गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

सुख मेरा काँच सा था..* *न जाने कितनों को चुभ गया..

 *कभी साथ बैठो..*

*तो कहूँ कि दर्द क्या है...*
*अब यूँ दूर से पूछोगे..*
*तो ख़ैरियत ही कहेंगे...*
*2.*
*सुख मेरा काँच सा था..*
*न जाने कितनों को चुभ गया..!*
*3.*
*आईना आज फिर*
*रिश्वत लेता पकड़ा गया..*
*दिल में दर्द था और चेहरा*
*हंसता हुआ पकड़ा गया...*
*4.*
*वक्त, ऐतबार और इज्जत,*
*ऐसे परिंदे हैं..*
*जो एक बार उड़ जायें*
*तो वापस नहीं आते...*
*5.*
*दुनिया तो एक ही है,*
*फिर भी सबकी अलग है...*
*6.*
*दरख्तों से रिश्तों का*
*हुनर सीख लो मेरे दोस्त..*
*जब जड़ों में ज़ख्म लगते हैं,*
*तो टहनियाँ भी सूख जाती हैं*
*7.*
*कुछ रिश्ते हैं,*
*...इसलिये चुप हैं ।*
*कुछ चुप हैं,*
*...इसलिये रिश्ते हैं ।।*
*8*.
*मोहब्बत और मौत की*
*पसंद तो देखिए..*
*एक को दिल चाहिए,*
*और दूसरे को धड़कन...*
*9.*
*जब जब तुम्हारा हौसला*
*आसमान में जायेगा..*
*सावधान, तब तब कोई*
*पंख काटने जरूर आयेगा...*
*10.*
*हज़ार जवाबों से*
*अच्छी है ख़ामोशी साहेब..*
*ना जाने कितने सवालों की*
*आबरू तो रखती है...*

बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

रोशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा

 उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा

वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
इतना सच बोल के होठों का तबस्सुम न बुझे
रोशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिसको पीछे कहीं छोड आये वो दरिया होगा
एक महफ़िल में कई महफ़िले होती हैं शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
मेरे बारे में कोई राय तो होगी उसकी
उसने मुझको भी कभी तोड के देखा होगा
_ निदा फ़ाज़ली

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

परहित सरिस धरम नहिं भाई"!

 पाश्चात्य नास्तिकों और भारतीय चार्वाक दर्शन के अनुयायियों का सवाल जायज है कि जब मनुष्य के अलावा हाथी कंगारू, ऊंट,घोडा,गधा,गाय,बैल,भैंस,कुत्ता,बिल्ली, शेर,साँप ,नेवला ,मयूर ,कोयल ,कौआ,तीतर, तोता,गिद्ध-बाज,मगरमच्छ,कछुआ, शार्क- व्हेल मछली जब आस्तिक-नास्तिक नहीं होते तो मनुष्य को आस्तिक-नास्तिक के फेर में क्यों पड़ना चाहिए ?

चूँकि आस्तिक-नास्तिक का वर्गीकरण मनुष्य के अपने सामाजिक और नैतिक सिद्धांतों-नियमों से संचालित है!अतः यह 'ईश्वर' कृत व्यवस्था कदापि नहीं है, यदि यह ईश्वरकृत व्यवस्था होती तो कर्मफल सिद्धांत की अन्यायपूर्ण व्यवस्था ईश्वर कदापि नहीं करता, यह आस्तिकता की सौगात वह सिर्फ मनुष्य योनि के हवाले ही क्यों करता?
अति उन्नत सूचना संचार क्रांति से युक्त इस २१वीं शताब्दी में भी अधिकांस दुनिया स्वाभाविक रूप से नास्तिक ही है। जो लोग अपने आपको आस्तिक मानकर संप्रदायवाद और मजहबी पाखंड से निरीह जनता को ठगते हैं,वे वास्तव में घोर नास्तिक ही हैं!
दक्षिण अफ्रीकी कबीलों में और भारत के सुदूरवर्ती अंदरूनी क्षेत्रों के आदिवासियों को इससे कोई मतलब नहीं कि आप आस्तिक हैं या वे नास्तिक ! चार्वाक बौद्ध जैन दर्शन से भी पहले भारतीय प्राच्य दर्शन श्रंखला में 'नास्तिक दर्शन'का पर्याप्त उल्लेख बाल्मीकि रामायण में मिलता है।चित्रकूट में जब अनुज भरत की याचनाको न मानकर अग्रज श्रीराम ने,गुरु वशिष्ठ और माताओं को खाली हाथ वापिस विदा किया,तब ऋषि 'जाबालि ने श्रीराम को 'नास्तिक'दर्शन का उपदेश दिया था !
अस्तु आस्तिक नास्तिक सब बराबर हैं,किंतु श्रेष्ठ वह है जो गोस्वामी तुलसीदास जी के इस सिद्धांत को मानता है कि:-
"परहित सरिस धरम नहिं भाई"!
पर पीड़ा सम नहि अधमाई!!
और
''परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा!
पर निंदा सम अघ न गरीसा!!
***

