गुरुवार, 28 मई 2015

आनन्दम् इंदौर को नमन !



           देश के सामाजिक ,साहित्यिक ,राजनैतिक और आर्थिक नीति संबंधी सरोकारों के बरक्स  हमारे इंदौर    शहर में  'अभ्यास मंडल'  के  भगीरथ प्रयत्न  और  ततसंबंधी  वैचारिक  विमर्श के आयोजन बड़े सार्थक और सुविचारित हुआ करते हैं। लेकिन इस  अभ्यास मंडल  से इतर भी अन्य अनेक संस्थाएं इस दिशा में कार्यरत हैं।  उन्ही में से एक है वरिष्ठजनों' की ख्यातनाम संस्था 'आनंदम' इंदौर। विगत कुछ वर्षों में ही इस नवोदित संस्था ने  अपनी चौमुखी  सार्थक भूमिका से सभी का ध्यानाकर्षण किया है।इसके प्रमुख कर्ता -धर्ताओं  में आदरणीय  सर्वश्री  नरेन्द्रसिंह जी ,कैलाशचन्द्र  पाठक जी ,सूरज  खण्डेलवाल जी ,सुरेन्द्र जैन साहब ,वासुदेव लालवानी जी  ,बिल्लोरेजी,कांति  भाई, ज्योत्स्ना जी, मांडगेजी , डॉ करुणा शर्माजी  ,डॉ रमा शाश्त्रीजी बड़जात्या जी ,पटैरिया जी ,और एम के मिश्र जी है। 'आनंदम' के द्वारा न केवल वरिष्ठ नागरिकों  के  हितों की देखभाल की जाती है बल्कि यहाँ  समाज के हितों ,शहर के हितों और देश के हितों की भी परवाह की जाती है।आनंदम इंदौर के मार्फ़त   तमाम किस्म  की  साहित्यिक , शैक्षणिक  ,वैचारिक गतिविधियों  और सृजनशील  सामाजिक सरोकारों  को साधने के प्रयास भी किये जाते हैं । अशक्त  महिलाओं और  निर्धन बच्चों   के  हितार्थ  शशक्तिकरण  के प्रयास निरतंर जारी रहते हैं। ये तमाम बहुउद्देश्यीय और बहुआयामी जनहितैषी कार्य  बिना किसी सरकारी इमदाद के   आनंदम  इंदौर के  स्वेच्छिक अनुदान और श्रमदान से किये जा रहे हैं। आनंदम इंदौर के संचालक और सभी सदस्य  हर किस्म की पापुलरटी  और हर किस्म की  निहित स्वार्थी  भावनाओं से परे  हैं ।

            आनंदम  के मंच से समूह - देशाटन ,योगशिवर,एवं वरिष्ठजनों के  दैनिन्दिन और स्वास्थ  संबंधी सरोकारों को बखूबी साधा जाता है। इस  मंच से जैविक खेती ,प्राणिक हीलिंग ,जन -सफाई अभियान सतत जारी रहते हैं। भूकम्प,प्राकृतिक -आपदा तथा निर्धन -गरीब-मजदूर वर्ग के लिए वस्त्र  इत्यादि के मद में सभी  सदस्यों  द्वारा  यथा संभव आर्थिक सहायता का भी प्रयास किया जाता है।  प्रत्येक  बुधवार को आध्यात्मिक सतसंग ,गीत ,संगीत , भजन और माह के प्रत्येक दूसरे शनिवार  को समग्रगामी विषयों पर  सार्थक 'परिचर्चा और गोष्ठी ' आयोजित की जाती  है।'आनदंम ' के मंच से  हर महिने  के तीसरे शनिवार को 'कथा -कहानी-कविता -अनुभव आपके' नामक  सुरूचपूर्ण - काव्यात्मक  कार्यक्रम का भी सतत आयोजन किया जाता है।

