शनिवार, 10 दिसंबर 2022

ध्रुवीकृत टैक्टिकल वोटिंग का दौर....

 दिल्ली MCD चुनाव में *आम आदमी पार्टी * ने बाजी मार ली है! स्मरण रहे कि 15 साल से दिल्ली MCD पर भाजपा का कब्जा था ! दिल्ली लोकसभा की सातों सीट भाजपा के पास हैं! फिर भी MCD के चुनाव परिणाम भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के खिलाफ आए हैं! भारतीय लोकतंत्र के लिए यह स्थिति चिंताजनक है! क्योंकि विचारधारा विहीन क्षेत्रीय पार्टियों ने मतदाताओं को मुफ्तखोर बना डाला है! इसके अलावा चूँकि इस बार भाजपा ने इस चुनाव में आम आदमी पार्टी * के खिलाफ नकारात्मक प्रचार किया है,दूसरी तरफ अल्पसंख्यक वोट भी ध्रुवीकृत होकर टैक्टिकल वोटिंग के जरिये कुछ हद तक भाजपा को हराने में कामयाब रहे!

भारत में अब तक केवल सांस्कृतिक बहुलतावाद के बहाने भाषाई ,साम्प्रदायिक ,क्षेत्रीय ,व्यक्तिपरक और जातीयतावादी नेताओं की अवसरवादी राजनीति ही चलन में रही है! बिहार यूपी ,तमिलनाडु ,उड़ीसा और कश्मीर महाराष्ट्र में जो राजनीति चलन में है, दिल्ली पंजाब में वह मुफीद नही है! भाजपा ने सोचा होगा कि मोदी जी के भरोसे नगरीय निकाय के चुनाव भी जीत लेंगे,किंतु दिल्ली के अल्पसंख्यक वर्ग ने ओवैसी और कांग्रेस को नकारकर आप* को वोट दिया! और भाजपा को हरा दिया!
यद टैक्टिकल वोटिंग की यह राजनीति परवान चढ़ती रहेगी ,तो क्षेत्रीय दलों की दादागिरी कभी खत्म नहीं होगी। इन क्षेत्रीय दलों को राष्ट्र निर्माण ,विकास या आतंकवाद की चुनौती से कोई लेना -देना नहीं है। चूँकि चुनाव के अवसर पर ये क्षेत्रीय दल जाति और मजहब के आधार पर टैक्टिकल वोटिंग कराते हैं।ये क्षत्रीय दल वाले केजरीवाल -सुश्री मेहबूबा- मुफ्ती ,ममता बेनर्जी, लालू, नवीन पटनायक -मुलायम और बादल निहित स्वार्थ की राजनीति पर उत्तर आते हैं। ये नेता स्वयंभू हीरो बनकर अपने राज्य की और प्रकारांतर से देश की आवाम को अंधी सुरंग में धकेल रहे हैं। ये नेता न तो मेहनतकश सर्वहारा के साथ होते हैं और न ही भारत राष्ट्र की एकता-अखंडता से इनका कोई वास्ता है।
इन क्षेत्रीय दलों के अनैतिक अवसरवाद से भारत का विकाश अवरुद्ध हो सकता है। वैश्विक आतंकवाद की चुनौती से निपटने के लिए इन छुद्र क्षेत्रीय दलों की कोई रणनीति नहीं होती। इन क्षेत्रीय दलों की गैर कांग्रेसवाद और गैर भाजपावाद की अवधारणा भी घोर पाखंडपूर्ण है। इन क्षेत्रिय दलों को राष्ट्रीय विकास से कोई मतलब नही! बिना कांग्रेस,बिना भाजपा या बिना वामपंथ के सहयोग से यदि ये क्षेत्रीय दल इत्तफाक से केंद्र की सत्ता में कभी आ भी गए तो पांच साल स्थिर सरकार दे पाने की कोई गारंटी नहीं! भारत का वैश्विक मूल्यांकन याने विश्व तीसरी
बुद्धिजीवियों ,लेखकों और विचारकों को चाहिए कि राष्ट्र के समक्ष मोजूद चुनौतियों के बरक्स सभी राजनैतिक विचारधाराओं का तार्किक आकलन करें। साहित्यकारों विचारकों ,वैज्ञानिकों और कलाकारों ने असहिष्णुता के सवाल पर देश की जनता को सचेत किया उसके लिए वे
बधाई
के पात्र हैं। देश में बढ़ रही साम्प्रदायिकता महँगाई भृष्टाचार , आतंकवाद के काले बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं ,उसके निदान के लिए भी तो बुद्धिजीवियों -विचारकों की ओर से कोई ठोस आह्वान देश की जनता के समक्ष होना ही चाहिए !
राष्ट्रीय विपक्ष द्वारा सिर्फ शाब्दिक विरोध की परम्परा का दौर अब नहीं रहा!अब तो राजनैतिक आत्मालोचना का वक्त आ गया है। देश को बतौलेबाज -पूँजीवादी - क्षेत्रीय दलों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इसके साथ साथ लोकतंत्र के चारों स्तम्भ भी क्रांतिकारी परिवर्तन की बाट जोह रहे हैं। श्रीराम तिवारी

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