शनिवार, 9 मई 2020

-कविता -Shriram Tiwari



वायरस कहैं या कोरोना माता!
निर्धन जन कुछ समझ न पाता!!
अस्पताल में बैड दवा स्टाफ नहीं,
मंजर देख टीवी पर मन घबराता!
महँगा है ईंधन,पेट्रोल,सब्जी,आटा,
दाल तेल चावल सब धता बताता !!
बाबू अफसर मंत्री संत्री पटवारी,
शोषण किसान मजदूर का भारी !
सिस्टम सारा भ्रस्ट अन्यायी भाई,
भूँख कुपोषण लाचारी जगराता!!
दिन हो रहे संकट में लम्बे लम्बे!!
शोषण सिस्टम खत्म करो हे माता,
जय जय अम्बे जय जय जगदम्बे!!
*****************************************
इतिहास के पन्नों में मेरा नाम नहीं कोई':-
****
मुठ्ठीभर चने और जमना जल पी-पीकर !
रात दिन एक करके हाड़-मांस पीसकर !!
कारिंदों से पिटकर चोबदारों से लुटकर !
छैनी-हथौड़ी चलाकर बनाई बेमिसाल इमारत,
लिख डाली दो प्रेमियों की कालजयी इबारत,
हम ख़ुश हुए अद्वितीय प्रेम का स्मारक बनाकर!!
तभी हाथी पर स्वर्णिम हौदे में होकर सवार !
आया शंहशाह बोला सैनिकों से ललकार !!
मेरी मरहूम बीवी के मकबरे का न बने तोड़ कोई !
काटदो सृजनकर्ताओं के हाथ,भाग न पाए कोई !!
मेरा गुनाह क्या था ? यह तो बताए कोई !
इतिहास के पन्नों में फिर भी मेरा नाम नहीं कोई!!
मिश्र के पिरामिड पीसा की झुकी-मीनार,
पेरिस का एफिल टॉवर, चीन की दीवार।
पत्थरों को काटकर अपने हाथों से सिरजे,
सम्राटों के आदेश पर मंदिर-मस्जिद-गिरजे।।
चीर डाला धरतीको,बनाई पनामा-स्वेज नहरें,
मिला दी मैंने सागरों की सागरों से लहरें।
अजंता, कोणार्क, देवगिरि,मदुराई, खजुराहो,
एलोरा,आबू, देवगढ़ तंजाबूर कामाख्या हो।।
चीख-चीखकर बोल रही हैं पाषाण प्रतिमाऐं,
मेरे श्रम धैर्य चिंतन कला कर्म की सीमाऐं।
मेरे लहू का मोल न कभी कूत सका कोई,
इतिहास के पन्नों में फिर भी मेरा नाम नहीं कोई।।
महासागरों के अतल जल में गोते लगातीं पनडुब्बियां,
गगनभेदी रॉकेट चन्द्र मंगल पर मानवी अठखेलियां।
वैज्ञानिक अनवरत अविष्कार रेल दूरसंचार,
विधाता की रचना को दिया मैंने नूतन आकार,
मैं ही जग का सृष्टा,सेवक,श्रमिक, तारनहार।
खेतमें, खदानमें, सीमाओं पर जंगके मैदान में,
सेवा,सुरक्षा सकल तंत्र के नित्य निर्माण में।।
मेरा ही श्रम स्वेद प्रतिपल लेता रहा आकार,
मेरी ही दमित आत्मा होती रही स्थूल में साकार।
पीरों, पैगम्बरों, अवतारों में न मिला अपना कोई,
इतिहास के पन्नों में फिर भी मेरा नाम नहीं कोई।
श्रीराम तिवारी
**********************************
आन बान सम्मान देश का!
प्रतिपल होता क्षरण देश का!!
कुर्सी पर जो जमे हुए हैं,
उन्हें भय नाम लेश का!
कारपोरेटकल्चर का चक्कर,
डुबा रहे सब नाम देश का!!
संरक्षण है पूंजीपतियों को,
सुपरमुनाफों के विशेष का!
सार्वजनिक उपक्रम चट कीन्हें
तनिक नही गम नाम लेश का!!
बहुराष्ट्रीय निगमों ने फिर से,
किया है आवाहन क्लेश का !
यदि अमन चैंन साझा हो जाए
