मैने पत्थरों को काट काट अपने हाथों से सिरजे!
सम्राटों के आदेश पर बनाये मंदिर-मस्जिद-गिरजे!!
चीर डाला धरतीको और बनाई पनामा-स्वेज नहरें!
चाहे वो अजंता, कोणार्क, देवगिरि,मदुराई,खजुराहो!
या फिर एलोरा,आबू, देवगढ़ तंजाबूर कामाख्या हो।।
चीख-चीखकर बोल रही हैं खंडित पाषाण प्रतिमाऐं!
मेरे श्रम धैर्य चिंतन और समाज की कला की सीमाऐं !!
अब तक मेरे बलिदान का मोल न कभी कूत सका कोई!
इसीलिये दोस्तो, इतिहास के पन्नों मे मेरा नाम नहीं कोई।।
:-श्रीराम तिवारी
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