शनिवार, 9 मई 2020

लॉकडाऊन _2020

महत्वपूर्ण यह नही कि कोरोना वायरस COVID-19 से कितने मरे और आइंदा कितने मरेंगे! महत्वपूर्ण यह है कि इसका निदान क्या है?और इसका जन्म कब कहाँ कैसे हुआ? कुछ लोग इसमें चीन,यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों द्वारा जैविक युद्ध की संभावनाएं देखते हैं और कुछ लोग चमगादड़ या अन्य जीवों के सूप भक्षण को जिम्मेदार मानकर चल रहे हैं!
न केवल कोरोना वायरस बल्कि अन्य तमाम ब्याधियों पर नजर डालें तो पाएंगे कि धरती के साथ इंसान के गलत व्यवहार का दुखद परिणाम ही यह कोरोना वायरस है! यदि पर्यावरणविद और धरती के प्रति फिक्रमंद लोग ईमानदारी से सोचें तो पाएंगे कि भूमंडल के समग्र पर्यावरण का सर्वाधिक सत्यानाश,पूंजीवादी औद्योगिकीकरण और अंधाधुंध मशीनीकरण से ही हुआ है।
चूँकि अमेरिका,यूरोप,रूस,चीन और जापान इत्यादि देशों ने बहुत तेजी से,प्रतिस्पर्धात्मक विकास कर लिया है,इसलिए उनके द्वारा धरती के पर्यावरण का सर्वाधिक विनाश हुआ है। इसीलिये तमाम गंभीर महामारियों के लिए वे सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं! गनीमत है की गरीब और पिछड़े अफ्रीकी- एशियाई देश और भारत जैसे दक्षेस देश उतने 'एड्वान्स' नहीं हैं,कि धरती को बर्बाद करने में इन तथाकथित उन्नत राष्टों की बराबरी कर सकें !
गुलामी के दिनों में ही अरेबियंस,तुरकिस्ट मुगल और यूरोपियंस-अंग्रेजों ने भारत का 3/4 याने 75% प्राकृतिक दोहन कर डाला था!सारा पर्यावरण बर्बाद कर दिया था!किंतु भारतके गरीब और प्रकृतिप्रेमी आदिवासियों ने पर्यावरण संतुलन बचा़ये रखा! अब वक्त आ गया है कि प्रकृति के महाविनाश को रोकने के लिये आदिवासी सभ्यता और गांवों को सम्मान दें तथा शहरीकरण और अंधाधुंध औद्योगिकीकरण से तौबा करें! वरना यह धरती मनुष्यों के रहने लायक नही रहेगी!