मानव जीवन की नश्वरता पर एक नज़र :-


मानव हो या चींटी जीवन छोटा है, लगभग 80 वर्ष।
उसमें से आधा =40 वर्ष
तो सब रातों का योग को बीत जाता है। उसका आधा=20 वर्ष
बचपन और बुढ़ापे मे बीत जाता है।
बचा 20 वर्ष। उसमें भी कभी योग,
कभी वियोग, कभी पढ़ाई,कभी परीक्षा,
नौकरी, व्यापार और अनेक चिन्ताएँ
व्यक्ति को घेरे रखती हैँ।अब बचा ही
कितना ? यदि हम
थोड़ी सी सम्पत्ति के लिए झगड़ा करें,
और फिर भी सारी सम्पत्ति यहीं छोड़ जाएँ,
तो इतना मूल्यवान मनुष्य जीवन
प्राप्त करने का क्या लाभ हुआ?
स्वयं विचार कीजिये :- इतना कुछ होते हुए भी,
1- शब्दकोश में असंख्य शब्द होते हुए भी...
👍मौन होना सब से बेहतर है।
2- दुनिया में हजारों रंग होते हुए भी...
👍सफेद रंग सब से बेहतर है।
3- खाने के लिए दुनिया भर की चीजें होते हुए भी...
👍उपवास शरीर के लिए सबसे बेहतर है।
4- देखने के लिए इतना कुछ होते हुए भी...
👍बंद आँखों से भीतर देखना सबसे बेहतर है।
5- सलाह देने वाले लोगों के होते हुए भी...
👍अपनी आत्मा की आवाज सुनना सबसे बेहतर है।
6- जीवन में हजारों प्रलोभन होते हुए भी...
👍सिद्धांतों पर जीना सबसे बेहतर है।
इंसान के अंदर जो समा जायें वो
" स्वाभिमान "
और
जो इंसान के बाहर छलक जायें वो
" अभिमान "
🔹जब भी बड़ो के साथ बैठो तो
परमेश्वर का धन्यवाद करो ,
क्योंकि कुछ लोग
इन लम्हों को तरसते हैं ।
🔹जब भी अपने काम पर जाओ
तो परमेश्वर का धन्यवाद करो
क्योंकि
बहुत से लोग बेरोजगार हैं ।
🔹 परमेश्वर का धन्यवाद कहो
जब तुम तन्दुरुस्त हो ,
क्योंकि बीमार किसी भी कीमत पर सेहत खरीदने की ख्वाहिश रखते हैं ।
🔹 परमेश्वर का धन्यवाद कहो
की तुम जिन्दा हो!
और मरते हुए लोगों से पूछो :-
जिंदगी की कीमत क्या है?

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती-सोहनलाल द्विवेदी

 लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती!

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती!!

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है!

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है!!

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है!
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है!!
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती!
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती!!

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है!
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है!!
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में!
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में!!

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती!
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती!!
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो!
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो!!

जब तक न सफल हो,नींद चैनको त्यागो तुम!
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम!!
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती!
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती!!
-राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी
Abhi Tiwari, Umesh Jain and 4 others

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

पैराशूट की खोज हवाईजहाज से 1 सदी पहले हुई थी.

