मंगलवार, 30 जुलाई 2024

बेहतर वक्त का इंतजार मत कर!

 जब मैं मरूंगा तो तू मेरे सपरिजनों से दुःख जताएगा! उनसे मिलने आएगा और तब मुझे पता भी नही चलेगा, तो यूं अभी आ ना,मुझ से मिलने।

-जब मेरी मृत्यु होगी तो तू मेरे सारे गुनाह माफ कर देगा, जिसका मुझे पता भी नही चलेगा, तो आज ही माफ कर दे ना।
-जब मेरी मृत्यु होगी तो तू मेरी कद्र करेगा,मेरे बारे में अच्छी अच्छी बातें कहेगा, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा,तो अभी आकर बोल ना!
-जब मेरी मृत्यु होगी तो तुझे लगेगा कि काश इस इंसान के साथ कुछ वक़्त बिताया होता, तो अच्छा होता ! तो आ ना,आज ही बैठ ना मेरे साथ ।
-इसीलिए कहता हूं कि किसी और बेहतर वक्त का इंतजार मत कर! इंतजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है ।

इस श्रेणी के नास्तिक महान होते हैं!

 यदि कोई व्यक्ति या नेता अपने आपको नास्तिक समझता है, तो तीन बातें हो सकती हैं! एक तो यह कि शायद वह उच्च कोटि का दर्शनशास्री है, अध्यात्मवाद योगशास्त्र का अध्येता है, ईमानदार कठोर परिश्रमी है! बुद्ध महावीर की मानिंद चरम मानवतावादी है! इस कोटि के लोग ईश्वर के होने या न होने पर कोई माथा पच्ची नहीं करते! इस श्रेणी के नास्तिक महान होते हैं!

इतिहास के हर दौर में बुद्ध,महावीर, पायथागोरस,आर्क मिडीज, सुकरात,रूसो,एमानुएल काण्ट, कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक ऐंगेल्स,नीत्शे,फायरबाख, सिग्मंड फ्रायड, गैरी बाल्डी,लेनिन,स्टालिन,फीडेल कास्त्रो,चे ग्वेरा भगतसिंह जैसे नास्तिक सदा से होते रहे हैं ! भारत का संविधान ऋषि मुनियों या साधू संतों ने नहीं लिखा, बल्कि हमारा संविधान परम नास्तिक पं जवाहरलाल नेहरू की सोच और संविधान सभा के प्रस्तावों को संपादित करने वाले बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर परम नास्तिक थे! बौद्ध दर्शन में दीक्षित होने से पहले भी वे अपने कट्टर नास्तिक पेरियार के सानिध्य में नास्तिक ही थे!
भारतीय संविधान वास्तव में ब्रिटिश संविधान की सार वस्तु पर आधारित है! ब्रिटिश संविधान को बनाने में पोप के घोर बिरोधी नास्तिकों,वैज्ञानिकों ,अर्थशास्त्रियों ने,चर्च विरोधी ताकतों ने ही अपने सम्राट से लड़ते हुए, सर्वोच्च धर्म गुरु पोप से (ईसाई धर्म) पंगा लेते हुए बारहवीं शताब्दी में*मेग्नाकार्टा*के रूप में ब्रिटिश पार्लियामेंट को संविधान का आकार दिया! ब्रिटिश पार्लियामेंट ने लगभग सारे विश्व को अपना संविधान प्रदत्त किया! भारतीय संविधान का उदगम इसी ब्रिटिश संविधान से हुआ है! इतना लिखने का लब्बोलुआब ये है कि भारतीय संविधान नास्तिक बौद्धिकता का प्रतिनिधित्व करता है! इसीलिए धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणतंत्र हमारे संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत हैं!
नास्तिक होने की दूसरी अहर्ता यह हो सकती है कि जो योगेश्वर महादेव की तरह वीतरागी है,सांख्यशास्र रचयिता कपिल मुनि की तरह पदार्थवादी है, राजा जनक-महर्षि अष्टावक्र और योगेश्वर श्रीकृष्ण की तरह स्वयं को ईश्वर तुल्य बना लेता है! झेन' कन्फ्युशियस की तरह-अज्ञात ईश्वरीय सत्ता की बनिस्पत जीव माया के भेदाभेद से परे बिना किसी जोग जग्य तप ज्ञान के खुद ही जगत वंदनीय हो जाते हैं ! कालांतर में वे ईश्वर जैसा सम्मान पाते हैं! वे अपने से पृथक किसी और सत्ता को नहीं मानते!शिव की नजर में जिस तरह देव -दानव सभी की बराबर होती है, उसी तरह इन आधुनिक श्रैष्ठ नास्तिकों को ईश्वर की नहीं, बल्कि प्राणीमात्र की चिंता रहती है और इस धरती को भी बचाने की फ़िक्र रहती है!
नास्तिकता की तीसरी अहर्ता यह है कि जो अपढ़ कुपढ़ अंधविश्वासी हैं, धर्मांध हैं, आतंकी कसाब की तरह चंद रुपयों की खातिर मरने मारने को तैयार हैं ,भक्ष अभक्ष में भेद नहीं करने वाले मजहबी फिरकापरस्त, मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वाले, ड्रग्स रैकेट,खनन माफिया,उग्र पत्थरबाज,मास लिंचड़, रिस्वतखोर,धर्म को राजनीति का हथियार बनाने वाले तमाम लोग, वे चाहे कितने ही तीर्थ यात्रा और गंगा स्नान कर लें, कितने ही यज्ञ भंडारे कर लें, किंतु वे निकृष्ट जीव तब तक नास्तिक ही हैं,जब तक वे ईश्वरीय संदेशों का अनुशरण नहीं करते!