और बने न कोई घोड़ा रेस का!!
बेरोजगार की कैसी आजादी,
जो शोषित पीड़ित सर्वहारा है !
चिनगारी कोई इंक्लाब की
बोली 'सारा जहाँ हमारा' है!!
*******************************
मिलता है सत्ता का पॉवर!
तो बहक जाता है आदमी!!
सच बोलने पर भी अक्सर !
गच्चा खा जाता है आदमी!!
नेताओं के बोल बचन हों!
निकृष्टतम और चलताऊ!!
चुनाव में उमड़ी हो भीड़!
और नारे हों भड़काऊ !!
अंधे के हाथ लगे बटेर तो!
तो बहक जाता है आदमी!!
भ्रष्टाचारी हाकिम मौज करे!
मंत्री कृतज्ञता का स्वांग भरे!!
ऊँचे पद प्रतिष्ठित होकर भी!
कितना गिर जाता हैआदमी!!
दलबदलुओं की तमन्ना है कि!
लड्डू दोनों हाथ आ जायें!!
पाखंडियों की गिरफ्त में आके,
फजीहत कराता है आदमी !!
श्रीराम तिवारी
***************************************
स्वतंत्रता के भीषण रण में ,
सपने देख लड़ी आवाम।
आजादी के बाद मिलेगा,
सबको शिक्षा सबको काम।।
काम के होंगे निश्चित घंटे ,
और मेहनत के पूरे दाम।
आजादी के बरसों बाद भी,
मुल्क हुआ सबमें नाकाम।।
जिन्दा रहने की फितरत में ,
जन फिरता मारा मारा है।
मदहोश शासकों का कुनबा,
अब लूट रहा धन सारा है।।
कैसा राष्ट्र क्या वतन परस्ती,
जब लोकतंत्र बेचारा है।
बोल रहे हैं नंगे भूंखे बेघर,
कि सारा जहाँ 'हमारा' है।।
:-श्रीराम तिवारी !
************************************
लोकतंत्र की मांद में,नेता नहीं गम्भीर।
भाषणबाज बहुत हैं,बातों के शमशीर।।
भारत के जनतंत्र को,लगा भयानक रोग।
सत्तापक्ष में घुस गए,सब दलबदलू लोग।।
नयी आर्थिक नीति से देश हुआ कंगाल।
काजू-किशमिश हो गयी,देशी अरहर दाल।।
रुपया खाकर बैंक का,चो्ट्टे हुऐ फरार।
पक्ष विपक्ष में हो रही,फोकट की तकरार।।
भारत के बाजार में,अटा विदेशी माल!
डालर जी मदमस्त हैं,रुपया हुआ हलाल!!
अच्छे दिन उनके हुए,अफसर और दलाल।
मुठ्ठी भर धनवान भये,बाकी सब कंगाल।।
जात-पांत आधार पर,आरक्षण की नीति।
बिकट बढ़ीअसमानता,निर्धनजन भयभीत!!
आवारा पूँजी कुटिल,नाच रही चहुं ओर।
मल्टीनेशनल लूटते,दुष्ट मुनाफाखोर।।
बढ़ते व्ययके बजटकी,कुविचारित यहनीति!
ऋण पर ऋण लेते रहो,गाओ ख़ुशीके गीत !!
धीरे धीरे सब किये,राष्ट्र रत्न नीलाम।
औने -पौने बिक गए ,बीमा -टेलीकॉम।।
लोकतंत्र की पीठ पर,लदा माफिया राज।
ऊपर से नीचे तलक,बंधा कमीशन आज।।
वित्त निवेशकों के लिए ,तोड़े गये तटबंध।
आनन-फानन कर दिये,श्रमविरुद्ध अनुबंध !!
कोरोना के कोप से,धरती हुई श्मशान!
मनुज बड़ा कमजोर है,समय बड़ा बलवान!!
श्रीराम तिवारी
****************************************
*'त्वमेव भुट्टा च भजिया त्वमेव,*
*त्वमेव पोहा, जलेबी त्वमेव..*
*त्वमेव कचौरी च चटणी त्वमेव,*
*त्वमेव सर्वम् मुर्मुरि ने सेव..’*
*बारिश के मौसम 🌦⛈☔🌫में*
*इस मंत्र का जाप करने से*
*उच्च श्रेणी के नाश्ते की प्राप्ति होती है..!!*

