करिश्मा करेंगे ! चीन की सेना आइन्दा भारतीय सीमा का अतिक्रमण नहीं करेगी। चीन सरकार द्वारा भारत के नक़्शे से [पीओके] कश्मीर ,अरुणाचल को गायब नहीं किया जाएगा। आइन्दा चीन की ओर से पाकिस्तान को घातक हथियारों की आपूर्ति में कुछ कमी होगी । वेशक ये दिवास्वप्न ही हैं। किन्तु जब कोई सकारात्मक सोचवाला ,आशावादी ऊर्जावान नेता देश का नेता प्रधानमंत्री हो और किसी पड़ोसी राष्ट्र से दोस्ती की बात करे तो उसकी सफलता और उम्मीद की कामना किसे नहीं होगी ?
किन्तु मोदी जी की इस चीन यात्रा के दौरान तो केवल निराशा और असफलता का ही पसारा है। चीनी मीडिया की चालाकी और चीनी नेताओं की कूटनीतिक चाल से नतीजा यह रहा कि चौबे जी गए तो थे छब्बे बनने किन्तु दुब्बे होकर स्वदेश वापिसी कर चुके हैं। सत्ता में आने से पहले और सत्ता में आने के बाद भाजपा और 'संघ' परिवार द्वारा एक महा झूंठ हमेशा प्रचारित किया जाता रहा है कि सच्चे राष्ट्रवादी और देशभक्त तो केवल वे ही हैं ! नेहरू से लेकर अटलबिहारी तक सभी को इन्होने असफल बताने में कभी संकोच नहीं किया। नसीबवाले प्रधानमंत्री श्री मोदी जी को एक गलतफहमी थी कि वे अपने पूर्ववर्ती भारतीय प्रधानमंत्रियों और नेताओं से ज्यादा चतुर और ऊर्जावान हैं। वास्तव में चुनावी जंग में मिले प्रचंड बहुमत ने यह कारिस्तानी की है वर्ना मोदी जी तो निहायत ही धीरोदात्त चरित्र और राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत हुआ करते थे। लेकिन चीन को साधने मे मोदी जी अपने पहले वाले नेतागणों जैसे ही चुके हुए सावित हुए। वे देश की आवाम की नजर में अटल,नेहरू ,राजीव और इंद्रा गाँधी जैसे ही असफल सिद्ध हुए। बल्कि पूर्ववर्ती नेता उतने असफल नहीं रहे जितने कि अब मोदीजी असफल होकर भारत लौट रहे हैं।
मोदी जी की चीन यात्रा के दौरान पश्चिमी प्रचार माध्यमों और चीन -भारत के साझा शत्रु- सभी संचार माध्यमों द्वारा यह खबर शिद्द्त से फैलाई गयी कि चीन ने न सिर्फ 'पीओके' बल्कि पूरा कश्मीर भी मय लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश सहित मानचित्र से गायब कर दिया गया । ये सिर्फ अफवाह ही नहीं थी। याने कि हकीकत में भारत के नक़्शे की सूरत ही बिगाड़ दी गयी । चीन पर आरोप है कि उसने भारत के मानचित्र से कश्मीर ,अरुणाचल और आक्साई चीन का हिस्सा जानबूझकर गायब किया गया। शायद चीनी नेताओं का मकसद यह रहा हो कि इस बहाने ही सही मोदी जी की ख्याति का कुछ तो मानमर्दन किया जा सके। हुआ भी वही। खबर है कि जब भारत के जागरूक मीडिया और जानकारों ने भारत सरकार और विदेश मंत्रालय का इस ओर ध्यानाकर्षण किया तब भारतीय प्रधान मंत्री जी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी प्रधानमंत्री किक्यांग से इस बाबत अपनी विनम्र नाराजगी जाहिर की। तो चीनी नेताओं ने उनसे कुटिलतापूर्वक प्रतिप्रश्न किया कि मोदीजी आपने गुजरात में "वो सब कैसे किया ?" आश्चर्य है कि मोदी जी ने चीनी नेताओं का गुजरात में हुए साम्प्रदायिक नरसंहार वाला व्यंग नहीं समझा। अनुवादक की गलती या कहने-सुनने की चूक जो भी हो किन्तु मीडिया को खबर दे दी गयी कि शी जिनपिंग तो 'गुजरात के विकास की तारीफ में प्रश्न कर रहे थे। यह सब होता रहा इसके वावजूद हुआ कि चीन ने रंचमात्र भी भारत के नक़्शे में अब तक कोई सुधार नहीं किया ।