                 इन गोष्ठयों एवं परिचर्चाओं की खूबी यह होती है कि ये हर किस्म के मिजाज़ एवं रूप रंग से सरावोर हुआ करतीं हैं। यहाँ किसी एक खास  विचारधारा या सिद्धांत की प्रतिबध्दता वाला फंडा नहीं है। सभी को अपनी तार्किक प्रस्तुति के लिए बराबरी का अवसर दिया जाता है।यदि आप किसी खास विचारधारा से प्रेरित नहीं हैं या  या किसी खास राजनीतिक  विचारधारा से संबद्ध हैं  भी हैं तो भी आप का  इस 'आनंदम' में हार्दिक स्वागत है। यह 'आनंदम ' की अद्भुत विशेषता है कि यदि आप आदर्श वादी  सहृदयता से ओतप्रोत हैं, यदि  आप रंचमात्र भी सुहृदय है तो इस  'आनदंम ' में आप को वह सब मौजूद है, जो किसी भी सीनियर सिटीजन को आनंद से जीने के लिए आवश्यक है।   चूँकि यहां प्रत्येक आमंत्रित विशेष वक्ता  अथवा सदस्य वक्ता को  अपने तयशुदा सब्जेक्ट  पर बहुत अल्प और सीमित  समय में ही   बात रखनी होती है। इसीलिये आम तौर  पर  गोष्ठियों के चयनित विषय पर समयाभाव के कारण विमर्श का अधूरापन खटकता है। कुछ विषय जो सामाजिक या राष्ट्रीय हित में    भी बहुत महत्वपूर्ण हुआ करते हैं और जिन  पर किसी खास विशेषज्ञ -वक्ता -अध्येता की खासी  विज्ञता हुआ करती है उसके लिए भी समय सीमा का बंधन होता है।

  हालाँकि  जब  एक से अधिक वक्ता या प्रस्तोस्ता हों ,जब सभी सदस्यों को अपनी बात कहने की अधीरता हो तब भी  कुशल  संचालन से  प्रत्येक वक्ता  को  पांच से सात मिनिट का समय आराम से  दिया जा सकता  है।   लेकिन   कभी-कभार किसी  धरती पकड़  सूत्रधार   की वाचालता के  कारण  अनावश्यक समय सिर्फ 'विषय प्रवर्तन' में ही जाया कर दिया जाता है।  इस तरह के अपरिपक्व  विषय प्रवर्तन  में सदस्यों का अमूल्य  समय जाया करना उनके साथ नाइंसफी जैसी ही है। विशेकर तब जबकि उस विषय का कोई खास विशेषज्ञ विषय को  वैज्ञानिकता और तार्किकता से प्रस्तुति  के लिए तैयार  हो ! बाज मर्तबा पेशेवर व्यक्ति भी समयाभाव के कारण अपनी बात कहने से वंचित  रह जाता  है। प्रायः एक-डेढ़  घंटे  की इन  'परिचर्चाओं ' का दो तिहाई वेश्कीमती  समय संचालन करता के सम्बोधन में ही चला जाता है।
                       बिना तैयारी वाले आकस्मिक वक्ता भी अनावश्यक  समय  जाया करते हैं  वे संदर्भित  विषय से परे अनावश्यक  अनर्गल प्रलाप के  आदि  होते  हैं। इनके कारण भी अन्य सुधि वक्ताओं को अपनी बात या पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर  नहीं  मिल पाता । श्रोताओं को भी अपनी शंकाओं- जिज्ञाषाओं की अभिव्यक्ति केलिए   पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। इसीलिये  आनंदम  के साथियों को मेरा सुझाव है कि  इन परिचर्चाओं की आधी  -अधूरी प्रस्तुति से पूर्व संबंधित विमर्श का विस्तृत आलेख  तैयार  कर  'Anandamindore पर पोस्ट करें।  ताकि उनके समग्र आलेख को सभी सदस्य अपनी -अपनी रूचि और सुविधा से पढ़ सकें।  हरेक परिचर्चा या गोष्ठी से संबंधित  ये आलेख  फेस बुक ,ट्विटर एवं  समग्र सोशल मीडिया पर उपलब्ध  कराये  जाएँ  तो सोने में सुहागा।  अथ -शुभस्य शीघ्रम !

                                                                   श्रीराम तिवारी

                                                           
 

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