*********************************************
राजनीति के घाट पै,निहित स्वार्थकी भीड़।
लोकतंत्र ने रच दिए ,भ्रस्टाचार के नीड़ ।।
पूँजीवादी नीतियाँ,भाषण बोल कबोल ।
वोट जुगाडू खेल में ,बजते नीरस ढोल ।।
सत्तापक्ष की नाव में,कोई नहीं गम्भीर।
झूंठ कपट पतवार हैं,बातों के शमशीर।।
भारत के जनतंत्र को ,लगा भयानक रोग।
लोकतंत्र को खा गए ,घटिया शातिर लोग।।
नयी आर्थिक नीति ने, देश किया कंगाल।
काजू-किशमिश हो गई ,देशी अरहर दाल।।
रुपया खाकर बैंक का ,माल्या हुआ फरार।
पक्ष विपक्ष में हो रही,फोकट की तकरार।।
अखिल विश्व बाजार में,रुपया है बदहाल।
मोदीजी के राज में,डालर है खुशहाल!!
अच्छे दिन जिनके हुए,अफसर और दलाल।
मुठ्ठी भर धनवान भये ,बाकी सब कंगाल।।
जात-वर्ण आधार पर,आरक्षण की नीति।
बढ़ी बिकट असमानता,मक्करी से प्रीत।।
आवारा पूँजी कुटिल,व्याप रही चहुंओर।
इसीलिये भयमुक्त हैं,दुष्ट मुनाफाखोर।।
बढ़ते व्ययके बजटकी,कुविचारित यहनीति!
ऋण पर ऋण लेते रहो,गाओ ख़ुशीके गीत !!
रातों-रात सब हो रहे ,राष्ट्र रत्न नीलाम।
औने -पौने बिक गए ,बीमा -टेलीकॉम।।
लोकतंत्र की पीठ पर,लदा माफिया आज ।
ऊपर से नीचे तलक,भृष्ट कमीशन राज ।।
वित्त निवेशकों के लिए ,तोड़ दिए तटबंध।
आनन-फानन कर चले,जनविरुद्ध अनुबंध !!
मोदी योगी राज में ,भई भ्र्स्टन की भीर।
सत्ताधारी सांसद,अब नही होत अधीर।।
श्रीराम तिवारी
************************************
ये कहाँ आ गए हम ?
निकले थे घर से खुशियों की बारात लेकर ,
राह चलते तूफान की चपेट में आ गए हम !
चढ़े थे शिखर पर सब संकल्प विश्वास् लेकर ,
निराशा की खाई में फिर क्यों आ गिरे हम !!
गिराती है गाज नाजुक दरख्तों पै कुदरत जो,
ना जाने कैसे उसीकी पनाहों में आ गए हम!
फर्क ही नहीं जहाँ नीति-अनीति का किंचित,
ऐंसी संगदिल महफ़िल में क्यों आ गए हम !!
खुली है अमानवीय बर्बर-भयानक अँधेरी वो
उस विषधर की वामी में क्यों आ गए हम ?

**********************************
खुद को मुसीबत में न फँसाया कर!
बारिश हो तो भींगने न जाया कर!!
कोरोना महामारी में मनमानी न कर!
सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखा कर!!
वक्त बहुत बुरा आन पड़ा है सब्र कर!
प्रतिरोधक क्षमता बनाये रख,योग कर!!
दर्द कितना भी मर्मांतक हो ध्यान कर!
काम करते हुए हर वक्त मुस्कुराया कर!!
'ये वक्त भी गुजर जायेगा' सूत्र याद कर!
तन्हाई मिटाने अपने अंदर समाया कर!!
कौन कहता है तूँ महफिलें सजाया कर !
हाथ जोड़ सबको,हाथ न मिलाया कर !!