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सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम*
गोपाल सिंह एक सेवानिवृत अध्यापक हैं।
सुबह दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे। शाम के सात बजते- बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे, जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं।
परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था ।
उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी, जिसमें इनके पालतू कुत्ते "मार्शल" का बसेरा है।
गोपाल जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया "मार्शल"।
इस कमरे में अब गोपाल जी, उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं।
दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गयेl
सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन कर के सूचना दे दी गयी।
खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी, लेकिन मिलने कोई नहीं आया।
साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए, हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और गोपाल जी की पत्नी से बोली - "अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो, वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के।"
अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देने के लिये कौन जाए ?
बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दियाl
अब गोपाल जी की पत्नी के हाथ, थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों।
इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली- "अरी तेरा तो पति है, तू भी ........। मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे, वो अपने आप उठाकर खा लेगा।"
सारा वार्तालाप गोपाल जी चुपचाप सुन रहे थे, उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से उन्होंने कहा कि-
"कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है, मुझे भूख भी नहीं है।"
इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और गोपाल जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है।
गोपाल जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं।
पोती -पोते प्रथम तल की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं।
घर के दरवाजे से हटकर बरामदे पर, दोनों बेटे काफी दूर अपनी माँ के साथ खड़े थे।
विचारों का तूफान गोपाल जी के अंदर उमड़ रहा था।
उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए टाटा एवं बाई बाई कहा।
एक क्षण को उन्हें लगा कि 'जिंदगी ने अलविदा कह दिया।'
गोपाल जी की आँखें लबलबा उठी।
उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये।
उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उलेड दी, जिसको गोपाल चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे।
इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे हो लिया, जो गोपाल जी को अस्पताल लेकर जा रही थी।
गोपाल जी अस्पताल में 14 दिनों के अब्ज़र्वेशन पीरियड में रहे।
उनकी सभी जाँच सामान्य थी। उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी।
जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया ।
दोनों एक दूसरे से लिपट गये। एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी।
जब तक उनके बेटों की लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती, तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे।
उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये।
आज उनके फोटो के साथ उनकी गुमशुदगी की खबर छपी हैl
*अखबार में लिखा है कि सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा।*
40 हजार - हाँ पढ़कर ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी, जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते उड़ा दिया करते थे।
एक बार गोपाल जी के जगह पर स्वयं को खड़ा करोl
कल्पना करो कि इस कहानी में किरदार आप हो।
आपका सारा अहंकार और सब मोह माया खत्म हो जाएगा।
इसलिए मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि कुछ पुण्य कर्म कर लिया कीजिए l
जीवन में कुछ नहीं है l
कोई अपना नहीं है l
*जब तक स्वार्थ है, तभी तक आपके सब हैं।*
जीवन एक सफ़र है, मौत उसकी मंजिल है l
मोक्ष का द्वार कर्म है।
यही सत्य है ।
शिक्षा:
हे कोरोना, तू पूरी दुनिया में मौत का तांडव कर रहा है पर सचमुच में, तूने जीवन का सार समझा दिया है,
" अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा, स्त्री-पुरुष, धर्म-जाति, क्षेत्र-देश, राज़ा-रंक, कोई भेदभाव नहीं, सब एक समान हैं!
असली धर्म इंसानियत है! निस्वार्थ भाव से, निष्काम कर्म, सच्चाई, ईमानदारी, निर्मल प्रेम, मधुर वाणी, सद्भाव, भाईचारा, परोपकार करना ही सर्वश्रेष्ठ है!
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कल विशाखापत्तनम में स्टाइरीन गैस रिसन से दर्जनों मरे,सैकड़ों हास्पिटलाइज!फैक्टरी का साइरन नही बजा,लॉकडाऊन के कारण यह फैक्ट्री बंद थी! हिंदुस्तान पॉलीमर' नाम का यह प्लांट चोट्टे विजय माल्या का है! देश में मजहबी भीड़ पर,धूमधाम के शादी विवाह पर,जमातियों और धार्मिक मेलों पर कठोर नियंत्रण हो,किंतु कारखाने,फैक्टरी और अन्य जरूरी उत्पादन क्षेत्रों को यदि जल्दी ही लॉकडाउन से मुक्त नहीं किया तो हिंदुस्तान पॉलीमर की तरह अन्य औद्योगिक इकाइयों का भी यही हश्र होगा!
यदि शुरूं में ही विदेश से आने वाले तमाम कोरोना कैरियर्स को भारत के अंदर घुसने नही देते या पहले एकांत कोरेंटाइन में रख देते तथा जमातियों मरकज़ियों तबलीगियों की दिल्ली में मीटिंग न होने देते अथवा उन्हें लॉकडाऊन के बाद दिल्ली से बाहर टेस्टिंग करके क्वारेंटाइन में रख देते तो भारत में स्थिति इतनी खराब न होती!
आज सुबह सुबह हजारों मजदूरों को,उनके बच्चों को,नंगे पैर भूखे प्यासे हाइवे किनारे पैदल चलतेे देखा ! कलेजा मुँह को आ गया! केंद्र सरकार,राज्य सरकार और कांग्रेसी नेता सब झूंठ बोल रहे हैं,कुछ नही कर रहे हैं, कोई रेल इनके लिए नहीं हैं,15 दिन पहले गुजरात,महाराष्टुर से पैदल चले इन हजारों मजदूरों को केवल कभी कभार इधर उधर के समाजसेवी लोग अवश्य पानी पिला देते हैं, एक टाइम खाना भी कभी कभी ही मिल पाता है!
एक तरफ कुछ लोगों के पास शराबखोरी के लिए पर्याप्त पैसा है,दूसरी तरफ इन हजारों मजदूरों के पास भूख प्यास और मौत के सिवा कुछ नहीं है! यदि शीघ्र लॉकडाऊन नही टूटा तो न केवल मजूर किसानों पर बल्कि कल कारखानों पर बर्बादी का कितना कहर टूटेगा,उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है!

