सोमवार, 25 मई 2015

जब मोदी जी ने भारत के अतीत को शर्मिंदगी भरा बताया तो भाई जी खपा क्यों हो गए ?


   मेरे एक पुराने सहपाठी हुआ करते थे । विश्व विद्यालयीन जीवन में ही वे अपने 'जनसंघी 'पिता के प्रभाव में 'शाखाओं ' में जाने लगे थे। मेरी उनसे तब भी  पटरी नहीं बैठती थी। उनके अधिकांस साथी उन्हें भाई जी कहकर ही बुलाया करते ।  कुछ गैरसंघी युवा  उन्हें मजाक में  'चड्डा' कहकर भी बुलाते थे । मुझे बहुत बाद में मालूम पड़ा कि वे जाति  से नहीं बल्कि खाकी नेकर पहनने के कारण 'चड्डा' मशहूर हुए। दरसल जातिसूचक सरनेम तो वे लगाते ही नहीं थे । पिछड़ी जाति  के जन्मना होते हुए भी  वे  कट्टर मनुवादी थे  !उन्होंने अपंना  जीवन सम्पूर्ण निष्ठां से 'संघ' को समर्पित कर दिया।  वे आज भी संघ के  कटटर  समर्थक हैं। स्वाभाविक है कि वे  'संघी' विचारधारा के ही  हैं। वेसे तो वे  मुझसे भी  बहुत प्रेम और स्नेह रखते हैं। उन्हें मुझसे एक व्यक्तिगत शिकायत सदा रही है कि मै एक  कुलीन   ब्राह्मण कुल में  जन्म लेने के वावजूद उनकी  'ब्राह्मणवादी' सोच का सम्मान नहीं करता !  भाई जी ने मुझे  बृहद  संस्कृत वांग्मय,उपनिषद ,कल्याण ,गीता ,तत्त्वचिंतामणि  और  तमाम   पौराणिक 'मिथ' साहित्य  मुफ्त में उपलब्ध करवाया। किन्तु यह सब पढ़ने- घोंटने  के वावजूद  में भाई जी  के काम  न आ  सका।  याने 'संघी ' नहीं बन सका । दीन दयाल  विचार 'समग्र' साहित्य,गुरु गोलवलकर कृत 'विचार नवनीत '  चरैवेति , पाञ्चजन्य,ऑर्गेनाइजर,कमल संदेश  जैसे 'संघ' मुखपत्रों को पढ़ने का सौभग्य  भी मुझे भाई जी के कारण ही मिला।  भाई जी ने  भी बचपन में ही  इन सबका सांगोपांग  अध्यन  कर लिया  था । चूँकि  मैं तर्कवादी और वैज्ञानिक भौतिकवाद  से प्रभावित हुआ, इसलिए  न केवल  'संघ' से  बल्कि हर कौम  हर धर्म -मजहब के तमाम साम्प्रदायिक संगठनों को संदेह की नजर से देखता रहा हूँ।  संसार के सभी धर्मों-मजहबों में व्याप्त पाखंड  उनके काल- कवलित  सिद्धांतों और  निदेशों से असहमत हूँ।
                   इन्ही  भाई जी के  समक्ष   हिन्दुत्ववादी बनाम ब्राह्मणवादी बनाम मनुवादी  'संघ'  को जब  कभी   कोई फासिस्ट या नाजीवादी कहता  है  तो उन्हें बड़ी पीड़ा होती है। वे आवेश में आकर दाऊद इब्राहीम , हाफिज   सईद, लखवी से लेकर बाबर -ओरंगजेब तक  तमाम मध्यकालीन  विदेशी बर्बर आक्रान्ताओं के जघन्य हिंस्र  अपराधों को गिनाने लग जाते हैं। जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है ,तभी से भाई जी लगातार कहते आ रहे हैं कि  " देखना अब पाकिस्तान की ऐंसी - तेंसी  होने वाली है ! अब बनेगा अयोध्या में  भगवान श्री राम लला का भव्य मंदिर !  अब लिखा  जाएगा भारत का सही इतिहास ! कश्मीर में  आइन्दा धारा -३७० नहीं रहेगी ! अब देश का कालाधन और विदेशी बैंकों का कालाधन जल्दी ही गऱीबों के अकाउंट में ऑटोमेटिकली जमा हो जाएगा ! अब हम चीन से  अपनी जमीन वापिस लेकर  रहेंगे ! अब  देश में जनता के सारे काम बिना रिश्वत लिए -दिए समय पर होंगे,अब अच्छे दिन आये हैं ! अब 'नसीबवालो' की सरकार है ! बगैरह बगैरह .......!