***********************************
वन बाग़ खेत मैढ़ ,चारों ओर हरियाली ,
उदभिज -गगन अमिय झलकावै है।
पिहुं -पिहुं बोले पापी पेड़ों पै पपीहरा ,
चिर -बिरहन -मन उमंग जगावै है।।
जलधि मिलन चलीं इतराती सरिताएँ ,
गजगामिनी मानों पिय घर जावै है।
झूम-झूम बरसें सावन -सरस घन ,

झूलने पै गोरी मेघ मल्हार गावै है।।
***********************
वो जो रूढियो का गुलाम है,
उसे क्या पता कि नया क्या है ?
जिसे टोटको में यकीन हो उसे,
क्या खबर कि दवा क्या है ?
ये कमाल भी क्या कमाल है,
जो मरीज है वो ही हकीम है!
जिसे स्वयं खुद का पता नही,
वो बता रहा है कि खुदा क्या है ?
जिसकी रगो में है सफेद खून,
वही करता है वादा खिलाफी,
जिसे बेवफाई पे नाज हो किंचित,
उसे क्या पता कि वफा क्या है ?
*************************************हर वक्त खुद को यों न सताया कर!
बारिेश में बाहर भीगने न जाया कर!!

अस्पताल में कोई न आयेगा देखने तुझे,
अपना ध्यान रख,डर मत,न डराया कर!

कोरोना की दवा नही बन जाती जब तक,
सोशल डिस्टेंसिंग रख मास्क लगाया कर!!

कोरोना एक हकीकत है दिल्लगी न समझ,
दोस्ती का इजहार कर,हाथ न मिलाया कर !





******************************
हवाओं ने रास्ता दे दिया,
फ़िज़ाओं ने बाहें खोल दीं!
आहिस्ता रास्ते चलने लगे,
शनै:शनै: पंख खुलने लगे!!
वक्त जो थम गया था,
उसके पहिये घूमने लगे!
दरों दीवार में लगे जाले
हलचल में टूटने लगे !!
राहों पर कोई रोक नहीं,
किंतु विपदा अभी गई नहीं!
कदमों को जमा कर रखना,
फिसलन अभी गई नहीं!!

***************************************
भृष्टाचार से लबालब,सिस्टम है भरपूर।
विपक्षियों की शक्ल नही,सत्ता को मंजूर।।
अफसरशाही भृष्टतम,भारत देश की आज!
पूँजीवाद का आचरण,बना कोड़ में खाज!!
चापलूस पद पायें जब,सत्यनिष्ठ ही रोय!
जो बंदे सच सच कहें,दुख काहे न होय!!
बिल्डर माफिया हो गया,अरबपति धनवान।
खनन माफिया ले रहा, निर्दोषों की जान!!
मंत्री-अफसर कर रहे,सत्ता का दुरूपयोग।
अच्छे दिन कब आयंगे,पूंछ रहे सब लोग।।
*****************************************
ज़ख़्म अपने दिल पे बेशुमार खा गया,
मैं आदमी पहचानने में मार खा गया।
चला था भरोसे का कारोबार करने मैं,
जिसपे किया भरोसा कारोबार खा गया।
बच्चे मेरे एक शाम को तरसते ही रहे,
दफ्तर मेरा मेरे सारे इतवार खा गया।
नींद नहीं आती मुझको रात-रात भर,
बेटी का कद सारा मेरा क़रार खा गया।
जितनी भी मदद आई थी ग़रीबों के लिये,
वो नेता और नेता का परिवार खा गया।
ढूँढना फ़िज़ूल है ये अब नहीं मिलती,
इंसान की इंसानियत बाज़ार खा गया
*******************************************

चाल चरित्र चेहरे की कालिख,
क्या बातों से धुल पाएगी ?
बड़बोले बकरों की अम्मा,
कब तक खैर मनाएगी !!
सत्ता के भ्राता भगनी सब,
जाति मजहब लक्ष्मण रेखा!
लोकतंत्र की पंचवटी में,
ये मृगया काम न आयेगी!!
छद्मवेशी सत्ता हर लेते ज्यों,
रावण हरता जनकनंदिनी को !
तनी हुई यह भृकुटि काल की
कितना नर संहार करायेगी!!
पूंजीवाद और धर्मान्धता हैं,
रावण और कुम्भकरण जैसे!
यदि अच्छे दिन आये इनके,
तो जन शामत क्यों न आयेगी!!
चाल चरित्र चेहरे की कालिख
क्या बातों से धुल पाएगी?
-श्रीराम तिवारी

********************************
बिजली डीजल पेट्रोल,मेंहंगाई भरमार!
अधिभारों के नाम पर,लूट रही सरकार।!
भारतवर्ष में बढ़ रहे,बेरोजगार अपार!
लहूलुहान सीमाएं हैं,बढ़त जात तकरार!!

