एकलव्य ने अपना अंगूठा काटा था तो द्रोणाचार्य भी मात्र एक गाय के लिए तरसे थे, अपमानित भी किये गए थे...
उस युग में एक ही अपराध के लिये ब्राह्मण को किसी शूद्र की अपेक्षा सोलह गुना अधिक दंड भी मिलता था...। क्योकि समझा जाता था की ब्राम्हण ज्ञानी है और जानकार किया गया अपराध अज्ञानता में किये गए अपराध से अधिक दंडनीय है... इस लिहाज से तो महाभारत काल ब्राह्मण विरोधी हो गया और "मनुस्मृति" भी ब्राह्मण विरोधी ही हुई फिर...।
जब एकलव्य की जाति बताते हो तो क्षत्रिय भीम की पत्नी हिडम्बा की जाति भी बता दो और ये भी बता दो कि उसी हिडम्बा के पोते "खाटू श्याम जी" को भगवान की तरह पूजा क्यों जाता है...।
न्याय-अन्याय हर युग में होते हैं और होते रहेंगे, अहंकार भी टकराएंगे...कभी इनका तो कभी उनका...यह घटनायें दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं पर उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण होता है इनको जातिगत रंग देकर उस पर विभाजन की राजनीति करके राष्ट्र को कमजोर करना...।
यदि किसी ने भीमराव का अपमान किया तो किसी सवर्ण ने ही उनको पढाया भी था...किसी एक घटना को अपने स्वार्थ के लिए बार-बार उछालना और बाकी घटनाओ पर मिट्टी डालना कौन सा चिंतन है ??
यह दलित चिंतन नहीं यह केवल राष्ट्रद्रोहियों द्वारा थोपा हुआ दोगला चिंतन है
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