                  मोदी सरकार की तारीफ़ के साथ -साथ वे अकारण  ही प्रगतिशील ,धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक वैज्ञानिक भौतिकवाद पर आक्रमण करने लगते  हैं। कांग्रेस ,कम्युनिस्ट , समाजवादी और अन्य गैर 'संघी' विचारधारा  वाले व्यक्तियों को वे पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी  मानते हैं। वे अक्सर लोकतंत्र -न्याय   मीडिया - धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की आजादी को भी कोसने लगते  हैं। जब कभी  कोई उनसे दबंगों - भूस्वामियों - पूँजीपतियों  की मुनाफाखोरी या सार्वजनिक सम्पदा की लूट पर सवाल करता है,माफिया पर सवाल करता है  या  अन्याय से मुक्त होने के लिए सर्वहारा क्रांति  का उल्लेख करता  है तो  भाई जी को मिर्गी आने लगती है। वे 'नमो-नमो' का जाप करने लगते हैं !
                       भाई जी कभी अटलजी के  परम  भक्त हुआ करते  थे। जब १९७१  के भारत -पाक युद्ध में भारत की महान विजय हुयी ,जब बांग्ला देश  का उदय हुआ ,जब संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका के पांच वीटो  नाकाम हुए  , जब तत्तकालीन सोवियत संघ ने  अमेरिका के भारत विरोधी  पांचों  वीटो ख़ारिज कर भारत की इज्जत आबरू बचाई ,  जब इंदिरा गाँधी की कूट नीति और भारतीय सेनाओं के  शौर्य से  बांग्ला देश मुक्ति वाहिनी के अन्नय  सहयोग की कीमत पर भारत की विजय हुई ,जब पाकिस्तान के ९६ हजार फौजियों को  भारतीय सेनाओं के समक्ष हथियार डालने पड़े ,जब तत्कालीन 'जनसंघ' अध्यक्ष श्री    अटल बिहारी बाजपेई ने मुक्तकंठ से तत्कालीन  प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को 'दुर्गा  का अवतार' बताया , तब  भाई जी ने  'अटल वंदना ' छोड़कर  लालकृष्ण आडवाणी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया था। आपातकाल में माफ़ी मांगकर जेल से  बाहर आये भाई जी  'मीसा बंदी' कहलाये !
                                               नब्बे के दशक में  जब श्रीराम लला  का अयोध्या में  मंदिर निर्माण कराने के लिए  ,शाह्वानो  केश बनाम मुस्लिम तुष्टीकरण  को रोकने के लिए , बाबरी मस्जिद बनाम ढांचा ध्वस्त करने के लिए , मंडल को दबोचने और कमंडल के उद्धार के लिए, सिर्फ  दो सांसदों वाली भाजपा  के उद्धार के लिए जब साईं लालकृष्ण आडवाणी ने देश भर में हिंदुत्व का तुमुलनाड किया तो भाई जी भी सिंहनाद करते हुए देखे  गए। उन  रथ यात्राएं  के समय  ' भाई जी ' आडवाणी के  खड़ाऊं उठाऊँ हुआ करते थे। तब  वर्तमान 'परिधान 'मंत्री  जी  भी उन रथारूढ़ आडवाणी की  कृपा कटाक्ष  के लिए लालायित रहते थे।  हमारे ' भाई जी' भी रथ के पथ पर अपने हाथों से नाना प्रकार के पुष्प और रामरज बिछाया करते थे। लेकिन  २०१४ में जबसे देश में  मोदी लहर चली है तबसे भाई जी ने  आडवाणी को छोड़कर 'नमो-नमो' जपना चालू कर रखा है  !