 1. Octopus के तीन दिल होते हैं.

2. सिर्फ मादा मच्छर ही आपका ख़ून चूसती हैं. नर मच्छर सिर्फ आवाजे करते हैं.
3. ब्लु वेहल एक साँस में 2000 गुबारो जितनी हवा खिचती है और बाहर निकालती है.
4. पैराशूट की खोज हवाईजहाज से 1 सदी पहले हुई थी.
5. कंगारु उल्टा नही चल सकते.
6. 1894 में जो सबसे पहला कैमरा बना था उससे आपको अपनी फोटो खीचने के लिए उसके सामने 8 घंटे तक बैठना पड़ेगा.
7. एक समुद्री केकडे का दिल उसके सिर में होता है.
8. तितलियाँ किसी वस्तु का स्वाद अपने पैरों से चखती है.
9. सिगरेट लाइटर की खोज माचिस से पहले हुई थी.
10. विश्व में अभी भी 30 प्रतीशत लोग ऐसे है जिन्होंने कभी मोबाइल का प्रयोग नही किया.
11. शहद एक एकलौता ऐसा खाद्य पदार्थ है जो कि हजारों सालों तक खराब नही होता.
12. एक औसतन लैड की पेंसिल से अगर एक लाइन खींची जाए तो वह 35 किलोमीटर लंम्बी होगी जिससे 50,000 अंग्रेजी शब्द लिखें जा सकते है.

कार्ल मार्क्स का यह तात्पर्य कदापि नहीं था

 जब रोम जल रहा था, पीट्सबर्ग से लेकर डायमंड हार्वर तक और हिरोशिमा से लेकर नागासाकी तक परमाणुविक आग की लपटें आसमान छू रहीं थीं ,तब यूरोप -अरब के धर्म-मजहब क्या कर रहे थे ?

जब कोरोना वायरस कोविड -19 तूफानी गति से करोड़ों को काल के गाल में धकेल रहा था, तब गॉड,अल्लाह, अहूरमज्द,ईश्वर और आस्तिकता क्या सो रहे थे ? शायद इन जघन्य घटनाओं से प्रेरित होकर ही विज्ञान परस्त प्रगतिशील लेखकों ने मार्क्स के 'धर्म एक अफीम है' वाले सिद्धांत में नास्तिकता का प्रत्यारोपण कर डाला।
जबकि वास्तव में महान दार्शनिक और चिंतक कार्ल मार्क्स का यह तात्पर्य कदापि नहीं था कि,धर्म -मजहब गलत हैं या ईश्वर का अस्तित्व ही नहीं है। दरसल मार्क्स ने धर्म -मजहब के उसी विकृत रूप और विचलन पर कटाक्ष किया था जो आज भी मनुष्यता के हर क्षेत्र में दुनिया को भरमा रहा है। : श्रीराम तिवारी

*कहानी* 🎋 *बाँस का पेड़* 🪵

*एक संत अपने शिष्य के साथ जंगल में जा रहे थे। ढलान पर से गुजरते अचानक शिष्य का पैर फिसला और वह तेजी से नीचे की ओर लुढ़कने लगा।वह खाई में गिरने ही वाला था कि तभी उसके हाथ में बांस का एक पौधा आ गया। उसने बांस के पौधे को मजबूती से पकड़ लिया और वह खाई में गिरने से बच गया।*

*बांस धनुष की तरह मुड़ गया लेकिन न तो वह जमीन से उखड़ा और न ही टूटा. वह बांस को मजबूती से पकड़कर लटका रहा। थोड़ी देर बाद उसके गुरू पहुंचे।उन्होंने हाथ का सहारा देकर शिष्य को ऊपर खींच लिया। दोनों अपने रास्ते पर आगे बढ़ चले*.
*राह में संत ने शिष्य से कहा- जान बचाने वाले बांस ने तुमसे कुछ कहा, तुमने सुना क्या?*
*शिष्य ने कहा- नहीं गुरुजी, शायद प्राण संकट में थे इसलिए मैंने ध्यान नहीं दिया और मुझे तो पेड-पौधों की भाषा भी नहीं आती. आप ही बता दीजिए उसका संदेश।*
*गुरु मुस्कुराए- खाई में गिरते समय तुमने जिस बांस को पकड़ लिया था, वह पूरी तरह मुड़ गया था।फिर भी उसने तुम्हें सहारा दिया और जान बची ली।*
*संत ने बात आगे बढ़ाई- बांस ने तुम्हारे लिए जो संदेश दिया वह मैं तुम्हें दिखाता हूं*।
*गुरू ने रास्ते में खड़े बांस के एक पौधे को खींचा औऱ फिर छोड़ दिया। बांस लचककर अपनी जगह पर वापस लौट गया।*
*हमें बांस की इसी लचीलेपन की खूबी को अपनाना चाहिए। तेज हवाएं बांसों के झुरमुट को झकझोर कर उखाड़ने की कोशिश करती हैं लेकिन वह आगे-पीछे डोलता मजबूती से धरती में जमा रहता है।*
*बांस ने तुम्हारे लिए यही संदेश भेजा है कि जीवन में जब भी मुश्किल दौर आए तो थोड़ा झुककर विनम्र बन जाना लेकिन टूटना नहीं क्योंकि बुरा दौर निकलते ही पुन: अपनी स्थिति में दोबारा पहुंच सकते हो।*
*शिष्य बड़े गौर से सुनता रहा। गुरु ने आगे कहा-*
*बांस न केवल हर तनाव को झेल जाता है बल्कि यह उस तनाव को अपनी शक्ति बना लेता है और दुगनी गति से ऊपर उठता है।*
*बांस ने कहा कि तुम अपने जीवन में इसी तरह लचीले बने रहना। गुरू ने शिष्य को कहा- पुत्र पेड़-पौधों की भाषा मुझे भी नहीं आती ।*
*बेजुबान प्राणी हमें अपने आचरण से बहुत कुछ सिखा देते हैं।*🌹🙏 🌹