दवा इलाज महँगे हुए,कीमत बढ़ी अपार।
अच्छे दिन कब आएंगे ,जनता करे पुकार।।
वादों जुमलों से मिला, बहुमत अपरंपार!
कोरोना के सामने, हैं सरकार लाचार!!
*********************************
नदी में गिरने से*..,
*कभी भी किसी की मौत*
*नहीं होती* .....
*मौत तो तब होती है*..,
*जब उसे तैरना नहीं आता* .....
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
*ठीक उसी तरह*
*परिस्थितियाँ कभी भी हमारे लिए*
*समस्या नहीं बनती*
*समस्या तो तब बनती हैं*..,
*जब*
*हमें परिस्थितियों से*
*निपटना नहीं आता*
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
*यक़ीन करना सीखो..*
*शक तो सारी दुनिया*
*करती है...!*
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
. *जिन्दगी जब देती है,*
*तो एहसान नहीं करती*
*और जब लेती है तो,*
*लिहाज नहीं करती*
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
*दुनिया में दो ‘पौधे’ ऐसे हैं*
*जो कभी मुरझाते नहीं*
*और*
*अगर जो मुरझा गए तो*
*उसका कोई इलाज नहीं।*
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
*पहला –* *‘नि:स्वार्थ प्रेम’*
*और*
*दूसरा –* *‘अटूट विश्वास’* ।।
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
*""सदा मुस्कुराते रहिये""*
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿

***********************************
सुबह हो या शाम हो जिंदगी,
पलपल बदलती जाती है।
रूहानी ताकत इस देह की
माँग पूर्ति में गुजर जाती है।।
होगा सर्वशक्तिमान कोई,
और सर्वत्र भी होगा लेकिन!
न्यायिक की तुला क्यों उसकी,
शैतान के पक्षमें झुक जाती है!!
अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां,
कोटिक नक्षत्र चाँद सितारे!
आकाशगंगाएं नीहारिकाएं,
अस्तित्व का विस्तार पातीं हैं!!
अब क्यों नही सुनाई देती कोई,
आकाशवाणी कि मानवो सुनो!
एक नूर से ही जग उपजाया,
थलचर,जलचर,नभचर,प्रजाति है!!
कोरोना संकटग्रस्त जग कह रहा,
त्राहिमाम त्राहिमाम वयम रक्षाम:!
किंतु कुदरत को तो सिर्फ बर्बर,
लुटेरों की लिप्सा ही सुहाती है!!
गाज गिरती है अक्सर कमजोरों पर,
जूने खंडहरों से तो यारी निभाती है!
सबल का सुनामी कुछ नहीं बिगाड़ती,
निर्बलों पर मुसीबत बनकर आती है!!

******************************************
हर दवा अब बेअसर हो गई है!
महामारी लाइलाज हो गई है!!
बानगी पेश करना जरूरी नही,
क्यों की सबको खबर हो गई है!
किस्ती डूबने का अनुमान तो था,
माझी से गफलत मगर हो गई है!!
क्या करे हमराह हम सफर उसका,
जिसकी मझधार में नजर खो गई है!
बिजली गिरी मासूम कोंपलों पर ,
परिंदों के वसेरों पर कहर हो गई है!!
हर दवा अब बेअसर हो गई है!
महामारी लाइलाज हो गई है!!

