जैसे की रेलगाड़ी में हिन्दू,मुस्लिम ईसाई, पारसी,सिख और जैन सभी एक साथ यात्रा करते हैं!एक साथ अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं!और दुर्घटना होने पर एक साथ मरते भी हैं। जैसे कुदरत प्राणियों में फर्क नहीं करती उसी तरह सच्ची लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र का नेतत्व करने वाले लोगों को भी अपने मुल्क की आवाम में फर्क नही करना चाहिये! लेकिन यह सिर्फ सिद्धांत है,असल में कुछ अपवादों को छोड़कर राजनैतिक पक्ष विपक्ष में जबरदस्त टकराव चल रहा है!
जब भाजपा विपक्ष में हुआ करती थी तो वे देशभर में बड़ी बड़ी रथयात्राएं निकाला करते थे!
श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय,
अटलबिहारी बाजपेई ,लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी जैसे सैकड़ों नेता
आंदोलन की आग में तप कर सुर्खुरू हुए थे! मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय घर बैठकर रोटी तोड़कर, मक्कारी करते हुए नही मरे! बल्कि वे तो अपने ही लोगों द्वारा वैचारिक आंदोलन की भेंट चढ़ा दिये गये ! क्या ऐंसे शहीदों को आंदोलनजीवी कहकर उनका मजाक उड़ाया जाए? वेशक मोदीजी ने कभी कोई आंदोलन नही किया! गोडसे, हेडगेवार, जिन्ना और एक बड़े दलित नेता जी कभी किसी आंदोलन में शामिल नही हुए! चूंकि ये लोग आंदोलनजीवी नही रहे किंतु पिस्तौलजीवी जरूर रहे हैं!
आज भाजपा यदि सत्ता में है तो उसकी बजह संघ और भाजपा हैं! यदि आज किसानों की मांग को लेकर वामपंथी और कांग्रेसी आंदोलन कर रहे हैं, तो श्रीमान मोदी जी कहते हैं कि ये तो आंदोलनजीवी हैं! मोदी जी भूल गये कि बाबा रामदेव, अण्णा हजारे, किरण वेदी, और संघ के निरंतर संघर्ष की बदौलत और विपक्ष की फूट के कारण वे आज सत्ता में हैं!
लोकतान्त्रिक राष्ट्र के जनगण भी संविधान से ऊपर किसी को नहीं मानते। उनके लिए संविधान और राष्ट्र पहले है!धर्म मजहब और मंदिर मस्जिद बाद में आते हैं!यदि कोई सत्ता धारी नेता या मंत्री विपक्ष से घृणा करता है, चुनाव में धर्म -मजहब -जाति का दुरूपयोग करता है,सीबीआई-ईडी का दुरुपयोग करता है या अपने आप को देश तथा संविधान से ऊपर मानता है तो उसे सत्ता से बेदखल कर दिया जाना जरूरी है!
किंतु जो जनहित के काम करे, जिसका इरादा नेक हो,जो सबको साथ लेकर चले,जो आंदोलनकारी किसानों मजदूरों से रार न ठाने! और जिसका चरित्र ज्योति वसु,EMS और मानिक सरकार जैंसा सौम्य हो,जिसका व्यक्तित्व ईमानदाराना हो उसे ही देश का नेतृत्व करने देना चाहिए! बाकी तो सब ढपोरशंखी और लफ्फाजी है।
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