कृपया लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को काम करने दें।

 श्री राहुल गांधी (नेता प्रतिपक्ष) को अनुभवी भूतपूर्व सैनिक महिला द्वारा बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा गया पत्र। कृपया इसे पढ़ें और प्रसारित करें।

विद्या सुब्रह्मण्यम:
श्री राहुल गांधी जी,
संसद में विपक्ष के नेता (एलओपी) का पद ग्रहण करने पर हार्दिक बधाई।
54 वर्ष की आयु में यह आपकी पहली सरकारी नौकरी है।
आपकी आयु में मैं सेना से सेवानिवृत्त हुई थी।
मेरी पहली नौकरी 15,500 फीट की ऊँचाई पर एक आउट पोस्ट पर थी, जहाँ भारत, चीन और भूटान की सीमाएँ मिलती हैं (ट्राईजंक्शन)।
आप भाग्यशाली हैं कि आपका जन्म ऐसे परिवार में हुआ, जहाँ आप आवेदन कर सकते थे और सीधे सांसद का पद प्राप्त कर सकते थे।
मैं एक गैर-राजनीतिक अनुभवी हूँ और इसलिए मेरे विचार भारत के बेहतर भविष्य के लिए उम्मीदों वाले एक आम आदमी के विचार हैं।
भारत के लोगों ने वोट देकर आपकी पार्टी को 99 सीटें दीं।
क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं थी जिसने आपकी पार्टी की सीटों की संख्या को लगभग दोगुना कर दिया और आपको एलओपी के पद के योग्य बना दिया?
फिर आपको क्यों लगता है कि लोकतंत्र से समझौता किया गया है और इसे बचाने की जरूरत है? क्या आपके लिए लोकतंत्र का मतलब सिर्फ अपनी पार्टी और परिवार के हित से है? कृपया भारत की जनता के फैसले का अपमान न करें। देश ने मोदी जी को वोट दिया है और उन्हें एनडीए ने नेता चुना है और इस तरह उन्होंने पूर्ण प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। क्या आपको वाकई लगता है कि भारत का संविधान अपने ही लोगों से खतरे में है? क्या आप वाकई मानते हैं कि भारत का संविधान हमेशा आपकी जेब में रहना चाहिए, जैसा कि आप जेब में रखते हैं? शायद इसी सोच ने आपको 28 सितंबर 2013 को अपनी ही सरकार के अध्यादेश को फाड़ने के लिए प्रेरित किया? मुझे यह दोहराने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस ने संविधान के साथ किस तरह से व्यवहार किया है, उसमें संशोधन किया है और बार-बार उसमें हेराफेरी की है। दिल्ली में एक चर्च के बाहर मैंने ‘थॉट फॉर द डे’ पढ़ा, जिसमें कहा गया था, “हम उन चीजों की चिंता करते हैं जो वहां हैं ही नहीं”। कितना सच है। लगता है कि विपक्ष को आपके नेतृत्व से नहीं, बल्कि काल्पनिक भय और मोदी फोबिया से परेशानी हो रही है। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अपने तीसरे प्रयास के बाद, आप कम से कम दूसरे स्थान पर आकर विपक्ष का नेता तो बन ही सकते थे। हाल ही में संसद सत्र के दौरान, आपसे बौद्धिक बहस के रूप में आतिशबाजी की उम्मीद थी। आखिरकार, यह एक सांसद और पूरे विपक्ष के नेता के रूप में याद किए जाने के लिए आपकी पहली यात्रा थी। अफसोस, ऐसा नहीं हुआ। क्या आपने विपक्ष के नेता को ‘विरोध