******************************************

*ये मास्कों,ये ग्लब्ज़ों,ये दुपट्टों की दुनिया,*
*ये सेनिटाइजर मांगती हथेलियों की दुनिया ,*
*ये एस्ट्रोनॉट वाली पोशाकों की दुनिया,*
*ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है,,*
*ये लॉकडाउन अगर खुल भी जाए तो क्या है।*
*यह 2 फुट की दूरी,परहेज़ो की मजबूरी,*
*हाथ मिलाने के बंधन, डिस्टेंसिंग जरूरी,*
*ये थाली का बैंगन या हिरन की कस्तूरी?*
*ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?*
*ये लॉकडाउन अगर खुल भी जाए तो क्या है ?*
*ना चूड़ी, न घड़ियाँ, न कंगन-अंगूठी,*
*हर शय में कोरोना, हरेक चीज़ झूठी ,*
*छूटे सोलह सिंगार,लिपस्टिक तक छूटी,*
*ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?*
*ये लॉकडाउन अगर खुल भी जाए तो क्या है?*
*ना गोलगप्पे की रेहड़ी, न टिक्की के ठेले,*
*न बर्गर,न मोमोज, न भटूरे के छल्ले,*
*न किट्टी,न गॉसिप,न सेल्फी, न मेले ,
*ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?*
*ये लॉकडाउन अगर खुल भी जाए तो क्या है?*

***********************************
जब धीरोदात्त चरित्र से सब अन्यायी थर्राते हैं।
तब समरसता के शब्द क्रांति दूत बन जाते हैं ।।
वो सिंहनाद जिससे हर युगमें ढलता नव मानव,
जन साहित्य कला संगीत सृजन कर जाते हैं!
'सत्यम शिवम् सुंदरम' बन जाता इंकलाब जब,
'जनवादी कवि' तब जनक्रांति की गाथा गाते हैं!!
समरसता के शब्द जब क्रांति दूत बन जाते हैं!
तब धीरोदा़त्त चरित्र से सब अन्यायी थर्राते हैं!!

**********************************************
बल पौरुष सत्ता यदि किसी कमजोर के काम आये!
जवानी यदि देश की सीमाओं पर पौरुष दिखलाये !!
मानव सत्य-न्याय का मान करे क्रांति के गीत गाए!
कृषकाय युवा खेतों में यदि अपना श्रम स्वेद बहाए!!
जीवन यापन संघर्षों में यदि इंसानियत न भूल जाए!
लोभ-लालचकी भृष्ट व्यवस्था का पुर्जा न बन जाए!!
'जनवादी कवि' इसको मानव अनुशासन कहते हैं!
योगीजन शायद इसको ही आत्मानुशासन कहते हैं!!
******************
हर एक स्याह रात के बाद,
फिर नई सुबह आती तो है।
घर के आँगन में एक पेड़ हो,
कोई गौरैया रोज गाती तो है।।

तितलियाँ फिर भी फुदकती हैं,
पतझड़ गुजर जाने के बाद,
चहकती है चिड़िया सुमधुर-
राग भोर का सुनाती तो है।
कूँकती है कोयल जब कभी
झूमते अमुआ की डाल पर,
कलेजे पर चिर बिरहन सी,
मानों खंजर चलाती तो है!!
गौरैया,तितली,चिड़िया और,
कोयल की कूँक सुबह सुबह,
इन निराशा के क्षणों में भी,
ज़िजीविषा जगाती तो है!
हरइक स्याह रात के बाद,
फिर नई सुबह आती तो है!!
-श्रीराम तिवारी
***************************************************88
अभी तो हर शहर कुछ उजड़ा उजड़ा सा लगता है!
ये लाइलाज कोरोना कुदरत का कहर लगता है!!
नादान ऐसी अधाधुँध तरक्की का क्या मतलब,
कि जब भी कोई पास आता है तो डर लगता है!
मुश्किल में कोई राह न सूझे तो अपनों को याद करें,
और कायनात को धन्यवाद दें मन शांत रहता है!!
साधकर निशाना नही लगाता वक्त का बहेलिया
इसीलिये निशाना कभी इधर कभी उधर लगता है !
अभी तो हर शहर कुछ उजड़ा उजड़ा सा लगता है!!

