सही और गलत.....यह सब भाषा के अंतर्गत आता है ।संसार में कहो काला तो मन में सफेद आता है। कहो सही तो एक मन मे गलत आ जाएग। सही और गलत फिर मात्रात्मक हो जाएगा....मतलब किसी ने तुम्हारे साथ कितना गलत किया और तुम कितना कर रहे हो। सही को भी हम ऐसे ही मापते है।
यह माप तौल व्यक्ति व्यक्ति , देश देश और काल पर भी निर्भर करता है। किसी देश में कोई बात मान्य यानि आम है तो किसी देश में वही बात अमान्य है।
इसलिए जब तक कोई ठीक गलत के फेर में है तब तक वह वास्तविक देखने का अधिकारी नहीं हो सकता।
वास्तविकता तो ठीक-गलत के पार है। इसलिए बहुत लोग गुरु को नहीं देख पाते क्योंकि उन की दृष्टि सहीं गलत के पार नहीं जाती। गुरु को ब्रह्म कहा है ....इस का मतलब वह गुरु में वास्तविक गुरु देख ले तो गुरु में फिर उन्हें ब्रह्म भी दिखाई दे जाए।
यदि सच मे तुम गुरु से मिलना चाहते हो तो...तुम्हें ठीक गलत के पार उस बाग में जिसे किंगडम आफ गाड ...परमात्मा का बगीचा कहते है वहां जाना होगा...गुरु तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलेगा।
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