का नेता’ मान लिया था? यह देखना दुखद था कि आपका नेतृत्व एक भीड़ के नेता से अधिक कुछ नहीं था, जिसके पास न तो अधिकार था और न ही जिम्मेदारी। क्या यह उस राजनीतिक परिवार में आपके 54 वर्षों का परिणाम है जिसने देश को तीन प्रधानमंत्री दिए हैं? या संसद में सांसद के रूप में 20 वर्षों का आपका अनुभव था? सशस्त्र बलों के लिए आपकी और आपकी पार्टी की चिंता, प्रामाणिक और वास्तविक नहीं लगती। यह प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ही थे जिन्होंने 1962 में बिना गोला-बारूद और बिना सर्दियों के कपड़ों के चीनियों से लड़ने के लिए सेना भेजी थी। 1973 में सैनिकों की पेंशन कम करने वाली प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ही थीं। उन्होंने ही बार-बार विदेश मंत्री सैम मानेकशॉ का अपमान किया। 1971 की जीत के लिए वे भारत रत्न के हकदार थे, लेकिन उन्हें सम्मानजनक विदाई भी नहीं दी गई। आपके पिता श्री राजीव गांधी ने ही बिना किसी खुफिया जानकारी के श्रीलंका में सैनिकों को भेजा था। आपकी मां श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने ही सैनिकों को OROP देने से इनकार किया था। आपने खुद हमेशा ही वीरता और वफादारी के उनके प्राणों को जोखिम में डालकर सशस्त्र बलों को अपमानित करने की कोशिश की है। क्या सशस्त्र बल कभी भी आपको सम्मान और गर्व के साथ सलाम करेंगे, भले ही आप कभी प्रधानमंत्री बन जाएं?
भारत के सबसे प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार में जन्मे, इतने अनुभव वाले और अब विपक्ष के नेता के रूप में आपसे संसदीय चर्चाओं और बहस में वांछित स्तर लाने की उम्मीद की गई थी। विपक्ष के नेता के रूप में अपने पहले भाषण में ही आपने अवसर खो दिया और बहस हार गए।
प्रधानमंत्री की बात सुनने से इनकार करना और विपक्षी सांसदों को सदन के वेल में जाकर हंगामा करने के लिए उकसाना, यह हमारी आपसे अपेक्षा नहीं थी। आपमें सभी हिंदुओं को हिंसक कहने की हिम्मत है, लेकिन अपने शब्दों पर अड़े रहने का नैतिक साहस नहीं है। झूठे वादे, झूठ और बयानबाजी आपको यहां तक ​​तो पहुंचा सकती है, लेकिन इससे आगे नहीं।
विपक्ष के नेता के रूप में आपकी भूमिका राष्ट्र के लिए रचनात्मक होनी चाहिए। सिस्टम में विपक्ष का नेता ‘नियंत्रण और संतुलन’ के लिए होता है, न कि सरकार के हर कदम का विरोध करने के लिए।
याद रखें, आप अपनी रैंक बढ़ा सकते हैं, लेकिन कोई भी रैंक आपको एक इंसान के रूप में नहीं बढ़ा सकती। प्रधानमंत्री बनना आपके हाथ में नहीं है, लेकिन एक अच्छा इंसान और एक अच्छा राजनेता बनना आपके हाथ में है।
चुनाव खत्म हो चुके हैं, अब कृपया लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को काम करने दें।
एक अनुभवी व्यक्ति का खुला पत्र
कृपया अंत तक पढ़ें और इसे आगे भेजें।
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