मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

महुए के फूल

 हमारे आदिवासी भाइयों को भड़काया जाता है कि देखो तुम जंगल में भटकते रहते हो, तुम वनोपज पर निर्भर हो और तुम्हारे पिछड़े होने,गरीबी के लिये सवर्ण लोग जिम्मेदार हैं!

हमारे बुंदेलखंड (एम.पी.) में इसका उल्टा है! दरसल यहां अधिकांश दलित आदिवासी भाई या तो बिड़ी बनाते हैं या कारीगर हैं या शहरों में मजदूरी करते हैं! जबकि सवर्ण गरीब जंगलों से जाकर महुआ बीनते थे! शहरों में कुछ लोग महुआ के फूल को फल समझते हैं! जबकि दरसल महुए के फूल को बीनकर सुखाते हैं और उसके कई उपयोग होते हैं!
सुखाये गये महुए के फूल से ज्यादातर तो शराब ही बनाई जाति है! जबकि महुए के फल को गुली कहते हैं! इससे महुए का तेल बनाया जाता है! गुली धपरा पिराई से तेल के साथ खली भी प्राप्त होती है जो भूसे की सानी में मिलाकर दुधारू गायों भैंसों,बैलों और अन्य पाल्य पशुओं को खिलाई जाती है!
मैने तीन साल की उम्र से लेकर 18 साल की उम्र तक खूब महुआ बीने हैं,गुली धपरा और चारोली (अचार) भी जंगल से बीने हैं! मुझे गर्व है कि किशोर अवस्था समाप्त होते होते, पढ़ाई के साथ साथ मैने ये बनोपज संबंधी और खेत खलिहान मेहनत के सारे काम शिद्दत से किये हैं ! जबकि पढ़ाई में भी मेरा स्थान अक्सर अव्वल ही हुआ करता था!
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