गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

अब आजादी के फल खा रहे कोई और हैं

 बदलते नहीं मौसम इंसानी फितरत से,

उदित होता है रवि तो इठलाती भोर है!
अगम को सुगम पथ बनाते वे कोई और,
मंजिल पर पहुंचता बन्दा कोई और है!!
संत्रास भोगते रहे सतत संघर्ष क्रांति वीर,
अब आजादी के फल खा रहे कोई और हैं!
श्रीराम तिवारी

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