                  हालाकिं  विगत लोक सभा चुनाव के दरम्यान जब अफवाह उड़ी कि मोदी जी के नेतत्व में एनडीए को बहुमत नहीं मिलने वाला। तो भाई जी ने कभी  शिवराजसिंह चौहान , कभी  राजनाथ सिंह , कभी सुषमा स्वराज ,कभी मोहनराव  भागवत और कभी 'केशवकुंज'  के दरवाजे पर मत्था टेकना जारी रखा।  वे सार्वजनिक रूप से  तो सिद्धांतवादी हैं किन्तु व्यक्तिगत रूप से व्यक्तिनिष्ठ ही उनका आराध्य है। वेशक अभी तक तो भाई  जी  मोदी भक्त  हैं। किन्तु यदि कल को मोदी जी का सिंहासन डोलता है  और उनकी जगह किसी और अन्य  'संघनिष्ठ  ' को सत्ता मिलती है तो भाई जी   फौरन अपनी आश्था  की घंटी उसके नाम पर बजाने लगेंगे। इसीलिये  आजकल भाई जी का स्वर पुनः  बदला-बदला सा लग रहा है।  क्या यह किसी खतरे का आभास है ?

                   विगत एक साल में मोदी जी ने देश के लिए क्या- क्या नहीं किया ? दर्जनों विदेश यात्रायें  कीं , जनता से 'मन की बातें'  कीं। हाफिज सईद ,दाऊद और लखवी  जैसें आतंकी भले ही नहीं पकडे जा सके किन्तु  उनके  चर्चे जारी रहे  ! कालेधन  की एक  पाई  भी भारत सरकार को नहीं मिली किन्तु उसे लाने का प्रस्ताव  पारित हुआ ! भले ही 'संघ' के सरपरस्त,-मोहनराव भागवत ,अन्ना- हजारे ,स्वामी रामदेव ,सुब्रमण्यम स्वामी ,प्रवीण तोगड़िया ,आचार्य धर्मेन्द्र तथा हिन्दुत्ववादी कतारों में मोदी जी के कामकाज को लेकर बैचेनी  हो किन्तु अम्बानी-अडानी एवं कार्पोरेट सेक्टर में तो फीलगुड  का जबदस्त माहौल अवश्य रहा  है ! शिवसैनिक  या  हिन्दुत्वादी  भले ही कसमसाते रहें  लेकिन अभी तो मोदी जी के राजयोग  पर खुशनसीबी' कीवसंत आमद है।मोदी जी ने जब चुनावी वादे भूलकर  ,विकास-सुशासन  की तान छेड़ी ,मंदिर और अन्य हिंदुत्ववादी मुद्दे छोड़े  तो भाई जी अब बैचेन हो रहे हैं।  मोदी जी ने जो व्यक्तिगत छवि निर्माण की राह चुनी है उससे  भी भाई जी के तेवर ठीक नहीं लगते। जबसे  मोदी जी ने  विदेशी  धरती पर भारत के अतीत को शर्मिंदगी भरा बताया है  भाई जी अपने आप से ही   बेजा  खपा हो रहे  हैं !
              विगत सप्ताह जब मोदी जी बीजिंग और शंघाई  पहुंचे तो इन' भाई जी '  को मोदी की इस तरह  किसी कम्युनिस्ट देश से   यारी -दोस्ती ही  पसंद नहीं आयी। उन्हें तो मोदी जी की  वह  'हरकत'  भी पसंद नहीं आयी  जिसमें मोदी जी ने किसी सार्वजनिक  मंच से यह  कहा है  [जो  मैंने  केवल इन्ही सज्जन के मुँह  से सुनाहै ] कि 'पहले लोग भारत में जन्म लेने पर शर्मिंदा होते थे ,किन्तु अब [मेरे सत्ता में आने के बाद]गर्व महसूस करते हैं। इन 'संघी भाई'  की पीड़ा यह है कि क्या मोदी जी अब  डॉ मुन्जे,  हेडगेवार  ,गोलवलकर , देवरस, दीनदयाल उपाध्याय  से  ज्यादा समझदार हो गए  हैं ? क्या हम हिंदुत्वादियों और 'संघियों' का यह सनातन सिद्धांत गलत है कि  अतीत में भारत सोने की चिड़िया  हुआ करता था  और हम सभी आर्यपुत्र अर्थात  हिन्दुत्वादी देवपुत्र हैं।

                              भाई जी की व्यथा और  वेदना मुझे भी कदाचित  स्पंदित करने में सफल रही। किन्तु उन्हें चिड़ाने के मकसद से मैं ने जड़ दिया कि  यदि सचमुच मोदी जी ने यह कहा है तो मेँ अब मोदी  जी का मुरीद हूँ और उन  के साथ हूँ ! मैंने उनसे यह भी  कहा कि वैसे  मुझे नहीं मालूम  कि मोदी जी ने वास्तव में क्या कहा ? किन्तु चूँकि आप 'संघ परिवार' से हैं इसलिए हम  आपको  इस  संदर्भ का अधिकृत प्रवक्ता मान लेते हैं।  हाँ  भाई जी से मेने यह निवेदन  भी किया है  कि  हम वामपंथी  सोच के अध्येता,मजदूर ,किसान और प्रगतिशील तबके  के लोग  यह  जरूर मानते हैं कि  वर्तमान पूँजीवादी लोकतंत्र  से अतीत की निरंकुश राजशाही,राजतन्त्र   और  सामंतवाद  बहुत घटिया ,शोषणकारी ,दमनकारी  हुआ करता था।  उस दौर में पैदा होने वाले अन्यायी - अत्याचारी वर्ग के सापेक्ष किसी शोषित-पीड़ित का तत्कालीन  भारत में पैदा होना कोई 'गर्व' की बात तो अवश्य नही थी । यदि यही बात मोदी जी ने कही तो गलत क्या कहा ? पूँजीवादी लोकतंत्र  भले ही शोषणकारी ही है किन्तु इसमें  मेहनतकश आवाम को उचित न्याय और श्रम  का उचित  मूल्य  की मांग उठाने एवं अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार तो मिला। 
            हालाँकि हम सर्वहारा वर्ग के लोग  इससे बेहतर व्यवस्था की कामना करते हैं। यदि मोदी जी का यही आशय है तो मैं  भी मानूँगा कि वे कुछ तो सुधार पर हैं।  भले ही वे  चीन जाकर ही यह इल्हाम हासिल कर सके।  हो सकता है कि  चीन  की आबादी और उसके अनुपात में उसका विराट आकर और तदनुसार उत्तरोत्तर विकाश देखकर   शायद हमारे भारतीय  प्रधानमंत्री -याने हिन्दुत्वादी परिब्राजक मोदी जी अपने काल्पनिक स्वर्णकाल के  मोह से मुक्त होने को  छटपटा रहे  हों ! मोदी जी के  इस इल्हाम परतो  देश को नाज होना चाहिए। यदि 'संघी ' भाई दुखी  हैं तो यह समस्या हिंदुत्व की है  भारत की नहीं !   मोदी जी की भी नहीं !
          
