सभी सनातनप्रेमी और आश्थावान हिन्दुजनों से निवेदन है की वे जिस तरह -अपने बच्चों के कैरियर के लिए प्राणपण से यथासंभव अधिक से अधिक संसाधन जुटाते हैं ,ताकि उनके लड़के लड़कियां बेहतर शिक्षा प्राप्त कर उच्चतर सुखमय जीवन यापन कर सकें और माता पिता तथा कुल का नाम रोशन करें! किन्तु उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि इस तरह के एकांगी बौद्धिक विकास से आपके बच्चे जीवकोपार्जन में किंचित सफल हो भी जाएँ,तब भी समाज व्यवस्था में अंधेर अनाचार,रिश्वतखोरी,हिंसा और वैश्विक प्रति स्पर्धा जनित परिवेष में निरंतर असुरक्षा का वातावरण बना रहने से किसी भी कौम की कोई भी पीढ़ी निष्कंटक निर्बाध जीवन नहीं भोग सकती। देश और दुनिया में जिन्हें कोई आरक्षण नहीं है उन बच्चों को भले ही कितना बड़ा आई टी इंजीनियर बना दें किन्तु करना उनको प्राइवेट सेक्टर या किसी मल्टिनॅशनल कं में क्लर्की ही है। क्योंकि हर बच्चे का भाग्य सत्या नडेला,सुन्दर पिचाई ,नारायण मूर्ती,सुधा मूर्ती,अक्षता शुनक या नरेंद्र मोदी जैसा नहीं हो सकता! आज सवर्ण हिन्दू समाज के अधिकांश बच्चे निजी क्षेत्र में १२ घाटे वाली क्लर्की करने पर मजबूर हैं,जबकि वे उनसे अधिक प्रतिभा सम्पन्न हैं जो आरक्षण की वैसाखी पाकर पूरे सिस्टम पर काबिज हैं।
अतः"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया"' जैसे सूत्रों का ज्ञान अवष्य कराएं। हरेक सुशिक्षित हिन्दू नर नारी का यह परम दायित्व है कि अपने बच्चों को पूर्वजों की तरह संघर्ष शील बनायें।और इसके लिए ,उनके शैक्षिणक विषयों से इतर मनुस्मृति,रामायण महाभारत भगवद्गीता,चारों वेद,१८ पुराण,आदद्य शंकराचार्य कृत 'विवेक चूणामणि' महर्षि अरविंदो कृत -सावित्री,स्वामी विवेकानंद का साहित्य, ,पातंजलि महाभाष्य,योगसूत्र ,प्रश्थानत्रयी और सम्पूर्ण प्राच्य सभ्यता संस्कृति का सांगोपांग अध्यन भी कराएं। शारीरिक योग कसरत व्यायाम पर ध्यान दें. इससे हमारी भावी पीढ़ियां सशक्त होंगीं ,सनातन धर्म और संस्कृति और भारत राष्ट्र की एकता अखंडता बरकरार रख सकेंगीं !
.सनातन धर्म में आश्था रखने वाले छात्र छात्राओं को चाहिए कि अपने सीमित सिलेबस या बोर्ड निर्धारित विषयों और कोटा टाइप कोचिंग* से मिले तो केरियर के निर्धार्रित सीमित विषयों के अलावा और भी बहुत कुछ अध्यन करने योग्य हैं। देशी विदेशी इतिहास और भाषाई ज्ञान के साथ साथ भारतीय सभ्यता,साहित्य, संस्कृति और दर्शन तथा अध्यात्म शास्त्र,सांख्ययोग,कर्मयोग, न्यायशास्त्र का अध्ययन भी करें। इसमें आप अपने आधुनिक उच्चतर सूचना संपर्क तकनीकी ज्ञान का सहयोग ले सकते हैं। किंतु तत्संबंधी पुस्तकें खरीद कर पढ़ तो और बेहतर होगा ,इससे ततसम्बन्धी विषयों के घाटे में चल रहे प्रकाशक प्रोत्साहित हो सकें। संस्कृत और हिंदी भाषा विज्ञान विकास में आपका योगदान अमर रहेगा। इससे पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा गौरव अक्षुण रहेगा। इससे हमारी भावी पीढ़ियां सशक्त होंगीं और हमारे भारत राष्ट्र को भी बहुत लाभ होगा। अस्तु !धन्यवाद ! श्रीराम तिवारी
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