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

अब आजादी के फल खा रहे कोई और हैं

 बदलते नहीं मौसम इंसानी फितरत से,

उदित होता है रवि तो इठलाती भोर है!
अगम को सुगम पथ बनाते वे कोई और,
मंजिल पर पहुंचता बन्दा कोई और है!!
संत्रास भोगते रहे सतत संघर्ष क्रांति वीर,
अब आजादी के फल खा रहे कोई और हैं!
श्रीराम तिवारी

*मुस्कुराते रहिये*

 *मैंने एक फूल से कहा*:...

कल तुम मुरझा जाओगे:..!
*फिर क्यों मुस्कुराते हो* ..?
व्यर्थ में यह ताजगी ...
*किस लिए लुटाते हो* ..??
फूल चुप रहा...!!
*इतने में एक तितली आई* ..!
पल भर आनंद लिया ..!
*उड गई* ..!!
एक भौंरा आया..!
*गान सुनाया* ..!
सुगंध बटोरी..!
*और आगे बढ गया* ..!!
एक मधुमक्खी आई..!
*पल भर भिन भिनाई* ..!
पराग समेटा ..! और ...
*झूमती गाती चली गई* ..!!
खेलते हुए एक बालक ने ...
*स्पर्श सुख लिया* ..!
रूप-लावण्य निहारा..!
*मुस्कुराया*..! और...
खेलने लग गया..!!
*तब फूल बोला*:-----
मित्र: !
*क्षण भर को ही सही*:...
मेरे जीवन ने कितनों...
*को सुख दिया* ..!
क्या तुमने भी कभी..?
*ऐसा किया* ..???
कल की चिन्ता में ...
*आज के आनंद में* ...
विराम क्यो करूँ..?
*माटी ने जो* ...
रूप; रंग; रस; गंध दिए ..!
*उसे बदनाम क्यो करूँ*..?
मैं हँसता हूँ..! क्योंकि...
*हँसना मुझे आता हैं* ..!
मैं खिलता हूँ..! क्योंकि ...
*खिलना मुझे सुहाता हैं* ..!
मैं मुरझा गया तो क्या ..?
*कल फिर एक* ...
नया फूल खिलेगा ..!
*न कभी मुस्कान* रुकी हैं .. _नही सुगंध_ ...!!
*जीवन तो एक* सिलसिला है ..!
*इसी तरह चलेगा* :!!
जो आपको मिला है ...
*उस में खुश रहिये* ..!
और प्रभु का ...
*शुक्रिया कीजिए* ..!
क्योंकि आप जो ...
*जीवन जी रहे हैं* ...
वो जीवन कई लोगों ने ...
*देखा तक नहीं है*..!
खुश रहिये ..!
*मुस्कुराते रहिये* ..!
और अपनों को भी ...
*खुश रखिए* ..!!

गधाजीवी

 पाखंडियों ने मूर्ख अंधभगतों का दिमाग खराब कर रखा है! किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिये *सूप बोले सो बोले छलनी क्यों बोले, जामें 72 छेद हैं?* वाली कहावत चरितार्थ हो रही है!