                 लेकिन यदि  मोदी जी का आशय  आजाद भारत के विगत ६५ सालों  के अतीत से  है तो मैं मोदी जी के साथ नहीं बल्कि उस दुखी 'संघी' भाई के दूख में शामिल हूँ ! इसलिए मैंने उसे ढाढ़स  बंधाया और कहा कि आजादी के बाद हमारे देश ने  बहुत कुछ किया है। और अभी उससे भी बहुत जयादा करने को बाकी  है।   आर्थिक -सामजिक असमानता का मुद्दा और भृष्टाचार का मुद्दा  ज्वलंत है।  मोदी जी ने जो भारतीय अतीत पर शूल चलाये हैं उससे आहत  उन संघी मित्र  को मैंने याद दिलाया कि  भले ही हम शकों से हारे  ! भले ही हम हूणों से हारे ! भले ही हम तुर्कों से हारे ! ,भले ही हम बिन-कासिम ,गजनबी-गौरी से हारे ,भले ही हम मंगोलों [मुगलों] पठानों -अफगानों से हारे ! भले ही हम नादिर शाह, अब्दाली और  चंगेजों से हारे ! भले ही हम फ्रेंच -पुर्तगीज-डच और अंग्रेजों से हारे ! भले ही हम  १९४८ में कबाइलियों से हारे !  भले ही हम १९६२ में हम चीन से हारे ! किन्तु १९७१ में तो भारत ने सारे संसार को दिखा दिया कि  वो जीत भी सकता है ! क्या 'संघियो' को नहीं मालूम कि   भारत को यह स्वर्णिम ऐतिहासिक  जीत इंदिरा गांधी के नेतत्व में मिली थी ! क्या मोदी जी भूल गए कि   इंदिरा गाँधी  को 'दुर्गा का अवतार' किसने  कब और क्यों कहा था ?

                                    वेशक उस समय 'सोवियत यूनियन' का भी बेजोड़ सहयोग हमें मिला था।  लेकिन इस जीत में 'नमो' का या उनका कोई हाथ नहीं था जो  भारत के अतीत को स्वर्णिम बताया करते हैं। मोदी जी ने यदि भारतीय सामन्तकालीन अतीत  की बात की है तो मैं उनसे सहमत हूँ। किन्तु यदि वे केवल आजाद  भारत के अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों से अपने आपको  बेहतर सिद्ध करने के लिए  ६५ साल के भारत का अतीत ही 'जन्म न लेने योग्य' बता रहे हैं तो मैं उन्हें सुझाव दूंगा कि  हमेशा  याद रखना चाहिए  कि १९७१ में डेढ़  लाख पाकिस्तानी फौजों ने किस प्रधानमंत्री के सामने हथियार डाले थे ।  भारत में  'दुघ्ध क्रांति'  'संचार क्रांति ''हरित क्रांति ' को सम्पन्न हुए १५ साल हो चुके हैं।  विगत ६५ साल में भारत ने अपने  रक्षा क्षेत्र में ,पनडुब्बियों में और अंतरिक्ष में जो उपलब्धियां हांसिल की हैं क्या वे सब पिछले एक साल में मोदी जी  की हैं ?  वे   उस उचाई पर सौ जन्म में नहीं पहुँच पायंगे जिस पर बकौल अटल बिहारी बाजपेई 'दुर्गा  'याने इंदिरागांधी पहुंच चुकी थी।
                 भाई जी की मौन स्वीकरोक्ति बता रही  थी कि 'संघ' परिवार द्वारा उन्हें  वास्तविक तथ्यगत जानकारियों के बरक्स  भ्रामक और काल्पनिक इतिहास ही अब तक पढ़ाया जाता रहा है।

                             श्रीराम तिवारी 

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