हुमुखी प्रतिभा के धनी -पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक -विचारक -अध्येताऔर धर्मनिरपेक्षता के तलबगार - जनाब तारिक फतह साहिब विगत दिनों जब भारत भ्रमण पर आये तो मुंबई ,दिल्ली ,इंदौर तथा अन्य शहरों में अधिकांस साहित्यकारों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। विभिन्न सेमिनारों और कन्वेशंस के माध्यम से तारिक फ़तेह साहिब ने अपने विचार निर्भयतापूर्वक रखे। आधुनिकतम मीडिया और टीवी चेनल्स पर भी बिना लॉग लपेट के उन्होंने पाकिस्तान के पापों का पुरजोर बखान किया है ।
जनाब तारिक फतह जब किसी मंच से इस्लामिक आतंकवाद की भर्तस्ना करते तो उनकी खूब वाहवाही होती। वे जब कभी पाक प्रायोजित आतंकवाद को आईएसआईएस वाले आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक बताते तो दक्षिणपंथी हिन्दुओं का जी जुड़ाने लगता। वे इस्लाम के फलसफे पर ,मानवीय मूल्यों के निर्धारण पर ,मध्ययुगीन बर्बर कबीलाई दौर की जंगखोरी पर ,इस्लामिक खलीफाओं की ऐयाशी पर जब बोलते हैं तो वे सलमान रश्दी को भी मात करते दिखाई देते हैं। उनकी साफगोई से तो लगता ही नहीं कि वन्दे का इस्लाम से भी कुछ वास्ता है !
तारिक फतह जब मुहम्मद -बिन कासिम के क्रूरतम हमलों से लेकर ,दाहिरसेन की सपरिवार नृशंस हत्या का जिक्र करते हैं तो लगता है कि कोई 'संघ'का बौद्धिक हिन्दुत्ववादी इतिहास दुहरा रहा है। जनाब तारिक फतह साहिब न केवल गौरी, गजनवी ,चंगेज, तैमूर ,तुगलक ,बाबर और ओरंगजेब की खबर लेते हैं ,बल्कि वे तो आधुनिकतावादी जिन्ना की भी कब्र खोदने से नहीं चूकते।
वे भारत -पाकिस्तान की आवाम के डीएनए को 'आर्यों ' की परम्परा से जोड़ते हैं। वे पाकिस्तान के निर्माण और अस्तित्व पर भी सवाल उठाते हैं। वे मुस्लिम लीग को कोसते हैं । वे हर मंच से हर बक्त -मुक्त कंठ से बिना किसी लॉग लपेट के इस्लामिक आतंकवाद को 'गैर इस्लामिक' गैर जेहादी फरमाते हैं ! लगे हाथ भारत को और हिन्दुओं को सहिष्णुता का वैश्विक आदर्श बताते जाते हैं। उनके भाषणों से लगता है कि वे शायद भारत आकर अपने हिन्दू मेजवानों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं ! गनीमत यह रही कि किसी श्रोता ने यह नहीं कहा कि एक 'मुसलमान भी हिन्दुओं का खैरख्वाह हो सकता है !
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