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शहरों में कुछ लोग लॉकडाऊन से इसलिये परेशान हैं कि बाहर मौज मस्ती करने का अवसर नही मिल रहा है,हालांकि उनके घरों में खाने पीने की कोई कमी नही, क्योंकि पैसा बोलता है!पैसा वो जिन्न है जो पलक झपकते ही हर चीज हाजिर कर देता है! ऐंसे लोग थोड़ा सोचें कि वे आज वे जिस कैद नुमा आशियाने में बैठे बैठे बोर हो रहे हैं,लाखों लोग उसी कैद तक पहुंचने के लिये रोज सैकड़ों-हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं! बहुतों ने तो अपनी जान ही गवाँ दी है हज़ारों लोग अभी भी इस आस में संघर्ष रत हैं,कि वे कभी तो अपने बच्चों के साथ वहाँ पहुँच पायें,जहां आज आप बोर हो रहे हैं!
यदि आप सपरिवार अपने घर में हैं,स्वस्थ हैं और यदि आपको 2 टाइम का भोजन मिल रहा है, तो समझ लीजिए कि आप दुनिया के बहुत भाग्यशाली व्यक्ति हैं!आप की वर्चुअल परेशानी से ज्यादा बढ़ी उन मजलूमों की वास्तविक परेशानी है,जो रोज कमाते और फिर बमुशकिल दो रोटियों का इंतजाम कर पाते हैं!

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बाबा भारती घोड़े पर कहीं जा रहे थे। बीच रास्ते में निर्मला सीतारमण मिल गईं, बोलीं :-
' बड़ी गर्मी है बाबाजी,आप और घोड़ा दोनों परेशां होंगे। स्पेशल ट्रैन में सवार हो जाएँ।'
बाबा मान गए। किंतु गंतव्य पर पहुँच कर घोड़ा वापिस माँगा,तो जबाब मिला कि 'घोड़े की कीमत काटकर दो हजार रुपये और बनते हैं भाड़े के।'
बाबा बोले :- इस घटना का जिक्र किसी से न करना बेटी,वरना वित्त मंत्री से और सरकारी 'पैकेज' से लोगों का भरोसा उठ जाएगा।

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कोरोना COVID-19 की वजह से विगत दो महिनों में सात अरब आबादी में से लगभग तीन लाख से अधिक मानवीय मौतें हुईं हैं!यह बहुत जरूरी है कि 'विश्व स्वास्थ संगठन' दुनिया को यह बताए कि कोरोना कहां कैसे पैदा हुआ? इसके अलावा सभी मरने वालों का और बीमार होकर स्वस्थ होने वालों का रहन-सहन,रीति-रिवाज,सामाजिक तान- बाना और मजहबी आधार पर उन सभी की वर्गीक्रत सूची जारी की जाए!ताकि दुनिया के तमाम लोग अपने जीवन में जरूरी बदलाव कर सकें! तदनुसार ही लॉकडाऊन आगे बढ़ाया जाए
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ट्र्म्प महोदय ने विगत सप्ताह व्हाइट हाउस में हवन और शांतिपाठ कराया!मोदी सरकार को चाहिए कि चुनिंदा 1008 वैदिक पंडितों इकट्ठा कर किसी कोराना संक्रमित इलाके में यज्ञ की अनुमति प्रदान करें! यदि कोई लाभ होता है तो ठीक है अन्यथा आइंदा यज्ञ का महिमा बखान और उसके लिए सैकड़ों क्विंटल घी,शक्कर,अन्न और लकड़ी जलाने का आयोजन सदा के लिए बंद किया जाए!