आजादी के ६८ साल से लगतार चीन के संबंध में कांग्रेस केया सत्ता पक्ष के नेता जो गलती दुहराते आ रहे हैं वही गलती श्री नरेंद्र मोदी ने भी कर डाली है। भारत के नेता हमेशा से ही विदेशों में जाकर अपनी व्यक्तिगत छवि चमकाने के लिए अपने ही वतन की गरीबी , दुर्दशा और पड़ोसियों द्वारा सीमाओं के सतत अतिक्रमण का अरण्यरोदन करते रहते हैं। हमारे नेता एक तरफ तो अमेरिका ,जापान , कोरिया और दुनिया के तमाम साम्राज्य्वादी गिद्धों से प्यार की पेगें बढ़ाते रहते हैं । दूसरी ओर इन के चिर प्रतिदव्न्दी विशालकाय ड्रेगन से सदाशयता की मांग करते रहते हैं। खुद के देश में जो लूट मची है ,जो अव्यवस्था कायम है ,जो शोषण -उत्पीड़न कायम है ,उसकी अनदेखी कर भारतीय नेतागण सत्ता में आते ही विदेशों के सामने अपनी गरीबी , जहालत और पिछड़ेपन का रोना रोने लगते हैं। एक समान सर्वसमावेशी विकास , लोकतान्त्रिक राष्ट्रीय स्वाभिमान , समाजवादी धर्मनिरपेक्ष - राष्ट्रवाद , सामाजिक समता ,सर्व सुलभ न्याय को भूलजाते हैं। भारत जैसे अमीर राष्ट्र की अधिसंख्य निर्धन जनता का प्रधान मंत्री या सत्तासीन नेता दुनिया में यदि इस तरह देश की छवि धूमिल करते रहेंगे तो न केवल रुसवाई बल्कि अपनी जग हँसाई ही करवाते रहेंगे । चूँकि चीन की नीतियाँ और विकास के कार्यक्रम क्रांतिकारी हैं इसलिए वह विश्व शक्ति का दूसरा महत्वपूर्ण ध्रुव बन चुका है.।
चूँकि भारत की कोई ठोस नीति - प्रगतिशील -कार्यक्रम या क्रांतिकारी सोच स्थापित नहीं हो पाई है और इसके नेता केवल अपनी व्यक्तिगत छवि चमकाने में ही व्यस्त रहते हैं ,इसके लिए मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। मीडिया के वित्त पोषण के लिए और सत्तारूढ़ राजनैतिक पार्टी के भरण-पोषण के लिए सत्ता के दलालों भृष्ट पूँजीपतियों से चुनावी चंदा लिया जाता है। चूँकि भृष्ट समाज और भृष्ट लोगों के योग से भारत की भृष्ट राजनीति अधोगामी हो चुकी है, इसलिए भारत चीन से ज्यादा धनवान होते हुए भी दुनिया के निर्धनतम देशों में शुमार किया जा रहा है। हमारे नेता जब विपक्ष में होते हैं तो आसमान के तार तोड़ लाने के वायदे करते हैं ,क्रांतिकारी भाषण देते हैं किन्तु सत्ता में आते ही भूल जाते हैं किकेवल ढपोरशंख बजाना कोई क्रांतिकारी दर्शन नहीं है। यह राष्ट्रधर्म भी नहीं है।
वे अपने शहीदों की वाणी और वह कथन भी भूल जाते हैं जो याद दिलाता है कि ;-
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तदवीर से पहले ,
खुदा वन्दे से ये पूंछे बता तेरी रजा क्या है ?
श्रीराम तिवारी
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