शुक्रवार, 15 मई 2020

दलित पिछड़े नेता मौन क्यों हैं?



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सुबह सुबह नगर के बाइपास से पैदल चल रहे मजदूरों के काफिले को देख किसी सज्जन ने उन्हें ढाढस बंधाते हुए कहा :-
"बधाई हो!अब आपके दिन फिरने वाले हैं!केंद्र सरकार 20 लाख करोड़ बांट रही है!
भयानक गर्मी में नंगे पैर चल रही मजदूरनी ने अपने सुकुमार बच्चे की ओर इशारा करते हुए कहा :-
"बाबूजी कोई मेरे बच्चे को एक जोड़ी जूते चप्पल दिला दे,दो रोटियां देदे,एक पानी की बॉटल देदे और घर( बिहार)पहुँचने का कोई बस या ट्रैन का इंतजाम करा दे,बदले मैं केंद्र सरकार जो कुछ हमें दे रही है,वह सब रख ले"
20 लाख करोड़ के पैकेज की बधाई देने वाले का चेहरा लटक गया! उसने जेब में हाथ डाला और उस मजदूर महिला को कुछ पैसे दैने लगा,किंतु तबतक भीड़ का रैला उस महिला और बच्चे को पैदल घसीटते हुए आगे बढ़ गया! इससे पहले कि मदद के लिये आगे बढ़ रहे हाथ कुछ कर पाते कि तभी भीड़ में से आवाज आई :-
''क्यों झूँठ बोल रहे हो साब! यदि सरकार ने हमारी कोई मदद की होती,तो हम हजारों भूखे प्यासे मजदूर 15-20 दिनों से यों पांव पैदल नही चल रहे होते! हम हजारों हैं और आप अकेले हम मैं से किस किस की मदद करोगे? बाबू जी आप तो घर जाओ,क्योंकि लॉकडाऊन है!"
सारांश :- 20 करोड़ के पैकेज में से जिस किसी सौभाग्यशाली को कुछ मिल जाए तो सूचित करें, ताकि सरकार की आलोचना करने वालों का ठोस जबाब दिया जा सके!

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यह धरती सनातन से संक्रामक रोगों की जननी रही है, हर दौर में ऐंसी दुर्घटना घटीं हैं कि बीमार को समाज से अलग थलग कर उसकी यथा संभव मदद करो! हर दौर में यह पाया गयाकि जो साफ सफाई से नही रहता, और कुदरत के नियमों को नही मानता वह संक्रामक रोग का शिकार जल्दी होता है और उसे फैलाता भी है!इसलिये अतीत की तरह वर्तमान में भी वैज्ञानिक आधार पर तथ्य पाया गया कि एक साफ सुथरा स्वस्थ इंसान तभी तक सुरक्षित है जब तक वह किसी संक्रमित व्यक्ति से दूर रहता है!
आज कोरोना काल में ही नहीं बल्कि इससे पहले एचआईवी संक्रमण के दौर में भी यह 'सोशल डिस्टेंसिंग' कारगर मानी गई थी! यदि कोई स्वस्थ इंसान आज बीमारी और अस्वच्छता से दूरी बनाकर रखता है,तो इसे किसी भी तरह से गलत नही माना जा सकता! यदि यह नया चलन भी पुराने की तरह बरसों तक जारी रहता है तो इस नये छुआछूत के आधार पर भी कुछ लोग आरक्षण मांग सकते हैं,और यह जरूरी भी है कि कमजोर को सहारा दिया जाए,किंतु मक्कार और बेईमान को नही!

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