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जो व्यक्ति किसी दूसरे के मालिक/नियोक्ता की शर्तों पर श्रम बेचकर गुजारा करता है, वह मजदूर है! चाहे वह सरकारी क्षेत्र का मजदूर -कर्मचारी हो या निजी क्षेत्र का!चाहे महिने में तीन हजार मजूरी पाता हो या लाखों रु. महिना कमाता हो!यदि वह उत्पादन के साधनों का हिस्सेदार नही है,मुनाफे का हकदार नही है,तो वह सौ फीसदी मजदूर है! इससे कोई फर्क नही पड़ता कि कोई टाई बांधकर कार में घूमता है या प्रवासी मजदूरों की भांति बिना चप्पलों के भरी गर्मी में भूखा प्यासा सपरिवार पैदल सड़क पर चलता है!

कोरोना संकटकाल में लॉकडाऊन के कारण जब लाखों इधर होने लगे तो सोशल मीडिया और राजनैतिक दलों ने संज्ञान लिया!किंतु कुछ लोगों को गलतफहमी हो गई कि ये दो-तीन लाख प्रवासी मजदूर ही भारत के मजदूर हैं!जो मुंबई गुजरात से वापिस अपने घर यूपी बिहार लौटे चुके या लौट रहे हैं!
दरसल भारत में संगठित क्षेत्र के मजदूर तो लगभग दो करोड़ ही हैं,किंतु असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या लगभग 40 करोड़ है!

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कोरोना संकट के तीन माह गुजर गये,सोशल मीडिया पर किसी भी अंधभक्त की पिछले 3 महीने की पोस्ट देखलें,एकभी पोस्ट कोरोना संकट,मजदूरों की परेशानी, सड़कों और रास्तों पर दम तोड़ते मजदूरों,भटकती रेलों, बीमारों के ईलाज में कोताही,डॉक्टरों और संसाधनों की कमी,पुलिस की सुरक्षा और जरूरी मेडीकल उपकरणों की कमी पर अंधभक्तों की ओर से एक भी पोस्ट नजर नही आयी!
देश के चौतरफा ख़राब होते हालात,चौपट होती अर्थव्यवस्था,भुखमरी से होती मौतों पर संघ परिवार और तमाम प्रतिक्रिया वादियौं की ना तो कोई भावात्मक पोस्ट दिखी और ना ही इनकी ओर से घोर असफलता पर सरकार से कोई सवाल!

ये अंधभक्त खुद को देशभक्त और राष्ट्रवादी कहते हैं, जबकि ना तो इनको देश से कुछ लेना देना है और ना ही देश के लोगों की समस्याओं से मतलब है! वे रात दिन सिर्फ कांग्रेस और गांधी नेहरू परिवार को गाली दे सकते हैं, वे इंसानियत युक्त वैदिक मूल्यों और हिंदू सनातन आदर्शों के बारे में कुछ नही जानते!वे केवल उसकी महानता का ढिंढोरा पीटकर,पूंजीवाद साम्प्रदायिकता
और निजीकरण को बढ़ावा देने वाली सरकार का झूँठा गुणगान करते रहते हैं!
जब उनका कोई अपना कोरोना से मर जाता है तब भी वे कुव्यवस्था पर कोई टिप्पणी न करके 'हरि इच्छा भावी बलवाना' का राग अलापते हैं!वे ऩही जानते कि कोरोना जनित संकट और देश की बदहाली के लिये क्या करना चाहिये? इसीलिये जनता का ध्यान भटकाने के लिये वे कभी चीन,कभी पाकिस्तान की निंदा करके देशभक्ति बघारते रहते हैं!

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