*********************************************

बड़े नख़रे होते हैं भ्रष्टाचारी अफसर की लुगाई के!
हज़ारों रास्ते होते हैं सरकारी विभागों में कमाई के!!
चाहे पीडब्ल्यूडी,आबकारी,टाउन एंड कंट्री प्लानिंग,
चोट्टों के बैंक लाकर्स भरे पड़े हैं रिश्वत की कमाई के!
अफसर बाबू की पत्नियां होड़ मचातीं खर्च करने में,
सूखा,बाढ़,दुर्घटना यही तो मौकेै हैं काली कमाई केे!!
रिश्वतखोरी मक्कारी में आकंठ डूबे भ्रष्ट मंत्रि अफसर,
आमजन तो बकरे हैं केवल बेचारे मानों कसाई के !
बड़े नखरे होते हैं भ्रष्टाचारी अफसर की लुगाई के!!
-श्रीराम तिवारी
************************************
बुलंदियों पर है मुकाम किंतु मुस्कराना नहीं आता!
दुनिया आनंदमय है किंतु लुफ्त उठाना नहीं आता!!
न जाने क्यों देता है खुदा प्रभुता इतनी ज्यादा उन्हें,
कि कल्पित छवि के अलावा,कुछ नजर नहीं आता!
वक्त और सियासत ने कर दिया गरीबों का बेड़ा गर्क,
टीवी पर भाषणों में व्यस्त नेताको नजर नहीं आता!!
अभी गुलमोहर अमलतास कोरोना की बहार आई है,
विकास की चकाचौंध में उल्लू को नजर नही आता!
साइंस के दावों पर एतवार नही रहा अब जिसको,
वह कोरोना पॉजिटिव भी अस्पताल नहीं जाता!!
*श्रीराम तिवारी*
***************************************

दुनिया में ऐंसा कहाँ सबका नसीब है !
शासक दिग्भ्रमित हैं मजदूर बदनसीब है !!
हराम की खाते हैं ,वे बैंक लुटेरे अमीर हैं,
जमाने के मिज़ाज भी शैतान के करीब हैं!
कोरोना का कहर और निजाम ढपोरशंखी,
गर्दिशों के दौरमें जिंदा हैं वे खुशनसीब हैं!!

:-श्रीराम तिवारी

*********************************************

लौट सका तो जरूर लौटूंगा,
तेरा शहर बसाने को!
पर आज मुझे मत रोक,
जी मचल रहा घर जाने को!!
मैं खुद जलता रहा शहर में,
कारखानों की भट्टियां जलाने को!
मैं तपता रहा कड़ी धूप में,
नये बंगले ऊँचे भवन बनाने को!!
मैंने अंधेरे में गुजारा जीवन,
सरमायेदारों के चिराग जलाने को!
भूख प्यास हर जुल्म सहा,
वतन को आत्मनिर्भर बनाने को!!
टूट गया मेरे सब्र का बांध,
किसे दोष दें,किस्मत को या जमाने को!
भर गया जीवन मेरा दुश्वारियों से,
कोई राह नही दिख रही बचाने को!!
सोचा था दूर शहर में मिलेगी,
मजूरी और मिलेगा पेट भर खाने को!
किंतु आज एक घूंट पानी नसीब नही,
न कोई अपना दो बूंद आँसूं बहाने को।
आज मुझे फिर गांव की याद आई है,
किंतु बचा नही पाथेय ले जाने को !!
बूढ़े माँ-बाप राह देखते होंगे मेरी,
कुछ नही मेरे पास कर्ज़ चुकाने को!
चल पड़ा हूँ मैं नई मंज़िल की ओर,
अपने गांव में फिर से घर बसाने को !
गर लौट सका तो जरूर लौटूंगा,
नये जमाने का स्मार्ट शहर बसाने को!!
हो सके तो आज थोड़ा सहारा देदो,
सड़क पर चल रहा हूँ जान बचाने को !


******************************************


मौत के डर से ही सही जिंदगी को फुर्सत तो मिली!
सड़कों को राहत और घरों को रौनक तो मिली!!
देखा छत से आसमां,आँखों को कुछ ठंडक तो मिली!

थम सी गई जिंदगी किंतु जीने की नई राह तो मिली !!
इंसानी भूल है या कुदरत का कहर हम नही जानते!
कोरोना संकटसे धर्म और विज्ञानकी थाह तो मिली !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें