यदि आप सुबह की शुरुआत बीते हुए कल के किसी झगड़े या कलह से करेंगे तो आप का आज का दिन बिना
उमंग -उत्साह के ही बीत जाएगा। इस नकारात्मक स्थति में आने वाले कल की सुबह खूबसूरत कैसे हो सकती
है ? यदि आप असत्य और पाखंड की भित्ति पर देश की ,समाज की या खुद के घर की बुनियाद डालेंगे तो
इसकी क्या गारंटी है कि आपके सपनों का महल ताश के पत्तों की मानिंद अचानक ही बिखर नहीं जाएगा ?
एक साल पहले भारत की १६ वीं लोक सभा के चुनाव में एनडीए याने भाजपा को नरेंद्र मोदी के नेतत्व में
अप्रत्याशित महाविजय प्राप्त हुयी थी। अपने धुआँधार चुनाव प्रचार और सुविचारित साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण
के बलबूते पर हुई बम्फर विजय के बरक्स मोदी जी ने भारतीय बहुसंख्यक हिन्दू जन मानस सहित तमाम
अधिसंख्य जनता के मनोमष्तिष्क में सुशासन ,विकास और भृष्टाचार विहीन सुराज का दावा किया था।
महज एक साल में ही उनके हाथों के तोते उड़ने लगे हैं । हर राज्य सरकार को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। यहाँ तक की खुद भाजपा के अधिपत्य वाली राज्य सरकारों को भी बार-बार माँगने पर भी फंडिंग नहीं हो पाई है।
मोदी जी द्वारा आम चुनावों में जनता को दिखाए गए सब्जबाग अब भाजपा के गले पड़ने लगे हैं। हीरोपंती वाली लहर अब जन -आक्रोश की सुनामी में बदलने को बेताब है। मोदी सरकार के कामकाज को लेकर केवल किसान -मजदूर या मध्यमवर्ग में ही आक्रोश नहीं है । बल्कि अम्बानी-अडानी जैसे दो-चार 'खुशनसीब' को छोड़कर अधिकांस उद्यमी और व्यापारी भी इस सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं । लोक सभा और राज्य सभा में विपक्ष का तो मोदी सरकार से खुश होने का सवाल ही नहीं है। किन्तु अंदरखाने की हलचल है कि विगत एक साल में हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर कुछ नहीं किये जाने के कारण मोहन भागवत और 'संघ'सहित उसके अनुषंगी भी मोदी सरकार से नाराज हैं । जिन्हे इस तथ्य बात पर यकीन ने हो वो तोगड़िया या आचार्य धर्मेन्द्र से तस्दीक कर सकते हैं ।
स्वामी निश्चलानंद , शंकराचार्य स्वरूपानंद ,सुब्रमण्यमस्वामी , गोविंदाचार्य,अन्ना हजारे , स्वामी रामदेव , ओ राजगोपाल हर कोई इस सरकार से नाखुश है। खैर ये तो दूर के रिस्तेदार हैं किन्तु आड़वाणी ,राजनाथ ,सुषमा ,गडकरी और वसुंधरा तो उसी खानदान के ही हैं ! फिर इन सबको कोई न कोई प्रबलम क्यों है ? यदि सब कुछ ठीक ठाक है । विकाश और सुशासन है तो ये सभी मोदी जी से खुश क्यो
२ ६ मई -२०१५ को भारत की वर्तमान 'मोदी' सरकार को सत्तारूढ़ हुए ठीक एक साल
पूरा हो रहा है । विगत एक साल पहले वर्तमान सत्तापक्ष याने 'मोदी सरकार' को ऐतिहासिक रूप से प्रचंड
बहुमत प्राप्त हुआ था । देश के नीम दक्षिणपंथी बुर्जुआ और साम्प्रदायिक तत्वों के अपावन गठजोड़ की इस
इकतरफा विजय में यूपीए-२ की घोर असफलताओं की महती भूमिका प्रमुख रही है।हालाँकि यूपीए और एनडीए के वर्गीय स्वार्थों में साम्प्रदायकता का एक महीन सा फर्क ही है , वरना आर्थिक नीतियों में तो ये दोनों ही सहोदर हैं। इसीलिये कार्पोरेट जगत की चरम मुनाफाखोरीके अलम्बरदार भी हैं। पूँजीवाद से प्रेरित विदेशी पूँजी और उसकी क्षुद्र आकांक्षाओं की पूर्ती के लिए मोदी सरकार ज़रा ज्यादा समर्पित हैं।
अपनी निर्मम पराजय के उपरान्त राजनैतिक रूप से हासिये पर आ चुकी कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी अब भले ही किसान -मजदूर के पक्ष में वकालत करते दिखाई दे रहे हैं ,वरना यूपीए के १० साल के राज में तो उनकी यह बानगी कभी कहीं भी देखने को नहीं मिली । उलटे हुड्डाजी के हरियाणे में तो किसानों की जमीने छीनकर [जीजाश्री] रावर्ट वाड्रा को ही समर्पित की जाती रहीहैं । यह उदाहरण तो उस हांडी का एक अदना सा चावल मात्र है वरना मनमोहनसिंह की यूपीए सरकार तो भृष्टाचार की खीर मलाई बांटने के लिए दुनिया भर में बदनाम रही है।
यूपीए के भृष्टतम निजाम और आकंठ महँगाई से त्रस्त जनता के दिलों में उम्मीदों के दीप जलाकर ,जातीय -साम्प्रदायिक चासनी पिलाकर ,हिंदुत्व की दूरदशा पर किंचित मगरमच्छ के आंसू बहाकर , आवाम को विकास और सुशासन के सपने दिखाकर ,युवा वर्ग को लच्छेदार मुहावरों में बरगलाकर मोदी जी , एनडीए और भाजपा द्वारा विगत एक बर्ष पूर्व सत्ता हस्तांतरण किया गया था ।
साल भर तक बाद चौतरफा असफलताओं से जनता का ध्यान डायवर्ट करने के निमित्त
योजनाओं और कार्यक्रमों के बरक्स पूरा साल गुजरने के बाद अब कालेधन का अध्यादेश रुपी झुनझुना बजाया जा रहा है। अब एक नए 'महाझून्ठ' का सहारा लिया जाता रहा है। विगत एक साल की उपलब्धियों का सार संक्षेप यह है कि प्रधान मंत्री जी ने विदेशों में भारत की छवि को बुरी तरह धूमिल किया है।भारत के गौरवशाली अतीत को स्याह और भारत को 'गन्दा' देश निरूपित किया है। खुद की वर्चुअल इमेज और वैश्विक पहचान बनाने के लिए इस निर्धन राष्ट्र का अरबों रुपया हवाई यात्राओं और प्रधानमंत्री की तीर्थ यात्राओं में बर्बाद किया गया है । विदेशों में देश को कंगाल और बीमार बताया गया है और इन्ही यात्राओं के बहाने अपना व्यक्तित्व महिमा मंडित किया जाता रहा है। विगत वर्ष सिर्फ'मन की बातें ' ही होती रहीं हैं। कभी हवा में बातें - कभी
जमीन पर बातें , कभी समुद्र में बातें , कभी भूटान में बातें ,कभी आस्ट्रिलिया में बातें ,कभी जापान में बातें , कभी कनाडा में बातें , कभी जर्मनी -फ़्रांस - इंग्लैंड में बातें , कभी चीन में बातें ! मोदी सरकार की विगत एक साल की उपलब्धि - बातें ! बातें !! बातें !!!. सिर्फ बातें ! केवल लच्छेदार बातें ही -आवाम के कानों में गूँज रही हैं।
शायद बातों का वर्ल्ड रिकार्ड बनाया जा चुका है। लेकिन बातों का नतीजा अब तक केवल ठनठन गोपाल ही है। अपने पूर्ववर्तियों की गफलत , चूक-नासमझी और आपराधिक कृत्यों के कारण नाराज जनता ने मोदी सरकार कोएक साल पहले सत्ता में पहुँचाया था। किन्तु इस प्रचंड राजनैतिक महाविजय के वावजूद, हर तरह से निष्कंटक - निरंकुश सत्ता हासिल करने के वावजूद ,भारत की यह अब तक की सबसे असफल और निकम्मी सरकार साबित हुयी है। वैसे भी जो लोग भरम फैलाकर सत्ता में आ जाते हैं उनसे किसी भी तरह के सकारात्मक बदलाब ,सुशासन या क्रांतिकारी विकाश की उम्मीद करना नितांत मूर्खता ही है। ! यदि आप साल भर तक केवल अपने पूर्ववर्तियों की असफलताओं का या उनके गिरते राजनैतिक जनाधार का दुनिया भर में सिर्फ ढिंढोरा ही पीटते रहे हैं ! यदि आप अपनी व्यक्तिगत खुशनसीबी पर विगत साल भर केवल इतराते ही रहे हैं ! यदि आपने देश में अभी तक एक फुट भी नयी रेललाइन नहीं बिछाई ! यदि आपने देश के लाखों गाँवों में से कहीं भी एक कुंआँ भी नहीं खोदा ,यदि सिचाई या शुद्ध पेय जल की व्यवस्था नहीं की ! यदि आप कालेधन का एक रुपया भी देश में नहीं ला पाये , यदि आप किसानों को आत्महत्या या बेमौत मरने से नहीं रोक पाये , यदि आप कश्मीर में अमन नहीं ला पाये , यदि आप राम लला का मंदिर नहीं बना पाये , यदि आप घोंगालगांव [निमाड़]के जलमग्न हजारों किसानों के आंसू नहीं पोंछ पाये , यदि आप राज्यों के बीच जल बटवारे का न्यायिक निर्वहन नहीं कर पाये , यदि आप बलात्कार ,हत्या और अपराध पर नियंत्रण नहीं कर पाये , यदि आप पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी हाफिज सईद तो क्या आपने लाडले दाऊद को भी वापिस नहीं ला पाये , यदि आप श्रीलंका ,नेपाल बांग्लादेश के सामने लगातार झुकते रहे हैं, यदि आप चीन की चिरौरी करते रहे और उसकी दादागिरी के सामने खीसें निपोरते रहे। यदि आप किसी भी विषय पर देश की जनता का दिल नहीं जीत पाये तो आने वाले ४ साल में क्या आसमान के तारे तोड़ लेंगे। विगत एक साल के कार्यकाल को 'मोदी उवाच' वर्ष नाम दिया जाना चाहिए !
प्रचंड बहुमत है तो यह सरकार ५ साल अवश्य चल जाएर्गी। लेकिन सत्ताधारी नेतत्व को नहीं भूलना चाहिए कि ''जिन्दा कौम पांच साल इंतज़ार नहीं करती " । जो लोग इतिहास की भूलों से कोई सबक नहीं सीखते और केवल प्रतिगामी प्रयोग करने के फेर में रहते हैं ,उनको न तो 'माया मिलती है और न राम ! जिन्हे लगता है कि बाकई अच्छे दिन आ गए हैं उनसे निवेदन है कि अपने बचत खाते में आये काले धन में से थोड़ा सा उन भृष्ट अफसरों और मंत्रियों को जरूर दें जिनकी छुधा अभी भी शांत नहीं हुई है ? यदि अच्छे दिन आये हैं तो बच्चों का रिजल्ट खराब क्यों आ रहा है। किसान आत्म हत्या क्यों कर रहे हैं ?कुकिंग गैस की किल्ल्त क्यों है ?युवाओं को काम क्यों नहीं मिल रहा है ?
श्रीराम तिवारी
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