लगभग दस साल पहले की बात है! हमारी यूनियन की विशेष मीटिंग दिल्ली में रखी गई थी! तीन दिन चली मैराथन मीटिंग से फुर्सत पाकर मैं अपने बेटा बहू और पोते से मिलने उनके नोयडा स्थित निवास पहुंचा!उस दिन शायद मेरे पोते चैतन्य का जन्मदिन था ! शाम को बेटे प्रवीण के कुछ मित्र और बहू अर्चना के मायके की तरफ से उनके भाई बगैरह उपस्थित हुए!
पौत्र चैतन्य के जन्मदिन पर मीडिया के कुछ खास लोगों के अलावा वहां कुछ और भी महानुभाव उपस्थिति हुए !उन्हीं में सबसे आदरणीय एक विराट व्यक्तित्व से बेटे बहु ने मुझे मिलवाया! वे थे पंडित श्री देवप्रभाकर शास्त्री उर्फ 'दद्दाजी'!
मैने प्रगतिवादी,भौतिकवादी और मार्क्सवादी रौ में आकर उन्हें उपेक्षा से नमस्कार किया! किंतु कुछ देर बाद उनकी सरल सहज मुख मुद्रा पर मोहक मुस्कान के अद्तीय विस्तार के प्रभाव ने मुझे प्रेरित किया कि यह बाकई असली संत है!धर्म अध्यात्म और इधर उधर की चर्चा के बाद मैने बाबाओं स्वामियों की घोर निंदा करते हुए गरीबी,भखमरी,बेकारी और वैश्विक राजनीति पर लंबा चौड़ा भाषण दे डाला!किंतु दद्दाजी रंचमात्र विचलित नही हुए!मेरी हर बात पर इनका केवल स्मित हुंकारा,मानों कह रहे हों कि 'तुम ठीक कह रहे हो'!
मैने कर्मकांड,यज्ञ और आधुनिक जगत के नवाचार पर उनका अभिमत जानना चाहा! किंतु विशुद्धत्मा दद्दाजी ने एक वाक्य में ढेर कर दिया!
"आप लोग जो कहते हैं,वह सब ठीक है किंतु वह केवल बाह्य जगत से सरोकार रखता है,हम जो कह रहे हैं,वह आस्था और विश्वास की नीव पर आश्रित है!आप लोग पेट की भूख के लिये संघर्ष की बात करते हैं,हम साधक लोग आस्था और विश्वास के सहारे अध्यात्म मार्ग पर आत्मा की भूख शांत करते हैं,वैसे ये दोनों काम जरूरी हैं! जो आप लोग कर रहे हैं वो भी मानव सेवा ही है,भले उसपर मार्क्सवाद का ठप्पा लगा हो!"
"आप लोग जो कहते हैं,वह सब ठीक है किंतु वह केवल बाह्य जगत से सरोकार रखता है,हम जो कह रहे हैं,वह आस्था और विश्वास की नीव पर आश्रित है!आप लोग पेट की भूख के लिये संघर्ष की बात करते हैं,हम साधक लोग आस्था और विश्वास के सहारे अध्यात्म मार्ग पर आत्मा की भूख शांत करते हैं,वैसे ये दोनों काम जरूरी हैं! जो आप लोग कर रहे हैं वो भी मानव सेवा ही है,भले उसपर मार्क्सवाद का ठप्पा लगा हो!"
मैं दद्दाजी के सम्मुख नतमस्तक हो गया!भले ही वे पाश्चात्य दर्शन के अध्येता नही थे,किंतु स्वामी विवेकानंद की तरह वे भी अपने सभी शिष्यों को कर्मयोग और भाईचारे के लिए ही प्रेरित करते रहते थे!उनकी व्यक्तिगत निश्छल जीवन शैली और साधना उन्हें तमाम पाखंडियों,स्वामियों, गुरूघंटालों से अलग करती थी और उन्हें सर्वप्रिय सर्वमान्य सर्वपूज्य बनाती थी!
चूंकि मैं पहले से ही सभी धर्म मजहब के ठेकेदारों और बाबाबाद,पोंगापंडितवाद का कट्टर आलोचक रहा हूँ!अत: मैं हर जगह धर्मांधता पर तर्क वितर्क के लठ्ठ लेकर टूट पड़ता था! बाबाओं,धर्मगुरूओं,मठाधीशो पर मुझे बिल्कुल आस्था नही है,किंतु दद्दाजी से मिलने के बाद,मैने माना कि धर्म अध्यात्म मार्ग पर कुछ अच्छे संत हर युग में जन्म लेते हैं!
कर्मयोगी कथावाचक पंडित देवप्रभाकर शास्त्री बाकई अजातशत्रु थे! दिवंगत पुण्यात्मा को सादर श्रद्धांजलि!
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