अंधभगतों के गुरू घंटाल से लेकर उनके बगलगीर नशेड़ी गँजेड़ी चिलमखोर भी यह भूल गये कि 75 दिन के किसान संघर्ष में जो 160 किसान शहीद हुए और जो 450 किसान गायब हैं, उनके परिवारों पर क्या बीत रही है! यदि शहीद होने वाले लोग किसान नहीं हैं तो क्या हैं? कौन हैं? सरकार हरएक का नाम पता उजागर करके साबित करे कि वे किसान नही थे! यदि पीएमओ सावित कर दे कि आंदोलन में शहीद होने वाले किसान नही थे तो मैं भी अंधभक्त हो जाऊंगा!
हाथ कंगन को आरसी क्या? सत्ता के भड़ैत उन शहीदों के गाँव घर जाकर प्रत्यक्ष खुद क्यों नहीं इस दर्दनाक स्थिति का पता लगाते? शहीदों के उजड़े घरों पर शोक व्यक्त करने के बजाय गधाजीवी पाखंडी लोग किसानों मजदूरों और क्रांतिकारियों का उपहास कर रहे हैं!

मोदीजी ने कभी कोई आंदोलन नही किया

 जैसे की रेलगाड़ी में हिन्दू,मुस्लिम ईसाई, पारसी,सिख और जैन सभी एक साथ यात्रा करते हैं!एक साथ अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं!और दुर्घटना होने पर एक साथ मरते भी हैं। जैसे कुदरत प्राणियों में फर्क नहीं करती उसी तरह सच्ची लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र का नेतत्व करने वाले लोगों को भी अपने मुल्क की आवाम में फर्क नही करना चाहिये! लेकिन यह सिर्फ सिद्धांत है,असल में कुछ अपवादों को छोड़कर राजनैतिक पक्ष विपक्ष में जबरदस्त टकराव चल रहा है!

जब भाजपा विपक्ष में हुआ करती थी तो वे देशभर में बड़ी बड़ी रथयात्राएं निकाला करते थे!
श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय,
अटलबिहारी बाजपेई ,लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी जैसे सैकड़ों नेता
आंदोलन की आग में तप कर सुर्खुरू हुए थे! मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय घर बैठकर रोटी तोड़कर, मक्कारी करते हुए नही मरे! बल्कि वे तो अपने ही लोगों द्वारा वैचारिक आंदोलन की भेंट चढ़ा दिये गये ! क्या ऐंसे शहीदों को आंदोलनजीवी कहकर उनका मजाक उड़ाया जाए? वेशक मोदीजी ने कभी कोई आंदोलन नही किया! गोडसे, हेडगेवार, जिन्ना और एक बड़े दलित नेता जी कभी किसी आंदोलन में शामिल नही हुए! चूंकि ये लोग आंदोलनजीवी नही रहे किंतु पिस्तौलजीवी जरूर रहे हैं!
आज भाजपा यदि सत्ता में है तो उसकी बजह संघ और भाजपा हैं! यदि आज किसानों की मांग को लेकर वामपंथी और कांग्रेसी आंदोलन कर रहे हैं, तो श्रीमान मोदी जी कहते हैं कि ये तो आंदोलनजीवी हैं! मोदी जी भूल गये कि बाबा रामदेव, अण्णा हजारे, किरण वेदी, और संघ के निरंतर संघर्ष की बदौलत और विपक्ष की फूट के कारण वे आज सत्ता में हैं!
लोकतान्त्रिक राष्ट्र के जनगण भी संविधान से ऊपर किसी को नहीं मानते। उनके लिए संविधान और राष्ट्र पहले है!धर्म मजहब और मंदिर मस्जिद बाद में आते हैं!यदि कोई सत्ता धारी नेता या मंत्री विपक्ष से घृणा करता है, चुनाव में धर्म -मजहब -जाति का दुरूपयोग करता है,सीबीआई-ईडी का दुरुपयोग करता है या अपने आप को देश तथा संविधान से ऊपर मानता है तो उसे सत्ता से बेदखल कर दिया जाना जरूरी है!
किंतु जो जनहित के काम करे, जिसका इरादा नेक हो,जो सबको साथ लेकर चले,जो आंदोलनकारी किसानों मजदूरों से रार न ठाने! और जिसका चरित्र ज्योति वसु,EMS और मानिक सरकार जैंसा सौम्य हो,जिसका व्यक्तित्व ईमानदाराना हो उसे ही देश का नेतृत्व करने देना चाहिए! बाकी तो सब ढपोरशंखी और लफ्फाजी है।