भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जब चीन समेत अधिकांस पूर्व 'एशियन टाइगर्स' देशों के नेताओं के साथ गलबहियाँ डालकर सेल्फ़ी ली रहे थे ,जब उन्होंने चीन,मंगोलिया और कोरिया के बौद्ध मंदिरों और पगौडों की रणनीतिक एवं भावात्मक रोमांचक यात्राएँ सहर्ष सम्पन्न की ,तब पश्चिम के धनि-मानी देशों की छाती पर सांप लोटने लगे ।विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष विशेष रूप से चिंतित होने लगे । उन्हें लगा कि मोदीजी की "लुक ईस्ट एंड एक्ट ईस्ट' पालिसी से भारत का भला भले ही न हो. किन्तु उसका विशाल मध्यवित्त - बाजार पश्चिमी लुटेरों सम्पन्न राष्ट्रों के हाथों से फिसलकर साम्यवादी चीन के हाथों में जरूर चला जाएगा !
अमेरिकी सम्राज्य्वाद के पिठ्ठूओं एवं यूएनओ को भी इस भयानक गर्मी में ठंड लगने लगी । जब मोदी जी चीन में १७ सूत्री समझोते पर हस्ताक्षर करने जा रहे थे , तो पेंटागन से लेकर विश्व बैंक तक और टाइम्स से लेकर 'द इकोनॉमिस्ट मेग्जीन' तक और 'संघ' के बौद्धिकों से लेकर आचार्य धर्मेन्द्र तक सभी अपने समवेत स्वर में मोदीजी को याद दिला रहे थे कि उन्हें चीन से दूर ही रहना चाहिए । क्योंकि चीन तो आपका दुश्मन है। चीन ने तो आपकी जमीन हड़प ली। चीन तो पाकिस्तान से प्यार करता है। चीन ने तिब्बत जीम लिया। चीन का भारत के प्रति व्यवहार शत्रुतापूर्ण है। इसीलिये मोदी जी आप तो फ़क्त हमारे याने यूएस - अमेरिका ,फ़्रांस ,जर्मनी - यूरोडॉलर या पेट्रोडॉलर ताकतों के चंगुल में ही सदा-सदा निमग्न रहो।
याने हमारे वित्त्तीय गुलाम बने रहो ! हमसे याने पश्चिम से कर्ज लेते रहो। पहले हम [ पश्चिमी राष्ट्र] आपको मर्ज देंगे फिर उसके निस्तारण के लिए कर्ज देंगे। इसी सोच के वशीभूत होकर विश्व पूँजीवादी ताकतों ने मोदी जी की चीन यात्रा के दरम्यान 'संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मार्फत भारत के लोगों को डराया। मोदी जी को भरमाया,सहलाया और भाजपा नेताओं को याद भी दिलाया कि आप लोग नाहक ही चीन की ओर या 'पूर्व' की ओर देख रहे हो। आपको तो सिर्फ पश्चिम की ओरही देखना है।इसके साथ ही यूएनओ की ओरसे यह भी प्रचारित किया गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से उभरने वाली है।यूएनओ का ततसंबंधी आकलन और आंकड़े भी जग -जाहिर किये गए। बताया जा रहा है कि २०१५-१६ में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा। यह सुखद सूचना पाकर हम प्रमुदित होने को ही थे कि आरवीआई गवर्नर श्री रघुराम राजन बोल पड़े कि अर्थ व्यवस्था में निवेश के आंकड़े भ्रामक और कपोलकल्पित हैं। उन्होंने तो नेताओं और सरकार को आगाह भी किया कि वे वोट कबाड़ने के चक्क्र में बढ़ -चढ़कर लोक लुभावन घोषणाओं से बचें। जो लोग यूएनओ की खबरों से गदगदायमान हुए वे रिजर्व बैंक गवर्नर की वास्तविक सूचना से निराश हो गए।
जिन्हे अपनी दुरवस्था का ज्ञान नहीं ,जिन्हे किसान आत्महत्या पर कोई मलाल नहीं , जिन्हे देश के अंदर डगर-डगर फैली घूसखोरी और अव्यवस्था का एहसास नहीं ,जिन्हे डॉलर के सापेक्ष तेजी से गिर रही रूपये की कीमत का ख्याल नहीं और जिन्हे अनाबृष्टि से बरबाद देश की खेती नहीं दिख रहीं वे मंदमति ही इस वक्त किसी खामख्याली में 'फील गुड महसूस' कर सकते हैं। जिन्हे अपने हितों की परवाह है ,वे उन्नत -विकसित पश्चिमी राष्ट्र तो केवल अपने गए -गुजरे उत्पादों की बेचवाली के लिए हलकान हो रहे हैं। ताकि आसन्न आर्थिक मंदी उनका गला न घोंटे दे ! इसीलिये वे अंतर्राष्ट्रीय बाजार अक्षुण रखना चाहते हैं। चूँकि उनके अपने देश में या यूरोप -अमरीका में तो बाजार 'संतृप्त' हो चुका है ,इसलिए अब वे एशिया के पिछ्डे एवं विकाशशील - उभरते बाजार पर गिद्ध निगाहें डाले हुए हैं। उनके गए-गुजरे आउट डेटेड उत्पादों की मांग अब उन्नत राष्ट्रों में नहीं रही। रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में गलाकाट प्रतिश्पर्धा का दौर है।
ऐंसी स्थिति में भारत का उभरता हुआ विराट बाजार कहीं पश्चिम को छोड़ पूर्व के हाथों में न आ जाये ,इसलिए आईएमएफ और विश्व बैंक ने बड़ी चतुराई से मोदी जी की पूर्वी देशों की यात्राओं के एन वक्त पर 'यूएन विश्व आर्थिक-सांख्यिकी विश्लेषण एवं संभावनाओं ' नामक परिपत्र जारी किया। जिस में विश्वकी अर्धवार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए खास तौर से भारत की अर्थ व्यवस्था का भविष्य उज्जवल बताया गया है। इसमें भारत की आगामी बजट सत्र के लिए जीडीपी ग्रोथ को 7. 7 तक पहुँचने की संभावना व्यक्त की गयी है। बड़ी चालाकी से चीन की विकाश दर इससे कुछ कम दर्शायी गयी है। यह खबर पढ़ने के बाद किसी भी सच्चे देशभक्त भारतीय का मन मयूर नाचने लगेगा । किस वतन परस्त का मन मयूर नही गाने लगेगा - "भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है ?" में भी अपने पहले काव्यसंग्रह -अनामिका की 'बारहमासा' शीर्षक कविता की दो पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ !
पुरवा गाती रहे ,पछुआ गुन -गुन करे ,मानसून की जरा मेहरवानी हो !
यमुना कल-कल करे ,गंगा निर्मल बहे ,कभी रीते न रेवा का पानी हो !
श्रीराम तिवारी
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